जिस्म का सुकून xxx antarvasna
वह कभी भी रश्मि को बिस्तर पर कला बाजियां नहीं खिला सका और तो और रश्मि जैसी फुलझड़ी के सामने रूपेश जैसा पटाखा हमेशा ही फुस्स होता रहा। बेचारी फुलझड़ी हमेशा सुलगती रह जाती थी।
रूपेश अक्सर ही शराब पीकर जल्दी उत्तेजित हो जाता था। जब वह रश्मि के साथ काम-क्रीड़ा में मशगूल होता, तो रश्मि के शरीर के दो-तीन हिलते-डुलते तेवर ही उसे निढाल कर देते थे। बेचारी रश्मि प्यासी की प्यासी रह जाती थी। उसे मन ही मन अपने पति से घृणा थी, मगर दिल की बात वह अपने होंठों पर कभी नहीं आने देती थी।
चूंकि उसका पति करोड़पति था, इसलिए खर्चे के लिए उसके पास कोई अभाव नहीं था। वह कभी-कभार अपने जिस्म की आग बुझाने के लिए मसाज सेंटरों का भी सहारा ले लेती थी, लेकिन मसाज सेंटरों का व्यवसायिक माहौल उसे कभी भी तृप्त नहीं कर सकता था।
वक्त गुजरता रहा…
इसी बीच रूपेश ने एक क्लब ज्वाइन किया। वैसे तो हाई सोसायटी के लोगों के लिए मुंबई जैसे महानगर में कई क्लब थे, लेकिन रूपेश ने जो क्लब ज्वाइन किया था, वह अपने आप में अनूठा था।
इस क्लब की विशेषता यह थी कि इसके मेम्बर सिर्फ पति-पत्नी ही बन सकते थे। क्लब खुलने के कुछ समय बाद ही उसके कई सदस्य बन गये और दिन-प्रतिदिन इसकी संख्या में बढ़ोत्तरी होती रही।
क्लब की खासियत यह थी कि मेम्बर हर रात यहां मौज-मस्ती के लिए आते थे। यहां कोई भी पत्नी किसी के भी पति के साथ मौज-मस्ती कर सकती थी, यही नियम पतियों पर भी लागू था।
पूर्णतः निर्वस्त्रा होकर स्त्राी-पुरूष अपने साथी के साथ चिपक कर संगीत की धुन पर थिरकते हुए एक-दूसरे को चूम-चाट और सहला कर उत्तेजित करते थे। फिर फ्लैट के कमरे में बने छोट-छोटे केबिन में ले जाकर एक-दूसरे को तृप्त करते थे।
पति-पत्नी की अदला-बदली कर मौज-मस्ती वाले इस क्लब में रात के दो बजे तक वासना की भट्टियां दहकती रहती थी। फिर सभ्य समाज के धनाढ्य लोग वासना का यह खेल खेलकर अपने-अपने घर रवाना हो जाते थे।
तुषार भी इसी क्लब का मेम्बर था। मुंबई में उसका फलों का थोक व्यवसाय था। वह जितना खूबसूरत था, उतनी ही बदसूरत उसकी पत्नी थी। तुषार 28 साल का हृष्ट-पुष्ट, गोरा-चिट्टा और बेहद आकर्षक नौजवान था। वैसे तो क्लब में तमाम खूबसूरत पुरूष व युवक थे, परन्तु उनमें वो खास बात कहां थी, जो तुषार में थी।
उसका आकर्षक व्यक्तित्व देखकर क्लब में मौजूद प्रत्येक स्त्राी एवं युवती के मुंह में पानी भर आता था। हर कोई उसी का सामीप्य पाने को लालायित रहती थी।
रश्मि भी उन्हीं में से एक थी। उसने कई बार तुषार के सामीप्य के लिए कहा था, लेकिन अब तक उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी थी। आज पहली बार कल के लिए तुषार ने आॅफर किया, तो रश्मि तुरन्त तैयार हो गयी।
जबसे तुषार ने उससे अगली रात का आॅफर किया था, तब से वह पूरी रात किस तरह मछली की तरह फड़फड़ा रही थी, यह तो सिर्फ वह जानती है। एक-एक पल उसे गुजारना बड़ा मुश्किल लगा था। हर पल रश्मि यही सोचती रही कि अगली रात कब आये…?
