सबसे बड़ी हवस Hot Kamvasna Story
अपने गिर्द मनचलों के मंडराने के एहसास से उसकी छाती गर्व से फूल जाती थी, इसलिए जब कोई मनचला उसे देख आहें भरता, तो वह मादकता से लबरेज होकर अपनी गुलाबी मुस्कान बिखेर कर उसके दिलो-दिमाग पर कटार-सी चला देती। इसी के चलते शन्नो के कदम बहकने लगे और वह बेखौफ लड़कों से मिलने-जुलने व हंसने लगी।
आज से लगभग एक वर्ष पूर्व शन्नो की एक पक्की सहेली बनी, जिसका नाम थाµ निधि। उसके पिता रामपाल की आर्थिक स्थित बहुत अच्छी नहीं थी। वे कई सालों से अपनी दस बिसवां जमीन को बटाई पर देकर उससे प्राप्त नफा से अपनी पत्नी मालती देवी व एकमात्र पुत्री निधि की परवरिश करते चले आ रहे थे।
लेकिन कुछ वर्षों बाद उनका समय कुछ सुधरा और उनकी पत्नी मालती देवी को प्राथमिक विद्यालय से खाना बनाने की नौकरी मिल गयी। उनकी पुत्री निधि, बाल्यावस्था से ही काफी तेज दिमाग वाली थी। परन्तु पैसे के अभाव के कारण वह मन मारकर रह जाती थी, लेकिन फिर भी उसके माता-पिता अपनी पुत्री को हर हाल में खुश रखना चाहते थे।
समय का पहिया आगे बढ़ा और निधि देखते ही देखते बड़ी हो गयी और उसने हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर लिया था। यह देखकर रामपाल व उनकी पत्नी मालती देवी को खुशी का ठिकाना नहीं रहा और फिर वे उसे एक बड़ा अधिकारी बनाने के ख्वाब संजोए हुए अपने को तंग रखकर भी पाई-पाई जोड़कर उसका एक नामी काॅलेज में दाखिला करवा दिया।
उन्होंने सोचा था, कि लड़की जब किसी लायक हो जाएगी, तो हमारे बुढ़ापे का सहारा बन जाएगी। पर समय कब क्या करवा दे, ये कोई नहीं जानता है?
एक दिन निधि ने अपने माता-पिता से कहा कि, ‘‘मेरी कोर्स की पढ़ाई बहुत हार्ड है, अतः आप लोग मेरी कहीं ट्यूशन लगा दें, ताकि मैं मेहनत करूं और अच्छे नम्बरों से पास हो सकूं।’’
फिर निधि के माता-पिता ने बेटी की इच्छा व समय की मांग को देखते हुए उसकी ट्यूशन अपने मौहल्ले गोसाईगंज के ही मास्टर उमेश वर्मा की कोचिंग में सुबह की शिफ्ट में लगवा दी।
निधि और शन्नो एक ही कक्षा(12वीं) में पढ़ती थीं व एक ही ट्यूशन(उमेश वर्मा की कोचिंग में) में पढ़ा करती थीं। दोनों साथ ही घर से ट्यूशन के लिए जाया करती थीं। हम उम्र, एक ही काॅलेज, एक ही कोचिंग एवं एक ही इलाके गोसाईगंज के मूल निवासी होने के कारण दोनों में अधिक गहरी मित्राता हो गयी थी। दोनों ही मिलनसार स्वभाव की थीं।
वे दोनों सहेलियां कभी कोई राज एक-दूसरे से नहीं छिपाती थीं। छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी हर प्रकार बातें आपस में एक-दूसरे को बताया करती थीं। या यूं कह लो, कि दोनों एक-दूसरे की राजदार भी थीं।
शन्नो जहां निधि जैसी सहेली पाकर खुश थी, वहीं निधि भी एक मिलनसार सहेली पाकर बेहद खुद को गर्वित महसूस कर रही थी। इसके बावजूद भी दोनों के रहन-सहन एवं चाल-चलन में जमीन-आसमान का अंतर था।
शन्नो जहां नए जमाने की स्टाईलिश व अमर्यादित लड़की थी, वहीं निधि एक सामाजिक व मर्यादित लड़की थी। उसका रहन-सहन सादा ही था। वह अपनी हर हकरत व कदम को उठाने से पहले अपने परिवार की इज्जत को दिमाग में लेकर चलती थी।
