सूनी कोख भर दे सैंया desi vasna kahani
राज सिंह अपनी पत्नी मासूमी को दिलोजान से चाहता व मोहब्बत करता था। उसके घर में सब भरा था, लेकिन एक औलाद की कमी जरूर खल रही थी। राज सिंह ने औलाद की आस में मासूमी को लेडी डाॅक्टर, बाबा-ओझाओं को भी दिखाया था, लेकिन इसके बावजूद मासूमी की गोद नहीं भरी थी।
डाॅक्टरों ने कहा था कि मासूमी में कोई दोष नहीं है। इसके बाद पति-पत्नी ने अनेक मंदिर-मस्जिदों के चक्कर लगाये, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मासूमी उदास रहने लगी, तो वहीं राज सिंह भी चिंतित रहता था।
मासूमी न केवल भोली व मासूम ही थी, बल्कि वह सर से पांव तक अत्यंत खूबसूरत, गोरी-चिट्टी तथा भरे-भरे बदन की युवती थी, उसकी आंखें बड़ी-बड़ी थीं, चेहरा गोल-अण्डाकार था, अधरों पर एक प्यारी-सी मुस्कान थी। उसकी इसी मुस्कान व सुंदरता का दीवाना था, मासूमी के गांव में रहने वाला दीपांशु। दीपांशु, मासूमी का पड़ोसी था।
लगभग 28 वर्षीय बांका जवान दीपांशु काफी तंदुरूस्त व मिलनसार था। जब मासूमी की शादी भी नहीं हुई थी, तब से वह मासूमी को चाहता था। वह उससे प्यार करता था, लेकिन वह कोशिश करके भी अपनी चाहत का इजहार नहीं कर सका, क्योंकि वह जानता था कि मासूमी के साथ उसकी शादी कभी नहीं हो सकती।
वक्त गुजरता रहा….।
मासूमी की शादी हो गयी, तो वह ससुराल चली गयी। फिर मासूमी का ससुराल-मायके आना-जाना शुरू हो गया था। मासूमी जब भी मायके आती थी, तो दीपांशु से जरूर मिलती थी।
पिछली बार मासूमी आयी, तो दीपांशु को पता चला कि मासूमी औलाद के लिए तरस रही थी।
बस, यही बात दीपांशु के जेहन में बैठ गयी। उसने सोचा, क्यांे न इसी बहाने से वह मासूमी के यौवन का रसपान कर सके, जिसके लिए वह वर्षों से तड़प रहा था। उसने योजना बनाई व एक आइडिया ढूंढ निकाला।
इस बार मासूमी मायके आयी, तो दीपांशु ने कहा, ”एक अच्छा तांत्रिक है, उससे इलाज कराओ। निश्चित ही तुम मां बन पाओगी।“
उसकी बात पर यकीन करके मासूमी उसके साथ तांत्रिक से मिली। तांत्रिक ने मासूमी का मुआयना किया, फिर दीपांशु से बातचीत की।
दीपांशु ने मासूमी से कहा, ”तांत्रिक बाबा ने औलाद के लिए एक रास्ता बताया है। उसने कहा है कि अगर पति कमजोर है तथा औरत में कोई दोष नहीं है, तो वह पराए मर्द से संबंध बनाकर मां बन सकती है। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं होगा।“
दीपांशु ने कहा, तो यह बात मासूमी के जेहन में बैठ गयी। उसके जेहन में पर-पुरूष से संबंध बनाने की बात उठने लगी।
”क्या सोच रही हो मासूमी?“ दीपांशु ने एकाएक ही मासूमी का हाथ थामते हुए कहा।
दोनों उस समय बाबा की कुटिया के एक कमरे में थे। दीपांशु ने बाबा से पहले ही सारा मामला तय कर लिया था और तांत्रिक बाबा, दीपांशु के इशारे पर ही चल रहा था।
मासूमी ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें दीपांशु की आंखों में डाल दीं और कहा, ”लेकिन यह पाप होगा, पति से विश्वासघात करना ठीक नहीं है।“
”मासूमी, तुम भी कैसी बातें करती हो?“ दीपांशु उससे कुछ सटकर बैठ गया। फिर उसके कोमल हाथ की नर्म-नाजुक अंगुलियां सहलाते हुए बोला, ”यह तांत्रिक बाबा का आदेश है। यह पाप कैसा? फिर यह भी तो सोचो कि तुम्हारा पति कितना खुश होगा, जब तुम मां बन जाओगी।“
