तन में सुलगे प्यार का लावा Tan Me Sulge Kamukta Pyar Ka Lava
पिछले एक अरसे से रामसिंह को अपनी बीवी मीना के चरित्रा पर शक था। मीना पहले जैसा उससे प्यार नहीं करती थी, न ही उसका ख्याल रखती थी। रामसिंह थका-हारा घर लौटता और सो जाता था। मीना उसे जगाने का कोई प्रयास नहीं करती थी। जबकि शुरू-शुरू मंे मीना आधी-आधी रात तक रामसिंह को सोने ही नहीं देती थी। अब जब कभी रामसिंह, मीना से सेक्स की इच्छा करता, तो झट से मीना मना कर देती।
वह कहती, ‘‘मैं अभी बहुत थक गई हूं..घर का काम करते-करते।’’
तब रामसिंह कसमसा कर रह जाता। कभी-कभी वह मीना से जोर-जर्बदस्ती करता, तो मीना उसे बुरा-भला कहने लगती थी। यंू तो रामसिंह, मीना से उम्र मंे दस साल बड़ा था, लेकिन वह मीना के आगे बूढ़ा ही नज़र आता था। रामसिंह की पहली बीवी का देहांत हो गया था। उसने मीना के संग दूसरी शादी रचाई थी। खूबसूरत बीवी पाकर रामसिंह स्वयं को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझता था लेकिन वक्त के साथ-साथ मीना भी बदलती गई और रामसिंह की कमजोरी को भांपकर, उसकी अनदेखी करनी शुरू कर दी थी।
रामसिंह अपनी बीवी को जान से बढ़कर चाहता था। वह मीना को घर की चारदीवारी मंे ही छिपा कर रखना चाहता था, ताकि किसी की काली नज़र उसे न लग सके। लेकिन मीना को घर की चार दीवारी मंे कैद रहना पसंद नहीं था।
उसने एक रोज, रामसिंह से अपने दिल की बात कही, ‘‘दिल्ली जैसे महानगर मंे एक व्यक्ति की कमाई से घर नहीं चलता है। मैं भी नौकरी करना चाहती हूं। अपने लिये न सही, कल को हमारे बच्चे हांेगे। उनकी चिंता तो हमें ही करनी है।’’
रामसिंह को मीना ने समझा दिया। रामसिंह के पड़ोस मंे रहता कमल, जो बांका(बिहार) का रहने वाला था। रामसिंह व कमल मंे याराना था। कमल घर पर ही डेयरी चलाता था और अच्छा पैसा कमाता था। रामसिंह ने कमल से बातचीत की। कमल ने सुझाव दिया, क्यों नहीं मीना को अपने व्यवसाय में पार्टनर बना लें। रामसिंह को कमल का सुझाव पसंद आया। कमल ने मीना को अपनी डेयरी मंे पार्टनर बना लिया।
वक्त गुजरता रहा। गुजरते लम्हांे में कमल और मीना एक-दूसरे के करीब आ गये। पति से बोर हो चुकी मीना को जब कमल ने दाना डाला, तो उसे चुगने में मीना ने देरी नहीं की। उन दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गया। अतृप्ति की आग में सुलग रही मीना के तन पर सावन की फुहार बनकर कमल इस तरह भीगा कि मीना का रोम-रोम नहा गया। उसने ऐसे ही मर्द की कल्पना कर रखी थी, जो उसके तन के रेशे-रेशे को भीगा दे। अब कमल आया, तो उसके जीवन की सूखी बगिया में बहार लौट गई। रामसिंह के ड्यूटी पर चले जाने के बाद मीना, कमल की आगोश में समा जाती और देर तक यौन-समंदर में डुबकियां लगाती रहती थी। उधर कमल भी अकेला था, अलमस्त व लापरवाह। मीना जैसी जवानी से भरपूर खूबसूरत औरत का रस निचैड़ने के लिये लालायित रहता था।
