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फिर क्या था, जतिन ने आव देखा, न ताव और झट से नैना की नाजुक गुलाबी ‘प्यारी’ को अपने प्यारे से भेंट करवा दी। प्यारे का जोश प्यारी ने अपने अंदर पाया, तो वह चीख पड़ी, ”ओह मा!! तुम्हारा ‘प्यारा’ है या निर्दयी ‘हत्यारा’ है। भला किसी स्त्राी की प्यारी को कोई ऐसे जख्मी कर देने वाला प्यार देता है?“
”क्या करूं जानेमन।“ जतिन, नैना की प्यारी पर एक और जोरदार प्रहार करता हुआ बोला, ”मेरा प्यारा न जाने कब से तुम्हारी प्यारी के प्यार के लिए तरस रहा था। ऐसे में जब इसे अवसर मिला तो यह बावला हो गया और तुम्हारी प्यारी पर टूट पड़ा।“ वह मुस्करा कर बोला, ”माफ करो मेरे बेचारे ‘प्यारे’ को। इस जरा पुचकार दो, अपने कोमल हाथों से सहला कर प्यार दो। फिर ये लाईन पर आ जायेगा और प्यार से काम लेगा।“
नैना समझ गई कि जतिन के कहने का ‘आशय’ क्या है…अतः उसने ऐसा ही किया। जतिन के ‘प्यारे’ को कुछ देर हाथों से तथा उसके मौखिक दुलार प्रदान किया, तो तुनक प्यारे ने जैसे नैना की प्यारी को सलामी दी हो।
”अब तो तैयार है न तुम्हारा ये नटखट ‘प्यारा’ मेरी ‘प्यारी’ को आनंददायक प्यार देने के लिए?“ कहकर एकाएक नैना ने जतिन के प्यारे पर अपने कोमल हाथों से एक थपकी दे दी, जिससे जतिन का प्यारा, शराबी की तरह हिल-डुलकर डगमगाने लगा…
”जानेमन अब बोलूंगा नहीं, करके दिखाऊंगा।“ कहकर जतिन ने नैना को पुनः चित्त लिटाया और प्यारी में अपने प्यारे को प्रवेश करा दिया।
”उई मां….उफ!“ इस बार और भी तेज चीखी नैना, ”जान लोगे क्या अब?“
”अरे यार तुम कुछ सब्र तो करो।“ जतिन, नैना की निर्वस्त्र पीठ पर हाथ फिराता हुआ बोला, ”छूता हूं नहीं कि करंट मारने लगती हो।“ वह बोला, ”थोड़ा रूक जाओ और बर्दाश्त करो, बाद में तुम्हें भी आनंद लगेगा। जैसे मुझे अभी आ रहा है।“
”नहीं।“ दर्द से जबड़े भींचते हुए बोली नैना, ”तुम हटो मेरे ऊपर से थोड़ी देर के लिए।“ वह जैसे नाराजगी भरे स्वर में बोली, ”अपना तो स्वयं आनंद लिये जा रहे हो और मेरी प्यारी को तकलीफ दिये जा रहे हो।“
”अच्छा…अच्छा… रूको।“ जतिन, नैना के ऊपर से हटा और अब स्वयं नैना की प्यारी को मुख-स्नेह देने लगा।
इससे नैना की आंखें काम की मस्ती में स्वतः ही मुंदने लगी। वह कामुक स्वर में बोली, ”हाय…जतिन ये क्या कर रहे हो। हटो वहां से… मेरी प्यारी को इतना प्यार मत दो…देखो कैसे, शर्म से पानी-पानी हो रही है।“
जतिन देखा कि वाकई नैना की प्यारी काफी पानी-पानी हो गई थी। अब जतिन ने भांप लिया कि यही मौका हथौड़े की चोट करने का और नैना को बिना तकलीफ दिये चरम तक पहुंचाने लगा।
