सेक्सी नेहा Desi Sex Chudai Stories
तीन दिन पहले शांता कुमार मुंबई गया था, अपने कारोबार के सिलसिले में। घर पर अकेली थी नेहा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। अब तो वह पति बिन रहने की अभ्यस्त हो गयी थी।
वैसे भी नेहा का अपने पति से ज्यादा लगाव नहीं था। उसका पति मोटी तांेद का सांवले बदन का अधेड़ व्यक्ति था। वह नेहा के किसी योग्य नहीं था।
लेकिन उसके पास दौलत थी और नेहा की यही कमजोरी थी। वह दौलत की भूखी महिला थी। ऐश से जिन्दगी जीने के तलबगार नेहा ने अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए घर में दो-दो नौकर रख रखे थे, जो उसके इशारे पर उसकी बाॅडी मसाज करते थे, उसे सेक्स का अपूर्व आनंद उपलब्ध कराते थे।
उन नौकरों में एक नेपाली युवक राजबहादुर भी था, जो सेक्स के खेल में औरत को परास्त करने की कला में माहिर था। नेहा ने बहुत कम उम्र में ही सेक्स का स्वाद चख लिया था।
जब उसकी शांता कुमार से शादी हुई थी, वह दो-दो बार गर्भपात करवा चुकी थी। अब शांता कुमार से शादी के बाद वह पूरी तरह स्वच्छंद हो गयी थी। पति तो लाचार था ही, अतः उसने घर की इज्जत को बेआबरू नहीं होने देने के लिए घर में ही अपने ऐशोआराम का साधन ढंूढ लिया था। अब तक चार-चार नौकरों की छुट्टी कर चुकी नेहा ने कुछ दिनों पहले ही घर में एक नए नौकर राजबहादुर को रखा था, जो उसका बाॅडी गार्ड भी था।
हालांकि राजबहादुर में कुछ खास आकर्षण तो था नहीं, पर जाने क्यों नेहा ने उसे अपना बाॅडी गार्ड नियुक्त कर लिया था, शायद यह सोचकर कि वह कड़ियल बदन का मजबूत कद-काठी का जवान था।
राजबहादुर को पहलवानी लड़ने का शौक था। वह अब तक 6 दंगल जीत चुका था। बड़े-बड़े पहलवानों को उसने धूल चटाई थी। नेहा ने सोचा था कि और नहीं, तो राजबहादुर उसके बदन की अच्छी तरह मालिश कर देगा तथा उसकी जिस्मानी प्यास बुझाने में सक्षम सिद्ध होगा।
राजबहादुर को नौकरी पर रखने के बाद उसी रोज नेहा ने रात के लगभग 10 बजे अपने बेडरूम में उसे बुलाया ओर कहा, ‘‘राजबहादुर, इसमें कोई शक नहीं कि तुम काफी शक्तिशाली व्यक्ति हो। मुझे बहादुर इंसान काफी पसंद है। तुम मेरे बाॅडी गार्ड हो और तुम मेरे लिए क्या-क्या कर सकते हो?’’
‘‘आप एक बार आदेश दो, मैडम!’’
‘‘तुम मेरा बाॅडी मसाज कर सकते हो?’’
‘‘आॅफकोर्स मैडम!’’ राजबहादुर बोला।
नेहा ने मुस्करा कहा, ‘‘बहादुर आज मैं तुम्हारा टैस्ट लूंगी। अगर तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, तो मैं तुम्हें परमानेंट नौकरी दे दूंगी तथा तुम्हारी तनख्वाह भी बढ़ा दूंगी। लेकिन अगर तुम शिकस्त खा गए, तो दूसरे नौकरों की तरह मैं तुम्हें भी धक्के मारकर घर से निकाल दूंगी।’’
”आपका चैलेंज मुझे स्वीकार है, मैडम!’’
