देवर ने मारी प्यार की बाजी kamukta sexy chudai
मेरे सपनों पर पानी फेर दिया भाभी।’’
‘‘ऐसा मत कहो देवर जी… अभी तुम जिस हसीना से ख्वाबों में ही प्यार कर रहे थे, उस हसीना से मिलवा दो। मैं तुम्हारी शादी उसी हसीना से करा दूंगी।’’
‘‘सच भाभी!’’ संजीव बिस्तर से उठते हुए बोला, ‘‘क्या तुम ऐसा कर सकती हो?’’ ‘‘बिल्कुल कर सकती हूं। तुम एक बार उस हसीना से मिलवाओ तो सही। फिर देखना मेरा कमाल कि मैं क्या कर सकती हूं।’’ वीना, संजीव को प्यार से समझाते हुए बोली।
‘‘ठीक है भाभी, मैं तुम्हें उस हसीना से मिलवा दूंगा। किन्तु इस बात का पता भैया को नहीं लगना चाहिए।’’ संजीव थोड़ा घबराते हुए बोला, ‘‘नहीं तो भैया मुझे मारेंगे।’’
‘क्यों मारेंगे?’’ वीना मुस्करा कर बोली, ‘‘क्या कभी तुम्हारे भैया ने प्यार नहीं किया था? यह सब तुम मुझ पर छोड़ो और तैयार होकर स्कूल जाओ।’’
फिर संजीव तैयार होकर स्कूल चला गया और जब स्कूल से आया तो संजीव की भाभी वीना बोली, ‘‘संजीव मैं तुम्हारी शादी उस अप्सरा से तो करा दूंगी, किन्तु तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी।’’
‘‘भाभी मैं तुम्हारी हर शर्त मानने के लिए तैयार हूं। बोलो भाभी, तुम्हारी क्या शर्त है?’’
‘‘जैसा मैं कहूंगी वैसा करोगे?’’
‘‘हां भाभी तुम जैसा कहोगी, मैं करूंगा।’’
संजीव दूसरे दिन भी स्कूल चला गया। किन्तु उसका मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगा, तो संजीव की प्रेमिका संगीता पूछने लगी…
‘‘संजीव तुम्हें आज क्या हो रहा है, जो तुम्हारा मन पढ़ने-लिखने में नहीं लग रहा? न ही तुम मुझसे कोई बात कर रहे हो। तुम मुझे अपनी परेशानी तो बताओ। तुमने तो मेरे साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी।’’
‘‘देखो संगीता, आज मेरा मूड सही नहीं है। मैं हंसी-मजाक के मूड मैं भी नहीं हूूं।’’
‘‘अरे मेरे राजा आज तुम्हारा मूड किसने खराब कर दिया है?’’ संगीता काॅलेज में ही संजीव के गाल का चुम्बन लेती हुई बोली।
तो संजीव का सारा गुस्सा कफूर हो गया और संगीता से हंसते हुए बोला, ‘‘मैंने आज अपने भैया से जेब खर्च के लिए सौ रुपये मांगे थे। मगर उन्होंने मुझे पैसे तो नहीं दिए, किन्तु मुझे ताने देने लगे।’’
‘‘क्या कहा था तुम्हारे भैया ने तुमसे?’’ संगीता ने पूछा।
‘‘वह बोले आज की इस मंहगाई में तुझे मैं पढ़ा-लिखा रहा हूं, वो क्या कम है? अगर तुझे जेब खर्च के लिए सौ-सौ रुपये रोजाना चाहिए तो जा कहीं जाकर अच्छी-सी नौकरी कर ले। जब तू कमाने लगे तो सौ-सौ के नोट खर्च करना। जब तुझे आटे दाल का भाव पता चलेगा। मैं भैया के सामने कुछ भी नहीं कह सका और चुपचाप स्कूल चला आया।’’
‘‘क्या तुम्हारी भाभी ने कुछ नहीं कहा?’’ संगीता, संजीव को प्यार से समझाते हुए बोली।
‘‘पागल मेरी भाभी तो एक देवी हैं। आज मैं उस घर में उसी की मेहरबानी से तो हूं। भाभी ने ही तो मुझे एक बेटे की तरह पाला है।’’ संजीव ने बताया, ‘‘भाभी ने घर से आते समय तेरे और मेरे लिए बस्ते में आलू के परांठे रख दिये हैं। किंतु मैंने आज भैया की बातों पर खाना भी नहीं खाया है।’’
उसी समय संगीता का माथा ठनका और संगीता बोली, ‘‘देखों संजीव, सब कुछ ठीक हो जायेगा। चलो खा लो।’’
‘‘देखो संगीता मुझे भूख नहीं है। अगर तुम्हें खाना खाना है तो तुम खा लो।’’
‘‘देखो संजीव, अगर तुम खाना नहीं खाओगे, तो मैं भी खाना नहीं खाऊंगी।’’ आखिर में संजीव को ही हार माननी पड़ी।
‘‘संगीता तुम आज क्या लाई हो?’’
