प्यार का मजा ट्रेन में Hot Desi Kamvasna Story
मैं अत्यंत खूबसूरत, गोरी-चिट्टी तथा भरपूर जवान युवती हंू। शायद यही कारण है कि मेरे पति मुझे काफी चाहते हैं। वह चाहते हैं कि मैं हमेशा उनकी नज़रों के सामने रहूं। मेरा मटकना, बातचीत के अंदाज, स्वाभाविक मुस्कान, मेरी कमर की लचक सब कुछ उन्हें अच्छा लगता है।
वे खुले दिल के व्यक्ति हैं तथा उनका विचार है कि औरत हो या मर्द, सभी को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का पूरा हक है।
मेरे पति मुझ पर कभी किसी तरह का अंकुश नहीं लगाते, फिर चाहे मैं कुछ भी कर लूं। वे कहते हैं कि भगवान ने तुम्हें खूबसूरत बनाया है, समझदार व सुशील बनाया है, अतः मैं कभी गलत काम कर ही नहीं सकती। जैसे वे मुझ पर किसी तरह का कोई अंकुश व पाबंदी नहीं लगाते, उसी तरह मैं भी उनकी निजी जिंदगी में दखल नहीं देती।
हमारे बीच प्यार का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि हमारे फैसले एक-से होते हैं। भला ऐसा पति जिस औरत को मिल जाये, वह कितनी खुशनसीब होगी? मैं भी बहुत खुशनसीब हूं, लेकिन जब-जब मैं अपनी आदतों के बारे में सोचती हूं, तो मुझे स्वयं से नफरत होने लगती है।
दरअसल, मैं एक कामुक स्वभाव की युवती हूं। मुझे हर रोज, हर रात सैक्स की खुराक चाहिए और वो अकेले पति से पूरा नहीं हो पाता। अतः मैं उनके चोरी-छिपे पराए पुरूषों से भी संबंध बना लेती हूं।
हो सकता है कि आप कहें कि मैं उन्हें धोखा दे रही हूं, जो मुझे नहीं करना चाहिए। बिल्कुल सच है कि मुझे अपने पति को धोखा नहीं देना चाहिए, वो भी देवता स्वरूप पति को, लेकिन क्या करूं? यह आदत कोशिश करके भी मैं छोड़ नहीं सकती। परायी औरत तथा पराया मर्द खुद में एक आकर्षण होता है। मैं भी उस तिलिस्म से बच नहीं सकी हूं।
एक बार की बात है। मैं और मेरे पति ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे। हमारी बगल वाली सीट पर एक सुंदर-सा लड़का बैठा था। सफर के दौरान हमारी बातचीत होने लगी, तो हम जल्दी ही एक-दूसरे से खुल गये।
उस लड़के का नाम पप्पू था। वह दिल्ली में नौकरी करता था। हम लोग भी दिल्ली जा रहे थे। मेरे पति का वहां बिजनेस है। रात को जब मेरे पति गहरी नींद में सो गये, तब मैं धीरे से उठकर उसकी बर्थ पर आ गयी।
मैं उससे बोली, ”पप्पू, तुम मुझे बहुत अच्छे लगने लगे हो। जाने कैसे तुम मेरे दिल में समा गये हो?“
कहते हुए मैंने पप्पू की आंखों में झांक कर देखा, तो उसकी चोर निगाहें मेरे बदन के ऊपरी वस्त्रा के भीतर से झांकते मेरे गोरे नाजुक अंगों को टटोल रही थीं। मैंने जानबूझ कर ऊपरी वस्त्रा के दो बटन खोल लिए थे। मैंने उसकी चोरी पकड़ ली और शरारत से हंसकर बोली, ”जिन्हें घूर रहे हो, वह तुम्हें पसंद हैं? तो हिचक किस बात की? आओ न आगे बढ़ो।“
पप्पू मेरे मन के भावों को ताड़ चुका था। उसने अगल-बगल झांक कर देखा कि कहीं कोई यात्राी हमें देख तो नहीं रहा था। जब उसने महसूस किया कि सभी यात्राी सो रहे थे, तो उसने मुझे टाॅयलेट में चलने के लिए कहा। मैं भी सहर्ष ही तैयार होकर उसके पीछे-पीछे चल पड़ी।
