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बीवी की अदला-बदली kamvasna chudai kahani

बीवी की अदला-बदली kamvasna chudai kahani

उसके दिल की धड़कन बढ़ती ही जा रही थी। इंतजार की घड़ियां कितनी लंबी होती हैं, आज पहली बार मोहन को इसका शिद्दत से एहसास हो रहा था। आज उसकी सुहागरात थी, जिसके लिए वह बेताब था।
जब सांझ ढली, तो वह उतावला हो उठा। वह जल्दी-जल्दी दोस्तों से निबटा और तेजी से रजनी के कमरे की तरफ बढ़ा। रजनी अब भी लड़कियों से घिरी थी, जो उससे हंसी-ठिठोली कर रही थी।
मोहन ने कहा, ‘‘तुम लोग कभी तो भाभी को अकेला छोड़ो, बेचारी सुबह से ही थकी है। उसे आराम करने दो।’’
‘‘वाह! भैया…. तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे भाभी को हम ही परेशान कर रहे हैं….सुन लो भैया, आज भाभी तुम्हें नहीं मिलेगी। हम लोग यहां से नहीं जायेंगे।’’ मोहन की छोटी बहन निमि ने शोखी से कहा।
मोहन को काफी मिन्नतें करनी पड़ी। हाथ जोड़े, पैसे दिए तब जाकर लड़कियां वहां से हटीं।
मोहन ने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया। खिड़कियां अच्छी तरह बंद कर दीं, ताकि बाहर से कोई ताक-झांक नहीं कर सके। उसके बाद वह अपनी नई-नवेली दुल्हन रजनी की तरफ बढ़ा, जो पिया मिलन की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी। मोहन पलभर तक रजनी के पास खड़ा उसके बदन की खुशबू को पीता रहा, फिर उसने आगे बढ़कर उसका घूंघट उलट दिया और कहा, ‘‘जानेमन! मैं तुम्हें जी भरकर प्यार करना चाहता हूं। अगर, तुम्हारा सहयोग मिल जाए, तो मैं समझ लूंगा कि जन्नत मिल गई…।’’
रजनी, मोहन की बेसब्री पर धीरे-से मुस्कराई, फिर वह मचल कर उसकी गोद में समा गयी तथा आंखें बंद करके पति के प्यार-मनुहार की मीठी छेड़छाड़ का आनंद उठाने लगी…
मोहन कभी रजनी के नाजुक अंगों को मसल देता, तो कभी नितम्बों पर हाथ फिरा देता। कभी गालों को चूमता, तो कभी उसके गुलाबी अधरों का रसपान करने लगता।
रजनी भी इस सब कार्य का मजा ले रही थी। उसे भी पति की बांहों में आनंद आ रहा था। वह आंखें बंद किये सीत्कार भरे जा रही थी, ”स…हूम..आ…“
”कैसा लग रहा है मेरी प्यारी दुल्हनियां को पति की बांहों में?“ मोहन, रजनी के ब्लाउज के अंदर उसके भुगोल को टटोलते हुए बोला, ”मजा आ रहा है या नहीं?“
”मजा तो रहा है लेकिन…“
”लेकिन क्या मेरी रानी?“
”मैं चाहती हूं कि हम दोनों बिना वस्त्रों के…।“ इसके आगे न बोल पाई रजनी। वह शरमा कर मुस्कराने लगी।

 