इसके बाद नेहा ने अपने कपड़े उतारे और बिना शर्म व लाज के चित्त पलंग पर लेट गयी। राजबहादुर ऊपर से उसके बाॅडी का मसाज करने में जुट गया।
नेहा ने सोचा तक नहीं था, कि ऐसे मर्द भी होते हैं, जो औरत के तन के रोम-रोम को भी अपने बदन की गर्मी से पिघला दें और बहादुर से उसने ऐसी अपेक्षा भी नहीं की थी।
मगर बहादुर तो आखिर बहादुर ही था, उसने नेहा के बाॅडी का कुछ ऐसे मर्दन किया कि उसकी चीख-सी निकल गयी।
”राजबहादुर, तो वाकई काम के भी बहादुर हो।“ वह ललचाई नजरों से राजबहादुर की ओर देखकर बोली, ”तुम्हारे हाथ वाकई मर्दों के हाथ हैं। जादू है तुम्हारे हाथों में। तुम कहां-कहां से पिघला दिया है तुमने मुझे।“ कहकर नेहा ने राजबहादुर का हाथ पकड़ा और अपनी खास स्थली पर टिका दिया, ”देखो कैसे रो रही है ये ‘बेचारी’। इसे जल्दी से प्यार करो और चुप कराओ।“
राजबहादुर समझ गया कि अब उसे आगे क्या करना है… वह अब अपनी मालकिन के पैरों की तरफ आया और हौले-हौले से उसकी खास ‘सहेली’ को मौखिक प्रेम करने लगा।
”उम…ह..स…आह…।“ राजबहादुर के बालों पर अपनी अंगुलियां फंसा कर अपनी ‘सेहली’ पर झुकाते हुए बोली नेहा, ”तुम वाकई एक काबिल नौकर हो..नौकर नहीं, पुरूष हो। शाबाश राजबहादुर.. और प्यार करो मेरी ‘सेहली’ को। इसे ऐसे प्यार करो कि ये भड़क और भी तेज-तेज आंसू बहाने लगे। करते रहो राजबहादुर।“
जब राजबहादुर की पुचकार से नेहा की ‘सेहली’ प्यार के आंसुओं से लबालब हो गई, तब पेट के बल लेटते हुए बोली, ”अब जरा मेरे पीछे की गलियारे को भी अपने हाथों की जादूगरी दिखा दो।“
अपनी मालकिन की गोरी, पीछे तक फैली हुई गलियारी को देखकर सहसा राजबहादुर भी ठिठक गया। उसकी भी लार मन ही मन टपकने लगी…
उसकी इस दशा को भांप लिया नेहा ने। वह मुस्करा कर बोली, ”बैक एन्ट्री नाॅट एलाउड है प्यारे।“ मालकिन जानबूझ कर अपनी पिछली गलियारी को मटकाती हुई बोली, ”मेरी बैक डोर एन्ट्री हमेशा निषेध रहती है। यहां से आज तक किसी ने प्रवेश नहीं किया, तो तुम भी ऐसे सपने मत देखो जो पूरे न हो सकें। समझे, फिलहाल तो वहां की मालिश करो।“
फिर राजबहादुर ने वहां भी ऐसे करतब दिखाये कि नेहा खुश हो गई। वह पुनः पीठ के बल लेटती हुई बोली, ”वैसे तुमने मेरी पिछली गलियारी की खूब सेवा की। जी चाहता है तुम्हें वहां एक बार अवश्य प्रवेश करने की अनुमति दे डालूं। मगर नहीं…। अभी सही वक्त नहीं आया है। फिलहाल तो सामने के गेट से ही प्रवेश करना होगा तुम्हें।“
फिर जैसे ही राजबहादुर ने मालकिन की देह पर फ्रन्ट डोर एन्ट्री मारी, तो नेहा ऐसे उछली जैसे किसी ने जलती सलाख उसकी विशेष ‘वस्तू’ में भेद दी हो।
”ओह राजबहादुर।“ बुरी तरह तिलमिलाती हुई बोली नेहा, ”चमड़ी की खाल है तुम्हारी या लोहे की? मेरे पूरे ‘डोर’ के पेच-पुर्जे हिला डाले। ऐसी भी भला कोई एन्ट्री मारता है।“ वह हैरत से बोली, ”सामने से एन्ट्री मारी तो यह हाल है, अगर मैं पीछे से एन्ट्री करने देती, तो तुम तो पूरा गेट की तोड़ डालते।“
