तू बस बिस्तर का पार्टनर Chudai Kamukta Kahani
प्रदीप ने पुलिस को बताया कि उसने आखिरी बार अपनी प्रेमिका को मिलने को मजबूर किया। लेकिन रेनू अपने साथ जब शकुन्तला को भी ले आई, तो उसका गुस्सा और भी भड़क गया। रेनू सक्सेना जिसे वह प्यार करता था, दूसरे मर्दों के साथ भी संबंध रखती थी। यह जानकर वह भड़क उठा था और उसने तय कर लिया, कि वह अपनी धोखेबाज प्रेमिका को सबक सिखायेगा।
वह दोनों को फतेहपुर सीकरी के होटल में ले आया, जहां कमरा नं 4 उसने बुक कराया और गन्ने के रस में नशे की गोलियां मिलाकर दोनों को बेहोश कर उनके साथ शारीरिक संबंध बनाये। फिर बेहोश औरतों के गले चाकू से रेत दिए। इसके बाद वह चाकू वहीं फेंक कर वहां से निकल गया।
प्रदीप को विश्वास था, कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती, क्योंकि होटल में उससे कोई आई.डी. प्रूफ नहीं मांगा गया था। वह तो केवल रेनू को बेवफाई का सबक सिखाना चाहता था। शकुन्तला तो बेवजह मारी गई थी।
प्रदीप को पुलिस ने मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया। मजिस्ट्रेट के आदेश से उसे जेल भेज दिया गया।
प्रदीप कत्ल के बाद लाशों को होटल में छोड़कर फरार हो गया, तो लाशें फिर भरतपुर बाॅर्डर पर कैसे पहुंची, यह कहानी धीरे-धीरे पुलिस के सामने साफ हो रही थी।
पुलिस को पता चला कि अशोक शर्मा पुत्र हरिशंकर शर्मा की मारूति गाड़ी में महिलाओं के शव ले जाये गए थे तब पुलिस ने अशोक शर्मा को हिरासत में ले लिया। अशोक शर्मा ने कहा कि उसे तो हत्या के बारे में कुछ भी नहीं मालूम। दिनेश गर्ग परिवार सहित शादी में जाने का बहाना बनाकर उसकी गाड़ी मांग कर ले गया था। उसे नहीं मालूम था, कि रात में गाड़ी में लाशे ढोई गई थीं और फिर गाड़ी को धोकर उसे वापिस कर दिया गया था।
पुलिस ने होटल का ताला तोड़कर छापा मारा, तो पता चला कि होटल की धुलाई कर दी गई थी। पुलिस अपने साथ डाॅग स्कवायड भी ले गई थी। धुलाई के बावजूद पुलिस को दीवारों पर खून के धब्बे दिखाई दिए तथा पलंग के गद्दों पर भी खून के निशान मिले तथा खून सने बाल भी मिले।
होटल के रजिस्टर बदल दिए गए थे। प्रदीप की आई.डी. प्रूफ लिए बिना उसे 800 रुपए पर कमरा दे दिया गया था। वह 12 बज होटल में आया और 3 बजे दो-दो हत्याएं करके होटल से निकल गया।
दिनेश गर्ग ने अपने होटल को बदनामी से बचाने के लिए अपना दिमाग लड़ाया और लाशों को अपनी मैक्स गाड़ी में न लेजाकर, दोस्त की मारूति गाड़ी में अपने मैनेजर राजेन्द्र सिंह के साथ भरतपुर की सीमा पर फेंकना चाहा। मगर रात के अंधेरे में सीमा का पता नहीं चल पाया और लाशों के बोरे आगरा की सीमा में ही डाल दिए गए। फिर वो दोनों परिवार सहित भाग खड़े हुए।
लेकिन होटल में ताले लगाने के कारण दिनेश गर्ग की स्थिति संदिग्ध हो गई। वह अपने मैनेजर के साथ कई दिन तक भागता रहा। पर आखिर पुलिस के लंबे हाथ उस तक पहुंच ही गए। इस बीच थाने में नये एस.ओ. अवधेश कुमार तैनात हो गए।
सभी आरोपीजन जेल चले गए थे। साथ ही तीन घर भी बर्बाद हो गए थे।