”ओह तो ये बात है।“ जोर से रजनी के पुष्ट मांसल अंगों को मसलता हुआ बोला मोहन, ”तुम तो बहुत दूर की सोच लेती हो जानेमन।“
”मगर आप पास का ही सोचिए।“ मुस्करा कर बोली रजनी, ”मेरा मतलब है जिसके साथ आपने आज सुहागरात मनानी है, वो आपके पास बिस्तर पर ही है। ऐसे में आपको दूर जाने या सोचने की जरूरत नहीं।“
कहकर बड़े ही शोखी से रजनी ने अपनी पलकें नींची कर लीं… उसकी इस अदा पर तो घायल ही हो गया मोहन…
”मेरी तो लाॅटरी ही लग गई तुम जैसी सुंदर और विशेष अंदाओं वाली पत्नी पाकर।“ वह पत्नी का आंचल नीचे सरकाते हुए बोला, ”अब जरा धीरे-धीरे अपने सारे अंगों की हाजिरी मेरी आंखों में लगवाओ।“
कहकर मोहन ने पहले उसके सारे पहने हुए जेवरात और गहने उसके शरीर से जुदा किये। फिर देखते ही देखते उसने अपनी पत्नी के शरीर से उसके सभी वस्त्रा भी जुदा कर डाले। अब उसकी पत्नी उसके सामने साक्षात रति की भांति प्रतीत हो रही थी। रजनी के निर्वस्त्रा सुडोल अंगों को देखकर बावला होने लगा मोहन।
जब उसकी दृष्टि पत्नी की खास ‘प्रेमनगरी’ पर पड़ी, तब तो वह ऐसे लार टपकाने लगा, जैसे कई दिनों के भूखे शेर को अपनी शिकार मिल गया हो।
पति इस स्थिति को देखकर मन ही मन मुस्कराई पत्नी जी। फिर रूक कर बोली, ”हां जी, क्या देखते ही रात गुजारने का इरादा है? क्या इसीलिए अपनी बहनों को कमरे से चले जाने के लिए विनती कर रहे थे? गिड़गिड़ा रहे थे?“ वह हौले से बोली, ”अब आप भी जरा..“
”मैं भी जरा क्या?“ मोहन ने पूछा, फिर एकाएक जैसे होश में आता हुआ बोला, ”ओह समझा तुम मुझे भी निर्वस्त्रा…“ वह मुस्कराया, ”ये लो जी हम भी आप जैसे ही बन जाते हैं?“ कहते हुए मोहन भी पत्न की भांति उसी अवस्था में आ गया।
अब सुहाग सेज पर पति-पत्नी एकदम आदमजात अवस्था में थे और एक-दूसरे के अंगों को ललचाई व प्यासी नजरों से देख रहे थे। मोहन बिना शरमाये एकटक पत्नि के सुडौल बदन को देख रहा था, मगर रजनी नारी लज्जावश नजरें चुरा कर तो कभी नजरे मिला कर पति के मुस्तैद ‘सिपाही’ को देख रही थी।
”ये लो जी मैं तो लेट गई।“ रजनी बिस्तर पर चित्तावस्था में लेटकर बोली, ”अब आपको जो करना है करो, तुम्हारी दुल्हनियां तुम्हारे सामने है, वो भी बेलिबास लेटी हुई।“
फिर मोहन के हाथ उसके कोमल गोलाकर कलशों पर अपने करतब दिखाने लगे। इससे और भी तेज कामुक स्वर रजनी के मुंह से फूटने लगे…