पप्पू ने मुझे टाॅयलेट की दीवार के सहारे खड़ा कर दिया तथा मेरे बदन को चूमते हुए, उसने मेरे नीचे के वस्त्रों को मेरी जांघों तक ऊपर उठा दिया। फिर वह नीचे झुक कर मेरी टांगों को चूमते हुए, जांघों तक आ गया। अजीब-सी सनसनी मेरे खून में हो रही थी। मेरा चेहरा सुर्ख होता जा रहा था।
कुछ देर तक पप्पू ने मेरे निर्वस्त्रा यौवन को देखा, फिर वह होंठों से वहां छेड़छाड़ करने लगा, तो मेरे अधरों से वासना का सैलाब फूट पड़ा। उसके बाद पप्पू भी मेरी तरह निर्वस्त्रा हो गया और मेरे तन से लिपट कर अपनी तथा मेरी प्यास बुझाने लगा।
सचमुच! मैं बावरी होती जा रही थी…
”पप्पू…ओह पप्पू…वैरी नाइस।“ मैं मस्ती के आलम में पहुंच कर बोली, ”ऐसा पहले किसी ने किया मेरे साथ। आह…।“
फिर वह खड़ा होकर मेरे गोल कलशों को मसलते हुए बोला, ”मुझे खुद नहीं पता ये सब मैं कैसे कर रहा हूं डियर। तुम्हारी गोरी निर्वस्त्रा काया देखकर मैं दीवाना हो रहा हूं। शायद इसी नशा है मुझ पर।“
”ओह पप्पू…।“ मैं बेतहाशा उससे लिपट गई और उसके होंठों पर अपने गुलाबी होंठ रखकर बोली, ”अपना ‘सामान’ मेरी ‘बोगी’ में रख दो।“
”अभी रखता हूं।“ वह भी मेरी बात का आशय समझ कर बोला, ”पहले मैं अपना ‘सामान’ तो निकाल लूं।“ फिर वह मेरी आंखों में देखकर बोला, ”तब तक तुम ट्रेन की विन्डो को पकड़ कर झुक कर समर्पण की मु्रदा में आ जाओ।“
मैंने ऐसा ही किया और पप्पू ने अपना विशाल ‘सामान’ निकाल कर मेरी ‘बोगी’ में डाल दिया। उसका सामान काफी हैवी तथा बहुत था। मैं उसका ‘सामान’ अपनी ‘बोगी’ में बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मैंने उससे थोड़ा रूकने को कहा, ”आह..ओह..उई..पप्पू।“ मैं उसकी आंखों में देखती हुई बोली, ”तुम्हारा सामान तो बहुत हैवी है, जरा आराम से रखो इसे मेरी बोगी में।“
”अब जो भी है ये ही है मेरे पास ‘सामान’।“ वह मेरे होंठो को चूमकर बोला, ”तुम्हारी बोगी ही छोटी है तो मैं क्या करूं?“
कहकर उसने सारा अपना ‘सामान’ मेरी बोगी में अंदर तक डाल दिया। अब तो मैं बेतरह तिलमिला उठी। मगर इस बार मैंने उसे रोका नहीं, क्योंकि जानती थी वह रूकने वाला नहीं है। शायद पहली बार किसी स्त्राी के साथ सम्भोग कर रहा था।
मैं अपने दर्द को सहते हुए बोली, ”ओह पप्पू… बताओ तो कैसी लग रहा है मेरी बोगी में तुम्हें?“
”बहुत अच्छा लग रहा है बेबी।“ वह मेरे नितम्बों पर हाथ फेरते हुए बोला, ”और तुम्हें कैसा लग रहा है जानेमन?“
तब तक मुझे भी काफी आनंद आने लगा था, अतः मैं भी कामुक स्वर में बोली, ”आ.ह..उम…पप्पू मुझे भी ब..बहुत अच्छा लग रहा है।“
मेरा ऐसा कहना था कि एकाएक वह तेज गति से मेरी ‘बोगी’ पर पीछे से हमला करने लगा साथ ही मेरे यौवन कलशों को भी पकड़ कर बेरहमी से मसल रहा था। मैं थोड़ा तकलीफ तो महसूस कर रही थी, मगर उसका पागलन व उतावला पन देखकर मुझे अंदर तक आनंद भी बहुत आ रहा था। अच्छा लगा रहा था उसका जोश देखकर।
फिर कुछ ही देर में उसने मेरी ‘बोगी’ को पसीना-पसीना करके गीला कर दिया और स्वयं भी पानी-पानी हो गया। वह बुरी तरह हांफ रहा था और मैं भी सीधी होकर खड़ी हुई और हांफने लगी व साथ ही मुस्करा भी रही थी।
