हसीन काॅलगर्ल XXX Desi Kahani
इस पर एक अन्य युवक सामने आया तथा युवती के कलात्क बदन को सर से पांव तक निहारते हुए बोला, ‘‘कहां से शुरू करूं? चांदनी की चकोरी में हर जगह चांद ही नज़र आता है। ईश्वर ने जरूर तुम्हें फुर्सत में बनाया होगा, वरना ऐसी चकोरी की छाया तक नसीब वालों को ही मयस्सर होती है….।’’
उस समय युवती फुटबाॅल की तरह तीन-तीन युवकों के साथ उछल रही थी, तभी पुलिस वहां पहुंच गयी। पुलिस ने युवती समेत चारों को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ के दौरान युवती ने अपना नाम मीनाक्षी उर्फ मीनू बताया। मीनू मुंबई में बार डांसर थी। वह दिल्ली घूमने आयी थी। जिस होटल में वह रह रही थी, वहीं तीन युवकों के साथ उसका परिचय हुआ। तीनों लड़के मीनू के साथ सेक्स करना चाहते थे। सौदा हुआ 40 हजार रुपए हमें। उसके बाद मीनू पूर्व निर्धारित योजना के तहत युवकों को कार में सेक्स सुख बांट रही थी, तभी बीच में पुलिस ने आकर उनके सुख में खलल डाल दिया।
तीनों लड़के दिल्ली के उद्योगपति के पुत्रा हैं। सुरा व सुंदरी का सेवन उनके शौक हैं।
मीनाक्षी मूल रूप से मेरठ(उ.प्र.) की रहने वाली थी। उसका एक भाई है। वह इंटर तक पढ़ी थी। उसके पिता शिक्षा-विभाग में थे। बचपन से ही खूबसूरत मीनू ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा, तो उसकी सुंदरता में चार चांद लग गए। उसी समय उसे ख्याल आया कि वह चाहे तो हीरोइन बन सकती है। इसी चाहत में वह दो वर्ष पूर्व घर से भाग कर मुंबई जा पहुंची। वहां उसकी बुआ का लड़का सौरव रहता था। वह सौरव के पास रहने लगी।
सौरव के पास रहकर मीनू ने फिल्मों में रोल पाने के लिए हाथ-पांव चलाने शुरू कर दिए। सौरव का कोई परिचित एक फिल्म कम्पनी में कैमरामेन का असिस्टैंट था। सौरव ने मीनू का परिचय उस व्यक्ति से करवाया। असिस्टैंट, जिसका नाम देवेश था, ने मीनू को स्टूडियो में स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया। देवेश ने कैमरे के सामने मीनू के सारे कपड़े उतरवा दिए। उसके बदन पर हाथ फेरकर कहा, ‘‘तुम बहुत खूबसूरत हो। मैं तुम्हें चांस जरूर दूंगा। बशर्ते तुम मुझे अपना तन सौंप दो।’’
मीनू ने हीरोइन बनने की बेकरारी में देवेश को अपना तन सौंप दिया। देवेश ने मीनू को खूब मसला, खूब भोगा। मीनू सब बर्दाश्त करती रही, इस उम्मीद में कि वह फिल्मों में हीरोइन बन जाएगी। मगर ऐसा हो नहीं सका। देवेश के फरेब ने मीनू को खूब छला और फिर उसे ठंेगा दिखा दिया।
देवेश द्वारा छले जाने से मीनू बुरी तरह टूट गयी थी।
देवेश ने उसे यह कहकर टाल दिया कि, ‘‘उसकी हाइट कम है, हीरोइन बनने का कोई चांस नहीं है।’’
फिर उसने घर लौटना चाहा, मगर परिजनों की बेरूखी ने उसे वापस लौटने पर विवश कर दिया। फिर सौरव ने उसे रंगीली बार में डांसर बनवा दिया। शुरू में तो उसे सब कुछ बहुत अजीब-सा लगा, मगर जीने के लिए कुछ तो करना ही था। धीरे-धीरे वह बदनामी की उन अंधेरी गलियों में खो गयी, जहां से लौटना आसान नहीं था।
हीरोइन बनने की चाहत मीनाक्षी को मुंबई की बदनाम और अंधेरी गलियों में ले गयी। बार डांसर से जिन्दगी की शुरूआत करने वाली मीनाक्षी को जिस्मफरोशी से भी परहेज नहीं है। वह अपना भला-बुरा समझती है। बताती है कि वह जिस रास्ते पर चल पड़ी है, वहां से लौटना मुमकिन नहीं है। दिन के उजाले में शराफत की बात करने वाले लोग उसे कबूल नहीं करेंगे। भले ही वह खुद रात के अंधेरों में कुछ भी करते हों, उनकी नज़रों में वह सिर्फ एक धंधे वाली है। यह सब उसने मर्जी से नहीं चुना था। वह कहती है, आज मैं काॅलगर्ल हूं, क्योंकि वक्त ने उसे इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है।
उसने बताया कि बदनामी के डर से मां-बाप ने शहर छोड़ दिया। वे हाथरस(उ.प्र.) में बस गए। उसकी चिंता में पिता को बीमारी ने जकड़ लिया। उसकी याद में वे अंदर ही अंदर घुटते गए। उनकी मौत पर वह पहली बार घर आई। मां व भाई से मिली। उन्होंने रूकने को नहीं कहा, तो वापस मंुबई लौट आई। बीच-बीच में घर आती-जाती रहती थी। मां को उसके काम के बारे में पता था।
उस रोज वह मुंबई से दिल्ली आयी थी। होटल में थी, तो युवकों ने उसे रोक लिया। वे उसे और उसके काम के बारे में पहले से जानते थे। वह उसके साथ कार में बैठ ही रही थी कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया।
मीनाक्षी ने कहा कि मुंबई में रात्रि 11 बजे से सुबह 5 बजे तक उसे बार में डांस करना पड़ता है। हर एक डांसर का मनपसंद ग्राहक से काॅन्टैक्ट रहता है। वर्तमान में उसका भी एक सेठ से ढाई लाख रुपए का काॅन्ट्रैक्ट है। उसकी मर्जी है। वह चाहेगी, तो वह समझौता जारी रहेगा नहीं तो तीन माह बाद टूट जायेगा।
जब मीनाक्षी को पकड़ कर थाने लाया गया, तो उसके पर्स में 8 हजार रुपए थे। सभी नोट पांच-पांच सौ के थे। चेकिंग के दौरान किसी सिपाही ने उसके पर्स से रुपए निकाल लिए। दोपहर को जमानत के बाद वह वापस लौटने लगी, तो इंस्पेक्टर एन.के. यादव से उसने पर्स का जिक्र किया। इंस्पेक्टर के कहने पर गाड़ी रोककर पर्स निकाला गया। पर्स खाली था और सीट के नीचे पड़ा था। इंस्पेक्टर ने थाने में तैनात सभी सिपाहियों को जमकर लताड़ा, मगर किसी ने यह कबूल नहीं किया कि उसने पैसे निकाले थे। बिना पैसे के ही मीनाक्षी को मुंबई जाना पड़ा। हां, इंस्पेक्टर ने उसे आश्वासन दिया कि आरोपी सिपाही ने पैसे वापस नहीं किए, तो वह अपने पास से पैसे वापस करेंगे।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र होगा।