‘‘जो तुम लेकर आए हो वो ही मैं लेकर आई हूं। फर्क इतना है कि तुम्हारे परांठे आलू के हैं और मेरे पराठे गोभी के हैं।’’ वीणा भी मुस्करा कर बोली, ‘‘जितना तुम्हारी भाभी तुमसे प्यार करती है। उतना ही प्यार मेरी भाभी रजनी मुझसे करती हैं।’’
‘‘संगीता जब तुम्हारी भाभी रजनी ने तुम्हारे लिए गोभी के परांठे इतने प्यार से बनाए हैं। तो मैं तुम्हारे परांठे अवश्य ही खाऊंगा।’’
संजीव और संगीता ने अपने-अपने परांठो की अदला-बदली कर ली और पार्क में ही लंच करने लगे।
जब संगीता ने संजीव के लाए हुए परांठों में से एक निवाला तोड़ा तो उस परांठे में एक प्लास्टिक की छोटी-सी थैली निकली वह थैली संगीता, संजीव को दिखाते हुए बोली, ‘‘संजीव देखो इस थैली में क्या है?’’
‘‘संगीता तुम ही खोलकर देख लो। जो भी होगा, वो तुम्हारा ही होगा।’’ जब संगीता ने थैली फाड़कर देखा तो उस थैली में मुड़ा-तुड़ा एक पांच सौ का नोट निकला।
इसपर संगीता बोली, ‘‘देखा संजीव, तुम्हारी भाभी वीणा तुमसे कितना प्यार करती हैं, जो तुम्हारी जेब खर्च के लिए ये नोट परांठों के सहारे रख दिया है।’’
उस वक्त संजीव को अपनी भाभी वीणा दुनियां की सबसे सुंदर, दयालु और प्यारी औरत लग रही थी। उसका जी कर रहा था कि अभी घर जाकर भाभी के गले लग कर दिल से धन्यवाद करे।
संजीव का भाई सोहन लाल अपनी पत्नी वीणा और अपने छोटे भाई संजीव के साथ सीलमपुर दिल्ली में रहते था। संजीव छोटेपन से ही अपने भाई सोहन लाल और भाभी वीणा के पास सीलमपुर दिल्ली में रहता था। संजीव के भैया-भाभी ने ही उसे पोसकर बड़ा किया था।
संजीव के सिर से पिता का साया तो बचपन में ही उठ गया था। सोहन लाल अपने छोटे भाई को अपने बेटे की तरह ही पाल रहे थे और वो ही उसकी पढ़ाई करा रहे थे।
संजीव जब स्कूल से लौटा तो संजीव बड़ा ही खुश था। घर में घुंसते ही संजीव ने अपनी भाभी वीणा को अपनी बाजुओं में भर लिया और स्नेह से चूमने लगा…
‘‘देवर जी आज ऐसा क्या मिल गया, जो आज मुझ पर इतना प्यार लुटा रहे हो?’’
