मस्तराम की दीवानी सविता Mastram Ki Deewani Savita bhabhi
सविता एक बार भी राकेश से संतुष्ट नहीं हो सकी थी। शारीरिक संबंधों के दौरान राकेश जल्दी ही हाथ खड़े कर लेता था और चुपचाप करवट दूसरी ओर करके सो जाता था। सविता उसे बार-बार उत्तेजित करने की चेष्टा करती, मगर राकेश पहले ‘पड़ाव’ में ही इस कदर थक जाता था कि वह घोड़े बेचकर सो जाता था और सविता जल बिन मछली की भांति रात-रात भर तड़पती रहती थी। उसे पति पर बहुत गुस्सा आता था।
एक ओर सविता, पति से नफरत करती थी, वहीं वह अपने पहले प्यार को दिल से लगाये बैठी थी। जब उसकी शादी नहीं हुई थी, उसका चक्कर मस्तराम से चल रहा था। दोनों के शारीरिक रिश्ते बन गये थे। मस्तराम न केवल बलिष्ठ युवक था, बल्कि उसमें स्त्राी को संतुष्ट करने की अपार ताकत थी, जिसकी सविता कायल रह चुकी थी।
मस्तराम, सविता को विभिन्न तरीकों से भोगता था, लेकिन जब से राकेश के साथ उसकी शादी हुई, मस्तराम से उसकी मुलाकात नहीं हो सकी थी। सविता ने भरसक चेष्टा की, कि वह शादी से पहले की हर बातों को भुला बैठे, मगर अब उसका आत्म नियंत्राण कमजोर पड़ता जा रहा था। जब सविता से रहा नहीं गया, तो उसने मस्तराम को फोन करके घर आने के लिये कहा।
मस्तराम मुद्दतों बाद सविता से मिलने आया, तो उस समय सविता घर में अकेली थी। उसका पति काम पर गया हुआ था। मस्तराम ने कमरे में आते ही सविता को बांहों मे भरकर उसे चूमना शुरू किया, तो उत्तेजित होकर सविता ने अपनी गोरी-कोमल बांहें उसके गले में डाल दीं तथा वह भी मस्तराम को चूमने लगी।
परस्पर चुम्बन, आलिंगन के बाद मस्तराम ने सविता को पूर्ण निर्वस्त्रा कर दिया व स्वयं भी उसी रूप में हो गया। फिर उसने सविता के नाजुक अंगों व जांघों को मसलना शुरू किया, तो सविता के अधरों से कामुक सिसकारियां फूट पड़ीं। वह बेतहाशा मस्तराम से लिपट गई…
”ओह मस्तराम!“ सविता की आवाज में कामुकता का नशा था, ”कहां थे तुम अब तक, मैं शादीशुदा होकर भी अपने आपको कुंवारी ही महसूस कर रही थी। तुम्हारे हाथों में तो जादू है, छूते ही पिघलने लगती हूं। आज मुझे अपनी गर्मी की आंच में ऐसे पिघला दो, कि लंबे समय तक तुम्हारे प्यार की गर्म आंच मेरी देह को सुकून पहुंचाती रही।“
”मेरी जानेमन सविता।“ मस्तराम भी सविता के सुर्ख लबों को चूमते हुए बोला, ”तुम भी कुछ कम नहीं हो। तुम्हारा गदराया बदन देखकर मेरे दिल में भी एकाएक उत्तेजना का तूफान उमड़ने लगता है।“ वह सविता की कोमल निर्वस्त्रा पीठ को सहलाते हुए बोला, ”तुम्हारे बदन में शादी के बाद भी गजब का कसाव है। आज भी तुम्हें भोग रहा हूं तो ऐसा लग रहा है, मानो किसी कुंवारी कोमल बाला को भोग कर अपनी प्यास शांत कर रहा हूं।“
”तो फिर करो न अपनी प्यास शांत।“ एकाएक सविता ने मस्तराम को नीचे किया व स्वयं ऊपर आकर प्यार की कमान संभाल ली, ”मगर मेरे राजा ध्यान रखना, कहीं ये प्यासी, बिस्तर पर प्यासी ही न रह जाये। अपनी प्यास शांत करके मुझे अधूरा न छोड़ जाना।“
”चिंता क्यों करती हो मेरी रानी।“ सविता के गोरे मांसल कबूतरों को मसलते हुए बोला मस्तराम, ”बंदा अपनी रानी का पहले ख्याल रखेगा। जब तक उसकी रानी की ‘चाहत’ पूरी नहीं हो जाती, तब तक ये गुलाम अपनी ‘चाहत’ को साइड में ही रखेगा। तुम्हें तुम्हारी मंजिल पर पहंुचा कर ही मैं खुद अपनी मंजिल पर बाद में पहुंचूगा।“
