सैंया की रोमांटिक जिद vasna sex stories
पत्नी बेचारी पति के काम से त्रास्त थी। पति का साथ तो उसे बड़ी मुश्किल से ही मिल पाता था। पर वह कर भी क्या सकती थी? दिनभर घर का काम निपटा कर वह दोपहर को एक-दो घंटे सो जाती थी। उस पर भी उसकी सास विमला रानी उसे जी भरकर तंग करती थी। घर का काम ज्यादा से ज्यादा करवाती और शाम को पांच बजे उसे उठा कर शाम की रोटी-सब्जी बनवाने की तैयारी कराने के लिए कह दिया करती थी।
सुनीता के दो देवर थे और एक ननद थी। अनिल घर में सबसे बड़ा था। वह ही घर चला रहा था। अनिल की उम्र लगभग 25 साल की थी और उसके दोनों भाई क्रमशः 22 तथा 18 साल के थे। बहन कमलेश भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। उसकी उम्र 16 साल थी।
अनिल के पिता भूरे लाल भुनैरा था। वह पाॅपकोर्न, मूंगफलियां इत्यादि भून कर बेचता था। इसके अतिरिक्त वह रेहड़ीपर सेवियां, दाल-सब्जी, चिवड़े, भुने हुए छोले, मटर, चिप्स, चने की दाल, तली हुई मूंगफलियां इत्यादि रखता था। वह शराब के ठेके के सामने रेहड़ी लगाता था। शराबी लोग उससे भेलपुरी बनवा कर खाते थे। इस मामले में भूरे लाल ने प्लास्टिक के डिस्पोजल गिलास तथा दो-तीन ठंडे पान की यानी दो लीटर वाली बोतली भी रखी हुई थी।
जो व्यक्ति भूरे लाल से नमकीन लेता था, वह भूरे लाल से गिलास तथा पानी भी खरीद लेता था। इस मामले में भूरे लाल 50 ग्राम नमकीन के 20 रुपए तथा 100 ग्राम नमकीन के 40 रुपए लेता था। नमकीन के मामले में भी भूरे लाल हेराफेरी करता था। यानी 50 ग्राम नमकीन में बारीक पिसे हुए, उबले हुए आलू, टमाटर तथा प्याज व धनियां डाल कर उसका वेट बढ़ा देता था, जिसकी वजह से नमकीन में मूंगफली, चने की दाल, बेसिन की सब्जियां इत्यादि कम पड़ती थीं और मसाले-मिर्च, धनियां, टमाटर, प्याज का वजन अधिक हो जाता था।
पर पीने वालों को क्या चाहिए पीने का एक सही व मजेदार अड्ड व ठिकाना। तो भूरे लाल ने एक अड्डा तथा पोर्टेबल ठिकाना बना रखा थ। इस पोर्टेबल अड्डे के लिए वह बकायदा पुलिस को भी खुश रखता था। हालांकि कभी-कभार पुलिस कर्मी, जो ड्यूटी पर तैनात होते थे, वे भी भूरे लाल का अपने मनमुताबिक शोषण कर लेते थे।
पर भूरे लाल इस मामले में बड़ा ही शातिर था। वह पुलिस वालों को हमेशा कहता रहता था, ‘‘आज बिल्कुल सेल नहीं हुई। सब साले फुकरे व कंगाल नशेड़ी ही आये थे। जो थोड़े बहुत ढंग के व जान-पहचाने वाले ग्राहक आये, वो सब भी फुकरों की तरह उधारी करके चले गए।’’ वह घबराते हुए कहता, ‘‘साहब एक बंदे ने तो मुझे धमकी भी दे दी थी, चाकू दिखाकर। मैंने पैसे मांगे तो लंबा-सा चाकू मेरी ओर करके बोला, फालूत बकवास मत कर वरना अभी पेट चीर डालूंगा। मैंने उसका पता व नाम नोट कर लिया है। चाहें तो आप भी नोट कर लें।’’
भूरा लाल कहता, तो बेकार के लफड़े में पड़ने की सोचकर, दूसरी जगह चले जाते थे। इस प्रकार भूरा लाल कई दफा, पुलिस वालों का हफ्ता व महीना बचा लेता था।
पर भूरा लाल स्वयं शराबी किस्म का व्यक्ति था। शाम को 1 बजे से 10 बजे तक वह शराब के ठेके के सामने रेहड़ी लगाता था और अच्छी-खासी आमदनी करके खुद शराब पीकर घर लौटता था। वह पहले से ही एक पव्वा अपने लिए लेकर रख लेता था। जब उसे घर आना होता था, तो घर आने के पहले वह टाईम से पव्वा पीना आरंभ कर देता था।
एक घंटे में पव्वा खत्म करने के बाद वह गीत गाते हुए व झूमते हुए मस्ती के आलम में घर आता था और अपनी पत्नी को पुकार कर कहता, ‘‘ऐ विमला रानी। जल्दी से आजा और मेरी रेहड़ी संभाल। लालटेन बंद कर और मेरी ‘लालटेन’ जला जल्दी से।’’