फिर जैसे ही मोहन ने उसकी ‘प्रेमनगरी’ के द्वार खटखटाया, तो बेहाल ही हो उठी रजनी। उसने बुरी तरह उत्तेजना में छटपटाते हुए मोहन को अपने ऊपर खींच लिया, ”अब बहुत हुई ऊपरी तौर पर पूछताछ। मुझसे अब और सब्र नहीं होता…अब तो अपने सख्त ‘सिपाही’ से कहो कि तुरन्त मेरी ‘दुश्मन’ का एन्काउन्टर कर दे।“
”वो भी हो जायेगा मेरी जानेमन।“ अपने ‘सिपाही’ को पत्नी के करीब पहुंचाता हुआ बोला मोहन, ”जरा थोड़ी बहुत ‘पूछताछ’ तुम भी मेरे ‘सिपाही’ से कर लो। इसे जरा हाथ से थपेड़े मारो…मुख की गर्म आंच से टाॅर्चर करो, फिर कहीं जाकर एन्काउन्टर का कार्यक्रम तय होगा।“
फिर बड़े ही विशेष अंदाज मंे पति के कहेनुसार पत्नी यानी रजनी पति के ‘सिपाही’ को टाॅर्चर करने लगी। पति भी मस्ती में झूमने लगा, ”वाह मेरी जान वाह! तुम तो काफी एक्पर्ट मालूम होती है। एकदम किसी पेशेवर काॅलगर्ल की तरह सुख दे रही हो।“
”तो क्या मैं तुम्हें पेशेवर लगती हूं? मेरा पति को खुश करना, काॅलगर्ल के खुश करने के बराबर है?“ पत्नी थोड़ा नाराजगी दिखाती हुई बोली, ”तुम्हें मुझपर कोई शक है क्या?“
”अरी मेरी रानी, तुम तो गलत समझ गई।“ पति बात को संभालते हुए बोला, ”मेरा वो मतलब नहीं था।“ वह पत्नी के सिर को अपनी दोनों हथेलियों से पकड़ कर बोला, ”तुम मेरे ‘सिपाही’ से पूछताछ करती रहो बस। कहीं दोबारा ठंडा पड़ गया, तो बेकार फिर से लंबी पूछताछ करनी पड़ेगी तुम्हें।“
”पत्नी फिर से पति के ‘सिपाही’ को मौखिक दुलार देते हुए बोली, ”अब दोबारा ऐसा कुछ कहकर मूड मत खराब करना।“
”तो फिर लो अभी तुम्हारा मूड ठीक किये देता हूं।“ कहकर मोहन ने रजनी को लेटा दिया और स्वयं उसके ऊपर आकर प्यार का हमला बोल दिया। हमला इतना जोरदार था कि रजनी चीख पड़ी, ”मार डाला उफ!“ वह छटपटाती हुई बोली, ”सुनो, थोड़ा हटो न वहां से।“
”कहां से?“
”नाटक न करो, बहुत तकलीफ हो रही है। हटो भी अब।“
”ऐसे नहीं हटने वाला मैं अब।“ मोहन गतिमान होते हुए बोला, ”अब तो गाड़ी सीधा स्टेशन पर ही रूकेगी।“
”पहले जरा मेरी ‘पटरी’ को तो सही हो जाने दो।“ रजनी पति की आंखों में देखकर बोली, ”गाड़ी तो आखिर मेरी ‘पटरी’ पर ही दौड़ेगी न। मेरी पटरी थोड़ी गीली हो जाये, उसके बाद सरपट अपनी गाड़ी दौड़ाते रहना। मत रूकना बिना स्टेशन पर पहुंचे।“

