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Kamvasna xxx kahani मस्तराम की मस्त मालकिन

Kamvasna xxx kahani मस्तराम की मस्त मालकिन

बस… यहीं से दोनों के बीच तनाव बढ़ गया। यद्यपि इस बीच कम्मो ने कई तांत्रिकों की शरण ली, तो उन्होंने भी पति में ही कमी बताई।
कहते हैं कि औरत का शक पत्थर की लकीर होता है। कम्मो को भी शक होने लगा था, कि उसका पति नपुंसक है, जिससे वह कभी मातृत्व सुख प्राप्त नहीं कर पायेगी। इस कारण घर में कलह होने लगी। कलह बढ़ी, तो बलजीत ने शराब पीना शुरू कर दिया।
अब वह दुकान बंद कर पहले शराब के ठेके पर जाता, फिर लड़खड़ातेे कदमों से घर पहंुचता। कभी खाना खाता, कभी बिना खाये ही चारपाई पर लुढ़क जाता। कम्मो भी नफरत से भरी रहती थी, तो पति की परवाह ही न करती थी। वह तो उसे ठूंठ समझने लगी थी।
इन्हीं दिनों बलजीत ने चक्की चलाने के लिये एक नया नौकर रख लिया। उसका नाम मस्तराम था।
मस्तराम हाईस्कूल तक पढ सका था। उसके बाद एक चक्की पर काम करने लगा था। वहीं उसने चक्की चलाना सीखा। कुछ साल काम करने के बाद उसने वहां काम छोड दिया और पिता के साथ खेती करने लगा था।
एक रोज उसे मालूम हुआ, कि बलजीत को चक्की चलाने के लिये मिस्त्राी की जरूरत है, तो वह बलजीत से मिला। बातचीत व वेतन तय करने के बाद बलजीत ने मस्तराम को नौकरी पर रख लिया।
मस्तराम मेहनती था। पिसाई भी अच्छी करता था, अतः साल बीतते वह बलजीत का चहेता बन गया। मस्तराम की वजह से उसकी आटा बिक्री भी बढ़ गयी थी। अतः दुकान का सारा भार उसने मस्तराम को ही सौंप दिया था। मस्तराम दिन भर की बिक्री का हिसाब-किताब बलजीत को सौंप देता, फिर दुकान बन्द कर अपने घर चला जाता।
एक रोज मस्तराम दुकान पर पहंुचा, तो दुकान बन्द थी, जबकि बाजार का दिन था और कई ग्राहक सामान लेने खड़े थे। सोच-विचार में डूबा मस्तराम अपने मालिक बलजीत के घर पहंुचा। उसने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, तो बलजीत ने दरवाजा खोला।
मस्तराम को देखकर वह बोला, ‘‘आज मेरी तबियत खराब है। तुम जाकर दुकान ‘‘खोल लो। तबियत हल्की हुयी, तो दोपहर बाद तक आ जाऊंगा।’’
‘‘ठीक है भइया, आप आराम करें।’’ कहकर मस्तराम चाबी लेकर चलने लगा।
तभी बलजीत पुनः बोला, ‘‘अरे मस्तराम आये हो, तो चाय नाश्ता कर लो। अभी मैंने भी चाय नहीं पी है।’’ फिर उसने अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘अरे कम्मो, जरा दो कप चाय और साथ में कुछ नमकीन ले आओ।’’
कम्मो मन-ही-मन बुदबुदाई। फिर कुछ देर बाद चाय और नमकीन लेकर आई। कम्मो जब झुकर टेª मेज पर रखने लगी, तो मस्तराम उसे ठगा-सा देखता रह गया। वह कभी बलजीत को देखता, तो कभी कम्मो को, जिसके दिलकश चेहरे में गजब का आकर्षण था।
वह बलजीत से उम्र में भी कम लग रही थी। लगता था जैसे 20.22 साल की शोख हसीना हो। जबकि बलजीत उसके सामने कहीं भी नहीं ठहरता था। वह पहली ही नजर में कम्मो का दीवाना बन गया।

 

