भाभी से मस्त आशिकी Bhabhi Se Mast Vasna Aashiqui
नीतू आंखंे नचाते हुए बोली, ‘‘जब देखो, प्यार की ही पड़ी रहती है।’’
‘‘जानेमन! प्यार करने का कोई समय नहीं होता। वैसे भी तुम्हें भगा कर, तो लाया नहीं। शादी की है तुमसे और शादी इसलिये होती है, जब चाहो प्यार पा सको।’’ मनोज अर्थपूर्ण लहजे में बोला।
कहते हुए मनोज ने एक बार फिर नीतू को अपनी बांहों की कैद में जकड़ना चाहा।
‘‘न….बाबा….न..।’’ कहते हुए, नीतू आगे बढ़कर खुद मनोज की बांहों मंे झूल गई।
नीतू की आगोश में सकून भरे चंद लम्हे गुजारने के बाद मनोज काम पर चला गया, तो नीतू भी मीठे-मीठे सपनों में खो गई।
जबसे नीतू की शादी मनोज से हुई थी, तब से मनोज का प्यार नीतू के प्रति कम होने के बजाये बढ़ता ही जा रहा था, इसलिये सात साल बाद भी खुद को नई-नवेली दुल्हन समझती थी। मनोज ने कभी उसे महसूस नहीं होने दिया था कि उनकी शादी को सात बरस का लंबा अरसा बीत गया है।
बेहद गरीब मां-बाप की औलाद नीतू की शादी जब मनोज से हुई थी, उस समय नीतू मुश्किल से सोलह बरस की बाला थी। जबकि मनोज की उम्र उससे 18 साल अधिक थी। यह बात नीतू ने शुरूआत में, तो महसूस नहीं की थी, लेकिन ज्यों-ज्यों मनोज की उम्र बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे नीतू को इस बात का एहसास होता जा रहा था कि मनोज में अब पहले जैसी पौरूष ताकत नहीं रह गई है, जिससे वह उसके दहकते यौवन को शीतलता दे पाये। मनोज 50 साल का हो चुका था। अब वह रोजान ही काम से थका-मांदा आता और आते ही बिस्तर पर ढेर हो जाता। कभी अगर नीतू अपनी ओर से पहल करती, तो वह उसके साथ थोड़ी देर प्यार करके हांफता हुआ गहरी नींद में सो जाता, जबकि नीतू पूरी रात देह की अगन मंे जलती रहती। इतना ही नहीं, वह यह भी समझती थी कि आज तक मां न बन पाने के पीछे कहीं न कहीं मनोज का ही दोष है।
मनोज के घर के कुछ ही दूर पर उसका चचेरा भाई जगत रहता था। रंगीन तबियत का जगत अभी अविवाहित था। नीतू रिश्ते में भाभी लगती थी, इसलिये वह उससे हंसी-मजाक भी कर लेता था। नीतू को भी जगत अच्छा लगता था, इसके चलते वह उसकी हंसी-मजाक का बुरा नहीं मानती थी।
एक रोज की बात है। किसी काम से जगत, मनोज के घर आया, तो उसकी निगाह आंगन बुहार रही, नीतू पर पड़ गई। नीतू का आंचल उसके सीने से खिसक गया था। उसके उभार कपड़ों से बाहर झांक रहे थे। जगत की नज़र नीतू के कसे हुए बदन पर पड़ी, तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। नीतू ने जगत को सामने पाया, तो अपना आंचल संभालती हुई शरमा गई। दोनों की नज़रें टकराईं और होंठों पर मुस्कान दौड़ गई। जैसे दोनों ने मौन रहकर प्रणय निवेदन किया हो।
‘‘भईया कहां है?’’ जगत ने पूछा।
‘‘वो तो काम पर गये हैं।’’ नीतू ने उत्तर दिया।
यह सुनकर जगत जाने के लिये मुड़ा, तो नीतू उसे रोकती हुई बोली, ‘‘क्या अपने भईया को ही अपना सब कुछ समझते हो। मैं तुम्हारी कुछ नहीं लगती क्या?’’
