कमसिन उम्र xxx love story
लेकिन सविता चिंतित व उदास थी। कुछ ही देर में बिरादरी की पंचायत बैठने वाली थी और इसमें उनके प्यार के भविष्य का फैसला होना था। मस्तराम, सविता की महकती जवानी की खूबशू पी रहा था और सविता चुपचाप मस्तराम को सहयोग कर रही थी।
सांद्री के गंगाधर की बेटी सविता काफी सुंदर, आकर्षक व हंसमुख मासूम-सी युवती थी। वह हाई स्कूल में पढ़ती थी। जिस स्कूल में सविता पढ़ती थी, उसी स्कूल के ग्राउण्ड में रतभोखा हाई स्कूल के चपड़ासी गणपत का बेटा मस्तराम रहता था। मस्तराम का पूरा नाम मस्तराम शर्मा था।
सविता फुर्सत के क्षणों में गणपत के घर आ जाया करती थी। गणपत, सविता ही नहीं, स्कूल की सारी लड़कियों को प्यार करता था तथा उन्हें कुछ न कुछ देता रहता था। कभी किसी लड़की को टाॅफी, तो कभी अपने हाथ का बनाया खाना ही खिलाकर भेजता था। यूं तो लड़कियां गणपत के घर पानी पीने आती थीं, लेकिन इसी बहाने से वे वहां बैठकर थोड़ी गपशप कर लेती थीं।
18 साल का मस्तराम अपने पिता के साथ स्कूल परिसर में ही रहता था। वह खूब लंबा-छरहरा व कसरती जिस्म वाला आकर्षक युवक था। मस्तराम आई.ए. में था और हर समय वह अपने घर में ही रहकर पढ़ाई करता था। उसके घर पर पानी-पीने आई लड़कियां अक्सर मस्तराम से चुहल करती रहती थीं।
यूं तो कई लड़कियां मस्तराम के आगे-पीछे डोलती रहती थीं, पर उनमें सविता की बात ही कुछ अलग थी। सविता हर समय मस्तराम के गिर्द ही मंडराती रहती थी।
मस्तराम मैथ्स(गणित) में काफी तेज था। सविता अक्सर मैथ्स के कोई सवाल लेकर मस्तराम के पास आ जाती थी और मस्तराम चुटकियों में प्रश्न का हल कर देता था। इस दरम्यान दोनों में आंखों से तथा कभी जुबान से भी बातें होती रहती थीं।
इसी मिलने-जुलने के क्रम में सविता कब मस्तराम को अपना दिल दे बैठी, कुछ पता ही नहीं चला। मस्तराम को इसका एहसास उस रोज हुआ, जब सविता ने अपनी नोट्स बुक में श्रवण को संबोधित करते हुए एक चिट तैयार किया था। मस्तराम ने उस चिट में पढ़ा था।
सविता ने लिखा था, ‘‘मस्तराम, मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं। मेरे मन मंदिर में मस्तराम है, और इसके अलावा मैं कुछ और सोच ही नहीं पाती। अगर किसी दिन तुम्हें देख व मिल नहीं पाती, तो भगवान ही गवाह है मस्तराम, मैं चैन से सो नहीं पाती हूं। मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा।’’
मस्तराम, सविता से प्यार करता था या नहीं? पता नहीं, लेकिन यह सच था, कि सविता उसे अच्छी लगती थी। उसका हंसना-मुस्कराना, इठला कर बातें करना व मस्तराम को चिढ़ाते हुए बुकिस वर्म कहने की उसकी इच्छाएं काफी निराली थीं। इसी एहसास के साथ मस्तराम, सविता की तरफ आकर्षित होता गया।