पुलिस सूत्रों और प्राप्त तथ्यों से पता चलता है, कि अवैध रिश्तों में बेवफाई आने के कारण यह दोहरा मर्डर हुआ था।
कहानी शुरू होती है आगरा के थाना रकाब गंज के अन्तर्गत आने वाले मोहनपुरा मोहल्ले से, जहां प्रमोद सक्सेना अपनी पत्नी रेनू सक्सेना, भाई अमित सक्सेना और तीन बच्चों के साथ रहता था।
कुछ समय पहले प्रदीप, जोकि आगरा काॅलेज बी.टेक का छात्र था, किराये के कमरे में रहने आ गया। प्रदीप एक व्यवहार कुशल लड़का था। बहुत जल्द ही उसने अपने पड़ोसियों के साथ मधुर संबंध बना लिए।
उसका रेनू सक्सेना के घर पर भी आना-जाना था। रेनू, सिकन्दरा की एक शू फैक्ट्री में काम करती थी।
प्रमोद सक्सेना के घर आते-जाते प्रदीप को पता चल गया था, कि प्रमोद की नौकरी छूट गई थी और वह आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था। प्रदीप, प्रमोद के प्रति सहानुभूति दिखाता, तो प्रमोद को लगता, कि प्रदीप उनके ज्यादा करीब है।
इस सहानुभूति की आड़ में प्रदीप धीरे-धीरे रेनू के भी नजदीक आता जा रहा था। एक दिन रेनू ने प्रदीप से कहा कि वह उसके बच्चों को पढ़ा दिया करे। रेनू के और करीब आने का यह अच्छा बहाना था। अतः वह उसके बच्चों को फ्री की ट्यूशन देने लगा।
कभी-कभी रेनू पास में बैठ जाती और अपनी फूटी किस्मत का रोना रोने लगती। वह प्रदीप को कभी-कभी खाने पर बुलवा लेती थी। कभी-कभी वह शाॅपिंग करने के लिए भी साथ-साथ जाते और पेमेन्ट भी प्रदीप कर देता था।
फिर अचानक प्रदीप को लगने लगा, कि उसे रेनू से प्यार हो गया है। लेकिन रेनू शादीशुदा थी, जिस कारण प्रमोद उसके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा था। अतः रेनू का सामीप्य पाने के लिए प्रमोद को पटरी पर लाना जरूरी था। इसी वजह से उसने प्रमोद से कह दिया, ‘‘प्रमोद तुम फिक्र न करो। मैं जल्द ही तुम्हारी नौकरी किसी अच्छी फर्म में लगा दूंगा।’’
प्रदीप के इरादों से बेखर प्रमोद भी उससे खुश था। इधर प्रदीप ने रेनू को अपनी मुट्ठी में कर लिया और उसके साथ नाजायज़ संबंध बना लिए। उस रोज भी रेनू, प्रदीप को दिल खोलकर अपना यौवन सौंप रही थी। दोनों कमरे में अकेले थे, जिसका फायदा दोनों ने जमकर उठाया।
दोनों ही बेड पर एकदम आदमजात अवस्था में यानी निर्वस्त्र थे।
‘‘ओह! प्रदीप तुम युवा हो, जवां और गठीले हो।’’ वह अपने ऊपर झुके प्रदीप को कसकर अपनी बांहों मंे भींचते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे साथ तो प्यार का खेल खेलन में मजा ही आ जाता है।’’ वह मादक सीत्कार भरते हुए बोली, ‘‘स… आह… बड़े ही प्यार व मस्ती से चलते हो तुम मेरी ‘देह’ में।’’ वह उसके होंठों को चूमते हुए बोली ‘‘कमस से मजा ही आ जाता है।’’
‘‘तुम्हारी इन्हीं अदाओं पर तो मैं मर-मिटा हू जानेमन।’’ प्रदीप भी रेनू के गोरे निर्वस्त्रा गदराये को बदन को सहलाते हुए बोला, ‘‘जितना हसीन तुम्हारा बदन है, उससे कहीं अधिक तुम्हारी बातों में नशा और मादकता है।’’
कहकर उसने रेनू के दोनों कबूतरों को अपने मुंह में भर लिया और उनकी चांेंचों को पुचकारने लगा।
