कामुक रेशमा kamukta chudai kahani
लगा, तो रेशमा कसमसाई, लेकिन बोली कुछ नहीं। रेशमा को कुछ कहते हुए न देखकर बंटी अपना चेहरा उसके सीने पर रगड़ने लगा, तो रेशमा सीत्कार कर उठी। फिर आवेश में उसने न जाने कब बंटी को अपने ऊपर खींच लिया।
बंटी तो यही चाहता था। दूसरे ही पल उसने रेशमा के कपड़े उतार फंेके। रेशमा के मादक जिस्म व दूधिया उन्नत कोमलांगों को देख वह मतवाला हो उठा और उन्हें धीरे-धीरे प्यार से सहलाने लगा। फिर जैसे ही बंटी का हाथ रेंगता हुआ रेशमा की जांघों के ऊपर आया, रेशमा मतवाली हो उठी और सिसियाती हुई बुरी तरह बंटी से लिपट गयी और उसके कपड़े नोंचने-खसोटने लगी।
”बंटी आज जोर-जोर से बजाओ मेरे प्यार की घंटी…।“ मादक सिसकियां भरती हुई बोली रेशमा, ”तुमने मेरे अंग-अंग में मस्ती की लहर भर दी है। आज चटका डालो मेरी एक-एक नस को, हर अंग को।“
”देख लो मेरी रानी।“ बंटी उसके होंठों को चूमते हुए बोला, ”बाद में बस-बस की रट न लगाने लग जाना।“
”मैं तो तुम्हारी बांहों में और…और की रट लगाना चाहती हूं… बस…बस की नहीं।“ मुस्कराके बोली रेशमा, ”इस रेशमा की आज पूरी रेशमा मिटा डालो। यानी मेरी प्यास को बुझा दो।“
फिर देखते ही देखते दोनों पूर्ण रूप से बेलिबास हो गये और बिस्तर पर आकर एक-दूसरे को पछाड़ने लगे।
बंटी, रेशमा के ऊपर आते हुए बोला, ”क्यों जानेमन, बोल दूं हमला तुम्हारी प्यार की खोली में?“
”पर हमला शानदार होना चाहिए मेरे राजा।“ रेशमा भी एक आंख मारती हुई बोली, ”मुझे भी लगना चाहिए कि मेरी खोली में वाकई कोई मेहमान आया है।“
”मेहमान तो आ जायेगा मेरी जान, तुम्हारी खोली में।“ रेशमा के मांसल अंगों को सहलातेे हुए बोला बंटी, ”पर तुम्हें भी मेरे मेहमान का अच्छे से ख्याल रखना होगा। उसे खूब प्यार देना होगा।“
”हां…हां… मेरे बलम वादा करती हूं, मेरी ‘खोली’ में आते ही तुम्हारा ‘मेहमान’ इतना मजा प्राप्त करेगा कि मेरी ‘खोली’ से निकलने का उसका मन ही नहीं करेगा।“
फिर क्या तथा, एकाएक मेहमान ने रेशमा की ‘खोली’ में प्रवेश कर लिया। रेशमा बेचैन होकर बोली, ”ओह…उई मां… कितना हट्टा-कट्टा मेहमान है। लगता है बहुत खेला खाया है, तभी तो आते ही मेरी खोली चरमरान लगी। जरा अपने मेहमान से कहो, कि फिलहाल आराम से अपनी खातिरदारी करवाये।“
”मैंने तो पहले ही कहा था बस…बस न करना।“
”तो मैंने कब बस..बस की राजा, मैं आराम से चलने के लिए कह रही हूं।“
”ये आराम नहीं, ‘काम’ करने का पल है जानेमन।“ सुखा के नितम्बों पर हाथ फिराता हुआ बोला बंटी, ”अब मुझे मेरा ‘काम’ करने दो।“
”हाय दैय्या…निर्दयी कहीं के।“ पुनः बंटी ने प्यार का हमला रेशमा की खोली में किया, तो तपाक से उचक कर बोली रेशमा, ”पागल हो गये हो क्या? कहा न प्यार से काम लो। मजा चाहती हूं मैं, सजा नहीं।“
”अच्छा बाबा ये लो।“ कहकर धीरे-धीरे प्यार की गाड़ी चलाने लगा बंटी, रेशमा की सड़क पर।
”हां बंटी, ओह… यही तो चाह रही थी मैं तुमसे… अब आ रहा है न मजा।“ नीचे से बंटी को अपने ऊपर कसकर भींचती हुई बोली रेशमा, ”जानती हूं तुम्हारा मन तेज-तेज गाड़ी चलाने का रहा है। मगर मेरे साजन पहले ही ‘गेर’ में गाड़ी को स्पीड से नहीं दौड़ाना चाहिए। धीरे-धीरे जब मेरी सड़क, हाईवे का रूप ले लेगी, तब तुम बेशक 120 की स्पीड से कर लेना ड्राइविंग, मगत तक अपने ‘ड्राइवर’ को काबू में रखो।“
फिर जब गाड़ी रेशमा की सड़क पर धीरे-धीरे चलती हुई अपना कामरूपी पेट्रोल छोड़ती रही, तो रेशमा को भी बेहद मजा आने लगा। अब वह स्वयं ही बोली, ”ओह मेरे ड्राइवर… अब मेरी सड़क तुम्हारी मस्त व जोरदार ड्राइवरी की वजह से हाईवे बन चुकी है। अब मैं तुम्हें खुली छूट देती हूं, तुम जितनी मर्जी स्पीड में गाड़ी चला सकते हो। मगर ध्यान रहे राजा।“ बंटी के होंठों को वासना में आकर काटती हुई बोली, ”गाड़ी का पेट्रोल मंजिल पर पहुंचने से पहले ही खाली न कर देना।“