वह मेरी तरफ ऐसे देख रहा था कि जैसे मुझसे कभी दूर नहीं जाना चाहता। हमेशा मेरे साथ ही मेरी ‘बोगी’ में ही रहना चाहता है। मैंने उसे अपनी ओर ऐसे एकटक देखते हुए देखा तो मैं तपाक से उसके गले लग गई और एक जोरदार चुम्बन उसके होंठों पर देते हुए बोली, ”तुमने अच्छे से मेरी प्यास को शांत किया है। तुम्हें नारी की हर नस का पता है कि कहां-कहां छूने व चूमने से नारी उत्तेजित होती है और तृप्त होती है। तुम नारी की कामना को भड़काना जानते हो, तो उसे शांत करना भी बखूबी आता है तुम्हें।“ मैंने पुनः उसके होंठो को चूमा और साथ ही मजाक में उसके ‘सामान’ को भी पकड़ कर मसल दिया।
इस पर वह एकदम से उछला, ”आह.. क्या कर रही हो?“
मैं भी मुस्करा कर बोली, ”तुम कुछ भी कर सकते हो मेरी बोगी के साथ, तो क्या मैं तुम्हारे सामान…।“
फिर हम दोनांे साथ में खिलखिलाने लगे।
मुझे उसके साथ इतना आनंद आया, कि मैं लब्जों में बयां नहीं कर सकती। मैं पूरी तरह से तृप्त हो गयी, तो अपने कपड़े पहन कर अपनी सीट पर लौट आयी।
यह किसी पराए पुरूष से संबंध बनाने का मेरा पांचवा मौका था। दिल्ली में रहते हुए, मैंने पप्पू के अलावा कई अन्य लड़कों से संबंध बनाये हैं, जो सभी कच्ची उम्र के हैं।
मेरा ख्याल है कि कच्ची उम्र के लड़कों में भरपूर उत्साह रहता है, एनर्जी की कमी नहीं रहती उनमें। वे मनचाहा आनंद दे सकते हैं। यही कारण है कि मेरी निगाहें हमेशा कच्ची उम्र के लड़कों की तलाश में भटकती रहती हैं।
एक लड़का, जिसका नाम श्रीपाल था, उसके बारे में क्या बताऊं? वह कसरती जिस्म का तगड़ा जवान था। मेरे पड़ोस में रहता था वह। मेरी निगाहें जब उसे लड़ीं, तो वह पके फल की तरह मेरी गोद में आ गिरा। जैसे वह भी कुछ इसी तरह की घात लगाये बैठा था।
श्रीपाल ने कहा, ”रजनी, मैं अनाड़ी जरूर हूं, लेकिन अगर तुम सहयोग करने का वायदा करो, तो मैं तुम्हें इतना सुख दूंगा कि तुम अपने पति तक को भूल जाओगी।“
मैंने उसे चैलेंज दिया, लेकिन जब मेरे साथ वह अखाड़े में उतरा, तो उसने मुझे रूला ही दिया। वह इतना निष्ठुर निकला कि मेरी तकलीफ पर उसने उफ् तक नहीं की।
मगर सच कहूं, तो वो आनंद जिसकी मैं कल्पना भी नहीं सकती थी, श्रीपाल के साथ सोकर ही हासिल हुआ था। वह सुख अत्यंत अद्भुत व अतुल्यनीय था।
श्रीपाल ने जो कहा था, उसने करके दिखाया। मैंने अपने पति से बगावत कर दी, मेरा इरादा किसी तरह पति से अलग होकर श्रीपाल के साथ घर बसाने का था।
पति ने मुझे काफी समझाया, लेकिन मेरी आंखें नहीं खुलीं। मजबूर होकर पति ने मुझे अपनी जिंदगी से निकाल बाहर किया। पति से अलग होने के बाद मैंने श्रीपाल से विवाह कर लिया। मैंने श्रीपाल से विवाह सिर्फ तन सुख के लिए किया था। वह मुझे तन सुख देता रहा। क्या रात, क्या दिन, वह जब-तब शुरू हो जाता था तथा मेरे बदन को मसल कर रख देता था, लेकिन मेरी भूख दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी।
श्रीपाल ने लगातार छः महीनों तक मुझे दिन रात भोगा और फिर यह कहकर कि, ”मैं एक नीच औरत हूं और एक नीच किसी मर्द की बीवी नहीं हो सकती।“ उसने मुझे अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दिया।
मेरी जैसी कामुक औरतों का यही हश्र होता है। वह न घर की न घाट की रह जाती हैं। आज मैं दोराहे पर खड़ी हूं, किधर जाऊं? कहा जाऊं? बस यही उथल-पुथल मेरी जिंदगी का हिस्सा बनकर रह गयी हैं।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।