 

फिर मोहन, रजनी के साथ फोर प्ले का कार्यक्रम करता रहा। फिर जैसे ही रजनी की पटरी गीली होनी आरम्भ हुई, मोहन ने अपनी गाड़ी सरपट दौड़ा दी। गाड़ी इतनी स्पीड से भागी की रजनी तो पहले ही अपने स्टेशन पर पहुंच कर निहाल हो गई और अंत में मोहन भी आखिरी स्टेशन पर पहुंच कर संतुष्ट हो गया।
मोहन दिल्ली स्थित पीतम पुरा में रहता था। वह वाराणसी का रहने वाला था। उसकी शिक्षा-दीक्षा बनारस में ही हुई थी। मोहन अपने परिवार में सबसे बड़ा था। उससे छोटी दो बहनें थीं। मोहन के पिता राज मल्होत्रा वाराणसी के एक स्कूल में अध्यापक थे।
परिवार में खुशहाली थी। सब भरा था। बी.ए. करने के बाद मोहन ने नौकरी की तलाश शुरू की, लेकिन जब उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली, तो वह दिल्ली आ गया। वह एक प्राइवेट कंपनी में एकाउंटेंट था। उसी साल उसके पिता ने रजनी के साथ उसका विवाह कर दिया।

बीवी की अदला-बदली kamvasna chudai kahani

बीवी की अदला-बदली kamvasna chudai kahani

मोहन अपनी शादी में छुट्टियां लेकर आया था, लेकिन रजनी के प्यार का भूत उस पर कुछ ऐसा सवार हुआ कि वह पूरे महीने की छुट्टी लेकर घर पर बैठा रहा और अपनी पत्नी के प्यार के जादू में खोया रहा। कोई डेढ़ महीने के बाद मोहन दिल्ली लौट गया।
मोहन का लंगोटिया यार था गंगादीन, जो महरौली में रहता था और मोहन की फार्म स्टोर इंचार्ज था। दोनों दोस्त फुर्सत के लम्हों में खूब गप्पें लड़ाते थे, एक-दूसरे की बीवियों की तारीफों के अलावा अंतरंग जिन्दगी के चर्चे करते थे।
गंगादीन की शादी भी मोहन के साथ ही हुई थी। वह इलाहाबाद का रहने वाला था। गंगादीन और मोहन की शिक्षा-दीक्षा एक ही स्कूल तथा काॅलेज में हुई थी। दोनों हमउम्र तथा हम ख़्याल थे। यही कारण था कि जब मोहन की शादी हो रही थी, तो गंगादीन ने भी शादी कर लेने में देरी नहीं लगाई।
मोहन से पहले गंगादीन दिल्ली में सैटल हो चुका था। गंगादीन ने ही मोहन की नौकरी अपनी कंपनी मंे लगवाई थी। इसका एहसान मोहन मानता था। जब तक दोनों की शादी नहीं हुई थी, वो साथ-साथ रहते थे और फुर्सत के लम्हों में खूब गप्पे लड़ाते थे। लेकिन शादी होने के बाद उनकी व्यस्तता बढ़ गयी, तो वे कभी-कभार ही अथवा प्रायः इतवार को एक साथ बैठकर बातें करते थे। इस दौरान दारू का जायका भी लेते रहते थे। उनकी बीवियों को इस पर कोई एतराज नहीं था।
जब मोहन अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर दिल्ली में रह रहा था, तो वह गंगादीन के घर ही खाना खाता था, क्योंकि मोहन के साथ उसकी बीवी नहीं थी। घर और आॅफिस दोनों जगह दोनों दोस्त साथ-साथ रहते थे, लेकिन घर पहुंचते ही दोनों के बीच हंसी-कहकहों का शोर उठने लगता।
इसमें गंगादीन की बीवी रमा भी शामिल हो जाती थी। रमा काफी खूबसूरत तथा समझदार युवती थी। वह अपने पति के साथ-साथ मोहन का भी भरपूर ख़्याल रखती थी। समय पर खाना खिलाना, उनके लिए टिफिन तैयार करना, आदि कई बातों का ख़्याल रखती थी।
हालांकि शुरू-शुरू में रमा अपने पति को दारू पीने के लिए मना कर चुकी थी, लेकिन जब उसका पति नहीं सुधरा, तो उसने फिर उसे कभी रोका नहीं था। मोहन, रमा के हुस्न की तारीफ करता रहता था। वैसे भी रमा तारीफ के काबिल थी ही।
एक दिन दोनों दोस्त पीने बैठे, तो पीने के दौरान ही बहक गये। बातों ही बातों में मोहन ने कहा, ‘‘यार! हम दोनों लंगोटिया यार हैं। जिन्दगी में अब तक जो भी काम किया, साथ-साथ किया। सुख-दुख में भी हम साथ-साथ रहे। साथ-साथ खेले-कूदे और हमने एक-दूसरे से कुछ भी नहीं छुपाया। यहां तक कि वो बातें भी नहीं छुपाईं, जो पति-पत्नी के बीच होती हैं….।’’
कहते-कहते अचानक मोहन रूका, फिर उसने अपने चारों तरफ देखा। उस समय रात्रि के लगभग 11 बज चुके थे। गंगादीन की बीवी रमा सोने जा रही थी। वह कुछ ही देर पहले गंगादीन और मोहन का बिस्तर लगा चुकी थी। मोहन को अचानक रूकते देखकर गंगादीन ने पूछा, ”दोस्त, तुम जरूर कोई बात मुझसे छिपा रहे हो। अगर तुम कहते हो कि हमारे बीच में कोई बात छिपनी नहीं चाहिए, तो फिर कुछ कहते झिझकते क्यों हो? खुलकर बताओ आखिर यहां हम दोनों के अलावा कौन है? तुम्हारे लिए तो जान भी हाजिर है।“
तब मोहन ने हिचकते हुए कहा, ”मैं समझता हूं कि तुम्हें कह ही दूं। दरअसल, मैं रमा भाभी से प्यार करने लगा हूं…।“
गंगादीन को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उसने आखिरी पैग बनाते हुए पूछा, ”क्या रमा भी तुम्हें चाहती है?“
”यह तो मुझे पता नहीं, लेकिन मैं जब-जब उनकी आंखों में देखता हूं, तो ऐसा लगता है कि वह भी मुझे चाहती है। क्या मैं रमा भाभी से अकेले में कुछ बातें कर सकता हूं।“