जो हाल मस्तराम का था, वही कम्मो का। उसने भी हृष्ट-पुष्ट नौजवान मस्तराम को देखा, तो सोचने लगी, कि काश! ऐसा ही मर्द उसकी जिंदगी में होता, तो जीवन खुशहाल बन जाता। ललचायी नजरों से देखती हुयी कम्मो बैठ गयी और पति से बोली, ‘‘वह कौन है? पहली बार देख रही हूं। कोई खास मेहमान है? कहो तो खाना-वाना बना देती हूं।’’
‘‘अरे नहीं…. नहीं।’’ मुस्करा कर बताया बलजीत ने, ‘‘यह मस्तराम है। बड़ा मेहनती है। दुकान पर काम करता है। जब से यह आया है। दुकान अच्छी चलने लगी है। आटा की सप्लाई भी बढ़ गयी है। आज दुकान नहीं पहंुच पाया, तो चाबी लेने घर आ गया।’’
मस्तराम, कम्मो का दीवाना बन गया था, अतः किसी न किसी बहाने वह कम्मो के पास पहंुच जाता और उसके रूप सौन्दर्य की तारीफ करता।
मस्तराम भूल गया, कि उसका रिश्ता नौकर मालकिन का है। कम्मो भी मस्तराम की तरफ आकर्षित थी। अतः दोनों में हंसी-मजाक होने लगा। कभी कभी यह हंसी-मजाक सामाजिक मर्यादाओं को भी लांघ जाता था, लेकिन कम्मो बुरा नहीं मानती थी।
दरअसल मस्तराम को कम्मो से मिलने दो बार मौका मिलता था। पहला मौका दिन में दो बजे जब उसकी खाना खाने की छुटटी होती थी। दूसरा मौका तब जब बलजीत शाम को दुकान बन्द कर ठेका की ओर बढ़ जाता था।
ऐसी ही एक शाम मस्तराम ने कम्मो को अपने दिल की बात बता दी। कम्मो ने भी अपनी स्वीकृत दे दी, कि वह भी उसे चाहती है। इतना सुनते ही मस्तराम ने कम्मो को बांहों में भरकर चूम लिया।
धीरे-धीरे कम्मो ने भी उसकी जांघों पर हाथ रख दिया और उसके शरीर से छेड़छाड़ करने लगी। मस्तराम, कम्मो की इस हरकत पर हैरान नहीं, बल्कि मन-ही-मन रोमांचित हो रहा था। वह समझ गया था, कि आज उसकी हसरत, जो उसने ना जाने कब से अपने सीने में छिपा कर रखी हुई थी, आज पूरी होने वाली है।
कम्मो द्वारा की जा रही छेड़छाड़ से मस्तराम भी उत्तेजित होने लगा था। वह धीरे-से बोला, ‘‘भाभी, आप चाह क्या रही हैं, कहीं आप बिस्तर का मजा…।’’
‘‘चुप नादान देवर।’’ एक मादक सिसकी लेते हुए कम्मो ने मस्तराम के होंठों पर अंगुलि रख दी, ‘‘जब सब समझ रहे हो, तो निठल्लों की तरह क्या बैठे हो?’’ वह उसकी आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘आओ न, दरवाजा बंद है और बिस्तर खाली है।’’ वह शिकायती भरे स्वर में बोली, ‘‘ऐसे में तड़पा क्यों रहे हो? जल्दी से मेरे और अपने वस्त्रा निकाल फेंको इन तपते जिस्मों से।’’
अब तो कम्मो के कामुक रूपी शब्दों के तीरों ने मस्तराम को घायल करके रख दिया। वह वासना की आग में तिल-तिल जलने लगा। उसने झट से कम्मो को बांहों में भींच लिया और बिस्तर पर लेटा दिया। फिर उसके ऊपर झुक कर उसके गुलाबी होंठों का रसपान करते हुए उसके गोरे, उन्नत दुधिया कलशों को दीवानों की तरह मसलने लगा
‘‘वाह! मेरे राजा।’’ कम्मो ने भी कस कर मस्तराम के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘आज तो मेरे बदन की एक-एक हड्डी को चटखा कर रख देना।’’ फिर वस्त्रों के ऊपर ही वह मस्तराम के ‘हथियार’ को टटोलते हुए बोली, ‘‘इतनी देर से खामखां बेवकूफ बना रहे थे।’’ वह मुस्करा कर बोली, ‘‘तुम्हारा ‘जिस्म’ तो बहुत सख्त हो रहा है।’’ वह मसखरी करते हुए बोली, ‘‘लगता है, तुम्हारी निगाहें पहले से ही मेरे गोरे नाजुक जिस्म पर लार टपका रही थीं।’’
‘‘सही ताड़ा, तुमने मेरी जान।’’ अब मस्तराम भी उसे पूरी तरह खुल गया, ‘‘मैं तो तुम्हें ना जाने कब से अपने नीचे पीसने के लिए मचल रहा था। जब भी तुम्हें देखता, तो बस यही सोचता था, कि काश! कब ये जिस्म मेरे नीचे होगा, ताकि मैं अपने जिस्म की हर हसरत को तुम्हें रौंद कर पूरा कर सकूं।’’
‘‘ओहो!’’ मुस्करा कर बोली कम्मो, ‘‘तो जनाब छुपे रूस्तम निकले।’’ कम्मो ने मस्ती में उसके वस्त्रों के ऊपर ही उसके खास ‘जिस्म’ को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तो अपना ये ‘जिस्म’ ना कब से मेरी ‘देह’ में मन-ही-मन महसूस रहे थे।’’ फिर एक मादक अंगड़ाइे लेते हुए बोली, ‘‘तो फिर आज मन की हसरत पूरी कर लो। मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी।’’
फिर कम्मो उसके कान में फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘अब इन बैरी वस्त्रों को अपने तन से जुदा करो न।’’ फिर मुस्करा पड़ी, ‘‘तब तक मैं भी अपने वस्त्रा…।’’ और फिर शरमा गयी कम्मो।
फिर देखते ही देखते दोनों ने अपने सभी वस्त्रा अपने तन से जुदा कर डाले और बिस्तर पर एक ओर फंेक दिए। कम्मो ने जब मस्तराम के जवां, गठीले ‘बदन’ को देखा, तो वह मन-ही-मन रोमांचित हो उठी। उसे लगा आज तो शामत नहीं मेरी ‘देह’ की।

