Sex XXX Stories जिस्म की अगन
वह अपने कुछ दोस्तों के साथ बालाजी के दर्शन के लिये निकल गये। सत्यनारायण के चले जाने के बाद घर में उनका बेटा रवि, रवि की बीवी कविता और उनकी पत्नी बबली उपस्थित थे।
दोपहर के वक्त घर में मौजूद रवि किसी काम से गुड़गांव चला गया। पति के चले जाने के बाद कविता अपनी सास बबली के साथ बैठकर बातें करती रही। रात होने पर रवि जिस वक्त गुडगांव से अपने घर लौटा, तो उसने देखा उसकी मां बबली आज कुछ जल्दी ही सोफे पर खर्राटें भर रही थी।
रात के लगभग नौ बजे कविता ने पति रवि को आवाज देकर खाने पर बुलाया। रवि और कविता दोनों ने एक ही थाली में खाना खाया। इसके बाद दोनों सोने के लिये अपने बेडरूम में चले गये। रवि बेहद थकान महसूस कर रहा था, इसलिये बिस्तर पर लेटते ही उसकी पलकें भारी होने लगीं। फिर देखते ही देखते वह गहरी नींद में डूब गया। रवि की बगल में करवटें बदलती हुई कविता भी सोने की कोशिश करने लगी।
अगले दिन सुबह पांच बजे रवि की नींद खुली, तो उसने देखा घर में सबसे पहले जागने वाली उसकी मां घर में कहीं नजर नहीं आ रही थी। घर में मां को नहीं देखकर उसे हैरानी हुई। थोड़ी देर बाद जब कविता सोकर उठी, तो रवि ने कविता से पूछा, ‘‘कविता, मां कहीं नजर नहीं आ रही हैं?’’
‘‘अरे चली गई हांेगी कहीं बाहर।’’ कविता बेपरवाह होकर बोली, ‘‘थोड़ी देर में स्वयं ही लौट आयेंगी।’’
रवि काफी देर तक मां के घर में लौटने का इंतजार करता रहा, मगर फिर भी वह नहीं लौटी, तो वह परेशान हो गया। उसने गांव के पड़ोस में जाकर मां की तलाश शुरू की। मां का पता नहीं लगने पर रवि परेशान हो गया।
आखिरकार उसने बालाजी दर्शन को गये अपने पिता के मोबाइल फोन पर काॅल कर, उन्हें मां के घर से अचानक गायब होने की बात बताई और फौरन घर लौटने के लिये कहा।
बेटे के मुंह से पत्नी बबली के घर से अचानक कहीं चले जाने की बात सुनकर सत्यनारायण का दिल बेचैन हो उठा। बालाजी के दर्शन को अधूरा छोड़, वह अपने सभी साथियों के साथ उसी दिन अपने गांव मौकलवास लौट आये। घर पहुंच कर सत्यनारायण ने रवि और बहू कविता से सारी बातें पूछी।
ऐसा पहली बार हुआ था, कि बबली घर में किसी को बिना कुछ बताये इतने लंबे समय तक घर से बाहर रही थी। उन्होंने बेटे तथा अपने सगे संबंधियों के साथ मिलकर सरगर्मी से गांव में बबली की तलाश शुरू की। गांव में घर-घर पूछने के बाद उन्होंने रिश्तेदारी में हर जगह बबली के बारे में पूछा, मगर कहीं भी उसका पता नहीं चला।
बात सत्यनारायण और रवि के समझ के परे थी, कि वह अचानक रात दस बजे और सुबह पांच बजे के बीच बबली कहां गायब हो गई? वह गांव के ही कुछ नामचीन लोगांे के साथ विलासपुर थाने में पहुंचे और थाने में पत्नी बबली की गुमशुदगी दर्ज करा दी।
बिलासपुर थाने के डी.डी. नं. 10 के तहत बबली की गुमशुदगी दर्ज कर ली गई। थानाध्यक्ष बाबू लाल के द्वारा किसी व्यक्ति पर बबली को गायब करने के शक के बारे में पूछे जाने पर सत्यनारायण ने किसी पर भी बबली को गायब करने का शक जाहिर नहीं किया। थाने में बबली की गुमशुदगी दर्ज कराकर वे अपने गांव लौट आये।
बिलासपुर के थानाध्यक्ष बाबू लाल ने बबली का पता लगाने के लिये एन.सी.आर. के तमाम थानों में बबली की फोटो भेजकर उसके कहीं भी देखे जाने पर इसकी सूचना फौरन विलासपुर थाने में देने की अपील जारी की। दूरदर्शन के द्वारा भी बबली के गायब होने की सूचना प्रसारित कराकर उसके कहीं देखे जाने की सूचना विलासपुर थाने में देने की अपील जारी की गई।