उसने आने वाली उस मिलन की रात का बहुत और बेसब्री से इंतजार किया था। आज उसका इंतजार रंग लाने वाला था। वर्षों की प्यास आज वह बुझाकर रहेगी।
तुषार का ध्यान आते ही रश्मि के समूचे शरीर में झुर-झुरी सी दौड़ गयी और रोमांच की वजह से उसके जिस्म का रोंया-रोंया एक-एक कर खड़े हो गया।
जालिम ने रश्मि को कराया भी तो बड़ा लंबा इंतजार था। बस चंद मिनटों के बाद ही उसकी सारी तड़प दूर हो जायेगी, जब उसके गुलाबी रंगत लिए गदराये जिस्म को निर्वस्त्रा कर तुषार अपनी बाहों में कसकर भींचेगा। उफ! ….तब क्या हाल होगा उसका….सोचकर ही रश्मि अपनी बाहों में सिहर-सी जाती थी।
रश्मि की आंखों में खास किस्म की मस्ती तैरने लगी। उसके अंग-अंग में मस्ती थिरकने लगी और मदहोशी से उपजी उत्तेजना की लहरों से उसके नाजुक अंग अंदर ही अंदर कंपकंपाने लगे।
अब रश्मि से सब्र नहीं हो रहा था। उसके पांव का दबाव कार की एक्सीलेटर पर बढ़ता जा रहा था। कार कमान से छूटे तीर की भांति सड़क पर दौड़ रही थी।
अंततः उसकी मंजिल आ ही गई। कार पार्किंग में खड़ी कर वह जल्दी से क्लब में पहुंच गई। हाल में सैंकड़ों स्त्राी-पुरूष नग्नावस्था में एक-दूसरे की बाहों में बाहें डाले अंग्रेजी धुनों पर थिरक रहे थे। क्लब के नियमानुसार रश्मि को भी निर्वस्त्रा होना पड़ा। इसके बाद वह बेसब्री से तुषार का इंतजार करने लगी।
एकाएक उसकी नज़र अपने पति रूपेश पर पड़ी, तो उसके जबड़े भिंच गये, मन-ही-मन उसने गाली दी। उसका पति एक छोटे कद की महिला के साथ लिपट कर थिरक रहा था।
रश्मि ने सिर झटक कर रूपेश की ओर से अपना ध्यान हटाया ही था कि सहसा उसे किसी ने दबोच लिया। पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह बिना देखे ही समझ गई कि यकीनन यह तुषार ही होगा। वह तुषार ही था, उसके जिस्म का खौलता हुआ गर्म-गर्म एहसास पाकर रश्मि के अंदर मौजूद वह चिंगारी भड़कने लगी, जिसे बुझाने के लिए वह क्लब आई थी।
तुषार के जलते हुए होंठों का स्पर्श रश्मि की सुराहीदार गर्दन के पिछले हिस्से पर हो रहा था। फिर जब तुषार के हाथ रेंगते हुए रश्मि के नितम्बों पर ठहरे, तो रश्मि के गुलाबी होंठों से एक साथ कई सीत्कारें निकल पड़ी, ”स…ओ.ह..“ वह मदहोशी भरी आवाज में बोली, ”इंतजार लंबा कराया आपने।“ रश्मि मछली की तरह तड़पी, फिर वह तुषार की छातियों पर उगे रीछ जैसे बालों को होंठों से चूमने लगी।
”ओह…आह.. उम..“ तुषार ने रश्मि के गोलाकार पिंडों को चूसना शुरू किया, तो सहसा उसके मुंह से बोल फूटे, ”ओह! अब बस….नहीं सहा जाता….अब देर न लगाओ। मुझे उठाकर ले चलो। मैं जन्नत की सैर करने को तड़प रही हूं….आह!“
इसके साथ ही रश्मि की पलकें अपने आप ही मूंद कर रह गयीं। फिर तुषार उसे उठाकर एक केबिन में घुस गया। रश्मि को बेड पर लिटाने के बाद तुषार उसके पास बैठकर अपने होंठों का करिश्मा उसकी पिंडलियों, जांघों और कोमालांगों तथा नाजुंक अंगों पर दिखाने लगा, तो रश्मि और भी मदहोश होती चली गई।