 

फिर सोचने लगी, कि मजा भी तो इसी में है, कि बिस्तर पर संसर्ग के दौरान पाटर्नर का मजबूत ‘बदन’ उसकी ‘देह’ में समा कर उसकी गहराई को नापते हुए पूर्णतः तृप्त कर डाले।
फिर तो दोनों बिस्तर पर आदमजात अवस्था में एक-दूसरे जिस्म के अंगों को नांेचने-खसोटने लगे। कभी कम्मो उसके खास ‘महमान’ को पकड़ कर झटका देती, तो कभी मस्तराम उसके अंगों को जोरों से मसलने लगता।
कम्मो पर तो ऐसा नशा चढ़ चुका था हवस का कि वह पागलों की भांति मादक सिसकियां भरी जा रही थी और मस्तराम को अपने ऊपर खींचते हुए बड़बड़ा रही थी, ‘‘मालकिन समझ कर नहीं, अपनी लुगाई समझ कर प्यार करो। मैंने अपनी देह तुम्हारे हवाले कर दी है, अब तो तुम इसके मालिक हो, जैसे चाहो वैसे मजा लो और प्यार करो।’’
‘‘मजा लूंगा ही जानेमन और साथ ही मजा दूंगा भी।’’ उसके होंठों को बेतहाशा चूमते हुए बोला मस्तराम, ‘‘आज तेरी जवानी का सारा रस निचोड़ डालूंगा मैं।’’ कहकर जोरों से उसके दुधिया कबूतरों को मसल दिया मस्तराम ने।
‘‘उई मां।’’ एकदम उचक कर बोली कम्मो, ‘‘कोई रबड़ की नहीं बनी हूं मैं, जो इस प्रकार बेरहमों की तरह नोंच रहे हो मेरे नाजुक अंगों को।’’ फिर मुस्करा कर बोली, ‘‘वैसे जोर दिखाना ही है, तो मेरे नीचे के मयखाने में दिखाना। वह इतनी नशीली शराब है, जिसका नशा तुम्हारे सिर चढ़कर बोलेगा।’’
‘‘हाय तो फिर करा दो न अपने मयखाने के दर्शन मेरी जान।’’ कहकर मस्तराम ने कम्मो की टांगों को विस्तार दिया और उसके मयखान में उतर गया।
‘‘उफ! ओ मा…।’’ इस बार और भी तेज स्वर में चीखती हुई बोली कम्मो, ‘‘लोहे को बने हो क्या…?’’ वह जबडे़ भींचते हुए बोली, ‘‘हाय…रे चीर डाला मेरा दिल…मजा दो मेरे राजा..सजा नहीं।’’
‘‘मजा भी आयेगा मेरी रानी।’’ बिना रूके और बिना हटे ही बोला मस्तराम, ‘‘थोड़ा सा सब्र कर लो, उसके बाद देखना। तुम्हारे मयखाने से सारी शराब न चूस ली तो कहना। ऐसे आनंद के सागर में डूब जाओगी, कि बाहर निकलने का मन नहीं करेगा तुम्हारा।’’
फिर वाकई मस्तराम ने उसके मयखाने की भीगी शराब को ऐसे पीया कि कम्मो चारों खाने चित्त हो गई।
जब वह अपनी चरम पर पहुंच चुकी, तो कसकर मस्तराम से चिपकती हुई बोली, ‘‘ओह मस्तराम…श्…आ.उम..बस करो अब। रूक जाओ…मेरा स्टेशन आ गया है। तुम भी उतरो और मुझे भी उतर जाने दो।’’