एक जवान तथा हसीन औरत से सटकर बैठे हुए, मर्द के जिस्म में सनसनाहट भरने में आखिर कितनी देर लगती है? दीपांशु के तन में ‘काम’ के विस्फोट होने लगे, तो उसने आगे बढ़कर मासूमी को आगोश में ले लिया तथा उसके नाजुक अंगों पर हाथ फिराते हुए बोला, ”मासूमी, आज की रात काफी महत्वपूर्ण है। तुम अपने जेहन में कोई और बात मत सोचो। ठीक नौवंे महीने तुम मां बनोगी। कम आॅन मासूमी…।“ कहकर दीपांशु ने मासूमी के अधरों के कई चुम्बन ले डाले।
मासूमी के तन में भी उन्माद का समुंदर लहराने लगा था। हालांकि वह शादीशुदा थी, लेकिन शादी के इतने सालों बाद भी वह अतृप्ति की आग में झुलस रही थी। उसका पति जल्दी ही थक कर निढाल पड़ जाता था। मासूमी कभी पति से संतुष्ट नहीं हुई थी।
जब उसके तन में ‘काम’ के बाण छूटने लगे, तो वह पाप-पुण्य की बात भूलती चली गयी और तांत्रिक बाबा का आदेश शिरोधार्य कर लिया।
दूसरी बात यह भी थी कि मासूमी के दिमाग में एक ही फितूर था, कि किसी भी तरह संतान सुख पाना। इसके लिए उसे एक दीपांशु तो क्या, हजारों दीपांशु के नीचे बिछना मंजूर था।
उधर मासूमी के गदराये यौवन को जी भर सहलाने व चूमने के बाद दीपांशु ने उसके ऊपरी व नीचे के बदन के सभी वस्त्रा निकाल कर उस पूर्णतया निर्वस्त्रा कर डाला।
फिर उसके बदन को चूमने व चाटने लगा, तो मासूमी के हलक से सीत्कारों का सैलाब फूट पड़ा। वह जल बिन मछली की भांति तड़प रही थी…
”ओह…दीपांशु… आज जैसे चाहो मेरे बदन को नांेचे लो… खसोट लो.. जैसे चाहो वैसे खेल लो।“ वह मस्ती के आलम में दीपांशु के होंठों को चूमते हुए बोली, ”बस बदले में मेरी गोद में खेलने के लिए मुझे भी एक संतान दे दो।“ वह बेतहाशा अपने ऊपर झुके हुए दीपांशु को अपने बदन से चिपकाते हुए बोली, ”प्यार का बीज डाल ले मेरी कोख में, जिसे अंकुरित करके मैं संतान सुख का लाभ पा सकू।“
”ऐसा बीज डालूंगा मेरी जान तुम्हारी ‘कोख’ में कि एक क्या, दो-दो जुड़वा संतानों का सुख पाओगी तुम।“ वह मासूमी के संतरों से खेलते हुए बोला, ”बस एक बार ‘केला’ खाकर हजम कर लो।“
”मगर मुझे तो ‘केला’ पसंद नहीं।“ जानबूझ कर छेड़ कर, हंसते हुए बोली मासूमी, ”मैंने अपने पति का ‘केला’ भी काफी हजम किया, मगर कोई सफलता नहीं मिली।“
”अरे वो ‘केला’ थकेला रहा होगा।“ दीपांशु अपने ‘केले’ को स्पर्श कर इशारा करता हुआ बोला, ”ऐसा होना चाहिए ‘केला’, जो एक होकर भी लगे ‘दुकेला’।“
”अरे पहले जो तुमने अपने हाथों में मेरे संतरे पकडे़ हुए हैं, उनका रस तो चूस लो।“ वह मजाक में बोली, ”अपने ‘केले’ के गुणगान बाद में करना।“
फिर काफी देर तक दीपांशु, मासूमी के संतरों का रस चूसता रहा। मासूमी भी इस क्रिया से रह-रहकर सीत्कार कर बैठती थी, ”ओह…दीपू… मेरे दीपांशु और चूसो, अच्छा लग रहा है। सारा रस निचोड़ डालो।“
दीपांशु, मस्ती से मजे लेकर संतरों का जूस पी रहा था, साथ ही साथ अपने एक हाथ से मासूमी गोरी गदरायी जांघों को सहलाता जा रहा था। मासूमी रह रहकर कसमसा रही थी। उसके प्रेम ‘प्याले’ में मदन-रस की बंूद-बूंद रिसने लगी थी।
अब उससे सब्र नहीं हुआ और बेतहाशा वह दीपांशु से लिपट गई और उसके कान के पास फुसफुसाते हुए बोली, ”दीपांशु तुम देर न करो और जल्दी से संतान उत्पत्ति वाला ‘कार्य’ शुरू कर दो। अपने प्यार का बीज मेरी कोख में डाल दो।“