‘‘उम…. उफ! अब और सब्र नहीं होता मेरे प्यारे।’’ प्रदीप के ‘चाबुक’ को अपने हाथों से टटोलते हुए बोली रेनू, ‘‘अब अपने चाबुक से मेरी ‘देह’ पर इतनी चोट करो, कि पूरी ‘देह’ लाल हो जाए।’’ वह मुस्कराते हुए हौले से प्रदीप के कान के पास फुसफुसाते हुए बोली, जब तक मेरी ‘देह’ से सफेद खून नहीं बह जाता, तब तक अपने चाबूक का वार चालू रखना मेरे सनम।’’
‘‘क्यों चिंता करती हो रानी।’’ रेनू की ‘चाबुक’ का वार सहने करने वाली ‘वस्तु’ पर हाथ रखकर बोला प्रदीप, ‘‘इसे तो बड़े प्यार से चाबुक मारूंगा।’’ वह होंठों पर जीभ फिराता हुआ बोला, ‘‘देखो तो कितनी प्यारी है। यह पहले से ही मारे शर्म के लाल टमाटर हुई जा रही है। जब मेरी चाबुक का वार सहेगी, तो जाने क्या हाल होगा इसका।’’
‘‘अब इसे लाल करो या काला।’’ बेतहाशा प्रदीप से लिपट कर सीत्कार भरते हुए बोली रेनू, ‘‘स… उम… ये तो तुम्हारी चाबुक पर निर्भर करता है।’’ वह प्रदीप को अपने ऊपर कसकर लिपटाते हुए बोली, ‘‘अब चलाओ न चाबुक।’’
फिर पोजिशन लेकर प्रदीप ने जैसे ही अपना चाबुक का पहला वार रेनू की खास ‘वस्तु’ पर किया, वह एकदम से चिहंुक उठी, ‘‘आह!’’ वह मचल कर बोली, ‘‘काफी अंदर तक वार किया है।’’ वह हौले से मुस्कराई, ‘‘मगर वार काफी आनंददायक है।’’ वह हौले से बोली, ‘‘अब लगातार अपने चाबुक का वार करते रहो, ताकि मजा ही आ जाए।’’
फिर तो प्रदीप ने अपने जिस्म के इतने चाबुक बरसाये, कि रेनू का अंग-अंग पस्त हो गया। वह प्रदीप के काठोर ‘चाबुक’ की प्रशंसा करती रही, जब-जब प्रदीप उस पर वार करता रहा।
‘‘हाय! क्या हंटर चलाते हो।’’ मादक आंहें भरते हुए बोली रेनू, ‘‘एक-एक वार मेरी ‘देह’ को घायल कर जा रहा है। हाय! उफ!.. शबाश मेरे जानू… लगे रहो….। ओह! रूकना नहीं।’’
फिर कुछ ही देर में दोनों बिस्तर पर निढाल हो गए। दोनों ही पूर्ण रूप से निर्वस्त्र हो गए थे। बिस्तर पर हम-बिस्तर होते हुए, जहां रेनू पूरी तरह पस्त हो जाती थी, वहीं रेनू के जिस्म का स्वाद प्रदीप की नस-नस में समा गया था। वह धीरे-धीरे रेनू को इतना दीवाना हो गया, कि वह तीन बच्चों की मां के साथ अपनी अलग दुनियां बसाने की सोचने लगा।
प्रदीप का खुराफाती दिमाग तेजी से काम कर रहा था। लेकिर यह डर उसके दिल में बना हुआ था, कि कहीं रेनू उससे दूर न चली जाए। अतः उसने एक दिन बहाने से एक स्टाम्प पेपर पर प्रमोद के दस्तखत भी बनवा लिए और फिर बाद में उस पेपर पर रेनू और प्रमोद का तलाक नामा टाईप करा लिया।
रेनू ने बेशक प्रदीप से संबंध बना लिए थे, मगर प्रदीप के साथ स्थाई संबंध बनाने का उसका कोई इरादा नहीं था।
जबसे प्रमोद की नौकरी छूटी थी, घर चलाना मुश्किल हो गया था। यह बात रेनू ने बोदला निवासी शकुन्तला पत्नी राजकुमार को भी बताई, जो उसी के साथ काम भी करती थी और उसकी पक्की सहेली भी थी।
शकुन्तला ने रेनू को पैसा कमाने का एक शाॅर्टकट बताया और कहा, ‘‘मर्द बहुत जल्दी औरत के हुस्न के जाल में फंस जाते हैं। थोड़े से प्यार के बदले एक औरत मर्द से ढेर सार पैसा कमा सकती है और ऐश से जी सकती है।’’