और जब सविता ने खुलेआम प्यार का इजहार कर दिया, तो मस्तराम ने भी उसका उत्तर तैयार करने में देरी नहीं लगाई। अगले दिन सविता किसी बहाने से मस्तराम से मिलने आई, तो मस्तराम ने अचानक ही सविता को बांहों में भर लिया तथा उसके अधरों तथा गालों का चुम्बन लेेते हुए कहा, ‘‘सविता, आई लव यू! कई दिनों से मेरे सपने में एक लड़की की तस्वीर उभर रही थी, वो तुम हो सविता तुम।’’
दोनों ओर से मोहब्बत का इजहार हुआ, तो इसके बाद दोनांे प्रेमियों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उस रोज स्कूल की छुट्टी होने पर सविता घर जाने के लिए बाहर आयी, तो मस्तराम ने उसे इशारे से अपने घर में बुला लिया और कहा, ‘‘सविता जब हम दोनों एक-दूसरे को इतना चाहते हैं, तो हमारे बीच कोई फासला नहीं रहना चाहिए। आज मौका अच्छा है।’’ उसने बताया, ‘‘पापा शहर गए हैं और मैं अकेला हूं। तुम थोड़ी देर मेरे पास बैठी रहो, मैं तुम्हारे हुस्न का कतरा-कतरा पीना चाहता हूं।’’
यह कहकर मस्तराम ने अंदर से कोठरी का दरवाजा बंद किया और सविता को प्यार करने लगा। जब मस्तराम ने सविता के बदन को चूमना शुरू किया, तो सविता के बदन में एक सनसनी-सी दौड़ गयी। वह भी एक पल के लिए मस्तराम से लिपट गयी और उसने भी मस्तराम को चूमना शुरू कर दिया। परस्पर चुम्बन, आलिंगन के बाद दोनों निर्वस्त्र होते गए। फिर एक ऐसा अवसर ऐसा भी आया, जब दोनों ही एक-दूसरे के समक्ष पूर्ण निर्वस्त्रावस्था में हो गए।
सविता का तो मारे शर्म के बुरा हाल था, मगर मस्तराम, सविता को इस अवस्था में देखकर पागल हुआ जा रहा था। उसके बदन में गजब की एंेठन होने लगी। वह सविता के नजदीक आया और उसकी आंखों से आंखें मिला कर बोला, ‘‘तुम तो बहुत ही खूबसूरत हो सविता।’’ वह प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला, ‘‘मैंने तो आज तक तुम्हारा बाहरी सौंदर्य ही देखा था, मगर आज तुम्हें इस रूप में देखकर, तो मैं दीवाना हुआ जा रहा हूं।’’
कहकर मस्तराम ने झट से सविता के गोरे निर्वस्त्र बदन को अपनी बांहों में समेट लिया और दीवानों की तरह उसे यहां-वहां चूमने व चाटने लगा। फिर जैसे ही उसके हाथ सविता के सख्त उभारों पर जम गए, तो सविता भी सिहर उठी। उसके मुख से मादक सिसकारियां निकलने लगीं।
‘‘ओह! मस्तराम।’’ वह आंखें मूंदती हुई बोली, ‘‘क्या करते हो छोड़ो न।’’ वह जानबूझ कर बनावटी विरोध करती हुई बोली, ‘‘प्लीज़ छोड़ दो… अब मैं भी बहकने लगी हूं। अगर मैं बहक गई, तो कुछ न कुछ हो जाएगा।’’
‘‘यही तो मैं चाहता हूं मेरी जान, कि कुछ न कुछ हो जाए।’’ वह सविता के पुष्ट नितम्बों पर हाथ फिराता हुआ बोला, ‘‘आज तुम मुझे नहीं रोकोगी।’’ सविता के होंठों को चूमते हुए बोला श्रवण, ‘‘आज हम दोनों सारी मर्यादा तोड़ दंेगे।’’