इससे पहले कि जतिन, नैना की सवारी करता, उससे पहले ही मस्ती के अतिरेक में नैना ने ही जतिन को अपने ऊपर खींच लिया और खुद ही जतिन के ‘प्यारे’ को अपनी ‘प्यारी’ की राह दिखाते हुए अपने अंदर समावेश करा लिया। फिर जतिन के कानों में फुसफुसा कर बोली, ”अब हुआ है सही से मेरी प्यारी और तुम्हारे प्यारे का मिलन। इस मिलने को चलने दो हौले-हौले मेरे बलम।“
जतिन ने नैना को कोमल शरीर को मसलते हुए अपने प्यार का कार्यक्रम आगे बढ़ाया तो नैना पागल दीवानी-सी होकर बड़बड़ाने लगी, ”हां जतिन…सही जा रहे हो… यहीं से होकर मिलेगी हमें हमारी मंजिल… वाह मेरे जानू… लगे रहो… आह…उम…“
”हां मेरी जान मुझे भी मजा आ रहा है।“ वह उसके कबूतरों को मसलते हुए बोला, ”थोड़ा तुम भी साथ दो न।“
फिर नैना भी उचक-उचक कर जतिन का भरपूर साथ देने लगी। काफी देर तक दोनों प्यार के अखाड़े में कुश्ती लड़ते रहे, जिसमें दोनों की ही जीत हुई…
अरमानों की बारात गुज़र जाने के बाद नैना और जतिन पसीना-पसीना थे। अंग-अंग की सक्रियता के कारण उन्हें थकान थी, तो चेहरे पर असीम तृप्ति की चमक भी थी।
जतिन बगल में लेटी नैना की ओर प्यार भरी नज़रों से देखता हुआ बोला, ”तीन घंटे पहले तक हम एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे और अब लग रहा है कि सदियों पुराना साथ है हमारा-तुम्हारा।“
”हां, जतिन।“ नैना के होंठ खिल गये, ”शायद इसी को इत्तेफाक कहते हैं।“
”इत्तेफाक नहीं, हसीन इत्तेफाक बोलो।“ जतिन बोला, ”मैं तो आज यूं ही घूमते हुए क्लब चला गया था। उस वक्त मैंने सोचा भी नहीं था, कि वहां तकदीर तुमसे मिलाने वाली है। पहली नज़र में ही हम एक-दूसरे को दिल दे बैठे। उसके बाद क्लब से बिस्तर तक का सफर खुद-ब-खुद तय हो गया।“
दरअसल जब नैना और जतिन क्लब में मिले तो एक अन्जाना आकर्षण उन्हें एक-दूसरे की ओर खींचने लगा। बातचीत से शुरू होकर दोनों कब एक-दूसरे को दिल दे बैठे पता ही नहीं चला। फिर जतिन ने नैना को अपने घर चलने का प्रस्ताव रखा, तो वह सहर्ष तैयार हो गई थी।
दरअसल नैना को मालूम था कि जतिन के माता-पिता कारोबार के सिलसिले में दुबई में बस गये हैं, जबकि जतिन इंडिया में अकेला रहता था। वतन छोड़ कर जाने का उसका मन नहीं था।
जतिन के फ्लैट पर पहुंचते ही नैना बिस्तर पर बैठते हुए बोली, ”घर तो बहुत ही सुंदर है तुम्हारा और यह बिस्तर तो और भी खूबसूरत है।“
कहकर नैना, जतिन की ओर एकटक नजरों से देखती रही। जतिन अपनी प्रेमिका की आंखों की भाषा समझ गया और दरवाजे को अंदर से लाॅक करके नैना की बगल में बैठ गया और बोला, ”क्या मैं तुम्हारा प्यार हासिल कर सकता हूं?“
”मेरी आंखों मंे पढ़कर समझे नहीं क्या कुछ।“ कहकर नैना ने जतिन के कंधे पर सिर रख दिया।
अब जतिन समझ गया था, कि नैना को भी कोई आपत्ति नहीं है। वह भी उसी की तरह बेकरार है एक-दूसरे के प्यार में खो जाने के लिए।