”मोहन, तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो तथा मेरे दिल के काफी करीब हो। मैं तुम्हें रमा से बात करने के लिए मना नहीं कर सकता, लेकिन मैं चाहूंगा कि कोई कदम उठाने से पहले एक बार तुम रमा से बात कर लो।“ गंगादीन ने इशारे से उसे समझाते हुए कहा।
मोहन उसका इशारा भांप गया। उसने आखिरी पैग उठाया और एक ही सांस में खाली कर दिया। उसके बाद दोनों दोस्त उठे और अपने-अपने कमरे की तरफ बढ़ गये।
चूंकि उस दिन मोहन को कुछ ज्यादा ही नशा चढ़ गया था, इसलिए वह रमा से मन की बात न कह सका। पर वह अगले दिन भी उससे कुछ नहीं कह सका। इस तरह कई दिन बीत गये, लेकिन मोहन ने रमा से कोई बात नहीं की। शायद वह उससे कुछ कहते हुए झिझकता था।
उधर रमा, मोहन के व्यवहार से सब भांप चुकी थी। मोहन का अंदाज तथा उसकी आंखों में अपने प्रति चाहत देखकर रमा की चिंता बढ़ गयी थी। इसके पहले कि मोहन, रमा से अपने दिल की बात बता पाता, मोहन की बीवी रजनी दिल्ली आ गयी। फिर तो मोहन, रजनी के प्यार के जादू में खोता चला गया।
दरअसल, रमा ने ही यह कारनामा कर दिखाया था। वह मोहन की आंखों की भाषा समझ चुकी थी। फिर उसने सोचा कि अगर रजनी, मोहन के पास रहेगी, तो मोहन को बहकने से वह बचा लेगी। यही सोचकर रमा ने रजनी को सूचना दे दी। रजनी फौरन दिल्ली आ गयी। मोहन काफी खुश हुआ। उस दिन से रमा के प्रति उसका प्यार और सम्मान दोनों बढ़ गया।
दिन गुजरते रहे। उनकी शादी के दो साल बीत गए।
एक दिन मोहन और गंगादीन पीने बैठे, तो फिर दोनों में वही अंतरंग बातें होने लगी। मोहन ने कहा, ”गंगा, आज हम जिस युग में जी रहे हैं, उस युग मंे एंटरटेनमेंट जीवन के हर पहलू पर हावी रहता है। मेरा ख़्याल है हमें कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे कि हमारी खुशियां दोगुनी हो जाये।“
”तुम कहना क्या चाहते हो दोस्त, मैं कुछ समझा नहीं?“ गंगादीन ने पूछा।
तब मोहन ने गंगादीन को अपने दिल की बात बता दी। सुनकर गंगादीन मुस्कराया।
”भई वाह!“ गंगादीन चहक कर बोला, ”तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी है। हमारी शादी तकरीबन एक ही समय हुई है, लेकिन अब बीवी के साथ सोने की इच्छा नहीं होती। मेरा विचार है कि कुछ दिनों के लिए हम दोनों दोस्त क्यों न अपनी बीवियों की अदला-बदली कर लें?“
”ल….लेकिन क्या हमारी बीवियां इसके लिए तैयार हो सकेंगी?“
”क्यों नहीं….जब हमें कोई एतराज नहीं है, तो भला उन्हें क्यों एतराज होगा? वैसे भी मेरी बीवी तुम्हें चाहती है और तुम्हारी बीवी मुझे पसंद करती है। कुछ दिनों के लिए उन्हें मना लेंगे। इससे हमारी खुशियां और बढ़ जायेंगी।“
आप पढ़ रहे हैं बीवी की अदला-बदली….
एक दिन मोहन ने मौका देखकर रजनी से कहा, ”रजनी मैं एक बात कहना चाहता हूं, लेकिन डरता हूं, कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ।“
”आप कहिए तो सही….मैं आपकी बात का बुरा नहीं मानूंगी।“
मोहन ने झिझकते-झिझकते अपने दिल का भेद बता दिया। रजनी सन्न रह गयी।
उधर गंगादीन ने भी अपनी पत्नी रमा से दिल की बात बताकर कहा, ”मैं वादा करता हूं….तुम्हें पहले की भांति ही प्यार करता रहूंगा। बस कुछ दिनों के लिए तुम मोहन का ख्याल रखो।“
रमा सोचने पर विवश हो गयी। उसने आखिर सोच-विचार करके पति का प्रस्ताव नहीं मानने का फैसला किया, लेकिन रजनी को कोई एतराज नहीं था। वैसे भी वह आधुनिक विचारधारा की युवती थी। उसके लिए फ्लर्ट जैसी बातें कोई मायने नहीं रखती थीं। वैसे भी वह छोटे शहर में नहीं थी। यह दिल्ली महानगर था, जहां सब कुछ खुलेआम होता है