‘‘भाभी आप मुझसे कितना प्यार करती हैं।’’ थोड़ा भावुक होकर बोला संजीव, ‘‘कितनी परवाह करती हैं मेरी। तभी तो आपने चुपके से 500 का नोट मेरे लंच बाॅक्स में रख दिया था। यानी भईया ने मुझे जेब खर्च के लिए ताना मारा, वो तुम्हें कहीं न कहीं अच्छा नहीं लगा। ओह भाभी…’’ कहकर संजीव पुनः भाभी से लिपट गया।
‘‘संजीव तुम अपनी भाभी वीणा से ऐसे ही अपना प्यार बनाए रखना।’’ अजीब-सी निगाहों से संजीव की ओर देखकर बोली वीणा, ‘‘फिर देखना मैं तुम्हें कैसे-कैसे खुश रखती हूं। बस मेरी खुशी का भी ध्यान रखना वक्त आने पर।’’
‘‘ये भी कोई कहने की बात है भाभी।’’ संजीव बोला, ‘‘आप एक बार हुक्म तो करके देखना, जान भी मांगोगी तो दे दूंगा।’’
‘‘ये हुई न बात।’’ मुस्करा कर बोली वीणा, ‘‘मुझे पता था कि तुम मुझे बहुत चाहते हो। मगर मुझे तुम्हारी जान नहीं चाहिए…क्योंकि तुम तो खुद मेरी जान हो।’’
‘‘जानता हूं भाभी।’’ संजीव भी मुस्करा कर बोला, ‘‘तो फिर कब मिलवाऊं तुम्हें मैं अपनी सपनों की रानी से?’’
‘‘ऐसा है संजीव कि परसों तुम्हारे भैया मेरे मायके जा रहे हैं। तब तुम अपनी सपनों की रानी से मुझे मिलवा देना।’’
‘‘ठीक है भाभी।’’
उसके बाद वीणा बाथरूम में नहाने चली। अंदर नहाते हुए गीत गुनगुनाने लगी, ‘‘हार रे देवर तरस गई तेरे प्यार को..हो रे अनाड़ी देवर प्यार में तरस गई रे।’’
उसी समय संजीव बोला, ‘‘भाभी जी मेरे प्यार में कैसे तरस गई हो?’’ कहकर वह हंसने लगा।
‘‘देवर जी एक काम कर दो ना मेरा।’’
‘‘बोलो भाभी क्या काम करना हैं?’’
‘‘रसोई घर में मेरा नहाने का साबुन रखा है, वो लाकर दे दो जरा।’’
‘‘यह लो भाभी नहाने का साबुन।’’ संजीव बाथरूम का आधा दरवाजा खोलते हुए बोला।
उसी समय वीणा ने संजीव का हाथ पकड़ कर बाथरूम के अंदर खींच लिया और बाथरूम का चिटकनी अंदर से बंद कर दी।
‘‘देखो देवर जी जब तुम छोटे थे। तब में तुम्हें मलमल के नहलाती थी। अब मेरी पीठ पर मेरा हाथ नहीं पहुंच रहा है, तो क्या मेरी पीठ पर तुम साबुन नहीं लगा सकते हो?’’
