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Raseeli Chut Ki Chudai

कर चूतें दी हैं चोदने के लिए।

आज की कहानी सात साल पहले की है।

तब रचना नाम की एक खूबसूरत बला मेरी जिंदगी में आई थी मेरी गर्लफ्रेंड बन कर।

रचना 19-20 साल की मदमस्त अल्हड़ जवान लड़की।

नई नई जवानी फूटी थी रचना में तभी तो सारा दिन मस्ती के मूड में रहती थी।

मेरे घर के पास ही टयूशन पढ़ने आती थी वो।

हर समय हँसती मुस्कुराती ही नजर आती थी।

खूबसूरती ऐसी की चाँद शर्मा जाए।

खूबसूरत गोल गोल गालों वाला चेहरा, दो नागपुरी संतरो जैसी ताज़ी ताज़ी उभरी हुई चुचियाँ, दो गोल गोल कुल्हड़ों जैसे कूल्हे।

उस समय मुझे उसके सामने दुनिया की हर लड़की बदसूरत लगती थी।

हर समय यही सोचता रहता की इसे कैसे पटाया जाए।

मैं जब भी वो आती जाती तो अपने घर के आगे खड़ा होकर उसको देखता रहता।

कुछ दिन की मेहनत के बाद मैंने उसको हल्के हल्के इशारे करने शुरू किये तो उसने शुरू में बुरा सा मुँह बना कर गुस्से से भरी नज़रों

से मुझे घूरा पर मैं नहीं माना और लगा रहा अपने काम पर!

उस दिन मेरे घर पर कोई नहीं था और मैं दरवाजे पर खड़ा रचना का इंतज़ार कर रहा था।

यह मेरी किस्मत ही थी कि वो आज अकेली ही आई थी।

गर्मियों के दिन थे तो गली में भी कोई नजर नहीं आ रहा था।

जैसे ही वो मेरे घर के दरवाजे के पास पहुँची तो मैंने उसको आवाज दी।

‘हेल्लो रचना… एक मिनट के लिए रुको प्लीज…’

उसने बुरा सा मुँह बनाया और आगे जाने लगी तो मैंने गली में इधर उधर देखा।

गली में कोई नहीं था।

मैंने झट से जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने घर आने के लिए कहा।

मेरी इस हरकत से वो घबरा गई पर फिर वो हिम्मत करके बोली- क्या बात है क्या कहना है तुम्हें…?

घबराहट के मारे उसका गला सूख गया था।

मैंने उसे फिर से अपने घर के अंदर आने को कहा।

वो पहले तो मना करती रही पर जब मैंने उसको बोला की गली में कोई भी आ सकता है तो वो मेरे घर के गेट के अंदर आ गई।

‘घबराओ मत… मैं तो बस अपने दिल की बात तुम्हें बताना चाहता हूँ।’

वो कुछ बोलना चाहती थी पर उसका गला सूख रहा था।

मैंने उसको अंदर चल कर पानी पीने के लिए कहा तो वो घबराहट के कारण अंदर नहीं जा रही थी।

मैंने उसको अपनी तरफ खींचा और अंदर ले गया।

वो घबरा कर पसीने पसीने हो रही थी।

मैंने फ़्रिज़ से कोल्ड-ड्रिंक की बोतल निकाल कर उसे दी पर उसने पीने से मना कर दिया।

वो बार बार जाने की जिद कर रही थी।

‘रचना… तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ…’

मेरी बात सुनकर वो थोड़ा गुस्से में आकर बोली- मैं अच्छी तरह से जानती हूँ तुम जैसे लड़कों को… मुझे नहीं करनी कोई दोस्ती… मेरा

हाथ छोड़ो और जाने दो मुझे..’