निधि और शन्नो के कोचिंग के बगल में स्थित कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में सुनील नामक लड़का कम्प्यूटर कोर्स सीखने के लिए आता था।
रोज ही एक जगह आने-जाने के कारण एक दिन आॅटो में तीनों की मुलाकात हुई, तो सुनील ने एक ही क्षेत्रा का हवाला व लगभग एक ही जगह पर पढ़ने का हवाला देते हुए शन्नो और निधि से दोस्ती कर ली और फिर वह रोज शन्नो से मिलने लगा।
खेली-खायी शन्नो को सुनील द्वारा उसमें(शन्नो में) दिलचस्पी लेते देख, समझने में ज्यादा देर नहीं लगी, कि सुनील के दिल में क्या है? फिर वह सुनील के और करीब आ गयी और यही करीबी कब प्रेम में तब्दील हो गयी, दोनों को ही पता नहीं चल पाया।
कहते हैं, लता के सबसे करीब जो होता है, वह उसी का सहारा ढूंढती है। सुनील भी शन्नो के सबसे करीब आ गया था। गठीले बदन व सुंदर एवं स्टाईलिश सुनील को जब भी मौका मिलता, वह शन्नो के हुस्न की तारीफ तो करता ही, कभी-कभी शारीरिक छेड़छाड़ भी कर दिया करता था। गबरू जवान व मात्रा बाईस वर्षीय सुनील अब शन्नो की आंखों में चढ़ने लगा था।
शन्नो को देखते ही सुनील की आंखों में शरारत नाचने लगती थी, तो शन्नो भी अपनी हरकतों से उसे खूब तड़पाती थी। कभी दुपट्टा गिरा कर अपनी दुधिया घाटी दिखाकर, तो कभी अपने नितम्बों को मटका कर उसकी धड़कनें बढ़ा देती थी। जब उसका इससे भी मन नहीं भरता था, तो कभी उसके गाल व जांघ पर जोर से चिकोटी काटते हुए आंख भी मार देती थी।
ऐसे में सुनील अक्सर शन्नो से कहता था, ‘‘मेरी जान! जिस दिन तुम मेरे हाथ लग गयीं न, उस दिन सारा हिसाब-किताब चुकता कर दूंगा।’’
इस पर तुरन्त ही जवाब में शन्नो आंखों से शरारत करते हुए आहिस्ते से एक आंख मार देती थी और कहती थी, ‘‘मैं तुम्हारी पकड़ मंे आऊंगी तब न?’’
सुनील अब शन्नो के ‘शबाब’ को पाने के लिए मचलने लगा था। वह इसके लिए उचित मौके की तलाश में रहने लगा। एक रोज शन्नो ने स्वयं ही सुनील की मुराद पूरी कर दी।
दरअसल, उस रोज शन्नो के घरवाले शाम के समय कहीं एक-दो दिन के लिए बाहर जाने वाले थे। शन्नो ने जानबूझ कर निधि के साथ कोचिंग से बाहर निकलते हुए सुनील से मुखाबित हुई, तो उसने सुनील से ‘हाय हैलो!’ कहने के तुरन्त बाद बोली, ‘‘यार निधि, मेरे घरवाले आज शाम को कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं। अगर हो सके, तो आज रात मेरे घर आ जाना, क्योंकि मुझे अकेले डर लगता है। तुम्हारे आने से हम रातभर बातें करेंगे और खूब मौजमस्ती भी पाएगी, क्योंकि हमें रोकने-टोकने वाला भी कोई नहीं होगा।’’ फिर तिरछी नजरों से सुनील को निहारती हुई सांकेतिक भाषा में बोली, ‘‘एक-दो दिन हमारा घर खाली है ख्याल रखना।’’
‘‘नहीं बाबा नहीं।’’ तपाक से बोली निधि, ‘‘मैं अपने माता-पिता के बगैर किसी के घर रूक नहीं सकती और ना ही मेरे माता-पिता इसकी इजाजत देंगे।’’ वह स्पष्ट रूप में इंकार करती हुई बोली, ‘‘मैं नहीं आ पाऊंगी, तुम अपने किसी रिश्तेदार को बुला लो।’’