फिर तो वाकई बंटी ने ऐसे प्यार की गाड़ी दौड़ाई कि रेशमा चारों खाने चित्त हो गई। जब दोनों की काम-पिपास शांत हुई, तो रेशमा, बंटी से लिपट कर बोली, ”तुम्हारी मजबूत बांहों में तो मजा ही आ जाता है। मेरा पोर-पोर दुखा देते हो, तुम। एक मेरा बूढ़ा पति है, छूता है तो लगता है जैसे कोई बेजान मांस का लोथड़ा राह भटक गया हो।“
”तो फिर अगली बार कब आऊं मेरी जान?“
”जब जी चाहो आ जाना बलम, मेरी खोली तुम्हारे मेहमान की मेहमाननवाजी करने के लिए खुली रहेगी।“
30 वर्षीया रेशमा का अधेड़ पति कार्तिक शर्मा पेय जल व स्वच्छता विभाग में कार्यरत था। उम्र के साथ उसकी शारीरिक क्षमता क्षीण हो गयी थी। दिनभर के काम के बाद जब वह शाम को घर लौटता, तो खा-पीकर सीधा चारपाई ढूंढने लगता था।
सारा-सारा दिन पति का इंतजार करती जवान रेशमा पति की इस उपेक्षा से जल-भुन जाती थी। उसका दिल होता कि शाम को उसका पति आते ही उसे अपनी बाहों में भरकर प्यार करे और उसके जिस्म को इस तरह मथ दे कि हड्डियां तक चटक जाये, लेकिन सारा-सारा दिन काम करने वाला कार्तिक अपनी अवस्था व उम्र के चलते यह सब कम ही कर पाता था।
आखिर रेशमा ने अपने तन की भूख मिटाने के लिए इधर-उधर नजरें दौड़ाना शुरू कर दिया, तो एक रेडीमेड कपड़े की दुकान चलाने वाले बंटी से उसकी आंखें चार हो गयीं।
35 वर्षीय बंटी शादीशुदा था और उसके दो बच्चे भी थे। बंटी शुरू से ही कुछ रसिक मिजाज का युवक था। विवाह के बाद उसके पिता ने जब कपड़े की दुकान खुलवा दी, तो उसके यहां कई महिलायें अक्सर ही आया करती थीं।
उन्हीं में रेशमा भी थी। रेशमा ने जब तिरछी नज़र से देखना शुरू किया, तो वह भी अपने आपको नहीं रोक सका और एक दिन जब रेशमा कुछ कपड़े लेने उसकी दुकान में पहुंची तो ट्रायल के बहाने उसने रेशमा को केबिन में भेज दिया। वह केबिन में अपने कपड़े उतार कर नए कपड़े नापने के लिए पहन ही रही थी कि बंटी ने उसे दबोच लिया। तब वासना की मारी रेशमा खुद-ब-खुद उसकी बाहों में झूल गयी। फिर क्या था, एक बार दोनों वासना के सागर में डूबे तो बस डूबते ही चले गये।
आखिर एक दिन दोपहर मंे जब रेशमा और बंटी आदम जात निर्वस्त्रा एक-दूसरे में समा जाने की होड़ में वासना का खेल खेल रहे थे, तभी कार्तिक घर वापस लौट आया।
कार्तिक को देखते ही दोनों घबरा कर खड़े हो गये। बंटी अपने कपड़े लेकर वहां से फौरन खिसक गया, लेकिन रेशमा पड़ी थर-थर कांप रही थी।
बेशर्मी का तमाशा देखने के बावजूद कार्तिक, रेशमा की साड़ी उठाकर उसे देते हुए बोला, ”लो इसे पहन लो….मैं जानता हूं इसमें गलती तुम्हारी नहीं, मेरी है। कहां तुम और कहां मैं। तुम्हारे इस संबंध से मुझे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन हां मेरी इज्जत और आर्थिक स्थिति का ध्यान रखना।“
कार्तिक की बात सुनकर रेशमा का डर जाता रहा। अब वह मालदार बंटी से आये दिन किसी न किसी चीज की फरमाईश करने लगी। बंटी से ऐठे धन से दोनों ने एक जमीन खरीद कर मकान बनवाया और टी.वी, फ्रिज जैसे आवश्यक सुविधायें भी जुटा लीं।
वक्त गुजरता रहा। रेशमा का कार्तिक से जन्मा एक लड़का भी था। वह बड़ा हुआ तो अपनी मां का अवैध संबंध रास नहीं आ रहा था। उसने मां व बंटी को समझाया तथा न मानने पर बंटी की पिटाई भी अपने मित्रों के साथ मिलकर कर दी। पर बंटी ने तब भी रेशमा को नहीं छोड़ा, तो एक दिन मौका देखकर उसने बंटी को धोखे से अपने घर बुलाया। फिर उसे जमकर शराब पिलाने के बाद अपने मित्रों के सहयोग से उसका गला रेत कर बालू की ढेर में छिपा दिया।
बंटी को बुलाकर ले जाने के अगले दिन भी जब वह घर वापस नहीं लौटा तो उसके पिता ने रेशमा के लड़के पर शक जाहिर करते हुए अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा दिया। पुलिस ने तत्काल रेशमा के लड़के को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया।
थाने पर लाये जाने के बाद पूछताछ में पहले तो वह अपने को निर्दोष बताता रहा, लेकिन जब पुलिस अपने पर उतर आई, तो उसने सच्चाई बताते हुए बंटी की लाश बरामद करवा दी।
अंततः पुलिस ने सारी औपचारिकतायें पूरी कर उसे अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।