मैं उसका जवाब सुनकर सकपका गया पर मैंने उसका हाथ नहीं छोड़ा और अपनी तरफ खींच कर उसको अपनी बाहों में भर लिया।

वो छुटने के लिए छटपटाने लगी पर मैंने उसको अपनी बाहों में जकड़ रखा था।

मैंने उसको दीवार से लगा कर खड़ा कर दिया और उसके होंठों पर होंठ रख दिए।

होंठों से होंठ टकराते ही वो सुन्न पड़ गई, उसका छटपटाना बंद हो गया।

लगभग दो मिनट तक मैं उसके रसीले होंठ चूसता रहा।

फिर जैसे वो एक दम नींद से जागी और मुझे धक्का देकर बाहर की तरफ भागी, उसकी किताबें वहीं पड़ी रह गई।

मैं एक बार तो घबराया कि कहीं वो बाहर जाकर शोर ना मचा दे।

पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया।

लगभग एक घंटे बाद वो अपनी सहेली के साथ आई और बोली- प्लीज, मेरी किताबें दे दो।

मैंने उसको अंदर आने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया।

मैंने कहा- अगर अंदर नहीं आओगी तो मैं किताबें वापिस नहीं दूँगा।

सहेली साथ में थी तो वो हिम्मत करके मेरे पीछे पीछे अंदर आ गई।

अंदर आने के बाद मैंने उसकी किताबें उसकी तरफ बढ़ाई।

उसने किताबें मेरे हाथ से ले ली और जाने लगी।

तभी वो रुकी और मेरी तरफ देख कर बोली- हिमांशु… तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए था… पसंद तो मैं भी करती हूँ तुम्हें पर…

इतना कहकर वो जाने लगी तो मैंने झट से उसका हाथ पकड़ लिया।

‘रचना… अगर तुम भी मुझे पसंद करती हो तो कहती क्यों नहीं हो… प्लीज बोलो ना… तुम भी मुझे प्यार करती हो..?’

वो कुछ नहीं बोली बस उसने शरमा कर अपनी गर्दन झुका ली।

मैंने रचना को अपनी तरफ खींच कर अपनी बाहों में भर लिया।

तभी रचना की सहेली ने खाँसी करके अपने वहाँ होने का एहसास करवाया।

लड़की पट चुकी थी। मेरी मेहनत सफल हो चुकी थी।

रचना अपना हाथ छुड़वा कर अपनी किताबें उठा कर जल्दी से बाहर की तरफ चल दी।

मैं उसके मटकते कूल्हे देखता रह गया।

गेट पर जाकर उसने बड़ी अदा से पलट कर देखा तो मेरी आँख अपने आप दब गई।

मेरे आँख मारने से वो शरमा गई और फिर वो बिना रुके चली गई।

अगले एक महीने तक हम दोनों सिर्फ आँखों आँखों में बातें करते रहे पर मिल नहीं पाए।

मैं चूत का रसिया अब रचना को चोदने के लिए मरा जा रहा था।

एक दिन हमारे पड़ोस में कीर्तन था तो मेरी मम्मी वहाँ चली गई।

मम्मी के जाते ही मैं भी रचना के इंतज़ार में खड़ा हो गया।

करीब दस मिनट के बाद रचना आई।

उसकी सहेली उसके साथ थी पर मैंने बिना कुछ सोचे रचना का हाथ पकड़ा और उसको पकड़ कर अपने घर के अंदर ले गया।

उसकी सहेली गेट पर ही रुक गई तो मैंने उसको इशारे से जाने को कह दिया।

सहेली के जाते ही मैंने रचना को बाहों में भर के उसके होंठों पर होंठ रख दिए।

उसने पहले पहल तो छूटने की कोशिश की पर फिर मस्ती के मारे आत्मसमर्पण कर दिया।

समय थोड़ा था तो मैंने जल्दी जल्दी सब करने की ठान ली थी।

मेरे हाथ अब रचना के बदन का जायजा ले रहे थे।

उस दिन रचना ने सलवार कमीज पहन रखी थी। मैंने उसकी कमीज ऊपर उठाई और उसके ब्रा में कसी चूचियों को देखने लगा।

रचना ने शरमा कर अपनी कमीज नीचे कर ली और जब मैं दुबारा उठाने लगा तो उसने विरोध किया।

मैंने उसके हाथ पकड़े और एक बार फिर से अपने होंठों को रचना के होंठों से मिला दिया।