फिर क्या था, देखते ही देखते दोनों एक-दूसरे में ऐसे खोये की पांच घंटे का समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। दोनों आज बंद कमरे में एक-दूसरे की बांहों में पूर्ण संतुष्टी प्राप्त करके खुद को निहाल समझ रहे थे। विशेष चमक थी दोनों के चेहरों पर।
जतिन के फ्लैट में नैना पांच घंटे रही। इस दौरान उन्होंने एक-दूसरे को भरपूर प्रेम प्रदान किया। भरपूर प्रेम प्राप्त करके नैना आधी रात को अपने घर लौट गई। बस वह नैना और जतिन की आखिरी मुलाकात थी।
तीन दिन तक न जतिन मिला, न उसका फोन आया, तो चैथे दिन नैना खुद उसके फ्लैट पर जा पहुंची। मगर ये क्या…! जतिन के फ्लैट के दरवाजे पर तो ताला लटक रहा था। नैना ने पड़ोसियों से जतिन के बारे में पूछताछ की, तो दिल को चकनाचूर कर देने वाली खबर से उसका सामाना हुआ, ”बीती शाम जतिन हमेशा के लिए दुबई चला गया है और फ्लैट भी बेच गया है। अब वह कभी इंडिया वापस नहीं लौटेगा।“
नैना की आंखों के आगे अंधेरा-सा छा गया। दुनियां में जिस पर सबसे अधिक विश्वास किया था, उसी ने उसके साथ फरेब किया। मन को छला ही नहीं, तन से भी खेलकर चुपके-चुपके दुबई भाग गया।
धोखा देने का इरादा जतिन के मन में पहले से था, इसीलिए उसने कभी कुछ बताया नहीं। चोरी-चोरी तैयारी की, फ्लैट बेचा और स्वदेश छोड़कर चला गया। काश, इस धोखेबाज को वह पहले पहचान लेती, तो दिल पर यह गहरा जख्म न लगता।
नैना अपने घर लौटी, तो तिलमिलाई हुई थी। गम, सदमे और गुस्से से उसका बुरा हाल था। जी चाह रहा था कि जतिन मिल जाये, तो नाखूनों से वह उसका चेहरा लहूलुहान कर दे।
मगर जतिन इंडिया में था कहां, वह तो मुंह छिपा कर दुबई चला गया था। नैना का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था। जतिन को वह धोखे का सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन कैसे…?
अचानक एक तरकीब नैना के जेहन में आयी। उसने अपनी अलमारी से जतिन का फोटो निकाला और उसे लेकर कब्रिस्तान पहुंच गयी। कब्रिस्तान में एक पेड़ पर उसने जतिन की फोटो टांगी और उसके नीचे लिख दिया, ”कमिंग सून(जल्द आ रहा है)।“
नैना के जीवन में जैसे पतझड का मौसम आ गया। चेहरे पर उदासी, आंखों में वीरानी। हंसना-खिलखिलाना वह भूल गयी थी, बनना-संवरना उसने छोड़ दिया था।
हालांकि जतिन तक आवाज नहीं पहुंचने वाली थी, लेकिन उसका दिल हरदम एक सवाल पूछा करता था, ”जतिन, मेरी मोहब्बत सच्ची थी, फिर तुम्हारा प्यार क्यों झूठा हो गया?“
नैना के परिजनों तथा सखियों को उसके प्रेम एवं सौगात में मिले फरेब की जानकारी थी। सबने उसे समझाया, ”अच्छा हुआ, शादी से पहले ही जतिन ने अपना असली चेहरा दिखा दिया। ऐसा धोखा वह शादी के बाद करता, तो तुम्हारे भविष्य पर ग्रहण लग जाता।“
नैना किसी को कैसे बताती कि जतिन भविष्य पर न सही, उसके तन पर तो अपनी वासना का ग्रहण लगा गया था। हालांकि उन दोनों के बीच जो हुआ, उसमें नैना की मर्जी शामिल थी, किन्तु अब वह सारा दोष जतिन को देती थी।