प्रदीप क्योंकि एक छात्रा था और मामूली से परिवार का सदस्य था, अतः रेनू की खुलकर मदद नहीं कर पाता था। लेकिन वह रेनू के साथ स्थाई रूप से रहने के सपने जरूर देखता, जिसके लिए वह रेनू को अपने साथ भगा कर ले जाना चाहता था।
इस मामले में उसने रेनू से बात भी की, लेकिन रेनू उसकी बात को महत्व नहीं देती थी। एक दिन प्रदीप ने उसे साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और तुमसे शादी करके तुम्हारे साथ अपनी एक अलग दुनियां बसाना चाहता हूं।’’
सुनकर रेनू भौंचक्की रह गई वह बोली, ‘‘ये तुम क्या कह रहे हो प्रदीप? ऐसा नहीं हो सकता।’’ उसने स्पष्ट किया, ‘‘बेशक मैं तुम्हें अपना जिस्म सौंप देती हूं, मगर प्यार के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा। तुम मुझे अच्छे लगते हो, बिस्तर पर तुम्हारा साथ मुझे और भी अच्छा लगता है, बस इसीलिए तुमसे लगाव है। मगर ये प्यार शादी वगैरह की बातें सोचना मूर्खता होगी।’’
‘‘ऐसा मत कहो।’’ प्रदीप तड़प कर बोला, ‘‘मेरी जिन्दगी बन चुकी हो तुम। तुम्हारे बिना मैं जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता।’’ वह दीवानों की तरह बोला, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो और मैं तुम्हारा। मेरा हाथ थाम लो, मैं वायदा करता हूं आजीवन तुम्हारा साथ निभाऊंगा। तुम्हारी हर जरूरतों का पूरा करूंगा।’’ वह उसकी आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘बस तुम मेरे साथ भाग चलो।’’
‘‘देखो प्रदीप!’’ उसे समझाने का प्रयास करती हुई बोली रेनू, ‘‘मानती हूं, कि तुम मुझसे प्यार करने लगे हो और इस उम्र में ऐसा होना स्वाभाविक है। मगर तुम्हारे साथ नहीं चल सकती।’’
‘‘प्लीज़ मेरा दिल मत तोड़ो।’’ प्रदीप तो जैसे पागल ही हो चुका था रेनू के प्यार में, ‘‘वह रेनू की नर्म कोमल कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘बहुत चाहता हूं तुम्हें। रानी बनाकर रखूंगा तुम्हें अपने दिल की। तुम बस एक बार मेरी हो जाओ।’’ वह कुछ कागज दिखाते हुए बोला, ‘‘ये देखो, मैंने तो तुम्हारे पति से तलाकनामे पर भी दस्तखत करा लिए हैं।’’
यह सुनकर रेनू को लगा कि प्रदीप सचमुच पागल हो गया है। वह उससे अब पीछा छुड़ाना चाहती थी। वह धीरे-धीरे प्रदीप से किनारा करने लगी।
प्रेमिका की यह बेरूखी से प्रदीप को अच्छी नहीं लगी। फिर प्रदीप को पता चला, कि रेनू के पास कुछ और लोगों का भी आना-जाना है। जिनके साथ उसके अंतरंग संबंध भी स्थापित हैं। अब तो प्रदीप बेतरह तड़प उठा।
एक दिन प्रदीप ने रेनू से कहा, ‘‘तुम बाहरी अनजान लोगों से ज्यादा मत मिला करो। वह तुम्हारा फायदा भी उठा सकते हैं।’’
‘‘तो क्या हुआ?’’ रेनू बिंदास होकर बोली, ‘‘इसमें क्या गलत है?’’ फिर वह उसकी आंखों में देखकर बोली, ‘‘और तुमने क्या किया है?’’ वह उसकी नजदीक जाकर बोली, ‘‘तुमने भी तो फायदा ही उठाया है मेरा। मेरी थोड़ी-बहुत मदद करके मेरा सब कुछ ले लिया और आज तक ले रहे हो।’’