दूसरे हाथ से मैंने उसकी कमीज को दुबारा उठाना शुरू कर दिया।

कुछ ही सेकंड्स में उसकी चूचियाँ फिर से मेरे सामने थी।

मैंने होंठ छोड़ दिए और अपने होंठ उसकी चूचियों पर रख दिए।

रचना के बदन में सिहरन सी भर गई, उसका बदन काँपने लगा।

मैंने उसकी ब्रा को भी ऊपर उठाया और उसकी एक चूची को बाहर निकाल लिया और उसकी चूची के छोटे से चुचूक को अपने होंठों में

पकड़ कर चूसने लगा।

रचना की हालत खराब होने लगी थी, उसके बदन में बेचैनी बढ़ने लगी थी, रचना के लिए यह पहला एहसास था।

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चूची को चूसते हुए मैंने अपना हाथ उसकी जांघों पर से घुमाते हुए उसकी चूत पर रख दिया।

चूत पानी पानी हो रही थी और सलवार तक गीली होने लगी थी।

मुझ से अब कण्ट्रोल नहीं हो रहा था, मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल कर उसकी सलवार उसकी पेंटी सहित नीचे खींच दी।

उसने शर्मा कर अपनी जांघें भींच ली।

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थोड़ी सी मेहनत करके मैंने उसकी जांघें खुली की तो मुझे उसकी रोयेदार झांटों के बीच गुलाबी गुलाबी चूत के दर्शन हुए।

चूत पानी पानी हो रही थी और गीली होने के कारण चमक रही थी।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

अभी आगे कुछ करने की सोचता इस से पहले ही गेट पर कुछ खटपट सुनाई दी।

शायद मम्मी आ गई थी।

मैं बुरी तरह घबरा गया और मुझ से ज्यादा रचना।

उसने झट से उठ कर अपनी सलवार बाँधी और किताबें उठा कर बाहर जाने लगी।

मैंने उसको पकड़ कर रोका और पिछले दरवाजे पर ले गया।

जैसे ही मम्मी ने अगले दरवाजे से प्रवेश किया मैंने रचना को पिछले दरवाजे से बाहर कर दिया।

मम्मी घर में आते ही सीधे रसोई में कीर्तन से लाया हुआ प्रसाद रखने चली गई और मुझे रचना को बाहर निकालने का मौका मिल

गया।

अभी आगे कुछ करने की सोचता इस से पहले ही गेट पर कुछ खटपट सुनाई दी।

शायद मम्मी आ गई थी।

मैं बुरी तरह घबरा गया और मुझ से ज्यादा रचना।

उसने झट से उठ कर अपनी सलवार बाँधी और किताबें उठा कर बाहर जाने लगी।

मैंने उसको पकड़ कर रोका और पिछले दरवाजे पर ले गया।

जैसे ही मम्मी ने अगले दरवाजे से प्रवेश किया मैंने रचना को पिछले दरवाजे से बाहर कर दिया।

मम्मी घर में आते ही सीधे रसोई में कीर्तन से लाया हुआ प्रसाद रखने चली गई और मुझे रचना को बाहर निकालने का मौका मिल गया।

रचना के घर से बाहर जाते ही मेरी साँस में साँस आई पर गुस्सा भी बहुत आ रहा था।

नजरों के सामने अब भी रचना की गुलाबी चूत घूम रही थी।

मन में हलचल मची हुई थी।

मैंने सीधे अपनी बाइक उठाई और अपने दोस्त के घर की तरफ चल दिया।

संजय मेरा खास दोस्त होता था उन दिनों।

संजय के घर पहुँचा तो वो घर पर नहीं था।

मेरा दिमाग और घूम गया।

तभी मुझे रचना नजर आई।

वो संजय के घर के पास ही के एक मकान के अंदर गई थी।

शायद उसने मुझे नहीं देखा था।

पाँच मिनट इंतज़ार करने के बाद वो घर से बाहर आई तो मैं बाइक लेकर उसके सामने चला गया।

मैं बाइक लेकर वापिस आया तो उसने मुझे रुकने का इशारा किया।

‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो..?