अनिल की पत्नी यह डायलाॅग कई बार सुन चुकी थी। पर वह इसका मतलब नहीं समझ सकी थी। अपने पति की आवाज सुनकर विमला फौरन घर से बाहर निकलती थी और अपनी बेटी तथा कुंवारे बेटों को बुला कर रेहड़ी के सारे माल को एक बड़ी-सी प्लास्टिक की पन्नी में सुरक्षित रखने की कवायद चालू कर देती थी।
विमला तथा उसका पति भूरे लाल ग्राउण्ड फ्लोर पर रहते थे और अनिल तथा उसकी पत्नी फस्र्ट फ्लोर पर रह रहे थे। यह 25 गज का मकान था, जिसके चारों तरफ मकान ही मकान बने थे। यानी भूरा लाल कोई बात अपने कमरे में तेज आवाज में करता था, तो वह आवाज दो-तीन घरों तक तथा छत पर रहने वाले लोगों तक बड़े आराम से पहुंच जाती थी।
भूरे लाल की उम्र 52 साल के लगभग थी। वह पहलवान किस्म का व्यक्ति था। अपनी जवनी में उसने कई अखाड़ों में पहलवानी के कई दाव-पेच आजमाये थे। पर पहलवानी करते वक्त ही भूरे लाल को बीड़ी तथा सिगरेट का शौक लग गया था। वह पहलवानी भी करता रहता था और बीड़ी सिगरेट तथा शराब भी पीता रहता था।
पर उसकी खुराक अच्छी थी, लिहाजा उसका बदन तीर-कमान की तरह एकदम सख्त था, क्योंकि वह 12 साल की उम्र से सुअर का मांस तथा खरोड़े खाते आ रहा था। जबकि आजकल कई लोग इन चीजों को खाने से परहेज करते हैं।
भूरे लाल को पता था, कि उसका बेटा सारी रात वीडियोग्राफी की नौकरी करता फिरता है और उसका नई ब्याहता पत्नी अकेली कमरें में पड़ी सपनों की दुनियां में खोयी रहती है।
यह अनिल की शादी के एक महीने बाद की घटना है।
भूरे लाल रात को रेहड़ी लेकर 10ण्30 बजे घर पहुंचा। उस वक्त उसने एक पव्वा तथा दौ पैग और ऊपर से लगा रखे थे। पव्वा खत्म करने के बाद अन्य दो पैग उसने ग्राहकों के देने पर मस्ती के मूड में पी लिए थे। इसी वजह से आज उसे और दिन की अपेक्षा अधिक नशा हो गया था।
भूरे लाल ने उस रात चुपचाप अपनी पत्नी विमला से पूछा, ‘‘बहू सो गई है क्या?’’
‘‘वह पलंग पर लेट तो गई थी।’’ आहिस्ते से फुसफुसाते हुए बोली विमला, ‘‘मगर उसे नींद आई है या नहीं, ये नहीं कह सकती।’’
‘‘चल फिर, छत पर चलते हैं। भूरे लाल ने बीवी के बदन को ललचाई नजर से घूरते हुए कहा, ‘‘वहीं पर बातें होंगी और वो होगा, जिसके लिए मेरे बदन में ऐंठन होने लगी है।’’ फिर बोला, ‘‘बच्चे सो गए हैं या जाग रहे हैं?’’
‘‘हां, सो गए हैं।’’ विमला बोली, ‘‘मगर पहले आप खाना तो खा लो। उसके बाद छत पर चलेंगे।’’
‘‘साली… आलू की पकौड़ी! बहन की निगोड़ी।’’ नशे में भद्दी-भद्दी गालियां बकते हुए बोला भूरे लाल, ‘‘तुझे कहा न एक बार छत पर चल।’’
विमला अपने पति के खतरनाक व्यवहार से भली-भांति परिचित थी और वह डरती भी बहुत थी। लिहाजा अपनी मार-कुटाई से बचने के लिए उसने अपने पति की बात मानने में ही भलाई समझी। वह चुपचाप छत के ऊपर चली गयी। छत के नीचे उसके बेटे की पत्नी यानी सुनीता का कमरा था। छत पर जो भी बात बोली जाती, वह बात सुनीता को बडे़ आराम से सुनाई देती थी।
भूरे लाल ने फोल्डिंग पलंग बिल्कुल चार दीवारी के पास बिछाया था। जहां से सुनीता को सारी बातें बड़े आराम से सुनाई दे रही थी।
फिर उस पलंग पर भूरे लाल ने अपनी पत्नी विमला को लेटाया और उसके पास लेटकर उसके ‘प्रेमपात्र’ के भगोने की किनारियों के मध्य मध्यमा अंगुलि का संचालन करते हुए कहा, ‘‘ऐ सारा दिन तू कहती रहती है कि बच्चे बड़े हो गए हैं, बच्चे समझदार हो गए हैं…।’’ वह आंख मारते हुए सांकेतिष भाषा में बोला, ‘‘पर मेरा पहलवान दिल भी तो अभी बच्चा ही है। इस बच्चे को कब सहलायेगी तू?’’