जिस प्रकार से मस्तराम ने कम्मो को भोगा था, कम्मो उसके जोश, प्यार करने के अंदाज व उसके सख्त व मजबूत ‘बदन’ के नीचे पिसकर खुद को गर्वित महसूस कर रही थी। उसे अपना पति बलजीत, मस्तराम के आगे एकदम नपुंसक महसूस हो रहा था।
इसके बाद कम्मो के लिए मस्तराम ही सब कुछ हो गया। उसने पति को दिल से निकाल दिया और उसकी जगह मस्तराम को दिल में बसा लिया। कम्मो, मस्तराम का ज्यादा सानिध्य पाना चाहती थी, इसलिए उसने एक उपाय खोजा।
कम्मो ने एक दिन पति से कहा, ‘‘आप दुकान दूकान बन्द करने के बाद पैसे मस्तराम के हाथ घर भिजवा दिया करें। क्योंकि आपको तो पीने की लत है, किसी ने पैसे मांग लिये या झगडा हो गया, तो नुकसान हो जायेगा।’’
कम्मो की यह बात बलजीत ने मान ली। इस तरह कम्मो और मस्तराम का रिश्ता और भी प्रगाढ़ हो गया।
कम्मो से मिलन की भूख मिटाने के लिए कभी-कभी मस्तराम रात में बलजीत के घर छुपकर बैठ जाता। जब बलजीत देर रात नशे में धुत्त होकर घर आता और चारपाई पर पसर कर खर्राटे भरने लगता, तो कम्मो तथा मस्तराम की रंगीन रातों का सफर शुरू हो जाता। फिर सवेरा होने से पहले मस्तराम चला जाता।
कहते हैं, कि अवैध संबंधों का भान्डा किसी न किसी दिन फूट ही जाता है। ऐसा ही मस्तराम और कम्मो के साथ भी हुआ। उस रोज शाम को दूकान बन्द कर बलजीत घर पहुंचा और पत्नी से बोला, ‘‘कम्मो मंै अपने दोस्त के घर जा रहा हूं। उसके भाई का तिलक है। रात में घर नहीं लौट पाऊंगा। तुम होशियारी से रहना।’’
यह सूचना कम्मो के लिए काफी संतोष जनक थी। बलजीत घर से चला गया, तो कम्मो ने मस्तराम से मोबाइल पर बात की और तुरन्त घर आने को कहा। मस्तराम यघपि घर पहंुच गया था, लेकिन कम्मो के प्यार का दीवाना मस्तराम बहाना बनाकर घर से चल पडा।
कुछ ही देर बाद वह कम्मो के घर पहुंच गया। मस्तराम के पहंुचते ही कम्मो चिहुंक उठी और बोली, ‘‘आज रात तो मौजा ही मौजा है। तुम्हारे मालिक झीझक गये हैं। कल ही आ पायेंगे।’’
कहते हुए कम्मो ने अपनी बाहों का हार मस्तराम के गले में डाल दिया। फिर दोनांे कमरे के अंदर कैद हो गये।
सुबह करीब चार बजे बलजीत लौट आया। मनेाज ने कमरे का दरवाजा खटखटाया कम्मो को आवाज दी। लगभग पांच मिनट बाद कम्मो ने दरवाजा खोला और उसके दोनों पल्ले को पकड़ कर खडी हो गयी, ‘‘अरे आप!’’ वह बोली, ‘‘इतनी जल्दी आ गये।‘‘
‘‘हां, क्यों?’’ बलजीत ने पूछा।
कम्मो के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी और उसकी भयभीत आंखें नीचे झुकी हुयी थी और तभी बलजीत को कमरे के अन्दर आहट सुनाई दी, तो उसने पूछा, ‘‘अंदर कौन है?’’
कम्मो ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो बलजीत का मन आशंका से भर गया। उसने कम्मो को धकेल कर एक ओर किया और कमरे के अन्दर दाखिल हो गया। अन्दर कदम रखते ही सामने का दृश्य देखकर उसके बदन में आग लग गई। उनका नौकर मस्तराम पलंग के नीचे छुपने का प्रयास कर रहा था। बलजीत उसे देखकर चीखा, ‘‘निकल बाहर। तू तो आस्तीन का सांप निकला।’’
मस्तराम उठकर खड़ा हो गया। बलजीत ने लात घंूसो से उसे पीटा फिर वह भाग गया। कम्मो अभी तक पकडे़ गये चोर की तरह मुंह लटकाए खड़ी थी। बलजीत का पूरा शरीर गुस्से से जल रहा था। उसने नफरत से पत्नी की ओर देखा ओर फिर चोटी पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया। फिर उसे भी लात घूसों से बेतहाशा पीटने लगा। उसने कम्मो को तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते-मारते थक गया।