मैंने जवाब देने की जगह उससे यही सवाल कर लिया।

उसने बताया कि यह उसके चाचा का घर है। आजकल चाचा एक महीने के लिए बाहर गए हुए हैं तो दादी और बुआ के साथ वो भी आजकल यहीं रह रही है एक महीने के लिए।

साथ ही उसने मुझे अंदर आने को कहा।

पहले तो हिम्मत नहीं हुई पर फिर सोचा कि जब लड़की खुद बुला रही है तो मुझे क्या दिक्कत है।

मैंने बाइक साइड में खड़ी की और रचना की पीछे पीछे घर के अंदर चला गया।

अंदर कोई नहीं था।

अंदर जाने के बाद रचना ने बताया कि उसकी दादी और बुआ उसकी मम्मी से मिलने उसके घर गए हैं।

मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई।

मैंने बिना देर किये रचना को बाहों में भर कर सोफे पर लेटा लिया और उसके होंठ चूसने लगा।

बिना देर किये मैंने रचना के और अपने कपड़े खोल लिए।

रचना की सलवार निकलने के बाद मैंने अपनी पैंट भी उतार दी।

रचना की कमीज को मैंने ऊपर उठाया हुआ था।

पहले मैंने रचना की चूचियाँ चूसी और फिर नाभि को चूमते हुए मैंने अपने होंठ रचना की चूत पर रख दिए।

रचना जो खुद भी मेरे घर में मिले अधूरे मज़े को पूरा करना चाहती थी, मुझ से लिपट गई।

मेरे सर को उसने अपनी जांघों में अपनी चूत पर दबा लिया था।

मैं भी जीभ निकाल कर उसकी चूत चाटने लगा।

कुंवारी चूत के रस को जीभ पर महसूस होते ही मेरे लण्ड में भी भरपूर जोश भर गया था।

मैं मग्न होकर रचना की चूत चाटने लगा था।

रचना भी सोफे पर आँखें बंद करके लेटी चूत चुसाई का मज़ा ले रही थी कि तभी किसी ने मेरे बाल पकड़ कर ऊपर खींचा।

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ऊपर देखते ही मेरे होश उड़ गए।

एक पच्चीस-छब्बीस साल की थोड़ी मोटी… या यूँ कहो कि भरे से बदन की लड़की थी वो।

मैं घबरा गया था।

मैं छूट कर भागना चाहता था पर मेरी पैंट उसके हाथ में थी और मेरे बाल भी।

मेरे होंठ चूत पर से हटते ही रचना ने भी आँखे खोली।

उसको देखते ही वो चीख पड़ी- बुआ… आप?

यह रचना की बुआ थी।

घबराहट के मारे हम दोनों का बुरा हाल था।

एक ही दिन में यह दूसरा झटका था हम दोनों के लिए।

रचना की बुआ जिसका नाम पूर्वी था, गुस्से में उबल रही थी।

रचना अपनी बुआ की पैरों में गिर गई और माफ़ी मांगने लगी पर पूर्वी मान ही नहीं रही थी।

‘कमीनी… कौन है यह… मेरे पीछे से अपने यार बुला कर मज़े कर रही है… बहुत आग लगी है तो भैया को बोल देती हूँ तेरी शादी करने के लिए…’

‘बुआ माफ कर दो… दुबारा ऐसी गलती नहीं होगी…’

पर पूर्वी का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था।

मैं छूट कर भागना चाहता था पर मेरे बाल पूर्वी ने बुरी तरह से जकड़ कर पकड़ रखे थे।

पहली बार लंबे बाल रखने का मज़ा चख रहा था।

मुझे बुरा लगता था जब मम्मी कहती कि बाल छोटे करवा ले, पर आज मुझे मम्मी याद आ रही थी।

रचना रोये जा रही थी।

इस बीच पूर्वी दो तीन थप्पड़ मुझे और रचना को मार चुकी थी।

जब देखा कि वो नहीं मान नहीं रही है तो मैंने उसको धक्का दिया।

वो सोफे की तरफ गिरी पर उसने मेरे बाल नहीं छोड़े और मैं भी धड़ाम से पूर्वी के ऊपर ही गिर गया।

