जब मैंने +2 के एग्जाम्स दे दिए तब छुट्टी में मैं अपनी बुआ के घर देहरादून गई थी।
वहाँ उनका बेटा वरुण यानि मेरा भाई उस समय 19 साल का था, हम दोनों बहुत खेलते थे, जैसे कैरम, ताश, स्क्रैम्बल वगैरा और मस्ती करते थे।
वरुण कैरम का जैसे चैम्पीयन है। वो खुद को वैसे भी कुछ ज्यादा ही होशियार समझता था, मैं उसकी इस बात से चिढ़ती थी तो इसी चिढ़ में मैं उसे येन केन प्रकारेण हराना चाहती थी।
एक बार हम कैरम खेल रहे थे, जून की गर्मी के दिन थे, मैंने एक पतली सफेद शर्ट ओर चेक की स्कर्ट पहन रखी थी जो घुटनों तक ही थी।शमीज मैंने गर्मी की वजह से पहनी ही नही थीं, ब्रा उस समय तक पहननी शुरू ही नहीं की थी।
गर्मी की वजह से पसीने मई मेरी शर्ट गीली हो गई थी और मेरे गोरे बूब्स दिखने लगे थे।
मैंने देखा कि भैया का ध्यान आज कैरम में नहीं है, उनकी नज़र बार बार मेरे वक्ष पर ही जा रही थी, इसलिये कैरम में बार बार उनका निशाना चूक रहा था।
मुझे बहुत मजा आ रहा था, मेरी 4 गोटी निकल गई थी, जबकि भैया ने केवल एक निकाली थी।
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अब उस दिन मैंने उसे हराने का तरीका सोच ही लिया।
मैंने शर्ट के ऊपर का एक बटन खोलकर खेल से उनका ओर भी ध्यान हटाया जिससे मैं गेम जीत जाऊँ।
फिर मैंने ध्यान दिया कि भैया मेरी टाँगों को भी देख रहे हैं तो मैंने गर्मी का बहाना करके और बार बार निशाना लेने के लिए अपनी स्कर्ट भी ऊपर को खींच दी।
अब भैया बार बार मेरी गोरी गोरी जांघें देखने की कोशिश कर रहे थे।
एक बार उन्होंने क्वीन निकाल ली, कवर भी उनके सीधे निशाने पर था, उन्हें हराने के जोश में आकर मैंने अपने दोनों पैर खोल दिए और ऐसा दिखाया जैसे मुझे पता ही नहीं… और अपनी नज़रें ऊपर उठा कर भगवान से प्रार्थना करने लगी- प्लीज महावीर जी… भैया की गोटी नहीं निकलनी चाहिये…
भैया तो मेरी पैंटी देखते ही रह गये और उनका निशाना चूक गया।
मुझे बहुत मज़ा आया… इस तरह उस दिन मैंने पहली बार अपने भैया को कैरम के खेल में हराया।
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