‘‘ऐसी हालत में मुझे तुम्हारी पीठ पर साबुन लगाते हुए शर्म आती है।’’ संजीव अपने हाथों से अपना मुंह छिपाते हुए बोला, ‘‘तुम तो कुछ भी नहीं पहने हुए हो।’’
‘‘अरे देवर जी तुम तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हो।’’ वीणा ने संजीव के हाथों में साबुन पकड़ाते हुए कहा, ‘‘लो देवर जी, मेरी पीठ पर हाथ नहीं पहुंच रहा है। जरा साबुन लगा दो।’’
संजीव वीणा की पीठ पर बेमन से साबुन लगाने लगा। तो वीणा संजीव को झिड़कते हुए बोली, ‘‘देवर जी तुम तो मेरी पीठ को ऐसे सहला रहे हो जैसे कोई गुलाब के फूल को सहलाता है। यह कोई गुलाब का फूल नहीं है। जो जरा कड़क से पकड़ने पर टूट जायेगा। यह तो मेरी पीठ है, जरा साबुन को तेजी से लगाओ।’’
फिर तो संजीव अपनी भाभी की पीठ पर साबुन ऐसे लगाने लगा, जैसे नई दुल्हन को शादी के वक्त हल्दी का उबटन करते हैं।
‘‘ये हुई न बात।’’ वीणा मुस्करा कर बोली, ‘‘ऐसे नहलाओ मुझे जैसे स्वयं का बदन रगड़-रगड़ कर नहाते हो। ऐसा समझो कि तुम मुझे नहीं स्वयं को नहला रहे हो। बिना शर्म व संकोच जहांर्ð हाथ लगाओ, रगड़ो और साफ करो।’’
‘‘म..मगर..भाभी।’’
‘‘श्…श!’’ एकाएक संजीव के होंठों पर अंगुलि रखते हुए बोली वीणा, ‘‘तुमने अभी थोड़ी देर पहले वायदा किया था न कि मुझे खुश रखागे? तुम जान देने के लिए भी तैयार थे, मगर मैं तो थोड़ा प्यार मांग रही हूं तुमसे। इसीलिए भाभी को तरसाओ न और खुलकर प्यार करो।’’
कहकर वीणा ने एक-एक कर संजीव को भी पूर्ण निवस्त्रा कर दिया और फिर उसके हथियार को देखकर लार टपकाती हुई बोली, ‘‘बच्चा काफी बड़ा हो गया है, मगर मुझे पता ही नहीं चला।’’ उसने झट से संजीव के हथियार को हथेली में लिया और बोली, ‘‘देवर जी, लगता है अपने बच्चे का काफी ख्याल रखते हैं आप तभी तो इतना…।’’
इसके आगे वह कुछ नहीं बोली और संजीव के निर्वस्त्र बदन को जहां-तहां चूमने लगी। साथ ही उसके हथियार को अपने प्यार से लाॅड करने लगी…
फिर क्या था…संजीव भी आखिर कब तक सब्र रखता। वह कुंवारा था और उम्र भी बहकने वाली थी। झट से वह भी वीणा के गोरे निवस्त्रा यौवन कलशों को हाथों में लेकर बोला, ‘‘आज तो हो जाने दो, जो होना है। तुमने मेरे अंग-अंग में वासना की आग भड़का दी है भाभी। आओ न ओह…भाभी’’ दीवानों की तरह संजीव, वीणा को नांेचने खसोटने लगा..
वीणा भी बेतहाशा संजीव से लिपट गई और उसके हथियार को मौखिक प्रेम देकर दुरूस्त करने लगी। फिर संजीव से भी ऐसा ही प्रेम करने के लिए कहने लगी.. संजीव ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी भाभी को मौखिक दुलार देने में…
वह तो बुरी तरह मस्त हो गई, ‘‘ओह… संजीव..मेरे नटखट देवर… आह… बहुत अच्छे… मजा आ रहा है…और करो मौखिक प्यार…पिघला मेरी देह को जितना पिघला सकते हो। आोह देवर जी…वाह!’’