कई दिनों तक रमा सोच-विचार करती रही, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। फिर उसके दिमाग में एक आइडिया आया। यह आइडिया था अपने पति को सच दिखाने का आइडिया….सच से वाकिफ कराने का आइडिया अथवा उपाए।
एक दिन जब मोहन, रमा के कमरे में पहुंचा, तो रमा ने आधुनिक व लेटेस्ट डिजाइन के कपड़े पहने थे। वह साड़ी की जगह जींस और टी शर्ट पहने थी तथा उसने अपना हेयर स्टाइल भी बदल लिया था। जब मोहन वहां पहुंचा, तो वह रमा को देखता ही रह गया।
उसने पूछा, ”भाभी, आज तुमने अपना लुक ही बदल डाला है। इसका मतलब तुम गंगादीन की बात समझती हो कि आज जीवन में आधुनिकता किस कदर हावी है। लोग एंटरटेनमेंट के लिए क्या से क्या नहीं कर रहे हैं….।“
रमा ने मोहन को पलंग पर बैठा लिया। वह मुस्करा कर बोली, ”मोहन, तुम इसी आधुनिकता की बात कर रहे हो न। मैंने अपने पति का मन रखने के लिए खुद को उनके कहे अनुसार ढाल लिया है, लेकिन मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूं। तुम वादा करो मुझसे कि झूठ नहीं बोलेगे?“
मोहन ने कहा, ”मैं वादा करता हूं भाभी।“
कुछ पल खामोश होकर रमा बोली, ”सच-सच बताओ मोहन, मैं इन कपड़ों में तुम्हें कैसी लगती हूं?“
”दिल की बात बताऊं, तुम पर ये कपड़े अच्छे नहीं लगते। साड़ी, ब्लाउज में तुम्हारा सौंदर्य काफी खिल उठता है। लेकिन इन कपड़ों में तुम्हारा आत्मविश्वास दम तोड़ता नज़र आता है।“
आप पढ़ रहे हैं बीवी की अदला-बदली….
”तो ठीक है, मैं पुराने लुक में तुम्हारे सामने आती हूं। कुछ देर यहां तुम इंतजार करो, मैं अभी आयी।“ कहकर रमा दरवाजे से निकल गयी।
फिर रमा लगभग आधे घंटे बाद कमरे में लौटी, तो मोहन साड़ी-ब्लाउज में उसका शबाब देखता रह गया। उसके चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कान थी। इन कपड़ों में उसका आत्मविश्वास दोगुना हो गया था।
रमा ने पूछा, ”अब मैं तुम्हें कैसी लगती हूं?“
मोहन ने कहा, ”सच भाभी, इच्छा होती है कि तुम्हें अभी अपनी बांहों मंे भर लूं। तुम काफी स्मार्ट लग रही हो।“
तब रमा ने मोहन को समझाया कि वह क्या साबित करना चाहती थी। रमा ने कहा, ”मोहन, हम चाहे जिस युग में पहुंच जायें, लेकिन हमेशा भारतीय ही रहेंगे। हमारी संस्कृति भारतीय रहेगी। हम पर आधुनिकता का कोई असर तत्काल ही हावी रहेगा, लेकिन एक समय गुजर जाने के बाद हम फिर से अपनी संस्कृति में नज़र आयेंगे। पहनावा, संस्कृति के अनुसार ही अच्छा लगता है। हमारे यहां संस्कृति में एक मर्यादा होती है, जो रिश्तों की परिभाषा गढ़ती है। मर्यादा में ही आकर्षण है, प्यार है और अपनत्व भी, लेकिन अगर यही मर्यादा नहीं रहे, तो कैसा रिश्ता, कैसा आकर्षण, कैसा स्नेह व कैसा प्यार? मेरा विचार है कि तुम सब बात समझ गये होंगे।“
कहकर रमा मुस्कराई और मोहन के चेहरे की तरफ देखने लगी। मोहन कुछ सोच में पड़ गया था। उसकी आंखों में एक हया टपक रही थी, जो उसे उसकी मर्यादा का आभास करा रही थी।

कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।

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