सीधी-सादी निधि तो शन्नो की चाल नहीं समझ पायी थी, किन्तु सुनील शन्नो के इशारे समझ गया था। फिर उसी दिन रात के समय सुनील, शन्नो के घर इशारा पाकर पहुं गया। उसने आहिस्ता से शन्नो घर के दरवाजे पर दस्तक दी। शन्नो ने दरवाजा खोला और दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्करा उठे। शन्नो ने सुनील को अंदर आने को कहा, तो सुनील झट से घर के अंदर प्रवेश कर गया।
सुनील जानता था, कि शन्नो का परिवार घर पर नहीं है और शन्नो इस समय बिल्कुल अकेली है घर में, जिस कारण सिग्नल पूरी तरह से हरा है। फिर भी उसने दिखावे के लिए पूछा, ‘‘शन्नो तुम्हारे घरवाले कहीं बाहर गए हैं क्या?’’ वह आंखें नचाता हुआ बोला, ‘‘मैं इधर से गुजर रहा था, तो मेरी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया था। तुम्हारा घर पास में ही होने के कारण मैंने सोचा, कि तुम्हारे घरवालों से कोई मदद ले लेता हूं।’’
जवाब देने के बजाए, शन्नो खिलखिलाकर हंस पड़ी, ‘‘ज्यादा चालाक मत बनो।’’ वह इतराती हुई बोली, ‘‘मेरे दीवाने होकर खींचे चले आये हो मुझसे मिलने और अब नखरे दिखा रहे हो।’’ फिर बोली, ‘‘सब जानती हूं, कि तुम क्या हाल-ए-दिल लेकर मेरे पास आए हो? तुम बखूबी वाकिफ हो कि मैं इस वक्त घर पर बिल्कुल अकेली हूं, इसलिए ज्यादा अनजान बनने का अभिनय मत करो।’’
इतना कहते ही शन्नो ने दरवाजा बंद किया और कुण्डी ऊपर चढ़ा दी। फिर अपने कमरे की ओर बढ़ गयी। शन्नो के पीछे-पीछे सुनील भी उसके कमरे में पहुंच गया। कमरे में हर चीज सलीके से रखी हुई थी। बिस्तर तो बखूबी सजा रखा था शन्नो ने। बेड पर चादर नया बिछाया हुआ था, जिसमें से हल्की परफ्यूम की महक-महकी सुगंध भी आ रही थी। तकिये भी सलीके से रखे हुए थे और ओढ़ने के लिए हल्का सुंदर-सा कंबल भी रखा हुआ था।
घर व बिस्तर की सजावट देखकर सुनील तुरन्त भांप गया, कि शन्नो ने पहले ही मिलन की सारी तैयारियां कर रखी हैं। फिर वह बिना कोई सवाल-जवाब किए पलंग पर बैठ गया, तो शन्नो भी बेहयाई से उसकी बगल में जाकर सटकर बैठ गयी। इस समय शन्नो खूब बनी-संवरी हुई थी। वह एकदम अप्सरा लग रही थी, अतः सुनील के खिले यौवन व सुंदर मुखड़े को एक टुकुर निहारने लगा।
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो टुकुर-टुकुर?’’ वह एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बोली, ‘‘इरादा क्या है जनाब का आखिर?’’
‘‘तुम्हें यूं टुकुर-टुकुर न देखूं, तो और क्या करूं?’’ शन्नो के निकट सरकते हुए बोला, ‘‘बनाने वाले ने तुम्हें सिर से लेकर पांव तक, आगे से पीछे, ऊपर से नीचे तक एकदम तराश कर बनाया है।’’ कहते हुए उसने अपनी निगाहें शन्नो के खिले हुए उभारों पर जमा दीं।
‘‘क्या निहार रहे हो?’’ शन्नो ने कटीली नजरों से देखा, ‘‘बहुत मचल रहे हो देखने और छूने के लिए लगता है?’’
‘‘हां, सही समझा तुमने।’’ मुस्करा कर बोला सुनील, ‘‘इसलिए तुम्हारे गदराये हुस्न को ताड़ कर अपनी आंखें सेक रहा हूं।’’
‘‘क्या केवल आंख सेंक कर ही काम चलाओगे क्या?’’ वह सांकेतिक भाषा मंे बोली, ‘‘या फिर आगे भी…?’’