दर्द की सबसे बड़ी दवा समय है। बीतते समय के साथ धीरे-धीरे नैना भी दुःख से उबरने लगी। दुःख कम हुआ, तो नैना का नज़रिया भी सकारात्मक हो गया। उसने सोचना शुरू किया, कि जीवन में इंसान को अक्सर धोखे मिलते हैं और किसी एक धोखे से भविष्य की संभावनायें समाप्त नहीं हो जातीं। दुनियां में धोखेबाज हैं, तो अच्छे व सच्चे इंसानों की भी कमी नहीं है।
नैना ने यह भी सोच लिया था, कि जीवन ईश्वर की दी हुई अनमोल नेमत है। किसी के गम में इसे यूं तबाह कर लेना सरासर मूर्खता है। सच्चा इंसान वही है, जो हर संकट के बाद मजबूती से उठकर खड़ा हो। नैना ने फैसला कर लिया, कि वह जतिन को बुरे सपने की तरह भूल जायेगी।
नैना ने नये सिरे से जिंदगी शुरू करने का निर्णय लिया, तो उसने योजनायें भी बनानी शुरू कर दीं। नैना के परिजन उस पर विवाह करने का दबाव डाल रहे थे। नैना भी विवाह करने की इच्छुक थी, किन्तु वह किसी ऐसे युवक की संगिनी नहीं बनना चाहती थी, जिसे वह खूब अच्छी तरह न जानती हो। ऐसा युवक मिले कहां, जो उसकी अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरे।
दूध की जली नैना छांछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती थी, अतः बहुत सोचने के बाद उसने अपना कलियुगी स्वयंवर रचाने का निश्चय किया। इसके लिए उसने अपना लक्ष्य रखा- सौ पुरूष!
नैना की मंशा यह थी कि वह सौ पुरूषों से मिलेगी। शारीरिक, वैचारिक एवं व्यवहारिक रूप से उन्हें समझेगी, आजमायेगी। उन सौ में से जो सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होगा, उससे विवाह करके वह हमेशा के लिए उसकी हो जायेगी।
नैना ने यह आइडिया अपनी सहेलियों को सुनाया, तो सबने उसे खूब खरी-खोटी सुनायी, ”नैना, तू बावली हो गई है क्या? सौ पुरूष कोई कम होते हैं क्या? तू जिसे टेस्ट करेगी, वह भी तो तुझे टेस्ट करेगा। बेड़ा गर्क हो जायेगा तेरा। सौ पुरूषों के सम्पर्क में आने के बाद तुझ में क्या शेष रह जायेगा। खोखली हो जायेगी तू। मेरी मान बात सौ में से एक खोजने का पागलपन छोड़ दे, वरना पछतायेगी।“
मगर नैना अपने निर्णय पर अडिग थी। सुनी उसने सबकी, पर की अपने मन की। उसने अपना कलियुगी स्वयंवर शुरू कर दिया। इंटरनेशनल डेटिंग वेबसाइट की वह सदस्य बनी, इसके बाद उसने नेट पर मनपसंद साथी ढूंढना शुरू कर दिया। नैना ने अपना फोटो, बायोडाटा, मोबाइल नम्बर वगैरह भी नेट पर डाल दिया, ताकि दूसरे लोग उससे सम्पर्क कर सकें।
नैना डेटिंग साइट और नेट के भरोसे ही नहीं बैठी रही, पब, रेस्तरां, क्लब, सुपर मार्केट वगैरह में जाकर वह स्वयं भी संभावित वर तलाश करने लगी।
सौ पुरूषों के क्रम में नैना को जो पहला साथी मिला, उसका नाम डेविड था। उम्र 25 साल। डेविड में वे सारी खूबियां थीं, जो कोई भी युवती भावी पति में पाना चाहती है। बस, केवल एक कमी उसमें थी। वह स्वभाव से शर्मिला था।