‘‘क्या करते हो जी?’’ एकाएक बोली विमला, ‘‘बहू नीचे सो रही है। वह सुन लेगी तो… जरा धीरे-धीरे बोलो।’’
उस वक्त अनिल की पत्नी यह सब बातें सुन रही थी। उसे नींद नहीं आई थी। भले ही वह लाईट बंद करके सोने का अभिनय कर रही थी। उसका पति तो रातभर किसी की शादी की वीडियोग्राफी करने के लिए उससे काफी दूर द्वारका गया हुआ था।
अपने पति की मार से विमला भली-भांति परिचित थी। वह जानती थी, कि यदि उसकी बात नहीं मानी गई, तो वह उससे मार-कुटाई करके घर में हंगामा खड़ा कर देगा। लिहाजा विमला की इच्छा न रहते हुए भी उसने अपने पति को प्यार प्रदान करने के लिए उसके सोये हुए प्राणी को जगाने का प्रयास किया, तो वह भूत की तरह जाग गया।
‘भूत’ के जागते ही बड़ी फुर्ती से भूरे लाल ने अपनी 45 साल की पत्नी बीवी को निर्वस्त्रा किया और उसके ऊपर आकर पूर्णतः देह में समा गया और पूरे जोश के साथ कामलीला शुरू कर दी। शुरू-शुरू में विमला को बड़ी तकलीफ हुई, क्योंकि प्यार चाश्नी उस वक्त उत्पन्न नहीं हुई थी। पर प्लास्टिक की निवार वाले फोल्डिंग बेड पर कामयुद्ध के आरम्भ होते ही। बड़ी-बड़ी तेज आवाजें होने लगी।
खासकर पलंग की ‘चूं.. चंू.. चप्पड़’ की आवाजों से पलंग बड़ी तेजी हिलने लगा था। यह सब आवाजें सुनीता मूक होकर धड़कते दिल से सुन रही थी।
उस वक्त उसे अपने पति की याद आने लगी। पर उसका पति तो उससे काफी दूर था, वीडियोग्राफी कर रहा था। मगर घर में ससुर की अपनी अलग ही वीडियोग्राफी देखकर सुनीता के तन-बदन में करंट सा दौड़ रहा था।
‘‘क्यों मजा आ रहा है या नहीं? बड़ा सख्त है न या मेरा प्यार भरा दिल? बोल, बोलती क्यों नहीं मेरा शैतान ‘भूत’ तेरे प्यार का भूत उतार रहा है, तो तुझे मजा आ रहा है न?’’ वह जानबूझ कर सुनीता को सुनाने की गरज से जोर-जोर से बोल रहा था, ‘‘मेरा भूत तो है ही ऐसा, इस भूत से डरने की बजाए, औरत की देह चहकने लगती है।’’
विमला कुछ जवाब नहीं दे रही थी। वह शर्मिन्दा होकर केवल यही कामना कर रही थी, कि इस भूत का ‘भूतैरा’ जल्दी से उतर जाए, तो वह चैन की सांस ले। पर भूरे लाल पर तो नशे का जोश ही अलग चढ़ा हुआ था। उसके भूत का भूतैरा उतरने की बजाए और उग्र होता जा रहा था और वह और भी जोश के साथ विमला की नाजुक गोरी देह को मसलने लगा।
लंबे समय तक बीवी की देह में समाये रहने से भूरे लाल मूक रूप से अपनी पुत्रावधू यानी सुनीता को यह संदेश देना चाहता था, कि मेरे बदन के भूत में इतनी ताकत और जोश है, कि वो अन्य स्त्राी(सुनीता) का भी प्यार का भूत उतारने की क्षमता रखता है।
दूसरे शब्दों स्पष्ट किया जाए, तो उसका मकसद था, कि यदि सुनीता को पति की याद सता रही है, तो वह हाजिर है उसी सेवा में। वह उससे अपनी प्यास बुझा सकती है। मगर ऐसा कभी हुआ नहीं था।
अगले ही दिन सुबह जब सुनीता का पति अनिल घर आया, तो उसने अपने पति से यह सब बातें बता दी। उस दिन अनिल काम पर नहीं गया। उसने भी उस शाम को तगड़ी शराब पी ली थी। जब उसका पिता भूरे लाल घर आया, तो वह घर पर ही मौजूद था।
जब पिता भी शराब पीकर टुन्न होऔर बेटा भी उसी हालत में हो, तब जरूर कोई न कोई लफड़ा होता ही है।
उस रात अनिल का मूड ही कुछ अलग था। वह किसी बात का जैसे बेसब्री से इंतजार कर रहा था। फिर जैसे उसका इंतजार तब समाप्त हो गया, जब उसका पिता भूरे लाल, उसकी मां विमला के साथ छत पर पहुंच गया और उसके साथ अश्लील हरकत करने लगा। तब अनिल भी छत पर पहुंच गया।
हालांकि उस वक्त सुनीता ने काफी मना किया, पर वह पति अनिल को रोक नहीं सकी।
जैसे ही अनिल छत पर पहुंचा, उसी वक्त भूरे लाल तेज आवाज में बोला, ‘‘अनिल तू यहां क्या लेने आया है?’’ वह सख्त स्वर में बोला, ‘‘इतनी रात को तुझे अपनी बीवी के पास उसके कमरे में होना चाहिए। यहां बेकार में हमें डिस्टर्ब क्यों करता है?’’
