जानेमन से बनी काॅलगर्ल desi sex stories
बस, उस दिन के बाद हम एक-दूसरे से रोज ही मिलने-जुलने लगे। मेरी शामें रंगीन होने लगीं। हमारी शामें साथ-साथ ही गुजरती। वह बेधड़क मेरे घर आने-जाने लगा, लेकिन वह सब भी एक दुःखद पहलू था। मुझे आज भी वो रात याद है।
उस शाम विशाल मेरे आॅफिस आया, तो छुट्टी होने के बाद जब हम बाहर निकले, तब विशाल ने कहा, ”आज तुम्हारे लिए एक खुशी खबरी है करूणा।“
”क्या?“ मैंने उत्सुक होकर पूछा।
मैं सोच ही रही थी कि शायद विशाल शादी का प्रस्ताव रखेगा। यही बात कहते हुए आज तक मैं हिचकिचा रही थी।
”आज मेरा बर्थ-डे है। आज का डिनर वगैरह सब मेरी तरफ से होगा।“
मुझे खुशी तो बहुत हुई, लेकिन जिस बात को सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे थे, वह तरसते ही रहे। खैर! मैंने उसे जन्मदिन की बधाई दी।
”मैं चाहता हूूं कि तुम हर पल मेरे साथ रहो।“
”मैंने कब इंकार किया है, आप रखने वाले बनें।“
एकाएक ही मेरे मन में विशाल के लिए सम्मान पैदा हो गया। मुझे लगा कि हर पल साथ रखने की बात कहकर अप्रत्यक्ष रूप से विशाल शादी का इशारा कर रहा है।
फिर एक रेस्टोरेंट में जाकर हमने काॅफी पी। उसके बाद विशाल ने एक बढ़िया होटल से डिनर पैक करवाया। वाइन शाॅप से एक बोतल राॅयल चैलेंज और चाय बीयर लीं। फिर आॅटो द्वारा वह मेरे साथ ही मेरे फ्लैट पर आ गया।
”आज की रात मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं करूणा, कोई एतराज तो नहीं?“
”कैसी बातें कर रहे हैं, मुझे भला क्या एतराज हो सकता है?“
कमरे पर आकर हम दोनों फ्रेश हुए। बाथरूम और टाॅव्यलेट की सुविधा मेरे कमरे के साथ ही मुझे हासिल थी।
फ्रेश होकर विशाल ने मुझे अपनी बाहों में भरकर मेरे होंठ चूमकर कहा, ”मेरे जन्मदिन का तोहफा। लोग जन्मदिन पर केक से दूसरों का मुंह मीठा कराते हैं, मैंने अपने प्यार से तुम्हारा मुंह मीठा किया है।“
पहली बार किसी पुरूष का ऐसा स्पर्श पाकर मैं लाज से दोहरी हो गई, लेकिन मैंने कोई विरोध नहीं किया। मैं किसी भी सूरत में विशाल को नाराज नहीं करना चाहती थी।
और फिर हम दोनों पीने बैठ गये। मैं केवल बीयर की चुस्कियां ले रही थी और वह व्हिस्की पी रहा था। साथ-साथ नमकीन काजू और आलू के मसालेदार लच्छों का आनंद भी ले रहा था।
फिर एकाएक ही उसने मुझे शराब पीने की आॅफर दी। थोड़ी ना-नुकुर के बाद मैं मान गई। दो ही पैग मंे मुझे अच्छा-खासा नशा हो गया। विशाल भी नशे में हो गया था।
फिर चिकन, सलाद और नाॅनवेज डिनर के साथ भी हल्का-हल्का दौर चलता रहा। डिनर खत्म होने तक हम काफी नशे में हो गए थे।
कमरे में एक ही बेड था और हमें साथ-साथ सोना था। यही सोचकर मैं नशे में होने के बावजूद रोमांचित हुई जा रही थी। फिर वह समय भी आया कि जब हम दोनों बिस्तर पर पहुंच गए।
लेटते ही विशाल ने मुझे बाहों में भर लिया और बोला, ”मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं करूणा। जी चाहता है कि दुनियां भर की नज़रों से तुम्हें छिपा लूं।“
”तो छिपा लो न विशाल! मैं तो न जाने कब से नख से शिख तक तुम्हारी हो चुकी हूं।“
”ओह करूणा!“
विशाल ने मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी।