”आओ राजा, फिर बजाओ न बाजा।“ सविता भी मस्तराम के अधरों को चूमते हुए बोली, ”खाली बातों से ही दिल बहलाओगे या फिर अपने हथियार से शिकार भी करोगे?“
”शिकार भी कर लेंगे जानेमन।“ गोपनीय भाषा में बोला मस्तराम,”पहले जरा हथियार में प्यार की गोलियां तो अच्छे से लोड हो जाने दो। फिर देखना उसके बाद ऐसी फायरिंग करूंगा, कि ‘शिकार’ की धज्जियां उड़ जायेंगी।“
”अरे तो फिर उड़ा दो न धज्जियां बेदर्दी।“ अब तो सविता भी अपना आपा खोने लगी। वह बहुत ज्यादा उत्तेजित होकर बोली, ”अब तो अपनी फायरिंग तभी रोकना, जबतक कि शिकार प्यार की खूनी चाश्नी में भीगकर तर न हो जाये।“
मस्तराम समझ गया कि लोहा गर्म है और हथौड़े की चोट करने का समय आ गया है। फिर क्या था, एकाएक मस्तराम, सविता की मस्तरामनगरी में प्रवेश कर गया…
”आह…मस्तराम।“ प्यासी निगाहों से मस्तराम की ओर देखकर बोली सविता, ”जरा प्यार से फायरिंग करो न… तुम तो वाकई शिकार पर बड़ी बेदर्दी से झपट पडे़।“
”जान से कब से शिकार नहीं किया न मेरी जान इसीलिए तपाक से शिकार पर टूट पड़ा।“
फिर लगातार बिना रूके मस्तराम अपने प्यार की फायरिंग से सविता के शिकार की धज्जियां उड़ाने लगा। पहले तो सविता को थोड़ी तकलीफ तो हुई, मगर धीरे-धीरे उसे खुद ही शिकार होने में बड़ा मजा आने लगा। वह अपने ऊपर झुके शिकारी की निर्वस्त्रा पीठ पर अपने नाखून गढ़ाते हुए बोली, ”स…स हूम…ओह। आह…. उई…“ मादक सिसकियां लेते हुए बोली सविता, ”रूकना मत मस्तराम… तुम्हें मेरी कसम… शिकार जब तक पूरी से न कर लो, और शिकार भी जब तक प्यार भरा दम न तोड़ दे, तुम रूकना नहीं। करो न…और करो न शिकार।“
10-15 मिनट तक इसी प्रकार से दोनों एक-दूसरे में गुंथे रहे। फिर एकाएक दोनों ही पूर्ण रूप से तृप्त हो गये। दोनों ही पसीना-पसीना थे और एक-दूसरे से बेतहाशा लिपटे हुए थे। सविता हांफती हुई बोली, ”मेरे मस्तराम, तुम्हारा मस्तराम देने का तरीका वाकई गजब का है। तुम्हारा हथियार तो अब भी बड़ी जोशीली फायरिंग करता है। वाकई मजा ही आ गया आज।“
”तुम भी तो कम सुंदर और जोशीली नहीं हो।“ सविता के गोरे कोमल कबूतरों की चोंच को सहलाते हुए बोला मस्तराम, ”ऐसी कसी हुई हो आज भी, लगता है पहली बार अपनी मस्तराम नगरी में किसी आशिक को आने की इजाजत दी है तुमने।“
”अच्छा जी।“ सविता, मस्तराम के हथियार को स्पर्श करती हुई बोली, ”बहुत शैतान हो तुम।“
और दोनों खिलखिला कर हंसने लगे।
फिर मस्तराम ने दो बार में सविता की वासना की प्यास बुझायी तथा वहां से चला गया।
पति के जाने के बाद पराये मर्द से संबंध बनाने की आस-पड़ोस में चर्चा होने लगी। जब इस बात की भनक राकेश को लगी, तो उसने सविता को प्यार से समझाया, ”मस्तरामा, शादी से पहले तुम क्या थी? मुझे इससे कोई मतलब नहीं है, लेकिन अब तुम मेरी ब्याहता हो। तुम्हारे एक गलत कदम से इस घर की ही नहीं, तुम्हारे मां-बाप की भी इज्जत धूल में मिल जायेगी।“
”आपका वहम है, यह। मैंने ऐसा कोई गलत काम नहीं किया, जिससे आपको शर्मिन्दा होना पड़े। आप मेरे पति हैं, परमेश्वर हैं। आपकी इज्जत मेरी इज्जत है।“ सविता ने त्रिया-चरित्रा दिखाते हुए कहा।