”क्यों मजा नहीं आया क्या मालकिन?“ हौले से बोला राजबहादुर, ”अभी आगे तो बढ़ने दो आप…मैं सच कहता हूं वो मजा दूंगा कि आज के बाद आपको कोई और नौकर रखने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।“
”इतना ही विश्वास है अपने आप पर तो शुरू हो जाओ।“
फिर तो राजबहादुर ने वाकई ऐसी बहादुरी दिखाई कि पूरी जंग जीत गया वासना की। मालकिन उसकी मुरीद होकर रह गई। राजबहादुर ने उसे मसला था कि नेहा कई बार चीखी, मचली, लहरायी व बलखाती रही, राजबहादुर ने उसे तब तक मुक्त नहीं किया, जब तक उसने खुद ही पनाह न मांग ली।
इस दौरान उसने दो-दो बार पानी पीया था। जाहिर था कि बहादुर, नेहा की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया था। नेहा ने न केवल उसकी नौकरी स्थायी ही कर दी, बल्कि उसे अच्छी-खासी बख्शीश देकर उसकी सैलरी में पांच सौ रुपए का इजाफा कर दिया था। उस रोज से बहादुर ही नेहा का बाॅडी मसाज करता आ रहा था।
ऐसा नहीं था, कि शांता कुमार को अपनी बीवी के कैरेक्टर का पता नहीं था, लेकिन उसने इस पर ज्यादा कुछ नहीं किया, क्योंकि बात सिर्फ नौकर तक ही सीमित थी। लेकिन शांता कुमार यह भी जानता था कि किसी न किसी रोज नेहा की हरकतों की वजह से उनके घर की शांति को खतरा उत्पन्न हो सकता था।
अतः शांता कुमार ने नेहा को काफी समझाया था, मगर जिस औरत को सेक्स में ही अपना जीवन व लक्ष्य नजर आता है, वह भला किसी और का क्या उपदेश सुन सकती थी। थक-हार कर शांता कुमार शांत हो गया।
वह 4 तारीख की रात थी, जब नेहा, बहादुर से अपने बदन का मसाज करवा कर बंगले के गलियारे में बढ़ रही थी। अचानक वहां बत्ती गुल हो गयी। इसके साथ ही नेहा की घुटी-घुटी चीख वातावरण में कांप कर रह गयी।
फिर जब उजाला हुआ, तो सब कुछ सामान्य था, लेकिन इस घर की मालकिन नेहा ही घर में नहीं थी। मालकिन की तलाश में घर के नौकरों ने कोठी का जर्रा-जर्रा छान मारा, मगर नेहा का कुछ पता न चला। तब बहादुर ने शांता कुमार को फोन करके इस बात की इत्तिला दी। अगले रोज शांता कुमार दिल्ली आ गए। उन्होंने निकटवर्ती थाना में जाकर अपनी बीवी के अपहरण होने की रपट लिखा दी। क्योंकि तब तक यह पता चल चुका था, कि नेहा का किडनैप हुआ था।
अपहत्र्ता दस लाख रुपए फिरौती की रकम मांग रहे थे। शांता कुमार ने पुलिस को सारी बातों की जानकारी दी। इसके बाद पुलिस अधिकारी ने एक जांच दल तैयार किया। इस जांच टीम ने शीघ्र ही पता कर लिया कि नेहा का अपहरण राजबहादुर के इशारे पर किया गया था।
दरअसल राजबहादुर, शांता से ढेर सारी रकम एंेठना चाहता था। इस योजना में नेहा ने राजबहादुर का साथ दिया था। दोनों की योजना थी, शांता कुमार से ढेर सारा माल हथिया कर, फिर दोनों वहां से मुंबई भाग जाना चाहते थे। जहां से दोनों एक नई जिन्दगी की शुरूआत करने वाले थे।
पर पुलिस के मास्टर माइंड समझे जाने वाले सतबीर सिंह ने नेहा व बहादुर की योजनाओं पर पानी फेर दिया तथा दोनों को उनकी करनी की सजा के तौर पर जेल भेज दिया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।