इस घटना के बाद बलजीत ने अपने घर में मस्तराम के आने पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नौकरी से भी निकाल दिया। मस्तराम, कम्मो से मिलने कई दिनों तक नहीं आया। किन्तु वह कम्मो की मोहब्बत के कारण दिल से मजबूर था।
उसकी आंखें कम्मो को देखने के लिए तरसने लगी और दिल बेचैन रहने लगा। जो हाल मस्तराम का था, वही कम्मो का भी था। वह भी मस्तराम के बिना जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी।
इधर बलजीत ने मस्तराम को नौकरी से निकाल दिया, तो उसका धंधा चैपट हो गया। आटा की सप्लाई रुकी, तो फुटकर दूकानदारों ने पैमेन्ट रोक लिया। बलजीत चक्की चलाने वाले नौकर की खोज कर रहा था, लेकिन कोई मिल नहीं रहा था।
इसी बीच मस्तराम अपना वेतन मांगने बलजीत के पास पहुंचा। बलजीत का नरम रुख देखकर मस्तराम ने माफी मांगी और पुनः काम पर रखने का आग्रह किया। बलजीत को भी नौकर की सख्त जरुरत थी, सो न चाहते हुए भी उसने मस्तराम को नौकरी पर रख लिया।
मस्तराम नौकरी करने लगा, तो उसके चंचल मन में कम्मो को पाने की चाहत फिर से जाग उठी। एक रोज जब बलजीत गेहूं खरीदने मण्डी गया, तो उचित मौका देखकर मस्तराम, कम्मो के पास पहुंच गया।
मस्तराम को देखते ही कम्मो की आंखें डबडबा आईं। वह आवेश में आकर मस्तराम से लिपट गयी। फिर उसने कहा, ‘‘मस्तराम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। शराब के नशे में बलजीत आदमी से राक्षस बन जाता है और ताने देकर बुरी तरह पीटता है।’’
मस्तराम ने कम्मो को सांत्वना देते हुए समझाया, ‘‘भैया ने मुझे माफ कर दिया है। अब सब ठीक हो जायेगा।’’
इसके बाद मस्तराम और कम्मो का शारीरिक मिलन पुनः होने लगा। लेकिन अब दोनों बेहद सतर्कता बरतने लगे। पर एक दिन सतर्कता के बावजूद पड़ोसी कृष्ण गोपाल की पत्नी रोशनी ने मस्तराम को कम्मो के साथ आंगन में अश्लील हरकत करते देख लिया। उसने यह बात अपने पति कृष्ण गोपाल को बताई। फिर कृष्ण गोपाल ने बलजीत को चेताया।
बलजीत ने इस बावत से पूछताछ की तो वह साफ मुकर गयी। इस पर बलजीत को गुस्सा आ गया और वह कम्मो को पीटने लगा।
कम्मो पिटने से बचने के लिए त्रिया चरित्र करने लगी और बोली, ‘‘मुझे क्यों पीटते हो? पीटना ही है, तो उस रोजश को पीटो, जो जबरन मेरे जिस्म से खेलकर चला जाता है।’’ वह मगरमछ के आंसू बहाते हुए बोली, ‘‘मैं लाख मना करती हूं, परन्तु वह अपनी हवस मिटाने के बाद ही छोड़ता है। मैं चीखने की कोशिश करती हूं, तो तुम्हें जान से मारने की धमकी देता है। तब मैं बेबस हो जाती हूं।’’
कम्मो की बात सुनकर बलजीत का हाथ जहां का तहां रुक गया। फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘यदि ऐसी बात थी, तो तूने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?’’
‘‘कैसे बताती, तुम्हारा धंधा बन्द नहीं हो जाता। तुम्हें याद नहीं, पिछली बार जब तुमने उसे निकाल दिया था, तब धंधा मंदा पड़ गया था। तभी तो तुमने दोबारा उसे नौकरी पर रखा था।’’
‘‘अरे धंधा जाये भाड़ में। एक बार उस दो टके के नौकर मस्तराम को माफ कर दिया था, तो क्या बार-बार थोडे़ ही माफ कर दूंगा।’’ वह आंखों से अंगारे बरसाता हुआ बोला, ‘‘अब तो मैं उसे सबक सिखा कर ही रहूंगा, लेकिन…?’’
‘‘लेकिन क्या?’’ कम्मो ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या सोचा है तुमने?’’
‘‘मैंने जो भी सोचा है, उसमें तुम्हें मेरा साथ देना होगा।’’ बलजीत ने सख्त भाव से पूछा, ‘‘दोगी न मेरा साथ?’’
‘‘म… मु… मझे क्या करना होगा?’’ कम्मो ने थूक निगलते हुए पूछा।