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”विशाल….माई लव।“ मैं भी उससे बुरी तरह लिपट गई, ”आज मैं तुम्हारे जन्मदीन के अवसर पर तुम्हें सबसे किमती ‘उपहार’ देना चाहती हूं।“ इससे पहले कि विशाल मुझसे उपहार के विषय में पूछता, ”मैं स्वयं मस्ती व नशे के आलम में बोल उठी, ”एक लड़की के लिए सबसे अनमोल खजाना उसकी इज्जत होती है और आज मैं तोहफे में ये ही ‘खजाना’ उपहार के रूप में सौंपना चाहती हूं तुम्हें।“
मैंने इतना कहा कि विशाल ने मेरे होंठों को जबरदस्त तरीके से चूमना शुरू कर दिया। वह मस्ती में मेरे नाजुक उभारों को सहलाता हुआ बोला, ”जानेमन ये ‘तोहफा’ मेरे लिए दुनियां का सबसे अनमोल और बेहतरीन ‘तोहफा’ होगा।
कहकर वह मेरे वस्त्रा खोलने लगा। मैं भी नशे के झोंक में उसके वस्त्रा खोलने लगी। देखते ही देखते हम दोनों ने एक-दूसर को पूर्ण निर्वस्त्रा कर दिया।
फिर विशाल मेरे दुधियां अंगों को देखकर बोला, ”तुम नहीं जानती कि तुमने आज मुझे क्या सौंपा है। मैं खुद को दुनियां का सबसे खुशनसीब इंसान समझ रहा हूं।“ कहकर वह दीवानों की तरह मेरे अंगों को यहां-वहां, जहां मन आता सहलाने लगा, चूमने चाटने लगा।
मैं भी प्यासी दीवानी होकर उससे बेतरह लिपट गई और बोली, ”मेरा तोहफा कबूल कर, तो तुमने मुझे धन्य कर दिया है। मैं तो न जाने कब से तुम्हें अपना सबकुछ सौंपने लिए आतुर थी मेरे प्यारे।“
”सच।“ उसने मेरे उभरों को मसला।
”मुच।“ मैंने भी विशाल के ‘हथियार’ को झकझोरते हुए कहा और हंसने लगी।
मेरा छूना था कि विशाल की ‘बंदूक’ हमले के लिए पूरी तरह तैयार हो गया। फिर विशाले ने पहले मुझे देखा और फिर अपने ‘बंदूक’ की ओर इशारा कर बोला, ”ये तो तैयार है, क्या तुम तैयार हो जानेमन?“
मैंने फिर मस्ती व उत्तेजना के आलम पहले एक पेग और बनाया और पी गई। मुझे देखकर विशाल ने भी अपने लिए दो पेग बनाये, मगर एक मुझे पिला दिया और दूसरा स्वयं पी गया…
अब तो मैं बेहद नशे में हो गई थी…”तुम क्या मुझे अपनी ‘बंदूक’ दिखा के डरा रहे हो और पूछ रहो कि मैं तैयार हूं कि नहीं?“ मैं बशर्मों की भांति अपनी निचली ‘कार’ दिखाती हुई बोली, ”ये देखो मेरी बुलेट प्रूफ ‘कार’ तुम्हारी बंदूक की गोलियों का इस पर कोई असर नहीं होने वाला।“
”वो तो देखा जायेगा जानेमन, जब मेरी बंदूक से फायरिंग होगी, तुम्हार ‘कार’ पर।“
”तो फिर करो फायरिंग।“ मैं पूरी तरह नशे में सारी लाज शर्म खोकर बोली, ”ये रही मेरी ‘कार’।“
फिर वाकई विशाल ने ऐसी फायरिंग करी कि मेरी बुलेट-प्रूफ ‘कार’ की धज्जियां उड़ा दी। मैं ना..ना..करती रह गई। अपने हाथ भी खड़े कर दिये, मगर वह बेदर्दी मुझे रातभर मसलता रहा। पर सच कहूं तो उसकी बेदर्दी में भी एक अपना ही मजा था। जब-जब मैं उसे ना कहती, तो वह और भी तेजी से अपनी ‘बंदूक’ से फायरिंग करता, जिससे में बहुत तेज मजा आता।
और उस रात मैंने पहली बार किसी पुरूष का सहचर्य प्राप्त किया। फिर तो अक्सर विशाल की रातें मेरे कमरे पर गुजरने लगीं। उसने अपने मुंह से कभी शादी की बात नहीं की।
मगर एक दिन रात गुजरने के बाद वह जाने लगे तो मंैने उनसे कहा, ”विशाल!“
”हूँ।“ वह बोला, ”कहो करूणा, क्या बात है?“
”मेरा ख्याल है कि हमें अब शादी कर लेनी चाहिये।“
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”शादी, ऊंह!“ उसने ऐसा बुरा-सा मंुह बनाया जैसे मुंह से मैंने कुनैन की गोली रख दी हो, ”मुझे तो इसके नाम से ही नफरत है करूणा! अब मुझे ही देखो, घर में पढ़ी-लिखी और खूबसूरत बीवी के होते हुए भी तुम्हारे साथ रहना अधिक पंसद करता हूं, क्योंकि वह पढ़ी-लिखी होने के बावजूद बद्दिमाग है। जब देखो तब चिड़चिड़ाती रहती है। मां के मरने के बाद ससुराल वालों का हर बात में दखल रहता है। तुम्हारी कसम करूणा, मेरी शादी को केवल दो साल हुए हैं, लेकिन मैंने इन दो सालों में बीस सालों की कड़वाहट झेली है, जो लड़की अपने पति को…।“