उधरसत्यनारायण, रवि और उनके तमाम रिश्तेदार, बबली का पता लगाने की जी जान से कोशिश कर रहे थे। मगर अगले दो दिनों तक उन लोगों को बबली के बारे में कहीं से कोई सूचना नहीं मिली। सत्यनारायण और उनका परिवार बबली के इस तरह गायब हो जाने से बेहद परेशान थे।
बबली को शारीरिक या मानसिक किसी तरह की परेशानी नहीं थी। न ही उसे नींद में चलने की आदत थी। गांव के ही नवल सिंह ने बबली के गायब होने से परेशान सत्यनारायण को सूचना दी, कि सीनियर सैकेण्डरी स्कूल के निकट गंदे पानी के एक जोहड़ में एक औरत की लाश तैरती देखी गई है। वह चलकर पता कर लें।
जोहड़ में किसी औरत की लाश मिलने की बात सुनकर सत्यनारायण के की धड़कनें तेज हो गईं। ईश्वर को याद करते हुये वह कुछ लोगों के साथ गांव के बाहर उस जोहड़ के करीब जा पहुंचे। तब तक जोहड़ में लाश मिलने की सूचना पाकर मानेसर थाने की पुलिस वहां पहुंच कर औरत की पानी में तैरती लाश को जोहड़ से बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी।
लाश के बाहर निकाले जाने के बाद सत्यनारायण उसे करीब से देखने पहुंचे। लाश के चेहरे पर नजर पड़ते ही उनका कलेजा मंुह को आ गया। यह लाश उनकी धर्मपत्नी बबली की ही थी। सत्यनारायण ने उसी वक्त पुलिस अघिकारियों से मिलकर लाश की शिनाख्त अपनी गुमशुदा पत्नी बबली के तौर पर कर दी।
लाश शिनाख्ती के बाद मानेसर थाने की पुलिस ने बबली की लाश को पोस्टमार्टम के लिये गुड़गांव के सरकारी अस्पताल में भेज दिया। अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद बबली की लाश अंतिम संस्कार के लिये सत्यनारायण को सौंप दी गई। डाॅक्टर ने बबली का बिसरा जांच के लिये भेज दिया था।
अलबत्ता बबली की मौत का कारण अबतक स्पष्ट नहीं हो पाया था। सत्यनारायण ने दुखीः मन से बबली का अंतिम संस्कार कर दिया।
सुबह सत्यनारायण, गांव के सरपंच रविकांत के साथ विलासपुर थाने में पहुंचे। थानाध्यक्ष बाबू लाल की नज़र जैसे ही सत्यनारायण के ऊपर पड़ी उन्होंने सत्यनारायण तथा उसके साथ आये गांव के सरपंच को आॅफिस के अंदर बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है सत्यनारायण?’’ उन्होंने जानना चाहा, ‘‘कोई खास बात है क्या?’’
‘‘साहब जी! मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई।’’ दुखी भाव से बोला सत्यनारायण, ‘‘अब जो कुछ जिंदगी में बचा है, वह भी वह भी जल्द ही खत्म होने वाला है।’’
‘‘मैं कुछ समझा नहीं।’’ थानाध्यक्ष बाबू लाल ने सत्यनारायण के बुझे हुए चेहरे को गौर से देखते हुये पूछा।
सत्यनारायण ने थानाध्यक्ष बाबू लाल को धीमी आवाज में जो कुछ बताया, उसे सुनकर वह स्तब्ध रह गये। थोड़ी देर के लिये उन्हें ऐसा लगा, कि कहीं पत्नी की हत्या के सदमे के कारण अघेड़ सत्यनारायण की मानसिक स्थिति तो नहीं बिगड़ गई। मगर उनके साथ आये मौकलवास गांव के सरपंच रविकांत ने जब थानाध्यक्ष बाबू लाल को यकीन दिलाया, कि सत्यनारायण ने अभी उन्हें जो कुछ कहा है, वह सच है, तो थानाध्यक्ष बाबू लाल को उन दोनों की बातों पर यकीन करना पड़ा।
थानाध्यक्ष बाबू लाल ने सत्यनारायण की शिकायत पर उसी वक्त बबली हत्याकांड का मुकदमा विलासपुर थाने के अ0सं0 70ध्12 अण्डर सेक्शन 302 आई.पी.सी. के तहत उसकी बहू कविता, उसके प्रेमी जयप्रकाश व अन्य के खिलाफ केस दर्ज
कर लिया।
