सविता भाभी की प्यास Kamvasna Desi Kahani
लेकिन जब हर रात ही ऐसा होने लगा तो उसका पति राहुल उसकी शैय्या पर आता….उसे चूमता….सहलाता….प्यार करता, पर अभी वह पूरी तरह से उत्तेजित भी न हो पाती कि बरस कर वह निढाल पड़ जाता।
इस कारण जिस्म की आग में सुलगती सविता मन-ही-मन बुद-बुदाने लगती, ”हे भगवान! मैं कैसे नामर्द के पल्ले बंध गई…? इसके साथ इस तरह से शेष जीवन किस प्रकार कट सकेगा?“
विवाह के कई माह तक यही सिलसिला चलता रहा। धीरे-धीरे सविता को अपनेे नामर्द पति से नफरत हो गयी। अपने जिस्म की भभकती आग को ठंडा करने के लिए वह कोई विकल्प तलाशने लगी। इसी बीच उसकी मुलाकात पड़ोस में रहने वाले रितेश से हुई।
रितेश दूसरे शहर में रहकर पढ़ाई करता था। इन दिनों वह घर आया हुआ था। रितेश, सविता को भाभी कहा करता था। वह जब भी राहुल के घर आता हंसी-मजाक के बहाने सविता से छेड़-छाड़ कर देता था। सविता उसकी छेड़-छाड़ का विरोध करने के बजाये उसे और भी प्रोत्साहन देती थी।
धीरे-धीरे रितेश का हौसला बढ़ता गया। एक दिन मौका देखकर उसने सविता को अपनी आगोश में लेकर उसके सेब जैसे लाल कपोलों पर अपने प्यार की मुहर लगा दी, तो सविता खुद-ब-खुद उसकी बांहों में झूल गयी।
राहुल का हौसला बढ़ा और उसके हाथ फिसलते-फिसलते सविता के नाजुक अंगों पर फिसलने लगे। सविता भी बहकने लगी…
”बहुत प्यासी हूं मैं रितेश।“ सविता कामेच्छा के वशीभूत होकर आंखों मुंदते हुए बोली, ”ऐसी प्यासी जो जिसके पास पूरा समुन्द्र है, मगर फिर भी प्यास अधूरी है।“
”ऐसा क्यों सविता भाभी?“ सबकुछ जानते व समझते हुए भी अनजान बनकर पूछा रितेश ने, ”भइया के पास तो पूरा समुन्द्र है, फिर क्यों प्यासी…?“
”नाम मत लो उस नामर्द का मेरे सामने।“ बीच में ही रितेश की बात काटते हुए बोली सविता, ”अरे समुन्द्र तो छोड़ो उनके प्यार के ‘नल’ में एक बंूद भी पानी नहीं है। हिंजड़ा कहीं का… ‘रोटी’ पकड़ता नहीं, कि पेट भर जाता है उसका।“
”इसीलिए मेरी बांहों में हो तुम।“ इस बार सविता भाभी के वस्त्रों के अंदर उसके कोमल कबूतरों को मसलते हुए बोला रितेेश, ”वैसे चिंता न करो जानेमन। मेरे ‘नल’ में इतना पानी है कि तुम्हारी सूखी ‘गगरिया’ लबालब भर जायेगी।“
”ओह रितेश, तुम्हारी ऐसी बातें मुझे अंदर ही अंदर पिघलाने लगी हैं।“ वासना में अपने अंगों को पर हाथ फेरते हुए बोली सविता, ”आज अपने ‘नल’ से मेरी ‘गगरिया’ को धन्य कर दो रितेश।“ वह रितेश की आंखों में झांक कर बोली, ”करोगे न?“
”बिल्कुल जानेमन।“ एक गहरा चुम्मा लेकर बोला रितेश, ”मेरा ‘नल’ एक बार तुम्हारी ‘गगरिया’ में उतर गया तो देखना, वहां जाते ही मेरा ‘नल’, हैंडपम्प का काम करेगा और तुम्हारी सुखी ‘गगरिया’ को गली गहरी ‘खाई’ में तब्दील कर देगा।“
”ओह…रितेश अब खाली बातों से न दिल बहलाओ मेरा।“ रितेश से बुरी तरह लिपटते हुए बोली सविता, ”इस अधूरी प्यास को आज पूरी कर दो। अपनी सविता को इतना प्यार दो कि बस आज सारी शिकायत तन की दूर हो जाये।“
”पहले जरा अपनी ‘गगरिया’ के दर्शन तो करवा दो मेरी जान।“ सविता की गगरिया को वस्त्रों के ऊपर से ही टटोलते हुए बोला रितेश, ”मैं तो देखूं कि कितनी गहराई है गगरिया में?“