इतना सुनते ही सुनील ने शन्नो को अपनी बांहों में भर लिया और उसके अधरों का रसपान करने लगा। वह उसके नाजुक अंगों को मसलते हुए बोला, ‘‘आंखों से केवल तुम्हारे हुस्न का जायजा ले रहा हूं।’’ वह होंठों पर जीभ फिराता हुआ बोला, ‘‘असली ‘काम’ तो कहीं ओर से लूंगा।’’ और इसके बाद वह शन्नो के वस्त्रों के अंदर उसके उभारों को सहलाने लगा।
सुनील के हाथ अपने जिस्म पर रंेगने से शन्नो ने दांतों तले निचला होंठ दबाकर मस्ती भरी सीत्कार भरी। सुनील के बेसब्र हाथ शन्नो के गोरे, मखमली बदन का रोम-रोम टटोल लेना चाहते थे। मदहोशी के आलम में शन्नो की आंखें स्वतः मूंदने लगीं। शन्नो ने पूरा जिस्म सुनील की बांहों में ढीला छोड़ दिया।
फिर सुनील ने शन्नो को अपनी बांहों लेकर गोद में उठाया और बिस्तर पर चित्त लिटा दिया। फिर उसके हाथ कभी उसके उरोजों को, कभी उसकी गदरायी जांघों को, तो कभी उसके नितम्बों को सहलाने, दबाने लगे।
शन्नो बिस्तर पर यही सब तो चाहती थी। उत्तेजना के मारे उसका बुरा हाल था। पूरा शरीर आग की भट्टी की तरह तपने लगा था। फिर शन्नो, सुनील के कान में फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘मेरे और अपने सभी वस्त्रा निकाल फंेको।’’ वह मदहोश होते हुए बोली, ‘‘मुझसे अब और सब्र नहीं होता।’’ वह मद भरी आंखों से सुनील को देखते हुए बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम जल्दी से मुझे व खुद को निर्वस्त्रा कर मेरी ‘देह’ में अंदर गहराई तक उतर जाओ, ताकि मैं तुम्हारे नीचे पिसकर कली से फूल बन जाऊं।’’
फिर क्या था… देखते ही देखते पहले सुनील ने शन्नो को ऊपर से लेकर नीचे तक पूर्णतया निर्वस्त्रा कर डाल और स्वयं भी उसी अवस्था में आ गया। वह आज पहली बार शन्नो को इस रूप(निर्वस्त्रा) में देखकर बेहाल हो उठा। उसके ‘तन’ में गजब की ऐंठन होने लगी। वही हाल शन्नो का भी था। जब उसने सुनील का गठीला निर्वस्त्रा ‘बदन’ देखा, तो उसके मुंह में पानी आ गया। शन्नो ने फुर्ती से झपट कर सुनील के निर्वस्त्रा ‘बदन’ को अपनी हथेली में ऐसे जकड़ लिया, जैसे बिल्ली अपने शिकार को पंजे में जकड़ लेती है।
सुनील देख रहा था, कि शन्नो की आंखों में कामना की लाल-लाल लपटें उठ रही थीं। कामाग्नि में उसका तन बुरी तरह तपने लगा था। उसे हमेशा ऐसी ही तो औरत की ख्वाहिश थी, लेकिन इससे अगले ही पल जो कुछ हुआ, वह सुनील के लिए अकल्पनीय था।
शन्नो ने उसके जिस्म को अपने ऊपर से धक्का दिया, तो वह पीठ के बल बिस्तर पर जा गिरा। फिर उसने एकदम से उठते हुए स्वयं सुनील के ऊपर आकर प्यार की ‘कमान’ संभाल ली। वह किसी मर्द की भांति सुनील के ऊपर झुक कर, उचक-उचक प्यार की रफ्तार बढ़ाती रही।
यानी अब ‘हल’, ‘खेत’ को नहीं जोत रहा था, बल्कि प्यासा ‘खेत’ अपनी मर्जी से ‘हल’ से जोताई करवा रहा था। सुनील को इतनी उम्र में न जाने कितनी लड़कियों को भोगता आया था, अतः उसे शन्नो को भी भोगने की तीव्र ख्वाहिश थी। लेकिन यहां तो शन्नो ही उसे पूरी मस्ती के साथ भोग रही थी। शन्नो का वेग पल-पल प्रबल होता जा रहा था। उसके मुंह से मस्ती भरी सीत्कारें छूट कर उस कमरे की दीवारों से टकरा रही थीं।
सुनील ने ऐसा सुख अपनी जिन्दगी में पहले कभी हासिल नहीं किया था। उसके दोनों हाथ शन्नो के नितम्बों को सहला कर उसकी उत्तेजना को हवा दे रहे थे। ऐसा करते हुए सुनील की खुद की उत्तेजना बेकाबू होने लगी, तो उसने मर्दाना तेवर अख्तियार करते हुए शन्नो के जिस्म को झटका दिया और एक बार पुनः शन्नो के ऊपर झुक कर स्वयं प्यार की ‘कमान’ संभाल ली। जो ‘काम’ अब तक शन्नो कर रही थी, वह अब सुनील करने लगा।