‘‘अरे, ये बात नहीं है भाभी।’’ कहते ही जगत वहीं आंगन मंे पड़ी चारपाई पर बैठ गया।
‘‘नीतू दो कप चाय बना लाई। दोनों चाय पीने लगे। चाय पीते-पीते जगत कुछ सोच में डूब गया।
‘‘कहां खो गये देवर जी?’’ हसंते हुए नीतू ने पूछा।
‘‘सोच रहा हूं कि भईया की भी क्या किस्मत है कि उन्हें आप जैसी बीवी मिली और आपकी….’’ कहते हुए जगत ने बात अधूरी छोड़ दी, लेकिन उसने नीतू के मर्म पर चोट कर दी और वह सोच में डूब गई।
नीतू अभी सोच में डूब ही थी कि जगत ने उसके हाथ पर धीरे से अपना हाथ रख दिया और दबाने लगा। नीतू को जगत के स्पर्श से आनंद की अनूभूति हो रही थी, इसलिये वह चुपचाप बैठी रही। उसके हाथ फिसलते-फिसलते नीतू के ठोस उरोजों पर जा पहुंचे।
तब नीतू ने अपने बांहों का हार जगत के गले मंे डाल दिया। अब भला जगत कैसे पीछे रहता। उसने झट से उसे गोद में उठाया और कमरे मंे आ गया। फिर बिस्तर पर लिटाने के बाद उसे वस्त्र हीन कर उसके नाजुक अंगों से खिलवाड़ करने लगा। नीतू भी अपने हाव-भाव से बार-बार उसे उकसाती जा रही थी। आखिरकार जब सब्र की सीमा खत्म हो गई, तो जगत नीतू पर छा गया। कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे में गुत्थम-गुत्था हो गये। उनका जोश तब ठण्डा पड़ा, जब उनके जिस्म का लावा बह कर बाहर आ गया।
जगत ने नीतू का पोर-पोर दुखा दिया था। नीतू को यह प्रतीत हुआ कि उसका जिस्म एक तपती हुई धारा की तरह था, जिस पर आज कई सालों बाद बरसात हुई थी। वहीं जगत भी नीतू की मादक देह का सुख पाकर निहाल हो गया। अलग होने पर दोनों के चेहरों पर पूर्ण तृप्ति के भाव थे।
नीतू व जगत के नाजायज़ संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ, तो फिर थमा नहीं। अक्सर दोनों मौका मिलते ही एकाकार हो जाते। दोनों कभी-कभी सिनेमा हाल में फिल्म देखने भी चले जाते। दोनों के बीच देवर-भाभी के रिश्ते को देखकर मनोज समेत सभी किसी परिजन ने उन पर शक नहीं किया।
समय के साथ ही नीतू व जगत की दीवानगी हद पार करती जा रही थी। कुछ ही दिनों में उनकी हालत ऐसी हो गई कि अगर वे दिन में एक बार एक-दूजे का दीदार नहीं कर लेते थे, तो उन्हें चैन नहीं मिलता था। जगत का उसके यहां आना-जाना लोगों की निगाहों मंे न खटके, इसके लिये नीतू ने अपने भाई की लड़की रानी का विवाह जगत के भाई रामू से करा दिया। रामू को पहले ही जगत व नीतू के रिश्ते की जानकारी थी। कुछ दिन बाद रानी को भी उनकी परवान चढ़ती मुहब्बत की जानकारी हो गई। इससे जगत व नीतू का मिलना-जुलना और आसान हो गया। नीतू अब रानी से मिलने के बहाने जगत के घर चली जाती और वहां जगत के साथ प्यार-भरी बातें करती। जगत की बांहों में समा कर, नीतू को उस अपूर्व सुख की प्राप्ति होती, जो अब मनोज के बस का नहीं रह गया था। इसी सुख की चाह में वह जगत के एक इशारे पर उसके पास दौड़ी चली आती थी। इसी बीच दोनों ने गुप-चुप ढंग से कोर्ट मैरिज भी कर ली थी।
‘‘जगत, मैं तुमसे चोरी-चुपके मिलते-मिलते तंग आ चुकी हूं। सोचती हूं कि अगर किसी दिन तुम्हारे भईया को इसका पता चल गया, तो वह तो मुझे जिंदा ही जमीन मंे गाड़ देंगे। कोई ऐसा उपाय सोचो कि हम हमेशा के लिये एक-दूजे के साथ रहें।’’ एक दिन एकांत के क्षणों मंे नीतू ने जगत से कहा।
‘‘इसका तो एक ही उपाय है कि भईया को कहीं दूर भेज दिया जाये। फिर हमंे जुदा करने वाला कोई न होगा।’’ जगत ने कुटिल रूप से मुस्कराते हुए कहा।
नीतू की समझ मंे एकदम कुछ नहीं आया, तो उसने जगत से पूछा, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’
‘‘मतबल यह है मेरी जान कि तुम्हारा और हमारा मिलन तभी संभव है, जब मनोज को रास्ते से हटा दिया जाये। जगत ने अपनी बात समझाई, तो एक बारगी नीतू सहम गई। लेकिन जब जगत ने उसे बताया कि उसके अलावा और कोई चारा नहीं है, तो फिर उसने जगत के नाम का मंगलसूत्रा पहनने के लिये, अपनी मांग का सिंदूर मिटाने की इजाजत, जगत को दे दी।
नीतू की इजाजत मिलते ही जगत ने अपने भाई रामू के सहयोग से मौका देखकर, मनोज की हत्या कर, लाश को सड़क के किनारे फेंक दिया। हालांकि इस हत्या को उसने दुर्घटना का रूप देने की पूरी जोर-शोर से कोशिश की थी, पर कानून के लम्बे हाथों से खुद को नहीं बचा सके और जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गये।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है।