”मैं जानता हूं कि शादी से पहले तुम्हारे मस्तराम से शारीरिक संबंध थे। बावजूद इसके मैंने इसे जवानी की भूल समझ कर तुमसे शादी की, क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि मेरा प्यार व विश्वास पाकर तुम शादी के बाद सुधर जाओगी। लेकिन तुमने मेरी शराफत का नाजायज़ फायदा उठाया। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि आज भी मेरी अनुपस्थिति में मस्तराम यहां आता है।“
सविता की नज़रें झुक गयीं। वह राकेश के पैरों में गिरकर माफी मांगते हुए बोली, ”मैंने आपके साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। मैं अपने किए पर बहुत शर्मिन्दा हूं। मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि भविष्य में कभी ऐसी हलील हरकत नहीं करूंगी।“
राकेश सीधे-सरल स्वभाव का था। उसने सविता को सुधरने का मौका देते हुए माफ कर दिया, लेकिन यह उसकी भूल साबित हुई। राकेश की सख्त हिदायत के बावजूद सविता चोरी-छिपे मस्तराम को अपने घर बुलाती रही।
अलबत्ता वह पहले से अधिक सतर्क और सावधान हो गयी थी। इसी कारण काफी दिनों तक राकेश इस बात से बेखबर रहा। लेकिन आखिर कब तक…?
पाप छुपा नहीं रह सका। एक रोज जब अचानक राकेश समय से पहले घर आया, तो सविता को मस्तराम के साथ रंग-रलियां मनाते देख लिया। उस समय सविता, निर्वस्त्रा होकर मस्तराम की बांहों में मचल रही थी। मस्तराम, सविता को चूम-सहला रहा था।
बेशर्मी का यह नंगा नाच देखकर राकेश की आंखों में खून उतर गया। मस्तराम तो किसी तरह जान बचा कर भाग खड़ा हुआ, लेकिन सविता अपने कपड़े पहन कर सिर झुका कर एक कोने में खड़ी हो गयी।
”भूल कर बैठा तुझे समझने में मैं…।“ गुस्से में उबलते हुए राकेश ने एक करारा तमाचा सविता के गाल पर जड़ते हुए कहा, ”तुम जैसी औरत किसी के घर की लक्ष्मी नहीं, कोठे की रौनक बनने लायक है। आज से तू मेरे लिए मर चुकी। इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए तेरे लिए बंद हो चुके हैं। जा….दफा.. हो जा यहां से….।“
कहकर राकेश ने एक जोरदार ठोकर मारी और सविता को घर से निकाल दिया।
पति द्वारा अपमानित व दुत्कारी गई सविता अपना-सा मुंह लेकर चुपचाप मस्तराम के पास लौट गयी। उसे विश्वास था कि उसने अपने मस्तरामी, मस्तराम की खातिर शादी जैसे सामाजिक और पवित्रा बंधन की परवाह नहीं की थी, वह पति द्वारा छोड़ दिए जाने पर अवश्य उससे शादी कर लेगा, लेकिन यह सविता की भूल थी…
मस्तराम तो केवल उसके शरीर से प्यार करता था। सविता के शरीर से उसका मन अब भर चुका था। मस्तराम भी एक आम इंसान था। वह ऐसी औरत से शादी नहीं करना चाहता था, जिसने अपने पति से धोखा किया हो। क्या पता कल को यह औरत उसे छोड़कर किसी और के पास चली जाये।
अतः उसने सोच-विचार कर सविता से शादी करने से इंकार कर दिया। सविता को लगा, जैसे उसके दिल पर किसी ने जोर का घूंसा मार दिया हो। उसकी आंखों में दर्द के आसूं छलक आये। मगर अब हो भी क्या सकता था। उसके पास अब जो रह गये थे, वो थे उसके आंसू और पछतावा।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।
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