अगले दिन थानाध्यक्ष बाबू लाल पुलिस टीम के साथ मौकलवास गांव स्थित सत्यनारायण के घर पहुंचे। अपने घर में पुलिस को देखते ही कविता घबरा गई। उसका गला खुश्क होने लगा। जब थानाध्यक्ष बाबू लाल ने कविता को घटना के दिन भर के घटनाक्रम के बारे में पूछताछ के लिये उसे अपने पास बुलाया, तो वह कुछ बताने के पहले बार-बार थूक गटक कर अपने खुश्क गले को तर करने क प्रयास करने लगी।
लेडी कां0 रश्मि की उपस्थिति में थानाध्यक्ष बाबू लाल ने कविता से जब बबली के बारे में पूछताछ शुरू की, तो उसने एकदम से अनजान बनने की कोशिश की, लेकिन कई घंटें चली अथक पूछताछ के दौरान जब थानाध्यक्ष बाबू लाल ने पूछताछ का मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाया तब कविता टूट गई।
उसने अपने जुर्म का इकबाल करते हुये इस रहस्यमय हत्याकांड का खुलासा करते हुये अपनी सास बबली के कत्ल के पीछे अपने प्रेमी जयप्रकाश और उसके एक दोस्त के शामिल होने की बात बताई। कविता का इकबालिया बयान दर्ज करने के बाद उसे थानाध्यक्ष बाबू लाल ने उन्हें फौरन हिरासत में ले लिया।
उसी दिन कविता को गुडगांव की अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। अगले दिन पांच अप्रैल को स0इं0 कुलदीप किशोर ने पड़ोस के गांव कुम्भावास ढाणा गांव में पहुंच कर कविता के प्रेमी जयप्रकाश के गांव कुम्भवास ढाणी में रेड डालकर उसे पुलिस हिरासत में ले लिया।
उसी रात बबली की लाश को ठिकाने लगाने में शामिल इस खौफनाक हत्याकांड में शामिल तीसरे आरोपी पवन पुत्र उमेश चंद निवासी चितसैनी ढांढी के घर पर अचानक रेड डालकर उसे भी हिरासत में ले लिया गया। वह मोटर साइकिल भी बरामद कर ली गई, जिस पर बबली की लाश मौकलवास गांव से जोहड़ तक ले जाई
गई थी।
कुभांवास ढाणी में राज सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे। राज सिंह गांव के चुनिंदा प्रतिष्ठित लोगों में से थे। राज सिंह की पुत्राी सरिता रानी की शादी रेवाड़ी के समीप गांव सुरखपुर निवासी प्रदीप के संग हुई थी। राज सिंह का बेटा जयप्रकाश अपनी बहन का हालचाल जानने के लिये यदा-कदा उसकी ससुराल जाता
रहता था।
सरिता रानी की उन्नीस वर्षीया ननद कविता, खूबसूरती की जीती जागती मिसाल थी। गांव के लड़के उसकी एक झलक पाने के लिये उसके घर के ईद-गिर्द मंडराया करते थे। उधर घर वाले उसकी शादी के लिये किसी अच्छे लड़के की तलाश में थे। भाभी का भाई होने के कारण कविता को जयप्रकाश के सामने आने में किसी तरह का संकोच नहीं था।
जयप्रकाश की नजर जब पहली बार कविता के गदराये गोरे हुस्न पर पड़ी, तो वह उसके आंखों के रास्ते सीधे उसके दिल में उतर गई। दोनों के बीच मजाक का रिश्ता होने के कारण जयप्रकाश और कविता के बीच हंसी-मजाक का सिलसिला शुरू हुआ, तो दोनों ही एक-दसरे से चुहल करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते थे।
जयप्रकाश को कविता की हर अदा बेहद पसंद थी। तो उधर कविता भी भाभी के भाई जयप्रकाश की पर्सनेलिटी पर दिल से फिदा थी। कविता के दिल का हाल भी कुछ-कुछ जयप्रकाश के दिल के जैसा ही था। कविता के पास अपना पर्सनल मोबाइल फोन था।
एक दिन जयप्रकाश ने कविता से उसका मोबाइल नंबर पूछकर नोट कर लिया और अपना मोबाइल नंबर उसे बता दिया। जब तक जयप्रकाश बहन के ससुराल में रहता, कविता और वह आमने-सामने बैठकर एक-दूसरे को हसरत भरी निगाहों से देखते हुये आपस में मीठी-मीठी
बातें करते।
जब जयप्रकाश, कविता से विदा लेकर सुरखपुर से अपने गांव कुम्भावास ढाणी लौट जाता, तो वह वहां से कविता के मोबाइल पर फोन कर उससे ढेर सारी दिल को छू लेने वाली बातें करता। दोनों के दिलों में मोहब्बत की यह आग धीरे-धीरे परवान चढ़ती रही।
