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जब सविता 19 साल की थी, तभी उसका ब्याह सुनील के साथ हो गया था। उस समय सुनील, सविता की उम्र का लगभग दुगना था। यह सुनील की खुशनसीबी थी, कि उसे सविता जैसी खूबसूरत, भरपूर, जवान व गोरी-चिट्टी बीवी मिली थी। वरना, उसे तो एक बूढ़ी औरत भी घास नहीं डालती। दरअसल सुनील की यह दूसरी शादी थी। पहली पत्नी का तलाक हो चुका था। सुनील की यह बदकिस्मती थी, कि उसके पास सब कुछ था, लेकिन सुंदर व मजबूत शरीर नहीं था। सुनील नशे का आदि व्यक्ति था। सविता ने सुनील से शादी उसकी दौलत के लालच में की थी।
बहरहाल, अब सुनील इस दुनिया में नहीं था। एक बीमारी में वह चल बसा था। सुनील के प्रति सविता का उतना लगाव, तो था नहीं कि उसके नहीं रहने पर वह रात-दिन आंसू बहाती रहती। अलबत्ता वह आजाद जरूर हो गयी थी।
भरी जवानी में कोई औरत विधवा हो जाए, तो इस दुख से बड़ा कोई दुख नहीं होता है। सविता अंदर ही अंदर तन की पीड़ा से छटपटा रही थी।
एक दिन की बात है। सविता के घर सविता के दूर के रिश्ते में फूफी उससे मिलने आयी, तो सविता ने अपनी फूफी का भरपूर स्वागत-सत्कार किया। सविता की फूफी सरोज कोई 18 साल की खूबसूरत व बिंदास युवती थी। वह कुछ दिनों के लिए सविता के पास रहने आयी थी। अब सविता का घर में मन लगने लगा। सविता व सरोज आपस में खूब गपशप करती रहती थीं। परस्पर हंसी व ठिठोली के बीच दिन कब कट जाता, कुछ पता ही नहीं चलता। एक रात, दोनों आपस में बात कर रही थीं, कि अचानक सविता ने कहा, ”सरोज औरत का सबसे बड़ा दुख क्या होता है?“
‘‘जब उसका पति उसके पास न रहे।’’ सरोज ने मजाक में सविता के गाल में चिकोटी काटते हुए कहा।
”तुमने ठीक कहा!“ सविता ने कहा, ‘‘अब मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यह पहाड़-सी जिंदगी कैसे काटूंगी?’’
‘‘इसमें चिंता की क्या बात है सविता?’’ सरोज ने कहा, ”जानती हो सबसे बड़ा दुख क्या होता है, जब इंसान के पास पैस न हो। तुम्हारे पास अल्लाह का दिया सब कुछ है। तुम चाहो तो जिन्दगी भर मजे ले सकती हो। पैसे से तो सब कुछ खरीदा जा सकता है!“
”क्या तन की भूख भी मिटायी जा सकती है?“ अचानक सविता के मुंह से निकल गया।
सरोज हंसी, फिर बोली, ”ओह, तो अब समझी तुम्हारी बात, पर तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें एक खेल बताती हूं कि अगर मर्द घर में नहीं रहे, तो औरत कैसे अपने तन की भूख मिटा सकती है? पर इसके लिए एक पार्टनर का होना जरूरी है।“
”पार्टनर…..कैसा पार्टनर?“
”वह तुम्हारी ही तरह कोई जवान व भूखी स्त्राी हो!“
”तो मैं तुम्हारा यह खेल खेलना चाहती हूं।“
अचानक सरोज ने सविता का हाथ पकड़ा और उसे बेडरूम में खींचते हुए ले आयी। उसने सविता को निर्वस्त्र होने के लिए कहा। कुछ देर में सविता निर्वस्त्र हो गई। उसके बदन पर भरपूर निगाह डालकर सरोज ने खुद को भी कपड़ों से मुक्त कर लिया। अब बंद कमरे में दोनों औरतें सर से पांव तक निर्वस्त्र थीं। दोनों फटी-फटी आंखों से एक-दूसरे के खुले, आजाद अंगों को निहारती जा रही थीं। कुछ देर में सरोज ने सविता कोे बेड पर गिरा लिया तथा ऊपर से उसके तन पर सवार हो गई। सविता की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। सरोज ने सविता के नाजुक अंग को बारी-बारी से मुख का स्पर्श देकर आनंद देना शुरू किया, साथ ही वह अपने हाथों की अंगुलियों से उसकी जांघों में हरकत करती जा रही थी। अचानक सविता के तन मंे हवस की आंधी उमड़ने लगी, तो उसके हलक से अस्फुट स्वर निकलने लगे… फिर सरोज ने कहा, ”बोलो, कैसा लगा हमारा यह गेम?“
”मजा आ गया फूफी।“ सविता ने सरोज का गाल चूमते हुए कहा।
”यह खेल औरत का औरत के बीच होता है। यह सुरक्षित भी है तथा इसमें इज्जत जाने की चिन्ता नहीं रहती। किसी को कानों-कान पता भी नहीं चला और हम तृप्त भी हो गए। मान लो कि घर में कोई और और होता भी, तो वह हम पर शक नहीं करता, क्योंकि हमारे बीच कोई पुरूष नहीं है।“
दोनों कुछ देर यूं ही बातें करते रहे, फिर एकाएक पुनः जोश में आ गए और एक राउण्ड और मारने लगे…
सरोज ने पुनः सविता को निर्वस्त्र किया और उसकी जांघों में बीच में मुंह चलाने लगी….
सवितां उम्म्म्माआ आआआहह की आवाज निकाल रही थी.
वह चाहती तो नहीं थी आवाज करना, पर हो रहा था। सरोज ने उसका तभी नीचे का अंग-वस्त्र उतार फंेका और उसकी कामगाह में उंगली घुसा दी. सरोज तड़प गई, उसने सरोज को कहा- मत करो ना ।
पर सरोज रुक नहीं रही थी। वह सविता की कमसिन क्यारी में उंगली का करतब दिखा रही थी।
सवितां उम्म्ह… अहह… हाय… उउफ्फ कर रही थी। उसे पूरा मजा आने लगा तो उसने भी सरोज के कबूतरों को जारों से मसलने लगी।
फिर सरोज को पता नहीं क्या हुआ, वो सविता के गुलाबी होंठों को चूमने लगी.
सविता को बहुत मजा आ रहा था।
8-10 मिनट किस करने के बाद सरोज, सविता की प्यासी गीली क्यारी को चाटने लगी, सविता उम्म्म्म आआहह फूफी आहह और करो… आआअहह आहह उम्म्म्मममा आहह करने लगी।
सविता इतने ज्यादा जोश में थी कि मैं जल्दी ही तृप्त हो गई।
सविता उठने लगी, तो तभी सरोज बोली, ”अभी लेटी रहो और मेरी प्यास को शांत करो। फिर सविता ने भी सरोज को ऐसे प्यार किया कि उसकी प्यास भी जल्द ही शांत हो गई।
और उसके बाद हम नहा धोकर तैयार फ्रेश हो गये।
सरोज कुछ दिनों के लिए सविता के घर रहने आयी थी, लेकिन सविता को इस खेल का ऐसा चस्का लगा, कि उसने सरोज को अपने घर में पूरे दो सालों के लिए रखा।
कथा लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है।