‘‘कौन किसे डिस्टर्ब करता है मुझे सब मालूम है।’’ अनिल ने खीझते हुए पूछा, ‘‘और मेरे छत पर आने से तुम इतना चिढ़ क्यों रहे हो? आखिर करते क्या हो तुम रात को छत पर?’’
दोनों ही नशे में चूर थे। बेटे की बदसलूकी देखकर भूरे लाल गुस्से में आ गया और भद्दी-भद्दी गालियां बकते हुए बोला, ‘‘अब तू मुझसे…’’ वह आंखें दिखाता हुआ बोला, ‘‘अपने बाप से पूछेगा, कि मैं यहां छत पर क्या करता रहता हूं?’’
‘‘हां… हां… पूछूंगा।’’ अनिल में नशे के झांेक तैश खाकर बोला, ‘‘क्या बिगाड़ लोगे मेरा?’’
विमला ने नशे में चूर बाप-बेटों को लगड़ते देखा, तो वह बीच-बचाव करते हुए अनिल की ओर मुखातिब होकर बोली, ‘‘अनिल… ऐ अनिल… बेटा रहने दे। बाप से ऐसे नहीं लड़ते। जा बेटा तू नीचे बहू के पास जा।’’
‘‘नहीं मां आज तो देखी जाएगी।’’ वह बौखलाता हुआ बोला, ‘‘ये मेरा बाप होकर मेरी ही बीवी पर बुरी नजर रखता है। इसे तो मैं सबक सीखा कर ही दम लूंगा।’’ वह मां को परे हटाते हुए बोला, ‘‘तू हट जा मां।’’
‘‘हां… कुत्ते आजा।’’ भूरे लाल में गुस्से में बोला, ‘‘इस कल की आई छोकरी की बातों में आकर तू अपने बाप से भिड़ना चाहता है, तो आजा।’’
दोनों इतनी ऊंची आवाज में लड़ रहे थे, कि आसपास के घरों के लोग अपनी छत पर आकर सारा तमाशा हंस-हंस कर देख रहे थे। किसी तरह विमला ने दोनों को संभाला और अपने अन्य दो बेटों, बेटी को भी ऊपर बुला लिया। मगर बहू सुनीता नहीं आई। वह बेहद डर गई थी। वह सहम कर बाथरूम में जा घुसी थी और पति और ससुर के गुस्से का शांत होने का इंतजार कर रही थी।
फिर जब अनिल नीचे कमरे में आया, तो सुनीता उसके आगे खूब रोयी। वह पति को समझाते हुए बोली, ‘‘आपको पिता के साथ हाथापाई नहीं करनी चाहिए थी। आखिर उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से तो मुझे नहीं छेड़ा था और न ही मुझे कोई अश्लील बात कही थी। वो तो उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सब हरकतें की थी।’’
मगर सुनीता का समझाने का अनिल पर कोई असर नहीं हुआ। उसने पत्नी से साफ कह दिया कि अब वह इस घर में कतई नहीं रहेगा। पर सुनीता ऐसा नहीं चाहती थी। वह नहीं चाहती थी, उसकी वजह से घर में दरार आ जाए और एक बेटे को अपने परिवार से अलग रहना पड़े। दूसरे उसे अपने दोनों छोटे देवरों व ननद से काफी स्नेह था।
बस एक ससुर खराब था, जो शराब पीकर खुलेआम गलत हरकतें कर बैठता था। बस वह सुधर जाता, तो सुनीता को उस घर में कोई परेशानी नहीं थी।
सुबह तो और भी बड़ा हंगामा खड़ा हो गया। भूरे लाल का नशा सुबह उतर चुका था, मगर उसे रात वाली सारी घटना याद थीं। उसने सबसे पहले उठते ही विमला तथा अपने कुंवारे बेटों व बेटी को बुला कर घर में ऐलान कर दिया, कि आज वह अपनी ज्यादाद में से अपने बड़े बेटे अनिल तथा उसकी पत्नी सुनीता को बेदखल कर रहा है और इसके लिए कानूनी कार्रवाई करने जा रहा है।
‘‘बस पिताजी बस।’’ अनिल भी गुर्राते हुए बोला, ‘‘इस घटिया-सी जायदाद को मैं पांव की ठोकर मारता हूं। मैं कुछ भी इस घर से नहीं ले जाऊंगा।’’
फिर उसी दिन अनिल ने अपना घर छोड़ दिया था और वह किराए के मकान में रहने लगा। उसे किराए का मकान लेने में कोई खास परेशानी भी नहीं हुई थी। मगर उसी दिन से वह अपने पिता का दुश्मन भी बन गया था।
अपने घर से चार गलियां छोड़कर अनिल से सहानुभूति रखने वाले एक ‘खंडेलवाल’ परिवार ने दूसरे फ्लोर का पच्चीस गज का फ्लोर बिना शर्त अनिल को किराए पर दे दिया।