‘‘मगर मुझ में और औरों में अंतर है।’’ प्रदीप बोला।
‘‘ऐसा तुम्हें लगता है।’’ कुटिल मुस्कान लिए हुए बोली रेनू, ‘‘मगर मेरे भोले प्रीतम मुझे ऐसा कतई नहीं लगता।’’ फिर एकाएक गंभीर सख्त स्वर में बोली, ‘‘और अब आखिरी बार ध्यान से सुन लो।’’ वह जैसे अपना आखिरी फैसला सुनाते हुए बोला, ‘‘आईन्दा मैं तुमसे कोई भी वास्ता नहीं रखना चाहती। मुझसे दूर ही रहा करो, तो तुम्हारे और मेरे लिए अच्छा होगा।’’
सुनकर पहले पहल तो प्रदीप बुरी तरह कांप उठा। उसे अपने हाथों से खूबसूरत प्रेमिका जाते हुए नजर आने लगी। जिससे वह सिहर उठा। मगर दूसरे ही पल उसकी आंखें नफरत से जलने लगी। रेनू के प्रति उसके दिल में घृणा उत्पन्न हो गई। उसे लगा रेनू ने उसके साथ विश्वासघात किया है। उसके दिल को गहरी ठेस पहुंचाई है बेवफाई करके। उसने अब मन ही मन तय कर लिया, कि वह रेनू को उसकी बेवफाई का सबक सिखा कर ही रहेगा।
रेनू की बेरूखी उसे खा रही थी। पढ़ाई की तरफ से उसका ध्यान पूरी तरह से हट गया। अब एक ही बात थी दिमाग में उसके बदला, बदला और केवल बदला। इस बदले की भावना ने उसे पागल कर दिया था।
फिर एक दिन उसने तय कर लिया, कि वह रेनू को जाने से मार डालेगा। प्रेमिका जिसने उसे धोखा दिया था, दूसरे मर्दों के साथ हंस-हंस कर बातें करती थी। उसने तो उसका फोन तक अटैण्ड करना छोड़ दिया था। प्रदीप किसी भी हाल में उसे घर से बाहर लेजाकर उसका काम-तमाम कर देना चाहता था। उसका जुनून उसके सिर चढ़कर बोल रहा था।
अब वह उसके रास्ते में खड़ा हो जाता और उससे मिलने की मिन्नतें करता। लेकिन हर बार रेनू मिलने से इंकार कर देती। मगर एक दिन उसने रेनू का हाथ बीच रास्ते में पकड़ लिया और कहा, ‘‘बस एक बार मैं तुमसे मिलना चाहता हूं। प्लीज़ मना मत करना।’’
रेनू ने सोचा वह आखिरी बार प्रदीप से मिलेगी और सारी बातें साफ कर लेगी। उसने कहा, ‘‘ठीक है, हम कल सुबह मिलते हैं।’’
रेनू को अब प्रदीप से डर लगने लगा था। अब वह अकेले उससे मिलना नहीं चाहती थी, अतः अगले दिन सुबह रेनू ने अपनी सहेली शकुन्तला को फोन करके अपने घर बुला लिया। शकुन्तला सुबह रेनू के घर आ गई, तो रेनू ने उसे सारी बात बता दी। शकुन्तला उसके साथ चलने को तैयार हो गई।
सुबह करीब नौ बजे दोनों काम के बहाने घर से निकलीं। बाहर आने पर प्रदीप उन्हें मिल गया। उसने एक आॅटो हायर किया और तीनों उसमें बैठ गए। शकुन्तला के आ जाने पर प्रदीप सुलग उठा। उसने कहा, ‘‘मैंने केवल तुम्हें आने के लिए कहा था।’’
‘‘हां, लेकिन शकुन्तला घर आ गई, तो मैं उसे भी साथ ले आई। वैसे भी शकुन्तला को सब कुछ मालूम ही है। उसके सामने ही सारी बातें कर लेंगे।’’
इसके बाद वे लोग बस स्टाॅप पर आ गए। फिर प्रदीप ने कहा, ‘‘आज हम आखिरी बार फतेहपुर सीकरी चल रहे हैं। ठीक है न?’’
रेनू फतेहपुर सीकरी नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि वो आगरा से लगभग 14 कि0मी0 की दूरी पर थी। लेकिन वह कोई उल्झन पैदा नहीं करना चाहती थी।
प्रदीप के हाथ में एक बैग था, जिसे देखकर रेनू ने पूछा, ‘‘ बैग मैं क्या है?’’