एक दिन जब जयप्रकाश को अपने दिल पर काबू नहीं रहा, तो उसने हिम्मत कर कविता के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने दिल का हाल बयां कर दिया। कविता, जयप्रकाश के दिल की बात उसकी आंखों में पहले ही पढ़ चुकी थी। फिर भी जयप्रकाश के मंुह से प्यार की बात सुनकर वह एकाएक सपनों की सतरंगी दुनिया में विचरण करने लगी। उसने एक पल की देरी किये बिना जयप्रकाश से कह दिया, कि वह भी उसे अपने दिल की गहराइयों से प्यार करती है।
कविता ने जयप्रकाश से यह भी कहा, कि वह किसी दिन मौका निकाल कर उससे मिलने के लिये उसके गांव आये। अपनी माशूका के दिल की तड़प का अंदाजा होते ही जयप्रकाश ने कविता से उसके घर जल्द आने का वादा किया।
बहन का घर होने के कारण जयप्रकाश को वहां जाने के लिये किसी खास बहाने की जरूरत नहीं थी। कुछ ही दिनों बाद वह बहन का कुशलक्षेम पूछने के बहाने सुरखपुर पहुंच गया। बहन बहनोई से मिलने के बाद जयप्रकाश की बेचैन निगाहें अपनी माशूका कविता को ढूंढने लगीं।
एकांत मिलने पर ही कविता जब उसके सामने आई, तो उसकी बेमिसाल सुंदरता को देख वह दंग रह गया। आज वह पहले से कहीं ज्यादा सुंदर और दिलनशीं लग रही थी। कविता का यह बेबाक अंदाज पहले से काफी बदला हुआ था। आज कविता बड़ी ही आत्मीयता से उससे मिली।
एकांत देखकर जयप्रकाश ने कविता का हाथ पकड़ लिया, तो कविता शरमाना छोड़, उसके और करीब सरक आई। दोनों काफी देर तक एक-दूसरे की आंखों की गहराई में अपने प्यार की तलाश करते रहे।
काफी देर तक एक-दूसरे को जी भरकर देखने के बाद जब कविता को किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी, तो वह जयप्रकाश से फिर मिलने की बात कहकर वहां से चली गई।
इस बार जयप्रकाश कई दिनों तक अपनी बहन के ससुराल में रूका। इसी दौरान जयप्रकाश ने कविता का भरोसा जीत कर उसके साथ जिस्मानी ताल्लुकात भी बना लिये।
दरअसल उस रोज घर में कविता के सभी परिजन रिश्तेदारी में कहीं शादी समारोह में गए हुए थे। ये बात पहले ही कविता ने मोबाइल पर जयप्रकाश को बता दी थी और शादी वाले रोज तबियत ठीक न होने का बहाना बनाकर घर में ही रूक
गई थी।
फिर कविता ने फोन कर जयप्रकाश को बुला लिया था और वह सही समय पर पहुंच भी गया था। घर में एकांत पाकर दोनों का दिल जोरों से धड़कने लगा। कविता ने कमरे का दरवाजा बंद किया और बेड पर आकर बैठ गई। उसकी बगल में ही जयप्रकाश भी बैठ गया और कविता के गुलाबी होंठों को हसरत भरी निगाहों से
देखने लगा।
‘‘इन्हें क्यों घूर रहे हो?’’ शरमाते हुए पूछा कविता ने, ‘‘इरादे तो नेक हैं?’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’ एकाएक जयप्रकाश ने कविता को बांहों में भर लिया और उसके होंठों का प्रगाढ़ चुम्बन लेकर बोला, ‘‘आज तो मैं तुम्हारे इरादे भी डगमगाने वाला हूं।’’
‘‘इरादे तो मेरे पहले ही डगमगा चुके हैं मेरे सनम।’’ अपनी गोरी बांहों को हार जयप्रकाश के गले में डालकर बोली कविता, ‘‘आज तो डगमगाते कदमों को और डगमगाने का मौका मिला है।’’ वह बांयी आंख मारते हुए बोली, ‘‘समझ के नहीं समझे।’’
‘‘समझ गया मेरी जान।’’ वस्त्रों के अंदर हाथों से कविता के उभारों को मसलते हुए बोला जयप्रकाश, ‘‘मगर जब तक ये वस्त्र हम दोनों के बीच दीवार हैं, तब तक दोनों की हसरत पूरी नहीं हो सकती मेरी जानेबहार।’’
‘‘तो ये लो।’’ बिंदास होकर कविता ने अपने सभी वस्त्र शरीर से जुदा कर दिए, ‘‘अब तो खुश हो।’’ कहकर वह स्वयं ही अपने हाथों से अपने निर्वस्त्र उभारों को सहलाने लगी।