उस किराए के मकान में सुनीता को पहले तो डर लगा था। पर जब उसे वहां स्वतंत्राता का अहसास हुआ, तो उसे वह आजादी अच्छी लगने लगी।
बस उसी किराए के मकान में एक रात अनिल ने सुनीता से एक वायदा लिया, कि वह जब उसके लिए करवा चैथ का व्रत रखेगी, तो करवा चैथ का व्रत वह अपने पति की इच्छानुसार ही खोलेगी।
तब अपने पति से प्रभावित तथा उससे सच्चा प्रेम करने वाली पत्नी ने अपने पति से प्राॅमिस कर लिया कि वह इस मामले में अपने पति की हर बात मानेगी। भले ही शर्त को पूरा करने में उसकी जान ही चली जाए।
अनिल कुछ रंगीन प्रवृत्ति का प्राणी था। वह अक्सर अपने यार दोस्तों के साथ रंगीन तथा बेहद सेक्सी फिल्में वीडियो कैमरा पर या फिर डी.वी.डी., सी.डी. व कैमरे पर देखता रहता था।
दूसरी ओर अनिल की पत्नी सुनीता इतनी शर्मिली व संकोची थी, कि वह अपने पति के ‘शैतान मस्टंडे’ को छूती भी नहीं थी।
ऐसे ही एक रात जब अनिल ने सुनीता का हाथ पकड़ कर अपने ‘मुस्टंडे’ से छुआया, तो उसने एक झटके में अपना हाथ हटा दिया, ‘‘ये क्या करते हो जी, मुझे शर्म आती है।’’ वह हौले से बोली, ‘‘आपको जो करना है करो न। मगर ऐसी हकरतों से मुझे बहुत शर्म आती है। मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता। तुम चाहो तो, नीचे से मेरी ‘खबर’ ले लो। जैसे चाहे अपना कार्य सिद्ध कर लो।’’
उस वक्त अनिल को थोड़ा गुस्सा तो आया कि उसकी पत्नी उसके साथ खुलकर सेक्स-व्यवहार नहीं कर रही है। मगर फिर कुछ सोचकर प्यार से बीवी के गुलाबी होंठों को चूमकर बोला, ‘‘चलो कोई बात नहीं। अभी तो तुम्हारी सुन लेता हूं। मगर करवा चैथ वाला वायदा तो तुम्हें याद है न?’’
‘‘बिल्कुल याद है।’’ सुनीता बोली, ‘‘उस वक्त तब की तब ही देखी जाएगी।’’
‘‘देखी जाएगी नहीं।’’ एकाएक भौंहे चढ़ा कर बोला अनिल, ‘‘अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो फिर देख लेना। मैं तुम्हें भी अपने परिवार की तरह छोड़ दूंगा। जब मैं अपने परिवार को, अपने सगे मां-बाप को छोड़ सकता हूं, तो फिर तुम किस खेत की मूली हो?’’
‘‘अरे हां बाबा हां।’’ सुनीता भी मुस्करा कर बोली, ‘‘तुम्हारी हर बात मानूंगी मेरे स्वामी, पति परमेश्वर जी।’’ वह पति के गालों को खींच कर बोली, ‘‘अब तो खुश हो?’’
‘‘तो फिर मेरी कसम खाकर कहो, कि करवा चैथ की रात को तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी हर जायज़-नाजायज़ बात मानोगी।’’
‘‘मैं आपके चरणों की सौगंध खाकर कहती हूं, कि तुम जैसा कहोगे, जैसा साथ मेरा बिस्तर पर चाहोगे, मैं तुम्हें तुम्हारे तरीके से ही खुश करूंगी। हर वो बात व जिद तुम्हारी पूरी करूंगी, जो मुझे पसंद हो या फिर न हो।’’
दरअसल सुनीता ने सोचा कि ज्यादा से ज्यादा पति क्या करेगा। वह उसकी प्यार भरी ‘खबर’ लेगा। अगर उसे तकलीफ होगी, तो भी उसे अपने नीचे रौंदता रहेगा, हटने का नाम ही नहीं लेगा। या फिर उस रात सोने ही नहीं देगा। और दिन एक बार में खुश हो जाते हैं, उस दिन ज्यादा से ज्यादा दो-तीन बार और मेरी नीचे से ‘खबर’ ले लेंगे। यही सब सोचकर सुनीता ने उसकी शर्त स्वीकार कर ली।
जब करवा चैथ का व्रत आया, तब सुनीता ने सुबह-सुबह अपने पति के चरण छुये। पति ने भी उसे आशीर्वाद दिया और रात की बात सोचकर खुश होने लगा।
दोपहर 12 बजे सुनीता ने आरती का थाल सजाया और अपनी सास को नेक देने चली गयी। उसने साथ में अपने पति को भी ले लिया था। पति ने इस मामले में कोई एतराज नहीं जताया था। वह अपनी मां को बहुत प्यार करता था। लिहाजा उसने इस काम में पत्नी का साथ दिया।