चोरी-छिपे बनाये गये संबंध ज्यादा दिनों तक छिपाये नहीं जा सकते। एक दिन पड़ोसियेां को पता चल गया कि मीना तथा कमल के बीच चक्कर चल रहा है। उन्होंने रामसिंह को भी सतर्क कर दिया कि वह मीना पर कड़ी नज़र रखे। लेकिन रामसिंह को यकीन नहीं हुआ कि उसकी बीवी ऐसी हो सकती है। जब उसने एक दिन अपनी नज़रों से मीना और कमल को एक-दूसरे में समाते देख लिया, उस दिन उस पर बिजली-सी गिर पड़ी। उसने मीना तथा कमल को जी भर कर गालियां दीं। फिर धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।
हालांकि मीना और कमल के बीच अब भी नाजायज़ संबंध बरकरार था, लेकिन उन्होंने इस बात की रामसिंह को भनक नहीं लगने दी थी। उधर, रामसिंह यही सोच रहा था कि मीना सुधर गयी है।
फिर मीना के दूसरा बच्चा हुआ, तो चांद-सा टुकड़ा देखकर, रामसिंह अब तक का सारे गिले-शिकवे भूल गया। लेकिन जब पड़ोसियों ने कानाफूसी करनी शुरू कर दी कि वह बच्चा तो कमल का ही हो सकता है, तब रामसिंह बौखला गया। लोग उस पर ताना कसने लगे। वह और परेशान हो उठा। चार दिनों तक वह घर से बाहर निकला ही नहीं। फिर वह ड्यूटी पर जाने लगा। लेकिन उसका मन नौकरी में नहीं लगता था। वह हमेशा अपने ही विचारों मे उलझा रहता था। उसने साथ ही मीना पर निगरानी बढ़ा दी थी।
उस दिन रामसिंह, मीना से यह कर घर से निकला कि वह ड्यूटी पर जा रहा है। मीना उठी और कमल को अपने कमरे मंे ही बुला लिया। उस समय मीना के तन पर कोई कपड़ा नहीं था। कमल भी नग्न था। दोनों एक-दूसरे में समाये प्यार के झूले पर पेंगें ले रहे थे, तभी बाहर से दरवाजे पर दस्तक हुई। क्षणभर के लिये मीना और कमल अलग-अलग हो गये। तभी दरवाजा तोड़कर, रामसिंह कमने में दाखिल हो गया और मीना व कमल को इस अवस्था मंे देखकर उन पर पिल पड़ा।
मीना ने कमल को कहा, ‘‘अबे देखता क्या है टपका दे इसे, जब तक यह जिंदा रहेगा, हम ठीक से अपनी प्यास नहीं बुझा सकते। अतः ….’’
मीना का वाक्य पूरा होने से पहले ही कमल, रामसिंह पर टूट पड़ा तथा उसे लात-घूंसों से पीटना शुरू कर दिया। रामसिंह, कमल की ताकत में आधा भी नहीं था। वह जल्दी ही धराशायी हो गया। उसी समय मीना ने साड़ी उतारी तथा रामसिंह का गला कस दिया। रामसिंह छटपटा कर शांत हो गया। इस तरह मीना ने वासना मंे अंधी होकर, अपने ही सुहाग का अपने ही हाथों से गला घोंट दिया। पुलिस ने रामसिंह की हत्या के जुर्म मंे मीना तथा कमल को गिरफ्तार कर, जेल भेज दिया है। अब मीना को अफसोस हो रहा है, काश! उसने अपने उठाये गये कदम पर विचार किया होता। मीना के दोनों बच्चे अनाथ हो गये हैं। मीना की जमानत कराने वाला कोई नहीं है। उसका कोई दूर का रिश्तेदार भी नहीं है। जो अपने थे, वही उसकी शक्ल से अब घृणा करने लगे थे। और मीना….जेल की चारदीवारी मंे कैद होकर रात-दिन आंसू बहाती रहती है।
अगर पति और पत्नी एक-दूसरे की जरूरतों को समझ कर अपना फर्ज पूरा करें, प्यार व विश्वास कायम रखें तथा हर काल व परिस्थिति में संतुलन बनाये रखें, तो ऐसे हादसों की नौबत आने की गुंजाईश कम ही रहती है।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है।