वह न जाने क्या-क्या बोलता रहा, मैं नहीं सुन सकी। मेरे दिमाग में तो ऐसे धमाके हो रहे थे, जैसे ढेरों इमारतें एक साथ धड़धड़ा कर गिर रही हों। ऐसा लग रहा था, मानो विशाल ने कोई अनदेखा खंजर मेरे सीने में घुसेड़ दिया हो।
लेकिन अब क्या हो सकता था। अपनी सबसे कीमती चीज विशाल के भरोसे, मैं उसके हाथों लुटवा चुकी थी।
एकाएक ही मेरे मन में उसके प्रति नफरत उभर आई और मैं बोली, ”तुम्हें मेरा जिस्म छूने से पहले की बता देना चाहिए था कि तुम शादीशुदा हो। तुमने अपनी तनहाईयां दूर करने के लिए मुझे जरिया बनाया, लेकिन कभी यह नहीं सोचा कि मेरे भी कुछ अरमान होंगे। जाओ विशाल, जाओ, आज मैं काॅलेज के दिनों के उस विशाल को खो बैठी हूं, जिस पर मुझे अटूट विश्वास था। तुम्हें लेकर मैंने न जाने क्या-क्या सपने देखे, लेकिन…लेकिन तुमने मुझे अंधेरे में रखा विशाल!“
”मेरा विश्वास करो करूणा… मैं तन-मन से आज भी तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा रहूंगा।“
”मतलब…।“ तल्ख लहले में मैंने कहा, ”हमेशा मुझे अपनी रखैल बना कर रखना चाहते हो?“
”कैसी बातें कर रही हो करूणा, क्या हम अच्छे दोस्त बनकर नहीं रह सकते?“
”प्लीज़ विशाल, अब तुम यहां से चले जाओ। अगर मुझे कभी किसी मोड़ पर तुम्हारी जरूरत महसूस हुई, तो तुम्हें अवश्य याद कर लूंगी, लेकिन अब तुम मुझसे मिलने की कोशिश न करना।“
विशाल चला गया। उसके जाने के बाद मैं खूब रोई। उस दिन पहली बार मैं अपने आपको नितान्त अकेला महसूस कर रही थी। उसके बाद तो मेरी शामें सूनी होती चली गयीं। आॅफिस से छूटकर अब मैं सीधी घर आती और अपना कमरा बंद करके पड़ी रहती।
पहले तो कभी-कभार मकान मालिक या मालकिन से बातचीत भी हो जाती थी, किन्तु अब ऐसा कुछ नहीं था। जब आॅफिस में भी मैं चुपचाप रहने लगी, तो एक दिन हमारे यहां काम करने वाली लड़की(स्टैनो) ने छुट्टी के बाद मुझे रोक लिया।
”क्या बात है करूणा, आजकल काफी बुझी-बुझी रहती हो और वो… तुम्हारा विशाल?“
”उसका नाम मत लो रीटा।“
”क्यों? क्या हुआ…?“
मेरी आंखों में आंसू आ गये और मैंने उसे सब कुछ बता दिया।
”दिल हल्का मत करो करूणा। मैं तुम्हें टोकना तो बहुत पहले ही चाहती थी, लेकिन सोचा कि तुम्हें बुरा लगेगा। खैर! आओ, मेरे साथ चलो, दिल कुछ हल्का हो जाएगा।“
फिर वह मुझे लेकर अपने फ्रैंड के यहां गई। उसकी वह फ्रैंड शायरी करती थी। वहां कुछ समय बिताकर रीटा और मैं वापस लौट पड़े। रीटा से अलग होते ही मैं फिर अकेला महसूस करने लगी।
एक दिन मैं कमरे में लेटी हुई थी कि अचानक ही दरवाजे पर दस्तक हुई, ”करूणा….करूणा..!“
वह मेरी मकान मालिक की आवाज थी, जो मुझसे 5-6 साल बड़ी थीं। मैंने दरवाजा खोला, ”कहिए दीदी।“
”क्या बात है, कई दिनों से देख रही हूं कि तुम शाम को आॅफिस से आकर अपने कमरे में ही बंद रहती हो और…।“
”ऐसी तो कोई बात नहीं है दीदी।“
वह मुझे जबरन ड्र्राइंग रूम में ले आई। वहां उनके हसबैंड व उनके एक दोस्त बैठे थे। पीने का दौर चल रहा था।
”क्या बात है करूणा, हमसे कुछ नाराज हो क्या?“ मकान मालिक, जिन्हें मैं जीजा कह दिया करती थी, बोले, ”काफी दिनों से बोली ही नहीं।“