अब तक सविता का बनावटी विरोध भी काफूर हो चुका था। वह भी मादक सीत्कार लेकर बोली, ‘‘मुझसे भी अब और नहीं सहा जा रहा मेरे श्रवण।’’ बेतहाशा लिपट गयी सविता, मस्तराम से, ‘‘आज मैं इस सुख को पा लेना चाहती हूं, जिसे मैंने शादी के बाद अपने पति से चाहने की कामना की थी।’’
फिर क्या था, मस्तराम ने सविता को गोद में उठाया और पास ही पड़े बेड पर ले जाकर पटक दिया। वह उसके ऊपर झुक कर बोला, ‘‘मेरा पूरा साथ देना मेरी जान।’’ वह बोला, ‘‘थोड़ी तकलीफ होगी, मगर वायदा करता हूं, मजा भी उतना ही दूंगा, कि तुम मेरी कायल हो जाओगी।’’
‘‘हंू…।’’ केवल इतना ही कहा सविता ने और अपनी पलकें झुका लीं।
फिर मस्तराम एक जोरदार प्रहार के साथ सविताकी ‘देह’ में समा गया। एकदम बिलबिला उठी सुनयना। वह दोनों जबडे़ भींचते हुए बोली, ‘‘उई मा! मर गयी।’’ वह मस्तराम को परे धकेलने लगी, ‘‘हट जाओ प्लीज… ओह! रहने दो… मर गयी…।’’
‘‘श्..श्..!’’ मस्तराम ने सविता के मुंह पर अंगुलि रखते हुए, ‘‘चीखो मत, कोई सुन लेगा।’’ वह हौले से बोला, ‘‘मैंने पहले ही कहा था, कि थोड़ी तकलीफ होगी।’’ फिर उसके उरोजों को धीरे-धीरे सहलाते हुए बोला, ‘‘थोड़ा और धैर्य रख लो, फिर देखना तुम्हें भी जन्नत का मजा आने लगेगा।’’
फिर सविता के किसी तरह थोड़ी देर तक श्रवण के वार सहन किए, परन्तु वाकई कुछ ही देर बाद उसे भी सुख की अनुभूति होने लगी। उसका दर्द जाता रहा था। वह हौले से मुस्करा के बोली, ‘‘जानू अब तो वाकई मजा आ रहा है।’’ वह शरमाते हुए बोली, ‘‘थोड़ी रफ्तार बढ़ाओ ना प्यार की।’’
कहते ही वह शर्म के मारे मस्तराम से लिपट गयी। फिर मस्तराम ने जमकर सविता के जिस्म की सवारी की। फिर एक क्षण आया, जब दोनों एक उत्तेजक सीत्कार लेते हुए बेतहाशा एक-दूसरे से लिपट गए और बुरी तरह हांफने लगे दरअसल दोनों ही पूर्ण तृप्त हो चुके थे। दोनों को आज असीम सुख की अनुभूति प्राप्त हुई थी। एक ऐसा तूफान उस बंद कमरे में आया था, जो उन दोनों को सराबोर करते हुए निकल गया। आज मस्तराम व सविता ने आपस की जिस्म की दूरियां भी मिटा ली थीं।
कहते हैं, कि कच्ची उम्र में प्यार का नशा बड़ा गुल खिलाता है। यह अंधा व बहरा भी होता है तथा इंसान के विवेक को हर लेता है। मस्तराम व सविता ने सोचा तक नहीं था, कि केवल जिस्म की दूरियां मिटा लेने से ही सारी दूरियां मिटा नहीं जातीं। सबसे बड़ा फासला समाज व बिरादरी का होता है, जिसकी बुनियाद पर दोनों दो अलग-अलग किनारों पर खड़े थे।
लेकिन यह तो तब ही जान पाते, जब उनके प्यार का नशा कुछ कम होता। सोच-विचार, विवेक, समाज, मर्यादा, परिवार सबको ताक पर रख दिया प्रेमी युगल ने और एक नई राह पर चल पड़े, जहां उन दोनों के सिवा कोई नहीं था। न घर वाले, न पड़ोसी, न मित्र, न रिश्तेदार। यही दुनिया थी, इस प्रेमी जोड़े की।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।