काम की कमान चाहे जिसके भी हाथ थी, मजा दोनों को बराबर आ रहा था। दोनों के चेहरों पर आनंद के अवर्णनीय भाव थे। उनके चरम पर पहुंचने के साथ ही आनंद के भाव भी गहरे हो गए थे। सुनील और शन्नो दोनों की ही मन की ‘मुराद’ पूरी हो गयी थी। उन्हें आज एक-दूजे से जो आनंद प्राप्त हुआ था, उसे वे बार-बार पाना चाहते थे।
उस रोज पूरी रात रूकने के बाद तड़के सुबह सुनील, शन्नो के घर से चला तो गया, लेकिन उसके बाद जब तक शन्नो के घरवाले बाहर रहे, तब तक वह रोज ही छुप-छुप कर वहां आता रहा और अपनी इच्छा की तृप्ति करता रहा। परिजनों की आंखों में धूल झोंक कर दोनों ही अपनी अश्लील हरकतों को घर में तथा बाहर में उचित समय देखकर असामाजिक रिश्ते को हवा देते रहे।
इस बीच एक दिन निधि ने अपनी सहेली शन्नो को सुनील के साथ आपत्तिजनक अवस्था में संभोगरत देख लिया, तो वह गुस्से में लाल-पीली हो गयी। वह बोली, ‘‘मुझे ये तो पता था, कि तुम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हो।’’ वह मुंह बिचकाते हुए बोली, ‘‘पर इसका जरा भी गुमान न था, कि तुम दोनों प्यार के तेल में वासना के पकौड़े तल रहे हो।’’
इतना सुनने के बाद शन्नो और सुनील भी गुस्से में आ गए और उन्होंने निधि से कहा, ‘‘तुम अपनी जुबान बंद रखना, इसी में तुम्हारी भलाई है। नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा।’’
उस समय तो निधि ने भयभीत होकर चुप्पी साध ली, परन्तु उसने एक दिन यह बात सर्वप्रथम लगभग अपने कोचिंग के टीचर को बता दी। इसके बाद उसने क्रोध में अन्य लोगों को भी शन्नो और सुनील के मध्य चल रहे अवैध संबंधों की जानकारी दे दी थी।
फिर मास्टर ने निधि के द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार ही शन्नो को डांट लगाई थी और अन्य लोग भी शन्नो को ताने मारने लगे थे।
शन्नो और सुनील की धमकी का उल्टा ही असर हुआ था निधि पर। सारा पासा उनका उल्टा ही पड़ गया था। अब सुनील और शन्नो की चिंता बढ़ गयी थी। दोनों हर वक्त यही डर सताने लगा, कि कहीं किसी दिन निधि ने उनके रिश्तों की खबर उनके परिवारजनों को दे दी, तो गजब ही हो जाएगा। शन्नो, अपने प्यार की खबर घरवालों को लग जाने के भय से बहुत घबराई हुई रहने लगी थी।
जासूसी कहानी पढ़ने वाली शन्नो ने एक दिन एकांत में सुनील को बुलाकर निधि के बारे में चर्चा की। लिहाजा, दोनों ने निधि से निपटने की योजना बना डाली।
योजना के अनुसार ये तय हुआ कि इससे पहले कि निधि उन दोनों को जुदा करे, वे उसे इस दुनिया से जुदा कर देंगे। अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए शन्नो ने सुनील से एक पत्ता नशे की गोलियां मंगाई और सबुह वह अपने कोचिंग जा पहुंची। वहां पर शन्नो को निधि मिल गयी।
फिर शन्नो ने मौका देखकर निधि से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मैं और सुनील अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं। हमारे कारण तुम्हारी भी बदनामी हो सकती थी। हम लोगों को तुम्हें धमकी भी नहीं देनी चाहिए थी, लेकिन अब हमें अपनी भूल का एहसास हो चुका है। मैं नाहक ही तुमसे उलझ पड़ी।’’ वह हाथ जोड़कर अभिनय करते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो मेरी बहन। आज के बाद हम दोनों एक-दूसरे से कभी नहीं लड़ंेगे। तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगी, इसलिए एक बार फिर मैं कान पकड़ कर तुमसे माफी मांगती हूं।’’