”तबियत कुछ ऐसी ही थी, जीजा जी।“
मैंने देखा कि उनके साथ बैठा आदमी मुझे गहरी नज़रों से देख रहा था। काफी देर मैं उनके साथ बैठी रही।
इस बीच उन्होंने मुझे अपने मेहमान से भी परिचित करवा दिया। उसका नाम राजेन्द्र गुप्ता था और वह कपड़े का व्यवसायी था। उसकी स्थिति बता रही थी कि उसका व्यवसाए काफी अच्छा चल रहा था।
फिर धीरे-धीरे वह मेरे करीब आने लगा। एक बार वह शाम के समय आॅफिस आ गया और उसने किसी होटल में चलकर ड्रिंक और डिनर लेने का प्रस्ताव रखा। मैं भी क्योंकि काफी अकेलापन और बोरियत महसूस करती थी, इसलिए उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
वह मुझे एक फाइव स्टार होटल में ले गया। पहले से ही उसने वहां एक कमरा बुक करवा रखा था। किसी फाइव स्टार होटल में आने का यह मेरा पहला चांस था। वहां की चकाचैंध और देशी-विदेशी लोगों को देखकर मैं काफी प्रभावित हो रही थी। कमरे में पहुंच कर उसने पहले ड्रिंक्स का आॅर्डर दिया और साथ ही वेटर को दो घंटे के बाद खाना लाने की हिदायत भी दे दी।
”देखो करूणा!“ ड्रिंक का एक दौर होने के बाद वह बोला, ”मैं एक व्यापारी हूं, शादीशुदा और बाल-बच्चेदार आदमी हूं। पत्नी मामूली पढ़ी-लिखी और गांव की है, इसलिए मेरी उसके साथ खास पटरी नहीं बैठती। तुमसे इसीलिए दोस्ती करना चाहता हूं, लेकिन फ्री में कुछ भी चाहने की मेरी कोई आदत नहीं है। हमारी दोस्ती लंबे समय तक चले, इसलिए मैंने तुमसे कुछ भी नहीं छिपाया है। अगर तुम्हें मेरे विचारों से इत्तेफाक न हो तो साफ बता दो, हम दोस्ती का दायरा सीमित कर लेंगे।“
उसकी स्पष्टवादिता मुझे बहुत अच्छी लगी। वह साफ-साफ कह रहा था कि यदि मुझे भोगेगा तो उसकी कीमत देगा। मैं तो वैसे ही अकेली थी और मुझे किसी का साथ चाहिए था। फिर मन में आया कि यदि इसका साथ रहा, तो ऐसे बड़े होटलों में आना-जाना लगा रहेगा।
”ठीक है, जैसा आप चाहें, लेकिन हमारे संबंधों का ढिंढोरा न पीटें। दीदी और जीजा जी को भी पता न चले।“
”मैं तुम्हारे मान-सम्मान और गरिमा का पूरा ख़्याल रखंूगा।“
पीने के बाद हमने डिनर लिया। फिर वह मुझे बिस्तर पर ले गया। एक-एक करके उसने मेरे सारे कपड़े उतारे, फिर माथे से नीचे तक मुझे चूमा। मैं भी उसे काफी सहयोग दे रही थी।
आप पढ़ रहें हैं जानेमन से बनी काॅलगर्ल…
उस रात हमने कई राउंड प्ले किया। वह वाकई शानदार मर्द था।
हफ्ते में दो-तीन दिन वह मुझे होटलों में लेकर जाता और जब सुबह वापस जाता तो दो-तीन हजार रुपए वह मेरे पर्स में ठूस देता और कहता, ”यह मेरी तरफ से तुम्हारी मेंटनेंस के लिए करूणा।“
फिर एक दिन पता चला कि एकाएक ही वह व्यापार के सिलसिले में विदेश जाते समय एक विमान दुर्घटना में मारा गया।
उसके बाद ही मुझे पता चला कि मेरे और उसके संबंधों का मेरे मकान-मालिक दम्पत्ति को पूरा पता था और वह स्वयं बड़े ही सुचारू ढंग से एक काॅलगर्ल रैकेट का संचालन कर रहे थे।
बाद में मैंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह उनके साथ मिल गई। फाइव स्टार होटलों में खाना-पीना और मौज-मस्ती मारना मेरी कमजोरी बन गई। शराब पीने की तो मैं बुरी तरह आदी हो गई थी। दीदी या उनके पति कभी-कभी दिन में ही किसी ग्राहक को घर ले आते और मुझे उसकी फरमाइश पर दिन में भी पीनी पड़ती। मेरा बैंक-बैलेंस तेजी से बढ़ रहा था और मैं नई दुनिया में दाखिल हो चुकी थी।
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।