‘‘मेरे कपड़े हैं और कुछ नहीं।’’ हताश भरे स्वर में बोलने की कोशिश करता हुआ बोला प्रदीप, ‘‘तुम्हारी जिन्दगी से निकलने के बाद मैं भी यहां से कहीं दूर चला जाऊंगा।’’ फिर सामान्य होते हुए बोला, ‘‘खैर! छोड़ो, हम आखिरी बार मिल रहे हैं। हमें इन क्षणों को सेलीबे्रट करना चाहिए।’’
बातें करते-करते वे तीनों फतेहपुर सीकरी आ गए। आने वाली मुसीबत से रेनू और शकुन्तला बेखबर थीं। वे दोनों मौत की दस्तक को पहचान नहीं पाईं।
फतेहपुर सीकरी बस स्टाॅप पर उतरने के बाद प्रदीप उन्हें एक आॅटो में बैठाकर होटल सुमंगलम ले आया। इस होटल में उसने कमरा बुक कराया। यहां उससे आई.डी. प्रूफ भी नहीं मांगा गया। इसी का फायदा उठाकर उसने गलत नाम और गलत पता लिखा दिया। उस समय लगभग दोपहर के 12 बज रहे थे।
दोनों को कमरे में छोड़ कर वह बाहर गया और गन्ने का जूस ले आया। गन्ने के रस में उसने नशे की गोलियां मिला दीं और रस के दोनों गिलास रेनू और शकुन्तला के सामने रखते हुए कहा, ‘‘बहुत गर्मी है, गन्ने का जूस पी लो।’’
दोनों ने बिना कुछ सोचे-समझे गन्ने का जूस पी लिया। जूस पीने के बाद दोनों का सिर भारी होने लगा। इसके बाद प्रदीप ने इन दोनांे के साथ बारी-बारी दैहिक संबंध बनाये। इसके बाद बैग खोलकर उसमें से चाकू निकाला। फिर पहले रेनू का और बाद शकुन्तला का गला रेत दिया।
उसका ‘काम’ हो गया था। उसने इंतकाम ले लिया था। चारों ओर कमरे में खून ही खून था। चाकू को वहीं फेंक कर वह चुपचाप बाहर निकल गया।
अगले दिन सुबह होटल वालों को इस दोहरे हत्याकांड का पता चला, जब सफाईकर्मी ने कमरे का दरवाजा खोला।
होटल का मालिक दिनेश गर्ग डर गया। वह इन लाशों से छुटकारा चाहता था। उसने अपने एक परिचित सिपाही से बात की तो सिपाही ने सलाह दी कि रात में इन लाशों को भरतपुर सीमा पर डाल देना। पुलिस से बचने का यही रास्ता है।
दिनेश के पास अपनी मैक्स गाड़ी थी, लेकिन उसने अपने दोस्त अशोक शर्मा की मारूति गाड़ी मंगवा ली और उसी में लाश रखवाई गई। वह चैकसी के लिए अपने मैनेजर राजेन्द्र सिंह के साथ-साथ पीछे-पीछे अपनी मैक्स गाड़ी में था।
लेकिन रात के अंधेरे में गलती से उन्होंने जहां लाशें डालीं, वो जगह उत्तर प्रदेश में आती थी। चालाकी चलने के बाद भी पुलिस के लंबे हाथ उन तक पहुंच ही गए।
पकड़े गए आरोपी प्रदीप ने सारा भांडा फोड़ दिया। उसने बताया कि अपनी प्रेमिका रेनू और उसकी सहेली शकुन्तला का मर्डर उसी ने होटल सुमंगलम में किया था।
इधर प्रदीप के भाई सर्वेश को जब पता चला, कि प्रदीप ने दो-दो हत्यायें की हैं, तो उसने अपना सिर पीट लिया। सर्वेश ने पिता की मृत्यु के बाद छोटे भाई को अपने बेटे की तरह पाला था और उसे आगरा पढ़ने के लिए भेजा। यहां तक कि प्रदीप की पढ़ाई के लिए उसने बैंक से ढाई लाख रुपए लोन भी लिए थे।
मगर प्रदीप, आगरा में क्या गुल खिला रहा था, उसे नहीं मालूम था। और न ही उसे उसकी मोहब्बत का पता था, न ही नफरत का। सर्वेश ने टूटे दिल से बिखरे शब्दों में कहा, ‘‘मेरे तो सारे सपने ही टूट गए हैं। मैं बर्बाद हो गया हूं।’’
प्रदीप के जुनून ने तीन घरों को बर्बाद कर दिया है। घटना के लगभग 15 दिन बाद होटल का मालिक और मैनेजर भी गिरफ्तार कर लिए गए।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।