नैना उसे डेट पर ले जाना चाहती, तो वह यूं शरमाने लगता, मानो नई-नवेली दुल्हन हो और नैना से उसे इज्जत का खतरा हो।
डेविड का यह शर्मिलापन ही उसका माइनस प्वाईंट बन गया। नैना ने अपने मोबाइल कैमरे से डेविड की फोटो खींची, कुछ आवश्यक जानकारी फीड कर सेव की, उसके बाद डेविड की छुट्टी कर दी। एक को आजमा लिया, अब 99 को आजमाना बाकी था।
डेविड के बाद रवि, अजय, रमन, मनीष, जैसे कितने ही पुरूष नैना के जीवन में आये और चले गये। हर किसी की आवश्यक जानकारी और फोटो नैना के मोबाइल कैमरे में सेव थी, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उससे पुनः सम्पर्क साधा जा सके।
नैना ने सौ पुरूषों को आजमाने का अपना लक्ष्य तो पूरा कर लिया, लेकिन इस काम में दो वर्ष से अधिक का समय लग गया।
अपने इसी लक्ष्य में उसकी जिदंगी में पारस नामक युवक भी आया, जिसके साथ उसने एकांत में प्यार के पल भी बिताये। फिर नैना ने पारस को भी उसके फ्लैट पर अपना सर्वस्व सौंप दिया।
नैना का प्यार पाकर पारस बोला, ”नैना, तुम से पहले कई लड़कियां मेरे साथ एकांत में पल बिता चुकी हैं, जहां हमने मिलकर एक-दूसरे को भरपूर प्रेम दिया है। लेकिन जो बात तुम में है, वह मैंने किसी में नहीं पायी। सचमुच, तुम बहुत स्वीट एण्ड हाॅट हो नैना।“
नैना की मुस्कराहट गाढ़ी हो गई, ”काॅम्पलिमेंट के लिए थैंक्स।“
”मैं मुंह देखी बात नहीं कर रहा नैना, तुम वाकई स्वीट एण्ड हाॅट हो।“ जैसे पारस की रूह से आवाज निकल रही थी, ”हमारा जो रिश्ता बन गया है, उसे मैं हमेशा कायम रखना चाहूंगा। अगर तुम इस रिश्ते को कोई नाम देना चाहो, तो मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूं।“
”भावनाओं में मत बहो पारस।“ नैना बिस्तर से उठ खड़ी हुई, ”रिश्ते इकतरफा नहीं बना करते। हमारा जो अभी यह रिश्ता बना है, उसे मैं यहीं, इसी वक्त खत्म कर देना चाहती हूं।“
पारस को जैसे बिच्छु ने डंक मारा, ”मगर क्यों?“
”क्यों क्या, मेरी मर्जी।“ नैना लापरवाही से बोली, ”वैसे तुम्हारी तसल्ली के लिए एक बात बोलूं पारस! जो तुम सोच रहे हो, वही सोचकर मैं भी तुम्हारे साथ एकांत में प्रेम के पल बिताने आई थी, मगर अफसोस! तुम वैसे साबित नहीं हुए, जैसे साथी की मुझे तलाश है।“
कोई भी पुरूष किसी स्त्राी के मुख से अपने बारे में ऐसी कमतर बात नहीं सुनना चाहता। नैना के मुख से ऐसे कठोर वचन पारस को अपनी बेइज्जती लगी। गंभीर होकर उसने नैना से प्रश्न किया, ”बताओ, क्या कमी है मुझमें?“
”अपनी खामी खुद ढूंढो।“ नैना को पारस की आहत भावनाओं की परवाह नहीं थी, ”कोई तो कमी होगी, इसलिए मैं तुम्हें ठुकरा रही हूं।“
”क्या मेरा फ्लैट तुम्हें पसंद नहीं आया?“
”नहीं, अच्छा है, मुझे पसंद भी बहुत आया है।“