”चलो जाओ, अपने नल की लम्बाई नापो पहले, कि मेरी गगरिया में समा कर पानी कितना भर पायेगा?“ सविता भी बोली।
”हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या।“ एक कहावत कहता हुआ बोला रितेश, ”ये लो अभी तुम मेरे ‘नल’ के दर्शन कर लो। उसके बाद में तुम्हारी ‘गगरिया’ के दर्शन करूंगा।“
कहकर रितेश ने अपने तन से सभी वस्त्रा जुदा कर डाले और पूर्ण निर्वस्त्रा होकर इशारा करता हुआ बोला, ”ये देखो जानेमन हमारा ‘नल’। है न बड़ा लाजवाब?“
”अभी रहने दो जानू।“ सविता भी पीछे कहां रहने वाली थी, अतः वह भी बिंदास होकर अपने वस्त्रा हटा कर बोली, ”पहले मेरी गगरिया तो देख लो, अब बताओ किसमें है कितना दम?“
सविता की कोमल गुलाबी ‘गगरिया’ देखकर रितेश का ‘नल’ हल्का-हल्का पानी छोड़ने लगा। फिर वह बोला, ”कहने सुनने से क्या होता है।“ वह होंठों पर जीभ फिराता हुआ बोला, ”अभी आजमा लेते हैं दोनों एक-दूसरे को।“
”ओके डन!“ सविता भाभी बोली।
”डन डना डन डन!“ रितेश भी मस्ती में अपने ‘नल’ को टटोलते हुए बोला।
फिर दोनों बिस्तर पर पहुंच गये और एक-दूसरे के अंगों को छूने व मौखिक प्यार देेने लगे। इसी प्रक्रिया में जब रितेश ने सविता की गगरिया को पहले मौखिक दुलार दिया, तो वह गहरी सांसे लेकर सीत्कार कर उठी, ”स..हूम…ओह…बस करो, मत करो ऐसा।“
”क्यों जानेमन, अच्छा नहीं लग रहा?“ रितेश ने पूछा।
”ओह…उम…।“ आंखें मुंदते हुए बोली सविता, ”नहीं…रितेश..ओह…बहुत अच्छा लग रहा है।“
”फिर क्यों ऐसा कह रही हो?“
”डर लगता है।“
”किस बात का डर जानेमन?“
”कहीं इसी मौखिक दुलार में पहले ही मेरी गगरिया न भर जाये।“ फिर मुस्करा बोली, ”फिर तुम्हारे ‘नल’ का क्या होगा?“ वह आगे बोली, ”वैसे भी मुझे ऐसे ही प्यास शांत करनी होती, तो ‘एक अंगुलि कहीं भी फिसली’ वाली कहावती ही बहुत थी मेरे लिए।“ वह रितेश के होंठों को चूमते हुए बोली, ”मुझे तो तुम्हारे ‘नल’ के नीचे अपनी ‘गगरिया’ भरकर तृप्त होना है।“
”सच जानेमन।“ रितेश भी सविता के गुलाबी होंठों का प्रगाढ़ चुम्मा लेकर बोला, ”मैं भी खुश हुआ और मेरा ‘नल’ भी।“
”अब जरा मेरी गगरिया को भी खुश करो न।“ सविता, रितेश को अपने ऊपर खींचते हुए बोली, ”अपना नल चालू करो और भरो मेरी गगरिया को।“
फिर क्या था, जैसे ही रितेश ने अपना नल चालू किया, तो सविता की गगरिया चरमराने लगी। वह तड़प कर बोली, ”हाय रे मेरे जालिम सैंया। जरा हौले से पानी भरो, कहां मेरी गगरिया फूट न जाये।“
”नहीं मेरी जान। तुम्हारी गगरिया जब तक पूरी नहीं भर जाती, मेरा नल तुम्हारी गगरिया को प्यार से हैंडल करेगा।“
उसके बाद तो वाकई रितेश के नल ने ऐसी गगरिया भरी, कि आखिर में सविता की ‘गगरिया’ का पानी बाहर भी छलक आया और रितेश के प्यार की टंकी भी पूरी खाली हो गई। उसका ‘नल’ भी अब बंूद-बूंद कर टपकने लगा था। दोनों ही एक-दूसरे से पूर्ण संतुष्ट हो गये थे।
”आई लव यू रितेश।“ अपने ऊपर गिरे हुए रितेश के होंठों को चूमते हुए बोली सविता, ”तुमन आज मेरी जन्मों की प्यास बुझा दी है। तुमने मेरे मन, खासकर तन को जो आज प्यार और सुकून दिया, वह मुझे मेरे पति से आज तक नहीं मिला और न ही मिल पायेगा, क्योंकि ये सविता अब सदा के लिए तुम्हारी हुई।“