”जो हुक्म मेरी आका।“ मासूमी के होंठो को चूमते हुए कहा दीपांशु ने, ”ये लो संभालो मेरे ‘बीज’ को।“
और झट से दीपांशु ने अपना ‘बीज’ मासूमी की ‘क्यारी’ में डाल दिया। एक पल को मासूमी छटपटाई और छूटने का प्रयास भी किया। मगर दीपांशु पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह मुक्त नहीं हो पाई और केवल कसमसा कर रह गई।
फिर कुछ ही देर में संतान उत्पत्ति के इस कार्य में मासूमी को बेहद आनंद आने लगा। उसने इतनी सख्त ‘जान’ इससे पहले कभी महसूस नहीं की थी अपनी देह में। उसके मुख से कामुकता के स्वर फूट रहे थे, जब दीपांशु उसके तन से खेल रहा था…
”दीपांशु बहुत मजा आ रहा है… जादू है तुम्हारे अनोखे ‘बीज’ में।“ मासूमी अपने होंठ काटती हुई बोली, ”मेरी पूरी ‘क्यारी’ बाग-बाग हो रही है।“
”जानेमन अभी तो मेरा ‘बीज’ तुम्हारी ‘क्यारी’ के अंदर अपना कार्य कर रहा है।“ दीपांशु भी आगे-पीछे होता हुआ बोला, ”जब उसका कार्य सम्पन्न हो जायेगा और उसके बाद जब वह अपना ‘प्रेमरस’ छोड़ेगा, तब जाकर कहीं ‘बीज’ बोने का कार्य सही मायने में सफल होगा।“
”तो फिर छोड़ो ने अपना प्रेमरस मेरी ‘सूखी क्यारी’ में।“ मासूमी तड़प कर बोली।
”पहले मैं अपने मोटे ‘बीज’ के लिए तुम्हारी ‘क्यारी’ को खोद-खोद कर उसके लिए जगह तो बना लूं।“ वह मासूमी के नितम्बों पर नाखून गढ़ाता हुआ बोला, ”उसके बाद जानेमन मेरा ‘बीज’ खुद-ब-खुद अपना प्रेमरस त्याग देगा।“
”तो फिर खोदते रहो मेरी ‘क्यारी’ को।“ कामोत्तेजना में आंखें मंूदते हुए बोली मासूमी, ”वैसे मुझे भी अभी कोई जल्दी नहीं है तुम्हारे प्रेमरस के त्याग के लिए। मुझे अभी मजा आ रहा है, ऐसे ही खोदते रहो मेरी ‘क्यारी’ को। ओह..आह..उम..स…।“
दीपांशु, मासूमी की ‘क्यारी’ खोदता रहा और मासूमी मस्ती के आलम में खोकर मादक सिसकियां लिये जा रही थी।
फिर कुछ ही क्षण बाद मासूमी की ‘क्यारी’ में बीज बोने कार्य सम्पन्न हो गया। दीपांशु हांफते हुए बोला, ”लो मेरी बुलबुल, मुबारक हो।“ उसके होंठ को चमते हुए व एक हाथ से उसके संतरों को सहलाता हुआ बोला दीपांशु, ”अब तुम सही मायनों में ‘खुदी’ हो। मेरा मतलब तुम्हारी ‘क्यारी’ में मैंने सही से प्यार का बीज बो दिया है।“
इस तरह मासूमी ने दीपांशु के शीशे में उतर कर अपना उसे सर्वस्व लुटा दिया था।
वह रात मासूमी के जीवन में भूचाल लेकर आयी, क्योंकि उस रात के बाद मासूमी की हर रात दीपांशु की आगोश में ही कटने लगी थी।
जब पत्नी के कदम बहक जायें, तो बात जल्दी ही सबके सामने आ जाती है। राज सिंह को शीघ्र ही पता चल गया कि उसकी पत्नी के किसी गैर मर्द से संबंध हैं। यही कारण है कि मासूमी अक्सर मायके में ही रहना पसंद करती है तथा वह ससुराल में दो दिन भी नहीं टिकती।
इसका असली कारण समझ में आते ही राज सिंह ने मासूमी को पहले प्यार से समझाया, नहीं समझी तो उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया। पति से तलाक लेकर मासूमी ने दीपांशु के साथ रहना शुरू कर दिया, लेकिन चाहकर भी दीपांशु ने मासूमी को पत्नी का दर्जा नहीं दिया।
जो औरत पति को धोखा देकर बदचलनी की राह पर चलती है, उसका यही हश्र होता है। मासूमी मां बनने के चक्कर में अपनी सुखी गृहस्थी को अपने ही हाथों आग लगा बैठी।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।