इसी हड़बड़ाहट में मेरे बाल पूर्वी के हाथ से छूट गए।

मैं उठ कर भागने लगा तो उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया।

इस बीच पूर्वी दो तीन थप्पड़ मुझे और रचना को मार चुकी थी।

जब देखा कि वो नहीं मान नहीं रही है तो मैंने उसको धक्का दिया।

वो सोफे की तरफ गिरी पर उसने मेरे बाल नहीं छोड़े और मैं भी धड़ाम से पूर्वी के ऊपर ही गिर गया।

इसी हड़बड़ाहट में मेरे बाल पूर्वी के हाथ से छूट गए।

मैं उठ कर भागने लगा तो उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया।

और इसी धरपकड़ में उसके हाथ में मेरा लण्ड आ गया। जिसे उसने पकड़ कर मसल दिया।

मेरी चीख उसके घर में गूँज उठी।

मैं उस से छूट कर भागा तो गलती से अंदर वाले कमरे में घुस गया।

उसने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।

मेरी अब पुरी तरह से फट गई थी।

मेरी पेंट भी बाहर पड़ी थी और मैंने अंडरवियर तक नहीं पहना हुआ था।

अगर रचना की बुआ ने कॉलोनी के लोगों को बुला लिया तो वो लोग मार मार कर मेरा बुरा हाल कर देंगे।

फिर सोचा कि शायद वो रचना की बदनामी के डर से ऐसा ना करे।

पर डर तो था ही।

बाहर से रचना के रोने और पूर्वी के चीखने की आवाजें आती रही और मैं अंदर बेड पर पड़ी चादर लपेट कर बेड पर बैठा रहा।

मैं घबराहट के मारे पसीने पसीने हो रहा था, जिंदगी में पहली बार मेरे साथ ऐसा हादसा हुआ था।

करीब दस मिनट के बाद बाहर थोड़ी शांति हुई और कमरे का दरवाजा खुला।

दरवाजा खुलते ही पूर्वी कमरे में आई और मुझे पकड़ कर बाहर ले जाने लगी।

जो चादर मैंने लपेट रखी थी वो बहुत बड़ी थी। पूर्वी के खींचने से मेरी चादर खुल गई और मैं एक बार फिर से नंगा हो गया।

‘तुम रचना को प्यार करते हो?’ पूर्वी ने मुझे मेरी पैंट पहनने को दी और साथ ही ये सवाल दाग दिया।

घबराहट के मारे जवाब देते नहीं बन रहा था पर मेरी गर्दन अपने आप ही हाँ में हिल गई।

उसके बाद पूर्वी ने उपदेश देना शुरू कर दिया- अभी तुम लोगों की अपना भविष्य बनने की उम्र है। तुम्हें सेक्स की तरफ अभी से ध्यान नहीं देना चाहिए…

इत्यादि।

मुझे उसके उपदेश पर गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी क्यूंकि मैं उसके जैसी भी कई चूतें चोद चुका था।

खैर लगभग पन्द्रह मिनट चले इस उपदेश के बाद मेरा मोबाइल नंबर लेकर पूर्वी ने मुझे जाने दिया।

मैं भी सर पर पैर रख कर भागा वहाँ से।

अगले एक सप्ताह तक रचना ट्यूशन पर नहीं आई।

मैं उसकी सहेली से हर रोज उसके बारे में पूछता पर उसको भी नहीं पता था कि रचना क्यों नहीं आ रही है।

मैं घबराया कि कहीं पूर्वी ने रचना के मम्मी पापा को तो नहीं बता दिया।

पर फिर एक दिन रचना मुझे नजर आई।

रचना अभी ट्यूशन पर अंदर गई ही थी कि मेरे मोबाइल पर एक कॉल आई।

नंबर अन्जाना था… मैंने कॉल उठाई तो उधर से एक लड़की की आवाज सुनाई दी- मैं पूर्वी बोल रही हूँ हिमांशु… मुझे भूले तो नहीं होंगे तुम..?

‘मैं तुम्हें भला कैसे भूल सकता हूँ… तुम तो मुझे जिंदगी भर याद रहोगी।’

‘हिमांशु… मुझे तुम से एक बार मिलकर कुछ बात करनी है… क्या तुम मेरे घर आ सकते हो?’

‘क्या बात करनी है, फोन पर ही बता दो?’