एक बार रितेश से सविता का संबंध बना, तो सविता उसकी ही होकर रह गयी और जब भी मौका मिलता, दोनों अपनी वासना की पूर्ति कर लेते थे।
वक्त गुजरता रहा। वक्त के साथ ही जितना रितेश, सविता के जिस्म की आग बुझाता, वह उतना ही धधकने लगती। अब तो रितेश से एक क्षण की जुदाई भी सविता से बर्दाश्त नहीं होती थी। कुछ यही हाल रितेश का था।
एक दिन वासनापूर्ति के क्षणों में रितेश, सविता से बोला, ”सविता, तुम्हारी आगोश में मुझे जितना चैन मिलता है, उतना और कहीं नहीं मिलता। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जायें?“
”हां क्यों नहीं हो सकता?“ कुछ देर चुप रहने के बाद सविता पुनः बोली, ”पर ऐसा होना तभी मुमकिन है, जब तुम्हारे अंदर भी कुछ कर गुजरने का हौसला हो।“
सविता की बात सुन रितेश तैश में आकर बोला, ”तुम मेरी मर्दानगी को ललकार रही हो? बताओ कौन-सा काम है, जो तुम मुझसे करना चाहती हो?“
”मैं चाहती हूं, तुम मुझे इस नामर्द पति से छुटकारा दिला दो। बोलो, कर सकोगे तुम मेरी खातिर उसका खून…?“
”क्यों नहीं… तुम्हारे लिए तो एक नहीं, मैं कई-कई खून कर सकता हूं।“
”कह तो यूं रहे हो, जैसे यह काम चींटी मसलने जैसा हो। मुझे सोच-समझ कर जवाब दो। तुमसे नहीं होगा तो मैं ये काम किसी और से कराने की कोशिश करूंगी। आखिर पूरी जिन्दगी तो मैं उस हिंजड़े के साथ नहीं बिता सकती न।“
”मुझ पर यकीन करो रानी… मैं ये काम जरूर कर दूंगा। लेकिन सोच-समझ कर और उचित मौका देखकर ही काम करूंगा, जिससे फंसने का चान्स न हो।“ कहकर रितेश, सविता के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करने लगा और उस पर बुरी तरह से छाता चला गया। फिर तो कमरे में सविता की मादक सिसकारियां गूंजने लगीं।
इसे राहुल का सौभाग्य ही समझो कि जब वे दोनों उसकी अनुपस्थिति में उसे मारने का षडयंत्रा रच रहे थे, तो ठीक उसी समय वह वहां पहुंच चुका था। उसने छुपकर उन दोनों की सभी बातें सुन ली थीं।
उसे अपनी पत्नी की बेवफाई पर बहुत क्रोध आया। वह उसी समय उन दोनों को खत्म कर देना चाहता था, किन्तु स्वयं उसमें भी कमी थी। समाज में बदनामी होने का डर था, इसलिए वह अपना गुस्सा पीकर बुदबुदाने लगा, ”बदकार औरत… तू अपने इस यार के साथ मिलकर मुझे मारने का षडयंत्रा रच रही है। अब देखना मैं तेरी और तेरे इस यार की कैसी गत बनाता हूं?“
राहुल ने तुरन्त ही अपनी योजना बना डाली। फिर एक रात को सोने से पहले उसने सविता से छिपाकर उसके दूध में बेहोशी की दवा मिला दी।
फिर जब उसकी पत्नी को नींद ने घेर लिया, तो उसे अपने बिस्तर पर लिटा कर और चादर से उसका पूरा बदन ढक कर बाहर निकल कर बुदबुदाने लगा, ”आज रात किसी भी वक्त इस बेवफा औरत का प्रेमी मुझे मारने आयेगा। अंधेरे में वह यही समझेगा कि बिस्तर पर मैं ही सोया हूं। वह उस पर हमला करेगा और मैं शोर मचा कर उसे रंगे हाथों एकदम पकड़वा दूंगा।“
सब कुछ राहुल के सोचे अनुसार ही हुआ। अंधेरे में रितेश यह न समझ सका कि बिस्तर पर सोया हुआ व्यक्ति कौन है? और पूरी ताकत से तीन चार वार चाकू के उस पर कर दिए।
तभी राहुल ने शोर मचा कर रितेश को पकड़वा दिया। आखिरकार मुकदमा चला और रितेश, सविता का कातिल सिद्ध हो गया और उसे आजीवन कारावास की सजा हो गयी।
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।