”क्या मैं जवान और खूबसूरत नहीं?“
”हो।“
”क्या मेरा प्रेम-ए-जोश तुम्हें पसंद नहीं आया?“
”यह बात भी नहीं है।“ नैना मुस्कराने लगी, ”इस मामले में तो मैं तुम्हें सर्टिफिकेट दे सकती हूं, कि तुम प्रेम-ए-जोश के धनी हो। जिस तरह तुमने कई लड़कियों को अपने प्रेम का जोश दिखाया है, उसी तरह मैं भी अनेक पुरूषों का प्रेम आजमा कर देख चुकि हूं, पर तुम जैसा कोई नहीं मिला।“
पारस की छाती गर्व से चैड़ी हुई, तो रिश्ता टूटने का मलाल भी गहन हुआ, ”जिस प्रकार तुम मेरी प्रशंसा कर रही हो, ऐसे पुरूष की दासी बनकर रहने में स्त्राी अपना गौरव समझती है और तुम मुझे छोड़कर जाना चाहती हो, ताज्जुब है।“
”पारस, मैं तुम्हें पसंद आयी, कोई जरूरी नहीं, कि मैं भी तुम्हें पसंद करूं।“
”अरे अगर नापसंद किया है, तो कोई वजह भी तो होगी न?“
”वजह मैं क्या बताऊं, बस तुम वैसे नहीं हो, जैसे कि मुझे तमन्ना है।“ नैना ने अपना बैग कंधे पर लटकाया और दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली, ”जिस रिश्ते से कुछ हासिल न हो, जिस रिश्ते को कोई नाम न दिया जा सके, उसे बनाये रखने का कोई फायदा नहीं। हमारी इस मुलाकात को हसीन इत्तेफाक ही समझना बाय।“
नैना ने दरवाजा खोला और यूं चली गई, जैसे पिंजरा खुलते ही मैना ‘फुर्र’ हो गई हो। सकते-सी हालत में खड़ा पारस बंद दरवाजा देखता रह गया।
इसी प्रकार नैना अपने अजीबो-गरीब स्वयंवर की प्रक्रिया में चैदह पुरूषों का बिछौना बनी, तो चालीस पुरूषों को चुम्बन से ही फेल कर दिया, बाकी 46 पुरूषों को उसने अपने लायक ही नहीं पाया था।
सौ पुरूषों को आजमाने कोई नतीजा नहीं निकला। नैना को लगता था, कि जिसकी उसे तलाश है, वह अब तक उसे मिला नहीं है। नैना को विश्वास था कि उसे मनचाहा साथी मिलेगा अवश्य, लेकिन कब, कहां और कैसे? इसका जवाब खुद उसके पास नहीं था।
‘सेचुंरी’ के बाद नैना के पास कोई काम नहीं रह गया, वह नवम्बर के अंतिम दिनों में तफरीह करने थाइलैंड चली गयी। वहीं पर उसकी मुलाकात रयान से हुई। रयान मूलतः कनाडा का रहने वाला था और छुट्टियां मनाने थाईलैंड आया हुआ था।
रयान से मिलकर नैना को लगा, यही वह शख्स है, जिसकी उसे तलाश थी। रयान ने भी पहली नज़र में नैना को दिल में बसा लिया। दिल से दिल मिले तो आगे की राह आसान होती गयी। प्यार करते-करते थाईलैंड में ही दोनों ने शादी कर ली।
नैना को रयान से शादी की खुशी है, तो इस बात का अफसोस भी है, कि वह उन एक सौ पुरूषों में से नहीं है, जिनको उसने आजमाया था।
नैना अब सोचती है, ”लोग सच कहते हैं कि जोड़ी आसमानों पर बनती है। जिसके साथ जोड़ी बनी थी, वह खुद-ब-खुद मिल गया। पागलपन में मैंने दो साल खराब किये और एक सौ पुरूषों… छी, अब सोचकर ही मुझे शर्म आती है।“
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।