कविता का गोरी निर्वस्त्र काया को देखकर जयप्रकाश के खून में वासना का उबाल आ गया। उसने भी अपने सभी वस्त्रा अपने शरीर से जुदा किए और कविता को बेड पर पटक कर उसके ऊपर आ गया।
‘‘अब तो मैं तुम्हें रौंद कर अपने जिस्म की सारी भड़ास तुम्हारी देह में उतार कर ही तुम्हें मुक्त करूंगा।’’ जयप्रकाश ने उत्तेजना
में कहा।
‘‘तो कौन रोक रहा है तुम्हें?’’ मदहोशी भरी आवाज में बोली कविता, ‘‘आओ न।’’ वह गोरी बांहें फैला कर बोली, ‘‘मेरी सूखी ‘गगरिया’ में अपने प्यार की बरसात कर दो।’’
फिर तो बिस्तर पर दो निर्वस्त्र जवां जिस्म ऐसे भिड़ गए, जैसे युद्ध भूमि में दो वीर यौद्धा एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए आपस में भिड़ते हैं।
जयप्रकाश ने जोर से कविता के दोनों उभारों को दबाते हुए उन्हें काटा, तो कविता चीखी, ‘‘इंसान हूं मैं कोई रबड़ का पुतला नहीं हूं, जो इस कदर नोंच रहे हो।’’
‘‘जानेमन अपन अभी तुम्हारे बदन के ऊपर कमाल दिखाया है तो यह हाल है मैडम का।’’ वह होंठों पर जीभ फिराता हुआ बोला, ‘‘जब तुम्हारे नीचे अपना कमाल अपने हथौड़े से दिखाऊंगा, तब तो तुम उछल कर पलंग से नीचे ही जा गिरोगी।’’
‘‘हाय क्या कहते हो।’’ एक पल को कविता वाकई सिहर गई, ‘‘इतना जुल्म न ढाना।’’ वह हौले से बोली, ‘‘जुल्म ऐसा हो कि इस जुल्म में भी जन्नत का मजा आ जाये। समझे।’’ कहकर कविता ने एक आंख मारी और जयप्रकाश के होंठों को चूम लिया।
फिर जय प्रकाश ने जैसे ही कविता की ‘प्रेम-बगिया’ में एन्ट्री मारी, तो मारे दर्द के कविता नो एन्ट्री प्लीज नो एन्ट्री की रट लगाने लगी। उसे ऐसे लगा जैसे किसी ने कोई पैनी दहकती हुई गरम सलाख उसके जिस्म में अंदर तक उतार दी हो, जो उसके शरीर के दो टुकड़े कर देगा।
‘‘उई मां…जय…हटो न …’’ वह जबडे़ भींचते हुए बोली, ‘‘बहुत दर्द हो रहा है। तुम्हारा अंग तो शायद किसी लोहे से बना है, ओह…तुम्हें मेरी कसम निकलो मेरी प्रेम-बगिया से बाहर।’’
‘‘ऐसे कैसे जानेमन निकल जायें तुम्हारी बगिया से।’’ वह भी आंख मारते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बगिया तो मेरे मेहमान की एन्ट्री पाकर बिन बरसात के गीली हो चुकी है। मेरा महमान कभी यहां फिसल रहा है, तो कभी वहां…ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा तुम्हारी बगिया के अंदर तो बाहर ऐसे निकलेगा।’’
‘‘ओह…प्लीज जय..यूं चुपड़ी-चुपड़ी बातें ना बनाओ…।’’ वह विनती सी करती हुई बोली, ‘‘बाद में दोबारा घुस जाना मेरी बगिया में..मगर फिलहाल अभी कुछ पल के लिए निकलो। जरा दम तो ले लूं।’’
इस बार जयप्रकाश मान गया और अपने जोशीले मेहमान को कविता की बगिया से बाहर निकाल दिया। फिर गहरी सांस लेकर बोली कविता, ‘‘हाय..अब कुछ चैन मिला…तुमने तो मेरी जान ही लेने का प्रोग्राम बना लिया था।’’
‘‘जान नहीं मेरी जान…ग..ग…लेने का प्रोग्राम जरूर बना लिया था मैंने।’’
इसपर हौले से मुस्कराई कविता, क्योंकि वह जयप्रकाश के कहने का मतलब समझ गई थी। मगर फिर भर अन्जान बनती हुई बोली, ‘‘क्या ये ग..ग… की रट लगा रखी है। कहना क्या चाह रहे हो…ये ग..क्या होता है जो तुम लेने चाह रहे थे मुझसे।’’
‘‘अरे मेरी जान क्यों गलत समझ रही हो…।’’
‘‘मैं तो कुछ समझी ही नहीं…फिर सही क्या गलत क्या।’’ मन ही मन मुस्कराती हुई बोली कविता।
‘‘ग…ग…से मेरा मतलब तुम्हारे प्यार की ग…गरमाहट लेने से था।’’
‘‘रहने दो…।’’ इस बार कविता ही बोल ही पड़ी, ‘‘जानती हूं..कैसी ग..से कैसी गरमाहट लेने के इरादे थे तुम्हारे।’’
‘‘अच्छा बताओ ग..से क्या इरादे थे मेरे?’’