उसके बाद एक बजे अनिल घर से बाहर चला गया। उसे एक छोटा सा फंक्शन करना था। वह फंक्शन भी करवा चैथ का था। पत्नी घर पर अकेली रही। वह अपने पति का इंतजार करती रही, पर अनिल को करवा चैथ का फंक्शन कवर करने में काफी समय लग गया।
रात को लगभग 10 बजे अनिल घर पहंुचा। उस वक्त उसने लगभग पव्वे से ऊपर नशा किया हुआ था। जब घर पहुंचा, तो सुनीता को नींद आ चुकी थी। वह गहने पहने हुए तथा सुहाग चूड़ा पहने-पहने ही सो गई थी। अनिल ने अपनी पत्नी को प्रेम से उठाया और उसे नारियल पानी पिला कर उसका व्रत तुड़वाया।
उसके बाद अनिल ने पत्नी को वह वचन याद दिलाया, जो उसने उससे पहले ही ले लिया था। पत्नी ने भी आश्वासन दिया, कि आज की रात पति देव जो कुछ भी कहेंगे, वह वैसा ही करेगी। उसके बाद अपने हाथों से सुनीता को खाना खिलाया और उसे बाहर घुमाने ले गया। वहां उसकी पसंद की आइसक्रीम खिलाई। तब तक भोजन भी पच गया था।
जब वह घर पहुंचे, तो लगभग ग्यारह बज चुके थे। अनिल ने अपने सी.डी.-डी.वी.डी. कैमरे पर अश्लील फिल्म लगाई और सुनीता को दिखाने लगा। सुनीता पहली बार ऐसे उत्तेजक व अश्लील दृश्य देख रही थी। दरअसल संयुक्त परिवार में रहकर अनिल को इतनी छूट नहीं मिल पाती थी।
शुरू-शुरू में तो सुनीता को सारे दृश्य देखने में आनंद आने लगा। मगर जब फिल्म का अंत हुआ, तो सुनीता ने बुरा मुंह बना कर कहा था, ‘‘अे… छी… कितनी गंदी है, बेशर्म निर्लज्ज औरत। देखना कैसे इतने गंदे, घिनौने कार्य को सम्पन्न कर रही है? मैं तो ऐसा कभी भी न करूं।’’
‘‘वो तो अभी देख लूंगा मैं, कि तू कैसे नहीं करेगी।’’ मन ही मन पत्नी की बात सुनकर बोला था अनिल।
दरअसल उस अश्लील फिल्म में नायक संसर्ग के दौरान एकाएक नायिका की देह से अपना द्रव्य लेपित ‘मुस्टंडा’ नायिका के मुखद्वार में प्रवेश करवा देता है और नायिका भी नायक के उस मुस्टंडे का खुश होकर स्वागत करती है अपने मुखद्वार में।
इन सभी दृश्यों को देखकर सुनीता बुरी तरह नाक-मुंह सिकोड़ रही थी और बार-बार छी… छी… की रट लगाए हुए थी। इससे अनिल का गुस्सा भड़क उठा। वह बोला, ‘‘ये क्या बार-बार छी… छी… की कैसेट बजाए जा रही है तू?’’
‘‘न.. नहीं.. वो…।’’ सहमी हुई सी बोली सुनीता, ‘‘मैं तो उस लड़की को देखकर कह रही हूं। आपने देखा नहीं, कितनी गंदी हरकत…।’’
‘‘बकवास मत कर।’’ बीच में ही बोला अनिल, ‘‘क्या गंदी हरकत….? अरे बावली यही तो सही प्यार है पति-पत्नी के बीच का।’’ वह खीझते हुए बोला, ‘‘तू क्या सोचती है, तू केवल अपना आगे का ‘बगीचा‘ महका कर मुझे पेश कर देती है, क्या संसर्ग की दुनियां वहीं तक सीमित है? इसके अलावा एक-दो जगह और हैं, जहां मिलन का लुफ्त उठाया जा सकता है।’’ वह समझाते हुए बोला, ‘‘असली प्यार का मजा तो नवीनता में है। नये-नये अनुभव करने में है। तुम जैसी जाहिल और सेक्स के मामले में अनपढ़ लड़कियां या औरतें दकियानूसी विचारों की दलदल में फंसी होती हैं।’’
‘‘आप भी न, कहां की बात कहां ले गए।’’ सुनीता नजरें नीचीं करके बोली, ‘‘मैं तो बस यही कह रही थी प्रेम में इतना गंदापन नहीं होना चाहिए।’’
‘‘ऐ! चुपकर मूर्ख औरत।’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘मेरा मूड मत खराब कर।’’ वह धमकी भरे स्वर में बोला, ‘‘मैं चाहता हूं, कि तू भी वही सब क्रिया मेरे ‘मुस्टंडे’ के साथ कर, जो फिल्म में वह खूबसूरत लड़की अपने प्रेमी के साथ कर रही थी। अगर मना करेगी, तो अभी के अभी घर से धक्का देखकर बाहर कर दूंगा और फिर कभी नहीं अपनाऊंगा।’’