”तुषार मैं कब से प्यासी हूं। आज मुझे पीसकर रख दो….कोई भी रियायतय और हमदर्दी नहीं करना, जितने निर्दयी बन सकते हो, आज बन जाओ….आह!“
फिर वाकई निर्दयी बनकर जब तुषार, रश्मि की गुलाबी रंगत वाली ‘नगरी’ में घुसा तो एक मादक भरी जोरदार चीख निकल गई रश्मि के मुंह से, ”उम…उई…ओ..तुषा…“ मारे पीड़ा के उसके मुंह से तुषार भी ठीक से नहीं निकल पा रहा था, ”ओ मेरी मां… जान निकल रही है।“
”ओके… ओके.. मैं अभी हटता हूं।“ कहकर तुषार, रश्मि की देह से हटने लगा, तो एकाएक रश्मि ने उत्तेजना में उसे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और बोली, ”नहीं तुषार जी… तकलीफ तो हो रही है, मगर इस तकलीफ में भी अपना ही मजा है। मैं जितना चीखूं या मिन्न्तें करूं, तुम मत रूको। मैं बहुत प्यासी हूं तुषार… मेरी प्यास बुझा दो।“
”मैं भी कबसे तुम जैसी खूबसूरत और गठीले बदन वाली स्त्राी के साथ कामसुख प्राप्त करने के लिए तरस रहा था जानेमन।“ तुषार, रिश्म के होंठों पर अपने होंठ रखते हुए बोला, ”मेरी पत्नी किसी भी एंेगल से मेरे लायक नहीं थी, न तो बिस्तर पर न ही किसी स्तर पर।“
”और मैं?“ रश्मि ने मुस्करा पूछा।
”तुम्हारी तो बात ही निराली है मेरी जान।“ वह अपनी कमर चलाता हुआ बोला, ”तुम्हारी देह रूपी ‘जेल’ में मेरा ‘कैदी’ हमेशा के लिए कैद हो जाना चाहता है। इतना मजा आ रहा है मेरे ‘कैदी’ को तुम्हारी ‘जेल’ के अंदर रहकर।“
”तो अपने मोटे ताजे ‘कैदी’ से कहो न, कि जब मेरी ‘जेल’ के अंदर घुस ही गये हो तो एक जुर्म और कर डालो।“ वह निचला होंठ दांतों से काटती हुई बोली, ”और वह जुर्म है बलात्कार। एक ऐसा खूंखार बलात्कार कर डालो, कि मजा ही आ जाये।“ वह जोश में तुषार की छाती पर दांत गढ़ाते हुए बोली, ”मैं चाहती हूं कि मेरा एक-एक अंग पीस डालो, तोड़ डालो, मरोड़ डालो, यहां तक कि एक-एक हड्डी तक चटका डालो। ऐसे बलात्कार करो कि मैं जितना रोकूं, तुम उतने खूंखार तरीके से मुझे रौंदो।“
”ऐसी बात है तो ये लो मेरी जान।“ फिर तो तुषार के खंखार ‘कैदी’ ने ऐसा जुल्म ढाया रश्मि की अंधेरी ‘कोठरी’ में कि हाहाकार ही मच गया।
रश्मि का पूरा बदन चरमरा कर रखा दिया तुषार ने। उसने रश्मि को ऐसे आसनों में भोगा कि रश्मि का रोम-रोम पीड़ा से चटक रहा था, मगर उसमें उसे एक अनोखी व विचित्रा सुखद की अनुभूति भी हो रही थी। वे दो जिस्म एक जान हो गये।
उस वक्त रश्मि को कुछ भी ध्यान नहीं रहा। हां, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर में पंख उग आये हों और वह तेज गति से जन्नत की ओर उड़ती चली जा रही हो…
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।