‘‘रहने दो..मैं तुम्हारी तरह बेशर्म नहीं।’’
‘‘तो हम बेशर्म बना देते हैं मेरी जान।’’
कहकर इस बार वाकई जयप्रकाश ने बैक डोर एन्ट्री मार ली। जिसमें कविता को बेहद तकलीफ हुई और वह बर्दाश्त करती रही। फिर कविता ने कहा, ‘‘बहुत पीछे से वार कर लिया…।’’ वह हांफती हुई बोली, ‘‘अब जरा अच्छे मर्द की तरह सामने से सीधे वार करो।’’ वह मुस्करा कर बोली, ‘‘बड़े चालू हो, सामने से मना करके हटाया, तो बातों ही बातों में पीछे वार करके दिल बहलाने लगे और मुझे रूलाने लगे।
फिर तो वाकई जयप्रकाश ने कविता को आगे से ऐसे धूल चटाई कि कविता का मन बाग-बाग हो गया। वह बेतहाशा जयप्रकाश से लिपट गई और सीत्कार भरने लगी..‘‘ओह…उफ…आह…जय…तुम्हारी वाकई जय हो..तुम्हारे जोश की जय हो.. मजा आ रहा है…। हां…करते रहो..।’’
फिर तो जयप्रकाश ने कविता की प्यास बुझा कर ही दम लिया और साथ ही अपनी इच्छा की पूर्ति भर कर ली।
एक बार जब दोनों बीच जिस्मानी संबंध कायम हुआ, तो दोनों अक्सर मौका मिलते ही एकांत में निर्वस्त्र होकर प्यार की कबड्डी खेलने लगते। अब जब भी जयप्रकाश घर में आता, तो कविता खिलखिलाती हुई उसके समीप पहुंच जाती और पूरी गर्मजोशी से उसके स्वागत में लग जाती।
कुछ दिनों के बाद घर के लोगों ने कविता को हर वक्त जयप्रकाश के इर्द-गिर्द मंडराते देखा, तो उन्हें उनके रिश्तों पर शक हो गया।
कविता ने यह बात जयप्रकाश को बताकर उसे यहां से फौरन अपने गांव चले जाने के लिये कहा। जयप्रकाश के दिल की तमाम हसरतें पूरी हो गई थीं। वह कविता की बात मानकर अपने गांव कुम्भावास ढाणी लौट गया।
उधर मामला नाजु़क जानकर कविता के पिता ओमप्रकाश, बेटी की शादी के लिये जोर-शोर से लड़के की तलाश में लग गये। उन्हांेने कई जगहों पर जाकर कविता के लिये एक से बढ़कर एक लड़का देखा, लेकिन कहीं भी बात नहीं बनी।
मौका देखकर कविता ने अपने प्रेमी जयप्रकाश के मोबाइल पर फोन करके बता दिया, कि उसके पिता उसकी शादी करने के लिये जोर-शोर से लड़के की तलाश कर रहे हैं, अतः जल्द ही वह कोई ऐसा उपाए तलाश करे, जिससे उनकी नजदीकियां ताउम्र बनी रहे।
जयप्रकाश खुद कविता से शादी करने के लिये बेताब था, मगर जब उसने अपने दिल की हसरत अपनी बहन सरिता रानी को बताई, तो सरिता रानी ने अपने पति प्रदीप से बात करने के बाद जयप्रकाश को जबाब दिया, कि उसके ससुराल वाले इस रिश्ते के लिये सहमत नहीं हैं। बहन के मुंह से यह बात सुनकर वह निराशा के भंवर में डूब गया।
जयप्रकाश हर हाल में कविता को पाना चाहता था। अब वह मन ही मन में अपनी प्रेमिका कविता को पाने के लिये हर रोज नई-नई योजना बनाता रहता था। इसी दौरान एक दिन उसे पता चला, कि उसके पड़ोसी गांव मौकलवास में एक रसूखदार किसान सत्यनारायण अपने इकलौते बेटे की शादी करने के इच्छुक हैं।
एक ही जाति के होने के कारण जयप्रकाश ने अपने मन में सोचा, कि अगर उसकी महबूबा कविता की शादी सत्यनारायण के एकलौते बेटे रवि के साथ हो जाये, तो वह जब चाहे कविता से मिलनेे उसकी ससुराल जा सकता है। करीबी रिश्तेदारी होने के कारण उसके ससुराल वालों को उनके प्रणय संबंधों के बारे में जरा भी शक नहीं होगा।
जयप्रकाश ने फौरन सत्यनारायण के बेटे रवि के बारे में सारी जानकारी एकत्रा की और अपनी बहन के ससुराल पहुंच कर कविता के पिता ओमप्रकाश को रवि के बारे में हर बात को ऐसे बढ़ा-चढ़ा कर बताया, कि ओमप्रकाश के मन में वहां रिश्ता करने की इच्छा हो गई।
ओमप्रकाश, कविता की शादी जल्द करने के इच्छुक थे, इसलिये जयप्रकाश की बात सुनने के बाद एक दिन वह कुछ लोगों के साथ मौकलवास स्थित सत्यनारायण के घर पहुंचे। उन्हांेने जब रवि को देखा, तो वह उन्हें कविता के लिये पसंद आ गया।