फिर तो भाभी और देवर फ्वारे के नीचे निर्वस्त्रा होकर एक-दूसरे से चिपके हुए साथ नहाने लगे। कभी वीणा, संजीव के तोते पर साबुन मलती, तो कभी संजीव, भाभी के कबूतरों को जोरों स्पर्श करता हुआ नहलाने लगता। दोनों खिलखिला कर हंसते हुए एक-दूसरे को नहलाने लगे।
फिर संजीव एकाएक भाभी से बोला, ‘‘भाभी यहां मजा नहीं आ रहा। चलो बिस्तर पर चलते हैं। वहां पहले जी भरकर प्यार की ‘खुदाई’ करेंगे, फिर फ्रेश होने के लिए साथ में बाथरूम में नहायेंगे।’’
कहकर संजीव ने भाभी को गोद में उठाया और दोनों निर्वस्त्रा ही बाथरूम से बाहर आकर बेड पर आ गये।
भाभी ने मस्ती में आकर संजीव के ‘पहलवान’ को अपनी हथेली में जकड़ लिया, ‘‘देवर जी, मेरे प्यार के अखाडे़ में उतरो और दिखाओ अपनी पहलवानी।’’
‘‘मेरा पहलवान पूरी तरह से तैयार है, तुम्हारे अखाडे़ में उतरने के लिए।’’
”मगर तुम मेरे ‘अखाड़े’ का ख्याल रखना…एकदम आहिस्ता-आहिस्ता उतारना अपने पहलवान को अखाड़े में।’’
यह सुनकर संजीव और जोश में आ गया..फिर जैसे ही मैंने अपने पहलवान को अखाड़े में उतारा, ”वीणा…उईई..मां“ कहकर उछल पड़ी।
”क्या हुआ भाभी?” संजीव थोड़ा रूक कर बोला, ”तुम तो ऐसे कर रही हो, जैसे कभी भैया का ‘पहलवान’ न उतरा हो तुम्हारे अखाडे़ में।“
‘‘अरे तेरा पहलवान ही इतना तगड़ा है, कि मेरे अखाड़े का गलियारा भी कम पड़ रहा है, तेरे पहलवान के दाव-पेच झेलने के लिए। अब ऐसे में मैं क्या करूं?’’ वीणा प्यासी आंखों से संजीव की ओर देखती हुई बोली, ”मगर तू चिंता न कर, तू अपनी पहलवानी के दांव-पेच दिखाता रह। प्यार की कुश्ती में तो थोड़ी-बहुत तकलीफ तो होती ही है।”
फिर संजीव अपनी कुश्ती पर लग गया। थोड़ी देर में वीणा ने कहा, ”हां..हां… ऐसे ही, बिल्कुल ठीक लड़ रहा है तुम्हारा पहलवान। और जोश से और तेेज-तेज चलने को कहो अपने पहलवान को। बहुत मजा आ रहा है।“
अब वीणा भी स्वयं संजीव पहलवान के दाव-पेच अपने अखाड़े में सहने लगी। वीणा ने संजीव के पहलवान को नीचे चित्त लेटाया और स्वयं ऊपर आकर अपने दांव-पेच दिखाने लगी। बुरी तरह कमर उचका कर आंदोलित हो रही थी।
फिर कुछ क्षण बाद वीणा पुनः नीचे हो गई और संजीव का पहलवान अपनी पहलवानी दिखाने लगा…
”ओह भाभी।“ संजीव दीवानों की तरह जोश दिखाये जा रहा था। कभी वीणा के गोरे मांसल पिंडों को मसल देता, तो कभी उसकी पिछली गलियारी में हाथ फेर देता।
फिर एकाएक वीणा, संजीव से ऐसे कसकर चिपक गई, जैसे उनकी जान निकल रही हो शरीर से…
”ओह…अब रूक जाओ संजीव।“ वीणा तेज-तेज सांसे लेते हुए थकी आवाज में बोली, ”मेरे प्यार का ‘कोटा’ पूरा हो गया। तुम्हारा पहलवान जीत गया और मैं हार गई। तुमने आज मुझे चित्त करके मुझे अपना दीवाना बना दिया है संजीव। मजा आ गया तुम्हारे साथ। तुम्हारा पहलवान वाकई मैं एक सच्चा और तगड़ा पहलवान है।” कहकर वीणा ने संजीव के पहलवान को पुचकार दिया, फिर बोली, ”ऐसा लग रहा है आज मैं सही मायने में औरत बनी हूं।“
बस उसी दिन से ‘देवर-भाभी का प्यार’ परवान चढ़ने लगा। जब संजीव की शादी हो गई, तो वह उसके बाद अपनी पत्नी संगीता का ही होकर रह गया। भाभी को उसने पूरी तरह भुला दिया था।
वीणा को बुरा तो जरूर लगा, पर उसे भी शायद अब समझ आ गया था, कि वह पुरानी और बासी हो चुकी है और उसके देवर को उसका प्यार संगीता के रूप में मिल गया है। फिर देवर-भाभी ने अपने भटके कदमों को वहीं विराम दे दिया था।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।