‘नखरे मत कर, जो कह रही हूँ वो सुन और जल्दी से अभी के अभी मेरे घर पर आ जा!’

‘देखता हूँ..’ यह कह कर मैंने फोन काट दिया।

दिल किया कि देखूँ तो सही कि क्या बात करना चाहती है।

मैंने जल्दी से कपड़े बदले और बाइक उठा कर चल दिया।

अगले पाँच मिनट के बाद मैं संजय के घर के आगे था।

मैंने बाइक संजय के घर खड़ी की और पैदल ही पूर्वी के घर की तरफ चल दिया।

पूर्वी मुझे बाहर ही खड़ी हुई नजर आई।

मुझे देखते ही उसने मुझे अंदर आने का इशारा किया और खुद अंदर चली गई।

मैं भी चुप चाप अंदर चला गया।

‘क्या बात करनी है?’

‘अरे बैठो तो सही…’

‘मुझे थोड़ा जल्दी है… जल्दी से बताओ क्या बात करनी है?’

पूर्वी मेरे पास सोफे पर आकर बैठ गई और बोली- हिमांशु… प्लीज मुझे उस दिन के लिए माफ कर दो… मुझे कुछ ज्यादा ही गुस्सा आ गया था।

मैं उसके बदले तेवर देख कर हैरान हो गया।

‘रचना अभी बहुत छोटी है सेक्स के लिए… उसको अभी से ये सब नहीं करना चाहिए… और फिर तुम्हारा वो भी तो इतना भयंकर है… रचना की फाड़ ही देते तुम उस दिन..’

पूर्वी धीरे धीरे खुल कर बोलने लगी।

मैं भी पुराना पापी था, मेरी समझ में आ गया था कि पूर्वी क्या चाहती है।

‘क्या तुमने कभी सेक्स नहीं किया है?’

मेरा सवाल सुनकर पूर्वी चौंक गई फिर धीरे से बोली- किया तो है एक बार पर…’

‘पर क्या?’

‘वो कमीना कुछ कर ही नहीं पाया अच्छे से और मैं अधूरी ही रह गई।’

अब किसी बात की गुंजाइश ही नहीं रही थी।

मैंने झट से उसकी जांघों पर हाथ रखा और उसके आँखों में देखते हुए बोला- करना चाहती हो सेक्स मेरे साथ?

उसने शर्मा कर आँखे नीची करते हुए हाँ में सर हिलाया।

उसकी हाँ होते ही मैं सरक कर उसके थोड़ा नजदीक हुआ और अपने हाथ का दबाव उसकी जांघों पर बढ़ाते हुए उसके बदन से चिपक गया।

उसने जैसे ही अपना चेहरा ऊपर उठाया मैंने झट से अपने होंठ पूर्वी के होंठों से मिला दिए।

वो सकपका सी गई पर अब बहुत देर हो चुकी थी।

आज उस दिन की मार का मुआवजा वसूलने का समय था।

मुआवजा बहुत मस्त और गद्देदार था।

मैंने अपना एक हाथ उसके खरबूजे के साइज की चूची पर रखा और मस्त होकर उसके होंठों को चूसने लगा।

वो भी जवानी की आग में जल रही थी।

उसने सलवार कमीज पहन रखी थी।

मैंने बिना देर किये उसकी कमीज और ब्रा उसके बदन से अलग कर दी।

उसकी चूचियाँ बहुत बड़ी बड़ी और मस्त थी।

मैंने उसको सोफे पर ही लेटा लिया और उसकी चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा।

पूर्वी मस्ती के मारे दोहरी हो गई थी।

मैंने उसकी चूची चूसते चूसते उसकी सलवार का नाड़ा भी खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी।

पेंटी चूत के पानी से गीली हो गई थी पूर्वी की।

मैंने पेंटी को भी नीचे खींचा तो एक क्लीन शेव चूत मेरा इंतज़ार कर रही थी।

डबलरोटी जैसी फूली हुई चूत।

देखते ही लण्ड पेंट फाड़ कर बाहर आने को मचल उठा।

मैंने पूर्वी का एक हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखा तो उसने झट से लण्ड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया।