सुनीता अपने पति का गुस्सा व कड़े देखकर कांपने लगी। वैसे भी उस पर नशा हावी हो चुका था। वह कांपने स्वर में बोली, ‘‘ठ.. ठी… ठीक है जी। मैं सब करूंगी।’’ वह रूंआसे स्वर में बोली, ‘‘मगर उल्टी हो गई, तो मुझ पर मत बिगड़ना।’’
‘‘ठीक है।’’ इस बार थोड़ा नरम होकर बोला अनिल, ‘‘मुझे मंजूर है। तू पहले कोशिश तो कर।’’ वह बोला, ‘‘जानता था, कि तुम पहली बार ये ‘कार्य’ करोगी, तो तुम्हें उल्टी होगी और मेरा सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। इसलिए मैं पहले ही केमिस्ट की दुकान से उल्टियां न होने वाली गोलियां ले आया था। तुम इसे खा लेना।’’
‘‘ठीक है। लाओ, दो मुझे गोलियां।’’ मरी-सी आवाज में बोली सुनीता, ‘‘खा लेती हूं दवाई।’’
फिर अनिल ने पत्नी को पानी का गिलास दिया और दो गोलियां उसे दे दी, जिसे पत्नी ने पानी के साथ गटक लीं।
फिर अनिल ने एक हैवी पैग और लगाया। पत्नी को समझाते-समझाते उसकी थोड़ी उतर गई थी। उसके बाद उसने पत्नी को बिस्तर पर लेटाया और उसके वस्त्रा और गहने हटाने लगा।
इस दरम्यान सुनीता को आनंद तो आने लगा था। उसमें उत्तेजना का संचार भी होने लगा था। पर जैसे ही वह उस मंजर के विषय में सोचती, कि पति देव उसकी ‘कोख नली’ में अपना प्रेम-अस्त्रा फंेक-फंेक कर मारेंगे। फिर जब बच्चा पैदा करने वाला द्रव्य निष्कासित होगा, तो वह द्रव्य उसे जल की तरह ग्रहण करना पड़ेगा।
इस बात को सोच-सोच कर वह मस्ती के मंजर से इस तरह दूर हो रही थी। जिस तरह एक बंद पिंजरे में सोने की कटोरी में पड़े दाने को तोता इसलिए नहीं चुग पाता, क्योंकि उसके सामने मोटी शिकारी बिल्ली बैठी हुई गुर्रा रही है और पिंजरे पर पंजे भी मार रही है।
भला ऐसी सूरत में बंद पिंजरे में सोने की कटोरी में बेहद भूखा तोता कैसे भोजन कर सकता है? उसे तो अपनी जान बचाने की फिक्र रहती है।
ठीक बंद पिंजरे में तोते की तरह सुनीता अपने आपको समझ रही थी। उसे उत्तेजना तो चढ़ रही थी, मगर उत्तेजना का पूर्ण संचार उसके शरीर में नहीं हो पा रहा था। क्योंकि उसे जो परिणाम भुगतना था, वह उस परिणाम की सोचकर ही दुखी व भयभीत हुए जा रही थी।
पर उसी समय अनिल ने पत्नी को निर्वस्त्रा कर देने के बाद अपनी जुबान को जादू की छड़ी बनाकर सुनीता के ‘पिंजरे’ पर फिराना आरम्भ कर दिया। इस हरकत से सुनीता कसमसाते हुए बोली, ‘‘उई मा! आप क्या कर रहे हो जी?’’ कहते हुए सुनीता सिकुड़ने लगी।
इस क्रिया से सुनीता का विचित्रा हाल हो गया। वह कभी खिल खिलाकर हंसने लगी, तो कभी सिसकारियां लेकर ‘‘सी… सी… ओह माई गाॅड! नहीं ऐसा मत करो न जी।’’ कहकर सुनीता खुद को छुड़ाने का भरसक प्रयत्न करने लगी।
मगर अनिल पर तो अंग्रेजी ब्लू फिल्म का प्रभाव चढ़ा हुआ था। लिहाजा अनिल ने अपनी पत्नी के प्रेमपात्रा के उदगम स्थल को प्रेम-स्त्राव से गदगद कर दिया। काफी देर तक अनिल गदगद पात्रा के दलदल में अपनी जिह्वा को चलाता रहा। जिसकी वजह से उसका ‘शरीर-शस्त्रा’ का मुख्य प्राणी भयंकर व प्रलयंकारी बनकर सृष्टि निर्माण का कार्य करने के लिए बेताब हो रहा था।
दूसरी तरफ सुनीता की मखमली ‘काम-नली’ से कमनीये प्रेमरस इस तरह झर रहा था, जिस तरह ऊंचे निर्झर से सतत आकर्षित कर देने वाली प्राणा दायिनी जल राशि की वृष्टि होती रहती है। अनिल उस उष्ण कमनीये जल राशि को कंठस्थ करके मस्त हो गया था।
