पत्नी सौंपे गैर को जिस्म Patni Sapne Mei Gair Mard Se Chudi
यूं तो सुमित्रा उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से शहर जौनपुर की रहने वाली थी। जब दिल्ली आयी, तो यहां की चमक-दमक व ग्लैमर की चकाचैंध देखकर उसने भी इसे अपने जीवन में अंगीकार कर लिया।
वक्त गुजरता रहा। देखते-देखते दो साल बीत गये। इस दरम्यान सुमित्रा ने न केवल अपना लुक बदल लिया था, बल्कि अपना अंदाज व स्टाईल भी बदल लिया था उसने। उसका पहनावा भी बदल चुका था। वह चुस्त जींस व टी-शर्ट पहन कर शाॅपिंग वगैरह के लिए निकलती, तो मनचलों के हृदय पर सांप लोट जाता था।
सुमित्रा में आये इस बदलाव को देखकर पवन काफी चिंतित रहता था। उसने सुमित्रा को समझाया भी था, ‘‘सुमित्रा, यह दिल्ली है। जहां दिखावा ज्यादा है, लेकिन जो लोग अपनी माटी व संस्कृति से जुड़े हैं, वे दिखावा नहीं करते तथा हमेशा अपने संस्कारों को याद करते हैं। तुम किसी दिन मुसीबत में पड़ सकती हो। मेरी मानो तो अपनी पुरानी राह पर लौट जाओ, वरना एक दिन बहुत पछताओगी….आदि आदि।’’
लेकिन सुमित्रा ने पवन की बात सुनी-अनसुनी कर दी थी। पवन उसे समझाते-समझाते थक गया था।
सुमित्रा की मनमानियां बढ़ती जा रही थीं। वह पहले से भी ज्यादा खूबसूरत व हंसमुख दिख रही थी। पवन एक औलाद चाहता था, लेकिन सुमित्रा ने अपनी फीगर खराब हो जाने के भय से पवन की बात ठुकरा दी थी। वह अक्सर कहती, ‘‘पवन, औलाद से ज्यादा पैसे कमाने की बात सोचो। जिस गरीबी व तंग हाली में हम जी रहे हैं, क्या अपनी औलाद को भी यह सब देंगे? नहीं….बिल्कुल नहीं।’’
दरअसल, सुमित्रा का यह एक बहाना था। उसका असली मकसद कुछ और ही था।
पवन अक्सर सुमित्रा में आये इस बदलाव के बारे में सोचता और मन ही मन कहता, ‘‘सुमित्रा, तुम सुमित्रा नहीं हो। वो सुमित्रा मर चुकी है, जिससे मेरी शादी हुई थी। वो सुमित्रा थी, शर्मिली, संकोची, गृहणी व संस्कारी….लेकिन इस सुमित्रा में ऐसा कुछ नहीं था।’’
पवन को सुमित्रा से एक और शिकायत थी। वह सुमित्रा के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बना पाता था। उसने जब-जब सुमित्रा को बांहों में लेने की कोशिश की, सुमित्रा ने उसे मना कर दिया था। कभी तबियत खराब होने का बहाना करके, तो कभी कुछ और बहाना….और इस तरह उन दोनों की बीच कई-कई दिन संबंध न बनाये हो जाते थे। इससे पवन को लगता था कि जरूर सुमित्रा का कहीं और चक्कर चल रहा था, वरना यह वही सुमित्रा थी, जो दिन में भी पति की बांहों में समा जाने को आतुर रहती थी।
उस रोज दोपहर में ही पवन घर लौट आया था। कारण, उसकी तबियत खराब थी। जब वह अपने कमरे में पहुंचा, तो उसके कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था। वह दरवाजे पर ठिठक कर रह गया। अंदर से एक पुरूष व महिला के हंसने व शीत्कार भरने की आवाज़ आ रही थी।
पवन को समझते देर नहीं लगी कि महिला और कोई नहीं, बल्कि उसकी पत्नी सुमित्रा ही है। उसने उत्सुकतावश दरवाजे के सुराख से झांक कर अंदर देखा, तो सन्नाटे में आ गया। उसकी पत्नी सुमित्रा बेड पर निर्वस्त्रा लेटी थी। उसके पड़ोस में रहने वाला आसिफ नामक एक खूबसूरत, गठीले बदन का युवक सुमित्रा के अंगों को चूम व सहला रहा था। वह भी निर्वस्त्रा था। उसने सुमित्रा को बेड पर गिरा लिया था तथा पांव से ऊपर तक उसके अंगों को चूमता जा रहा था। साथ ही अपने हाथों से उसके बदन के ऊपरी नाजुक अंगों को जोर-जोर से मसल रहा था। सुमित्रा एक दर्द भरी सीत्कार लेकर रह जाती थी, लेकिन जब आसिफ उसकी जांघों पर हाथ फेरता, तो सुमित्रा की दबी-दबी सिसकियां गंजूने लगती थीं।
पवन से जब ज्यादा देर तक यह सब देखा नहीं गया, तो वह दरवाजे से हट गया और बाहर निकल गया। कोई डेढ़ घंटे बाद वह घर लौटा, तो सुमित्रा फ्रैश हो चुकी थी। सुमित्रा ने पूछा, ‘‘आज तुम जल्दी घर आ गये? क्या बात है?’’
‘‘हां, मैं जल्दी घर लौट आया था, तुम्हारा असली चरित्रा देखने के लिए, सो मैं देख चुका। आखिर मेरा शक सही निकला सुमित्रा, तुम मुझे धोखा दे रही हो।’’
‘‘य….यह तुम क्या कह रहे हो?’’
‘‘तड़ाक!’’ पवन ने उसके गाल पर एक करारा चांटा जड़ दिया और कहा, ‘‘मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकता। मैं कल ही तुम्हें गांव छोड़ रहा हूं। दिल्ली में रहते हुए तुम्हारे पर निकल आये हैं। जो कदम तुम रख चुकी हो, जानती हो कि उसका हश्र….क्या है….? बर्बादी, तबाही….खून और जेल….यही सब होता है। वो मनहूस वक्त आये ही नहीं, इसलिए मैंने एक फैसला किया है….।’’
सुमित्रा ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी चोरी पकड़ी जा चुकी थी। पवन ने आगे कहा, ‘‘मैं और तुम अब एक छत के नीचे नहीं रह सकते। अगर आज मैंने तुम्हें माफ भी कर दिया, तो कल फिर से तुम्हारे कदम इस शहर की चका-चैंध और हवस के कीचड़ में जरूर जायेंगे ही, क्योंकि ऐसे संबंध आसानी से पीछा नहीं छोड़ते। मैं गांव ले जाकर तुम्हें तुम्हारे मायके छोड़ आऊंगा। यह मेरा अंतिम फैसला है।’’
‘‘प्लीज़ पवन, एक मौका मुझे और दे दो, फिर कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी।’’ सुमित्रा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
लेकिन पवन ने उसकी विनती नहीं मानी और फिर पवन ने चार दिनों के लिए कारखाने से छुट्टी ले ली और सुमित्रा को लेकर गांव चला गया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है।