लण्ड हाथ में आते ही वो भी जोश में आ गई और मुझे धक्का देकर साइड में लेटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गई।

उसकी दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने झूलने लगी।

मैं उसकी चूचियों से खेलने लगा और वो मेरे कपड़े उतारने में व्यस्त हो गई।

मात्र दो मिनट में ही उसने मुझे बिल्कुल नंगा कर दिया और मेरे लण्ड को हाथ में पकड़ कर मसलने लगी।

मैंने उसको चूसने के लिए कहा तो उसने झट से मेरा लण्ड अपने होंठों में दबा लिया और चूसने लगी।

मैं उसकी चूत में ऊँगली डाल कर अंदर बाहर करने लगा।

उसकी चूत आग उगल रही थी।

सचमुच बहुत प्यासी लग रही थी वो।

पानी पानी होती चूत में से जैसे भांप निकल रही थी।

कुछ देर लण्ड चूसने के बाद वो उठी और मेरे सर के दोनों तरफ टाँगें करके बैठ गई और अपनी चूत उसने मेरे मुँह पर रख दी।

उसकी जांघें थोड़ी भारी थी।

जब उसने अपनी चूत मेरे मुँह पर रखी तो मेरी तो जैसे साँस ही रुक गई।

पर मैं भी अब पूरी मस्ती में था तो जीभ निकाल कर उसकी चूत चाटने लगा।

जीभ चूत पर लगते ही वो जोर जोर से सीत्कारने लगी, उसकी आँखें बंद हो गई थी मस्ती के मारे।

कुछ देर बाद मैंने जब मेरा लण्ड अकड़ कर मुझे परेशान करने लगा तो मैंने उसको अपने ऊपर से उठाया और नीचे जमीन पर बिछे गलीचे पर ही लेटा लिया।

उसकी जांघों को अलग करके मैंने एक क्षण के लिए उसकी चूत को देखा और फिर अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत के मुँह पर टिका दिया।

‘हिमांशु… अब और ना तड़पा… मैं मर जाऊँगी… डाल दे जल्दी से अंदर… फाड़ दे मेरी चूत…’ पूर्वी अब लण्ड लेने के लिए मचल रही थी।

मैंने भी सोच लिया था कि आज इसकी चूत फाड़ कर ही दम लूँगा।

मैंने अपनी गाण्ड थोड़ी ऊपर को उचकाई और एक जोरदार धक्के के साथ लण्ड का सुपाड़ा पूर्वी की चूत में उतार दिया।

सुपाड़ा चूत में जाते ही पूर्वी की एक जोरदार चीख कमरे में गूंज गई।

वो तो मैंने उसके मुँह पर हाथ रख लिया नहीं तो पूरे मोहल्ले को पता लग जाता कि पूर्वी चुद गई।

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मैंने उसकी चीख पर ध्यान नहीं दिया और एक और जोरदार धक्का लगा कर करीब तीन इंच लण्ड उसकी चूत में उतार दिया।

पूर्वी दर्द के मारे बिलबिला उठी।

सचमुच बहुत टाईट चूत थी पूर्वी की।

मेरा लण्ड भी जैसे किसी शिकंजे में फस सा गया था।

लड़की सच में ही ढंग से नहीं चुदी थी अब तक।

मैंने एक बार फिर से अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकाला और एक जोरदार धक्के के साथ फिर से चूत में घुसा दिया।

पूर्वी एक बार फिर छटपटा कर रह गई।

अब तो मुझे उसके उस दिन वाले थप्पड़ याद आ रहे थे और मन ही मन सोच रहा था कि आज साली से अच्छे से बदला लूँगा।

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दो और मस्त धक्को के साथ मैंने पूरा लण्ड पूर्वी की चूत में फिट कर दिया।

‘हिमांशु… छोड़ दे मुझे… फट गई मेरी तो… छोड़ मुझे…’ पूर्वी पूरा जोर लगा रही थी मुझे अपने ऊपर से हटाने के लिए।