उधर लड़के वालों को भी कविता पहली ही नजर में पसंद आ गई। कविता की शादी बड़ी धूमधाम से रवि के साथ सम्पन्न हो गई। शादी के बाद जब कविता ने अपनी ससुराल में रहना शुरू किया, तब जयप्रकाश, कविता से मिलने बार-बार रवि के घर आने-जाने लगा।
शुरू में रवि की मां बबली ने कुछ महिनों तक इस ओर ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब उसने पति तथा बेटे की गैरमौजूदगी में जयप्रकाश को बहू के कमरे में हंसी-मजाक करते देखा, तो उसका माथा ठनका और उसकी अनुभवी आंखों को उनके छिपे रिश्तों का सच समझते देर नहीं लगी।
वह समझ गईं, कि जयप्रकाश जानबूझ कर दिन के समय उस वक्त रवि के घर में आता है, जब सत्यनारायण और वह किसी काम से घर से बाहर रहते थे। यह देखकर बबली को जयप्रकाश और कविता के संबंधों पर शक होने लगा। अब वह जयप्रकाश के आने पर चैकन्ना रहने लगी।
एक दिन कविता की सास बबली जानबूझ कर जयप्रकाश और बहू को घर में अकेला छोड़ किसी काम के बहाने घर से बाहर निकल गई। जब वह जल्द ही वापस लौटी, तो उसने बहू का कमरा अंदर से
बंद देखा।
बबली ने फौरन बहू का दरवाजा खटखटाया। कुछ देर बाद कविता ने दरवाजा खोला, तो उसने देखा बहू के बाल बिखरे हुये और उसके कपड़े एकदम अस्त-व्यस्त हालत में थे। अचानक सास को सामने देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
उधर जयप्रकाश, कविता के पलंग के कोने पर अपराधियों की तरह अपना सिर झुकाये बैठा था। बबली ने बिफरते हुये जयप्रकाश को उसी वक्त अपने घर से बाहर चले जाने के लिये कहा। जयप्रकाश सिर झुका कर वहां से बाहर निकल गया।
उसके वहां से चले जाने के बाद बबली ने कविता को जी भरकर धिक्कारा और चेतावनी दी, कि आइंदा अगर जयप्रकाश ने यहां आकर उससे मिलने की कोशिश की, तो वह घर में सभी को उसके अवैध संबंधों की बात जग जाहिर कर उसे हमेशा के लिये उसके मायके भेज देगी।
सास की बातों को सुनकर कविता कांप उठी। वह मन-ही-मन यह सोचकर परेशान हो गई, कि अगर कहीं उसकी सास बबली ने वास्तव में उसके और जयप्रकाश के अवैध संबंधों की जानकारी उसके पति, ससुर तथा उसके मायके वालों को बता दी, तो उसका जीना दूभर हो जायेगा।
तब कविता ने झुक कर बबली के पैर पकड़ कर अपनी गलती के लिये माफी मांगी और जिंदगी में कभी दोबारा ऐसी गलती नहीं दुहराने की कसम खाई।
कविता ने बबली से दिखावे के लियेे माफी तो मांग ली, मगर उसने छिपकर प्रेमी जयप्रकाश के साथ मोबाइल पर बातें करना जारी रखा। जिस वक्त बबली किसी काम से घर से बाहर जाती, कविता, जयप्रकाश के मोबाइल पर मिस्ड काॅल कर उसे फोन करने का ईशारा कर देती। जयप्रकाश को हर घड़ी कविता के मिस्ड काॅल का इंतजार रहता था। वह फौरन काॅल बैक कर कविता के दिल की बात पूछने लगता।
बबली के हर वक्त घर में रहने के कारण दोनों का यहां मिलना एकदम असंभव था। जयप्रकाश ने जो सोचकर कविता की शादी अपने गांव के पड़ोस में कराई थी, उस पर पानी फिर गया था।
जब कविता ने महसूस किया, कि वह जयप्रकाश से मिले बिना नहीं रह सकती है, तो उसने जयप्रकाश के मोबाइल पर फोन कर उसे मिलन के लिये अब कोई दूसरा रास्ता निकालने के लिये कहा।
जयप्रकाश, कविता से मिलने के लिये किसी भी हद से गुजरने के लिये तैयार था। उसने कविता से कहा, कि जिस दिन उसके ससुर कुछ दिनों के लिये घर से बाहर जायें, वह छिपकर उसे नींद की गोलियां दे जायेगा। इन नींद की गोलियांें को वह सब्जी में मिला कर अपनी सास बबली और पति रवि को खिला दे।
नींद की गोलियों के असर से जब दोनों बेहोश हो जायेंगें, तब वह उसे फोन कर अपनी ससुराल बुला ले। जयप्रकाश को दोबारा पाने के लिये कविता उसकी इस कुत्सित योजना पर अमल करने के लिये राजी हो गई।