फिर निधि, शन्नो की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई। उसे लगा कि शन्नो वाकई पश्चाताप करना चाहती है, अतः वह शन्नो को माफ करते हुए बोली, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी गलती का एहसास वक्त रहते हो गया। चलो मैंने माफ किया तुम्हें। अब सारे गिले-शिकवे भूलकर दोनों गले मिल लेते हैं।’’
फिर किसी तरह बहला-फुसला कर चालाकी दिखाते हुए शन्नो, निधि को अपने साथ अपने घर ले आयी। उस वक्त शन्नो के घर पर कोई नहीं था। घर पर कोई नहीं होने के कारण शन्नो, निधि को सबसे ऊपर बने दो मंजिले मकान में ले गयी।
किचन में उसने चाय बनाई तथा सुनील द्वारा लाई गयी नशे की गोलियां डालकर निधि को चाय में पिला दी। फिर वहां से निधि को साथ लेकर वह बेसमेन्ट में जहां पर जानवर बांधे जाते हैं, उस सुनसान जगह पर उसने चारपाई बिछाई और फिर दोनों सहेलियां उसमें बैठकर बातें करने लगीं।
थोड़ी देर के बाद निधि ने बहकते हुए कहा, ‘‘शन्नो मुझे नींद क्यों आ रही है? सिर भी घूम रहा है।’’
इस पर शन्नो बोली, ‘‘थकान होगी, कभी-कभी ऐसा हो जाता है।’’
फिर थोड़ी देर के बाद निधि चारपाई पर लेट गयी। उसके बाद वह नींद की आगोश में समाने लगी। नशे के मारे निधि अपना बचाव भी नहीं कर सकती थी, इसलिए शन्नो ने तुरन्त निधि के मुंह पर तकिया जोर से रखकर दबा दिया। जिससे निधि का दम घुटने के कारण उसकी वहीं पर मौत हो गयी। फिर शन्नो ने उसके ऊपर रजाई, गद्दे आदि डाल कर निधि के शव को छुपा दिया।
योजनानुसार रात के लगभग आठ बजे जब शन्नो के घर के सभी लोग बाहर आग ताप रहे थे, तो शन्नो ने निधि की चारपाई से निधि के शव को बाहर निकाला और उसे खींचती हुई स्टोर रूम में ले गयी। तयशुदा समय पर रात के लगभग ग्यारह बजे जब सभी घरवाले गहरी नींद की आगोश में समाए थे, तब सुनील घर के पीछे से पेड़ के सहारे चढ़कर शन्नो के पास आया। फिर सुनील और शन्नो ने लाश को उठा कर और किनारे कर दिया।
वहां पर शन्नो ने निधि की जूती स्वयं पहन ली। उसकी घड़ी, बैग, जैकेट, टोपी, काॅपी-किताबें और स्वयं का बैग, जिसमें सभी चीजें शन्नो ने भर दी। फिर उसने सुसाईट नोट लिखकर कमरे में रख दिया, जिसमें उसने कुमारी निधि नाम की लड़की के बारे में बताने की बात को लेकर शन्नो द्वारा स्वयं आग लगा कर आत्महत्या करना अंकित किया था।
सुनील की मदद से शन्नो ने निधि के शरीर पर मिट्टी का तेल डाल कर मुंह में कपड़ा बांध दिया। फिर मिट्टी तेल से भीगे निधि के शव को माचिस की तीली से आग लगा दिया। इसके साथ ही शन्नो और सुनील सभी सामानों को साथ लेकर निधि का शव थोड़ा जल जाने के बाद पीछे के रास्ते से पेड़ के सहारे नीचे उतरे। फिर वहां पर खड़ी सुनील द्वारा लाई गयी, उसके दोस्त की मोटरसाइकिल पर बैठकर दोनों वहां से भाग निकले। रास्ते में पड़ने वाली एक पुलिया के पास नाले में शन्नो ने निधि का सारा सामान फंेक दिया।
सुनील और शन्नो ने समझा कि पुलिस अब उन दोनों तक कभी नहीं पहुंच पायेगी। वह हर हाल में सुरक्षित बच जायेंगे। मगर पुलिस व कानून की पैनी निगाहों से न कोई अपराधी आज तक बच व छिप सका है और न ही छिप पायेगा।
सुनील व शन्नो भी पुलिस की गिरफ्त में आ ही गये थे। पुलिस ने शन्नो और सुनील को हिरासत में लेकर थाने में सख्ती से पूछताछ की। इस पूछताछ में शन्नो और सुनील टूट गए और फिर पुलिस के समक्ष उन्होंने एक और राज को बेपर्दा करते हुए अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि, ‘‘मैंने और सुनील ने ही मिलकर निधि की हत्या की है।’’ शन्नो के इस बयान का समर्थन करते हुए सुनील ने भी अपना जुर्म कबूल लिया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।