मेरी कमर पर उसके नाखून गड़ गए थे।

कोई कच्चा खिलाड़ी होता तो कब का पस्त हो गया होता पर मैंने पूर्वी को जकड़ रखा था।

करीब दो मिनट रुकने के बाद मैंने धीरे धीरे लण्ड अंदर बाहर करना शुरू किया।

वो मेरे हर धक्के पर दर्द से कराह उठती थी।

धीरे धीरे लण्ड ने चूत में अपनी जगह बना ली और अब लण्ड थोड़ा आसानी से अंदर बाहर होने लगा।

अब मैंने भी धक्कों की स्पीड बढ़ा दी।

शुरू के पाँच मिनट तक दर्द से तड़पने के बाद अब पूर्वी भी चुदाई का मज़ा लेने लगी थी।

वो भी हर धक्के का जवाब अब अपनी मोटी गाण्ड उठा उठा कर दे रही थी।

मस्त गद्देदार चूत चोदने में मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था।

दोनों ही पसीने पसीने हो गए थे।

‘चोद मेरे हिमांशुा… उस साले ने तो प्यासी छोड़ दी थी तू तो प्यास बुझा दे मेरे हिमांशुा… चोद जोर से चोद… फाड़ दे मेरे हिमांशुा..’

अब पूर्वी मस्ती में बड़बड़ाने लगी थी।

दर्द भरी आहेँ अब मस्ती भरी सिसकारियों और सीत्कारों में बदल गई थी।

मैं उसके दोनों खरबूजों को अपने पंजों में पकड़ कर उसकी चूत पर उछल उछल कर धक्के लगा रहा था।

पूर्वी की चूत ने खुशी में आँसू बहाने शुरू कर दिए थे और पानी पानी हो गई थी।

हर धक्के के साथ अब फच्च फच्च की मधुर आवाज सुनाई देने लगी थी।

‘आह्ह… चोद… चोद मेरे हिमांशुा… मैं अब आने वाली हूँ… मेरी चूत झड़ने वाली है हिमांशुा…. जोर से मार धक्के निकाल दे सारी गर्मी..’

पूर्वी अब झड़ने वाली थी।

वो अब खूब उछल उछल कर लण्ड चूत में ले रही थी।

कमरे में मस्त चुदाई चल रही थी।

आठ दस धक्कों के बाद ही पूर्वी का शरीर अकड़ गया और उसकी चूत का लावा मेरे लण्ड को गर्म एहसास देता हुआ और मेरे अंडकोष को भिगोता हुआ उसकी जांघ से होता हुआ उसकी गाण्ड को गीला करने लगा था।

मैं अभी नहीं झड़ा था सो मैंने धक्के लगाने जारी रखे।

चुदाई लगभग दस मिनट और चली।

और फिर हम दोनों ही झड़ने को तैयार थे।

दोनों ही तरफ से जबरदस्त धक्के लग रहे थे।

दोनों ही एक दूसरे को पछाड़ने की कोशिश में थे।

और फिर लण्ड ने चूत पर विजय पाई।

चूत एकबार फिर पानी पानी हो गई।

लण्ड भी बेचारा चूत की हार देख नहीं पाया और उसने भी गर्म गर्म लावे से चूत की सींच दिया।

चूत मेरे वीर्य से लबालब भर गई थी।

पूर्वी ने मस्ती में मुझे अपनी बाहों और टांगों में जकड़ लिया था।

वो मेरे वीर्य की आखरी बूँद तक का एहसास करना चाहती थी।

पूर्वी के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे।

दस मिनट हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे पड़े रहे।

फिर पूर्वी ने उठ कर मेरे लिए दूध गर्म किया और हम दोनों ने ही गर्म दूध का आनन्द लिया।

रचना कमसिन कली थी पर पूर्वी भी उस से किसी भी नजर से कम नहीं थी।

रचना तो नहीं मिली पर उसकी बुआ ने मेरे लण्ड पर अपनी चूत की मोहर लगा दी थी।

छोड़ा तो मैंने रचना को भी नहीं पर उसके लिए मुझे करीब चार पाँच महीने इंतज़ार करना पड़ा।

वो कहानी फिर कभी… आज के लिए इतना ही…

आपनी कीमती राय इस कहानी के बारे में जरूर बताना।

आपका अपना दोस्त हिमांशु आपके मेल की इंतज़ार में…

मेल आईडी तो याद है ना…

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