मार्च के महिने में जब सत्यनारायण ने घर में बालाजी जाने की चर्चा की, तब कविता ने अपने प्रेमी जयप्रकाश के मोबाइल पर फोन कर उसे ससुर के प्रोग्राम की सूचना दे दी।
जब सत्यनारायण अपने साथियों के साथ बालाजी दर्शन के लिये घर से निकलेे, तब कविता ने उनके जाने के फौरन बाद अपने प्रेमी जयप्रकाश के मोबाइल पर बात कर उसके द्वारा नींद की गोलियां मंगा लीं।
उस रात कविता ने जानबूझ कर अपनी सास बबली के पसंद की रसदार सब्जी बनाई। खाने के पहले उसने अपनी सास बबली और पति रवि की सब्जी में नींद की गोलियां अच्छी तरह मिला दीं। नींद की गोलियों के असर के असर से बबली उस रात अपने बिस्तर तक नहीं पहुंच सकी। वह सोफे पर ही सो गई।
रवि भी नींद की गोलियों के प्रभाव से बिस्तर पर जाते ही जाकर सो गया। दोनों के नींद में बेहोश होने के बाद कविता ने अपने प्रेमी जयप्रकाश के मोबाइल पर फोन करके उसे अपने घर में बुला लिया।
नींद की गोलियों के असर के कारण बबली सोफे पर बेसुध सोई थी। कविता ने बबली के गले में चुन्नी लपेट कर उसका एक सिरा जयप्रकाश के हाथों में दिया तथा दूसरा सिरा वह पूरी ताकत से अपनी ओर तब तक खींचती रही, जब तक कि उसकी सास बबली तड़प कर शांत नहीं पड़ गई।
बबली की लाश को ठिकाने लगाने के लिये जयप्रकाश ने अपने जिगरी दोस्त पवन, निवासी गांव चितसैनी डांडी के मोबाइल पर फोन कर कहा, कि उसकी रिश्तेदार काफी बीमार है, जिसे इलाज कराने इसी वक्त अस्पताल ले जाना जरूरी है।
जयप्रकाश की बात सुनकर पवन रात के लगभग बारह बजे अपनी मोटर साइकिल से कविता की ससुराल पहुंचा। पवन के वहां पहंुचते ही जयप्रकाश ने कविता की मदद से बबली की लाश को मोटर साइकिल की सीट पर इस तरह बिठाया, जैसे वह बहुत बीमार हो।
लाश को मजबूती से पकड़ कर जयप्रकाश उसके पीछे बैठ गया। मोटर साइकिल पर बैठते ही जयप्रकाश ने पवन को जल्दी से रेवाड़ी के जिला अस्पताल में चलने के लिये कहा। उधर मोटर साइकिल के आंखों से ओझल होते ही कविता ने अपने घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
मौकलवास गांव से थोड़ी दूर आगे जाने पर रास्ते के किनारे एक जोहड़ देखकर जयप्रकाश ने पवन से मोटर साइकिल रूकवाई।
पवन के मोटरसाइकिल रोकते ही जयप्रकाश ने पवन को बबली की हत्या की बात बताकर अब उसकी लाश को ठिकाने लगाने में मदद करने के लिये कहा। जयप्रकाश के मुंह से बबली की हत्या की बात सुनकर पवन सूखे पत्ते की तरह कांप उठा। मजबूरन पवन ने बबली की लाश को जोहड़ में फेंकने में जयप्रकाश की मदद की।
बबली की लाश को ठिकाने लगाने के बाद पवन ने जयप्रकाश को वापस उसकी पे्रमिका कविता की ससुराल के बाहर छोड़ा और फिर रातों रात अपने गांव लौट गया।
बबली की मौत की खुशी में जयप्रकाश और कविता ने सारी रात रंगरलियां मनाई। सुबह पौ फटने से पहले जयप्रकाश, कविता को आगे की योजना समझा बुझा कर वहां से अपने गांव कुम्भावास ढाणी चला गया। सुबह नींद की गोलियों का असर खत्म होने पर जब रवि की नींद खुली, तो उसने घर में अपनी मां बबली को नहीं देखा। मां का पता नहीं चलने से हैरान परेशान रवि ने बालाजी दर्शन को गये अपने पिता सत्यनारायण के मोबाइल पर फोन कर उन्हें जल्द घर लौटने के लिये कहा।
बबली हत्याकांड के रहस्य से पर्दा उठने से मौकलवास गांव के सारे लोग हतप्रभ थे। विवेचनाध्किारी स0इं0 कुलदीप किशोर ने बबली हत्याकांड में शामिल मुख्य आरोपी जयप्रकाश और लाश ठिकाने लगाने में शामिल आरोपी पवन को अदालत में पेश कर एक दिन के रिमांड
पर लिया।
बबली को गला घोंटने में प्रयुक्त चुन्नी तथा उसकी लाश को ठिकाने लगाने में प्रयोग की गई मोटर साइकिल बरामद करने के बाद अगले दिन दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें चैदह दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।