‘‘उसे घर बुलाना होगा। फिर हम दोनों मिलकर उसको सदा के लिए शांत कर देंगे।’’ गंभीर होकर बोला बलजीत।
‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती। यह तो पाप है।’’ कम्मो घबरा कर बोली।
‘‘जब तुम उस कमीने के साथ रंगरेलिया मनाती थी, तब पाप नहीं था और अब पाप-पुण्य समझा रही है।’’
कुछ देर ना नुकुर के बाद कम्मो, पति का साथ देने को तैयार हो गयी। उसके बाप बलजीत व कम्मो ने मस्तराम की हत्या की योजना बनायी।
इस योजना की जानकारी कम्मो ने मस्तराम को नहीं दी और पहले जैसा प्यार दर्शाती रही। मस्तराम को जरा भी आभास नहीं हुआ, कि उसकी मौत का ताना-बाना बुना जा चुका है।
योजना के तहत शाम को मस्तराम ने दुकान बंद की और चाभी बलजीत को देकर घर के लिये रवाना हुआ। अभी उसने कस्बा पार ही किया था, कि मोबाईल की घंटी बजी।
स्क्रीन पर नजर डाली, तो नम्बर कम्मो का था। उसने मोबाईल रिसीविंग वाला बटन दबाया और बोला, ‘‘हां भाभी कहिए, सब ठीक तो है?’’
‘‘तुम्हारे बिना सब ठीक कैसे हो सकता है?’’ मादक स्वर में बोली कम्मो, ‘‘तुम्हारी याद सता रही है। जल्दी अपनी कम्मो के पास चले आओ।’’
‘‘ठीक है भाभी, मैं चन्द मिनटों में आता हूं।’’ मन ही मन कम्मो के गुदाज बदन को पाने की खुशी में चहक रहा था मस्तराम, ‘‘हाय! क्या मजा आयेगा, जब कम्मो भाभी के वस्त्रा उतार कर उसकी देह में समाऊंगा।’’
कुछ देर बाद ही मस्तराम कम्मो के घर आ गया। आते ही उसने कम्मो को बाहों मंे भरा तो कम्मो छिटक कर दूर हो गयी और बोली, ‘‘मस्तराम अबतक तुम जबर्दस्ती करते रहे, लेकिन अब नहीं कर पाओगे। मुझे हाथ लगाया तो पछताओगे।’’
‘‘यह तुम क्या कह रही हो भाभी!’’ हैरत से बोला मस्तराम, ‘‘मंैने कभी जबर्दस्ती नहीं की, जो मिलन हुआ तुम्हारी मर्जी से हुआ।’’
कहते हुए मस्तराम ने ज्यांे ही कम्मो को दोबारा बाहों में भरा त्यों ही सामने बलजीत आ गया। मस्तराम को देखकर बलजीत उस पर टूट पड़ा और डंडे से उसकी पिटाई करने लगा। मस्तराम दरवाजे की ओर भागा तो कम्मो सामने आ गयी। उसने कमरे की कंुडी अन्दर से बन्द कर ली।
मस्तराम पिटते हुए जमीन पर गिर पड़ा। मस्तराम हाथ पैर चलाने लगा तो कम्मो ने उसके पैरों को दबोच लिया और बलजीत ने गला कस दिया। फिर कुछ देर बाद ही मस्तराम की सांसे थम गयी।

कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।

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