जब सुनीता पूरी तरह से उत्तेजित हो गई, तब अनिल ने बिना देरी किए अपने शैतानी अंग के ‘खूंटे’ को खाली जगह में अधिकार पूर्ण तरीके से ठोक दिया। खूंटा, अंतिम सीमा से जा टकराया। इस हरकत से सुनीता के दिल के सोये तार जाग उठे और वह पहली दफा बोली, ‘‘हां यहीं पर.. ऊंहम.. उमं मैं यहीं पर ठोकरे चाहती थी।’’
यकायक सुनीता के दिल की गहराईयों से वे आवाजें निकलने लगीं, तो अनिल ने प्यार की स्पीड पकड़ ली। वह बुरी तरह से ताबड़ तौर तरीके से हमले करने लगा, तो सुनीता के मुख से बेहद विचित्रा तथा सेक्सी आवाजें निकलने लगी थीं। वह एक किस्म सेक्स की दुनिया में खोकर दूसरी दुनिया में पहुंच गई थी।
उसी दौरान अनिल का पारा ऊपर तक चढ़ गया था। लिहाजा उसने अपने थर्मामीटर को सुनीता को नीचे वाले मुख से बाहर निकाला और ऊपर वाले मुख में ठूंसते हुए कहा, ‘‘जल्दी से थर्मामीटर मुंह में रख, ताकि मैं तेरे बुखार को नाप सकूं।’’
उस वक्त सुनीता अपने अंतिम चरम पर पहुंच चुकी थी। यदि अनिल एक-दो आघातों का और प्रहार करता, तो सुनीता का प्रेमपात्रा का ‘द्रव्य-पैमाना’ छलक कर निष्कासित हो जाता, पर अनिल ने ऐसा होने से पहले ही अपने ‘प्रेमी’ अंग को सुनीता के प्रेम-पात्रा से विलग करके उसे सुनीता के खुले मुख में यूं भर दिया, जैसे कोई पान खाता है।
सुनीता का मुख उस समय सीत्कारें भर रहा था। पर सीत्कारें भरते मुख में अनिल ने अपना छलकता पैमाना फिट कर दिया था। कामोत्तेजना के भंवर में फंसी सुनीता को कुछ पता नहीं चला। उसने पलक झपकते ही पति के पैमाने को यूं जकड़ लिया, जैसे भूखे मगरमच्छ के मुख में शिकार फंस जाता है।
उसी दौरान अनिल अपनी पत्नी की काम-कंदरा में हाथों का कमाल दिखाने लगा। इससे सुनीता और उग्र हो उठी और उसी वक्त अनिल का पारावार पैमाने से छूट पड़ा। उस वक्त दोनों 69 की मुद्रा में थे।
‘गटगट’ सुनीता उस प्रेमसार को कंठ से नीचे उतारती चली गयी। उत्तेजनावश उसे पता ही नहीं चला, कि वह क्या कर रही है?
जब प्रेम-नीर का तूफान थमा, तभी सुनीता के प्रेमपात्रा ने भी अंतिम सांसें लीं। सुनीता ने अन्जाने में वह ‘काम’ कर दिया था, जिसकी उसे स्वयं से कभी उम्मीद ही नहीं थी।
उस समय अनिल को अपनी पत्नी से बेहद प्यार हो गया। उसने उसे बेहतरीन चुम्बन देने के बाद कहा, ‘‘तूने आज सही मायनों में अपने पति को खुश कर दिया। आज के बाद तेरा यह पति तेरा हमेशा के लिए गुलाम हो गया।’’
जब पत्नी को सही वस्तु स्थिति का अनुमान हुआ, तो वह आश्चर्यचकित हो गई। उसे पता चल गया था, कि उसने उत्तेजनावश क्या कर दिया था? पर उसने संयत स्वर में जवाब दिया, ‘‘आज के बाद ऐसा कभी मत करना। मैं आपसे बेहद करती हूं, शायद इसीलिए ऐसा हो गया। पर मैं ऐसा कभी भी अपनी इच्छा से नहीं कर सकती। आप मुझे दोबारा ऐसा करने को नहीं कहेंगे। आप मुझसे आज वायदा करो।’’
अनिल ने सुनीता के कोमल मन से कहा, ‘‘सुनीता मैं वायदा दो करता दूंगा।’’ उसने प्यार से समझाया, ‘‘परन्तु कई दफा इंसान मंे कुछ और सोचता है और जब तन मिलते हैं, तो अपने आप बहुत कुछ अलग तरीके का हो जाता है। अब भविष्य में जब मन अपने आप अलग तरीके की हरकतें करेगा, तब न तुम मना कर सकोगी और न मैं अपने मन को रोक सकूंगा।’’
उसके बाद सुनील ने 12 बजे खाना खाया और एक बजे फिर से सुनीता के साथ व्रत खोलने का काम इंसानियत वाले तरीके से किया, तो इस बार सुनीता ने उस मामले में अनिल का पूरा व भरपूर साथ दिया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।